राजनीति विज्ञान / Political Science

संयुक्त राष्ट्र संघ की संरचना, स्थापना, उद्देश्य तथा सिद्धान्त तथा संयुक्त राष्ट्र संघ का संविधान

संयुक्त राष्ट्र संघ की संरचना
संयुक्त राष्ट्र संघ की संरचना

संयुक्त राष्ट्र संघ की संरचना

जिस प्रकार प्रथम महायुद्ध की विभीषिका से आहत मानव जाति को भावी युद्ध व संत्रास से बचाने व मानव कल्याण की दृष्टि से एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता महसूस की गई, उसी प्रकार द्वितीय महायुद्ध की विभीषिका के बाद पुनः एक कारगर व प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना महसूस की गई। प्रथम महायुद्ध के बाद राष्ट्र संघ (League of of के Nations) की स्थापना 1920 में हुई। किन्तु अपने अन्तर्विरोधों के चलते अपने उद्देश्यों व शान्ति तथा मानवता के कल्याण की पूर्ति करने में वह नितान्त असफल रहा तथा विश्व को एक और विनाशकारी व भयंकर महासमर का सामना करना पड़ा। फलतः यह स्वयं अप्रासंगिक (Irrelevant) हो गया। किन्तु अभी तक यू. एन. उस स्थिति तक नहीं पहुँचा व कुल मिलाकर अच्छा कार्य कर रहा है।

संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना- (अक्टूबर 1945)

द्वितीय महायुद्ध की भीषण त्रासदी व हिरोशिमा व नागासाकी की दुःखद दास्तान के बाद पुनः विद्वानों, बुद्धिजीवियों, शान्तिप्रिय नागरिकों व विश्व के राजनेताओं ने एक शक्तिशाली व प्रभावकारी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन की आवश्यकता महसूस की। अतः व्यापक विचार-विमर्श तथा विविध घोषणाओं व सम्मेलनों के फलस्वरूप एक प्रभावशाली संगठन की स्थापना, अक्टूबर, 1945 को की गई जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) के नाम से जाना जाता है।

चूँकि यू०एन० की अधिकारिक स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 को हुई थी, अतः इस दिन को यू०एन० स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसके स्थापित सदस्य 51 थे जबकि आज इसकी सदस्यता 191 तक पहुँच चुकी है। यह इसकी लोकप्रियता, व्यापकता, सार्थकता, प्रासंगिकता व प्रभावशीलता का प्रतीक है।

उद्देश्य तथा सिद्धान्त

इसके कुछ प्रमुख उद्देश्य तथा सिद्धान्त हैं जिनके अनुरूप यू०एन० अपनी कार्यप्रणाली व संगठन का संचालन करता है

उद्देश्य (Objects)

यू०एन० के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-

(1) सामूहिक व्यवस्था द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा कायम रखना व आक्रामक प्रवृत्तियों को नियंत्रण में रखना।

(2) अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का शान्तिपूर्ण समाधान।

(3) राष्ट्रों के आत्मनिर्णय व उपनिवेशवाद विघटन की प्रक्रिया को गति प्रदान करना ।

(4) सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं मानवीय क्षेत्रों में अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहन देना।

इनमें से तृतीय उद्देश्य अब लगभग पूरा हो चुका है। चार्टर के अनुसार इन उद्देश्यों से जुड़े हुए दो और लक्ष्य भी निर्धारित किए गये हैं। निरस्त्रीकरण व नवीन अन्तर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना।

सिद्धान्त (Principles)

चार्टर की धारा 2 के अनुसार प्रमुख सिद्धान्त इस प्रकार है-

(1) सब देशों की समानता व प्रभुसत्ता का सिद्धान्त ।

(2) सदस्य देशों द्वारा चार्टर के सिद्धान्तों का ईमानदारीपूर्वक पालन की अपेक्षा ।

(3) अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का शान्तिपूर्ण ढंग से समाधान |

(4) सभी राष्ट्रों द्वारा यू०एन० के उद्देश्यों के प्रतिकूल कोई कार्य नहीं किया जाएगा। किसी देश की स्वतन्त्रता का हनन करने या आक्रमण करने की धमकी या आक्रमण के कार्य नहीं किए जाएँगे।

(5) कोई देश चार्टर के विरुद्ध कार्य करने वाले देश की सहायता न करेंगे।

(6) यू०एन० इसकी सदस्यता न ग्रहण करने वाले देशों से भी अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा विषयक सिद्धान्त का पालन करायेगा।

(7) यू०एन० किसी देश के आन्तरिक मामलों में दखल नहीं देगा। यू०एन० का अपना नियमित बजट महासभा द्वारा दो वर्षों के लिए स्वीकृत किया जाता है। यू०एन० का बजट सदस्य देशों के अंश दान से बनता व चलता है। अमेरिका की इसमें मुख्य भूमिका है।

संयुक्त राष्ट्र संघ का संविधान

यू०एन० के संविधान को चार्टर (Charter) कहते हैं। इसमें प्रस्तावना के अतिरिक्त 19 अध्याय और 111 अनु० हैं। निश्चित नियमों व कार्य पद्धति के द्वारा संशोधन किया जा सकता है। संशोधन तभी प्रभावी होता है जब महासभा का बहुमत व सुरक्षा परिषद् के पाँचों स्थायी सदस्यों (अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, व ब्रिटेन) का समर्थन प्राप्त हो जाए।

संयुक्त राष्ट्र के अपने कुछ निश्चित उद्देश्य व सिद्धान्त हैं। सबसे प्रमुख उद्देश्य सामूहिक व्यवस्था द्वारा विश्व में शान्ति व व्यवस्था कायम रखना है। सबसे प्रमुख सिद्धान्त उसके गठन का आधार सभी देशों की समानता व सम्प्रभुता है। अब तक वह अपने उद्देश्यों व सिद्धान्तों में यद्यपि पूरी तरह से सफल नहीं हो सका, किन्तु अधिकांश क्षेत्रों में उसे सफलता प्राप्त हुई है। उसका मुख्यालय संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयार्क शहर में है। इसका अपना एक ध्वज भी है जिस पर विश्व का मानचित्र बना हुआ है। अंग्रेजी व फ्रेन्च इसकी कार्यकारी भाषाएँ हैं।

सदस्यता

इसकी सदस्यता चार्टर में आस्था रखने वाले हर देश के लिए खुली है। इन्हें महासभा के दो तिहाई बहुमत व सुरक्षा परिषद के 9 सदस्यों की स्वीकृति प्राप्त होना चाहिए जिनमें 5 सदस्यों की स्वीकृति अनिवार्य रूप से प्राप्त होनी चाहिए। सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्यों को विशेषाधिकार (Veto) प्राप्त है। वर्तमान में इसकी सदस्य संख्या 191 है। हाल ही में तुवालू को इसकी सदस्यता प्राप्त हुई है।

प्रमुख अंग

इसके प्रमुख अंग 6 हैं- महासभा, सुरक्षा परिषद, आर्थिक व सामाजिक परिषद्, न्यास परिषद् (अब इसका काम सीमित है) अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय व सचिवालय इसके अतिरिक्त इसके कुछ विशिष्ट अभिकरण भी हैं। सचिवालय का प्रमुख महासचिव होता है। इस समय श्री कोफी अन्नान महासचिव के पद पर हैं जिनकी कुछ समय पूर्व दोबारा नियुक्ति हुई है।

संयुक्त राष्ट्र की प्रासंगिकता

संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व का एक महत्त्वपूर्ण व प्रभावी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है। शान्ति सुरक्षा व मानव कल्याण से जुड़ मसलों पर इसकी उपलब्धियों व असफलताओं की एक लम्बी फेहरिस्त है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने यथा संभव अपने उद्देश्यों व सिद्धान्तों के अनुरूप कार्य करने का प्रयास किया और बहुत कुछ सफलतायें भी अर्जित की जिनमें उसे सफलता नहीं मिली उसके लिए विश्व की महाशक्तियाँ व परिस्थितियाँ भी बहुत कुछ उत्तरदायी रही हैं। यू०एन० ने कांगों समस्या, सोमालिया, नामीविया, स्वेज नहर, कोरिया, कम्बोडिया, ईरान-इराक युद्ध, यूगोस्लाविया, खाड़ी युद्ध, पश्चिमी तथा अफगान समस्या व आतंकवाद आदि समस्याओं के समाधान के लिए सार्थक व प्रभावी भूमिका निभाई है। अमरीका ने अफगान पर आक्रमण हेतु भी स्वीकृति प्रदान करके अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद को समाप्त करने की पहल पर भी मुहर लगाकर अपने प्रभाव व दृष्टिकोण का परिचय दे दिया है। इसीलिए इसकी प्रासंगिकता आज भी बरकरार है। वर्ष (2001) का नोबल पुरस्कार यू०एन० व कोफी अन्नान को संयुक्त रूप से अन्तर्राष्ट्रीय स्थायी शान्ति व एक सुरक्षित शान्तिमय व सुदृढ़ विश्व बनाने की संकल्पना में सक्रिय भूमिका के निर्वाह हेतु दिया गया है। इससे भी इसकी सार्थकता व प्रासंगिकता का पता चलता है।

किन्तु बहुत से अहम् मसलों पर सार्थक व प्रभावी निर्णय न ले पाना यू०एन० की सबसे बड़ी असफलता व अप्रासंगिकता है। इसकी अहम् वजह है पाँच स्थायी सदस्यों की वीटो की शक्ति। जब भी किसी अन्तर्राष्ट्रीय समस्या के समाधान के लिए प्रभावी प्रयास किये गये तब अपने स्वार्थी हितों के लिए स्थायी सदस्यों ने वीटो का प्रयोग किया। कश्मीर, पश्चिमी एशिया, अफगान व अन्य इस प्रकार की कई समस्यायें इसका ज्वलन्त उदाहरण हैं। पश्चिमी एशिया. दक्षिणी पूर्वी एशिया व अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका के कई देशों की समस्यायें आज भी स्थायी, समाधान हेतु तरस रही हैं। 5 स्थायी सदस्य राष्ट्रों की भूमिका व दबदबे की गंभीरता को एक पूर्व महासचिव बुतरस घाली के ये शब्द स्पष्ट करते हैं कि “संयुक्त राष्ट्र संघ से बड़ी ताकतों का दबदबा जब तक खत्म नहीं हो जाता तब तक विश्व के गरीब देशों का भला नहीं हो सकता। संयुक्त राष्ट्र संघ से यूरोपीय मानसिकता समाप्त होनी चाहिए।”

वस्तुतः भविष्य में भी यू०एन० को अपना अस्तित्व व प्रभाव बनाये रखने के लिए अपने आप में सुधार करना होगा तथा प्रभावी व सार्थक भूमिका का निर्वाह करना होगा तथा अधिक प्रजातांत्रिक स्वरूप व दृष्टिकोण का परिचय देना होगा। मोना बिल्लोरे के अनुसार, “बहरहाल संयुक्त राष्ट्र संघ भविष्य में भी अपना वजूद बनाये रखना चाहता है, तो उसे लोकतांत्रिक स्वरूप अपनाना होगा।” तभी उसकी सार्थकता सिद्ध होगी व सदैव प्रासंगिक बना रह सकेगा।

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