नवीन शीत युद्ध के स्वरूप एवं परिणाम
नवीन शीत युद्ध क्यूबा घटना के पश्चात् यद्यपि अमेरिका व सोवियत संघ के मध्य शीतयुद्ध में शिथिलता के लक्षण दिखाई पड़ने लगे तथा आगे चलकर देतान्त के फलस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय तनाव में पर्याप्त कमी आई किन्तु सन् 1978 के पश्चात् अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज पर उभर रही कई नवीन प्रवृत्तियों से नवीन शीत युद्ध को प्रोत्साहन मिला। उल्लेखनीय है कि वियतनाम युद्ध के दौरान सोवियत संघ द्वारा चोरी छुपे अपनी सशस्त्र सैन्य शक्ति में वृद्धि तथा अन्तरिक्ष में अमेरिका से आगे निकलने की प्रवृत्ति (Missile Gap) से चिन्तित होकर अमेरिकी राष्ट्रपति रीगन ने पुनः शस्त्र उद्योग को बढ़ावा देने तथा शस्त्र स्पर्द्धा को तीव्र करने का संकल्प दोहराया। रीगन की सोवियत विरोधी नीति से नया शीतयुद्ध और भी उम्र हो उठा। इसी बीच 27 दिसम्बर 1979 को अफगानिस्तान-सोवियत हस्तक्षेप से स्थिति और जटिल हो गयी। अफगानिस्तान घटना से न केवल अमेरिका हतप्रभ रह गया अपितु प्रतिक्रियास्वरूप उसने साल्ट-II समझौते को स्थगित करने के अतिरिक्त सोवियत संघ को दी जा रही समस्त सहायता स्थगित कर दी। सोवियत संघ की इस कार्यवाही से कम्बोडिया और लाओस में भी साम्यवादियों को पर्याप्त बल मिला तथा हेंग सेमरिन ने वियतनाम से समर्थन व सहायता प्राप्त करके 7 जून, 1979 को पोसपोत के खमेर शासन का तख्ता पलट दिया। उधर अमेरिकी इशारे पर 17 फरवरी, 1979 को चीन द्वारा वियतनाम पर आक्रमण से न केवल सोवियत वियतनाम सम्बन्ध सुदृढ़ हो गये अपितु इस सम्पूर्ण क्षेत्र में सोवियत प्रभाव पर अंकुश लगाने के अमेरिकी मनसूबों को गहरा आघात लगा। उधर सोवियत संघ द्वारा यूरोप में एस. एस. 20 प्रक्षेपास्त्रों की तैनाती की घोषणा के प्रतिक्रियास्वरूप नाटो की भूमि पर अमेरिका द्वारा ‘क्रूज’ व पर्शिग’ मिसाइलों के लगाने की घोषणा से सामरिक स्थिति अत्यन्त जटिल हो गयी।
शीतयुद्ध के इस नये चरण में अमेरिका द्वारा जो भी कदम उठाये गये वे साम्यवाद विरोधी न होकर सोवियत-विरोधी थे तथा शीतयुद्ध के चरण में अमेरिका ने न केवल फ्रांस व ब्रिटेन को प्रत्यक्षतः अपने साथ रखा अपितु उसने चीन से भी मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना करके सोवियत वर्चस्व को शिथिल करने की हर सम्भव कोशिश की। उल्लेखनीय है कि जहाँ पुराने शीतयुद्ध का प्रभाव क्षेत्र मूलतः यूरोप तक ही विस्तृत था वहीं नवीन शीतयुद्ध का क्षेत्र फारस की खाड़ी, हिन्द महासागर व दक्षिण-पूर्वी एशिया तक विस्तृत हो गया। खाड़ी क्षेत्र के भू सामरिक महत्त्व को ध्यान में रखते हुए अमेरिका ने यहाँ अपना दबाव बनाये रखा। अमेरिकी राष्ट्रपति कार्टर ने यह घोषणा की थी कि खाड़ी क्षेत्र में किसी बाह्य शक्ति द्वारा नियंत्रण के प्रयास ने को अमेरिकी हितों पर आक्रमण मानते हुए उसे हटाने हेतु सैन्य शक्ति का प्रयोग किया जायेगा। इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु अमेरिका ने त्वरित-प्रविस्तार शक्ति (R.D.F.) का गठन किया जिसका मुख्यालय हिन्दमहासागर स्थित डीगोगार्सिया को बनाया गया। इस गतिशील सैन्य दल में 1,50,000 नाविक व सैनिक, 3 विमान वाहक पोत, 230 विमान, 4 मालवाहक जहाज, 16 क्रूजर व विध्वंसक पोत सम्मिलित हैं। अमेरिका ने भारत-सोवियत मैत्री संधि (9 अगस्त, 1971) को देखते हुए जहाँ एक ओर भारत पर अंकुश लगाने हेतु पाकिस्तान को शस्त्र आपूर्ति करके उसे अपने दक्षिण एशियाई क्षेत्र का अग्रिम आधार बनाया वहीं चीन के साथ अपने सम्बन्धों को सुदृढ़ करके चीन-सोवियत के मध्य दरार उत्पन्न करने की हर सम्भव चेष्टा की जिससे सोवियत संघ को भारत व चीन से पृथक करके उसकी शक्ति को क्षीण किया जा सके।
यद्यपि सोवियत राष्ट्रपति आन्द्रोपोव चेरनेन्को ने (1982-85) अमेरिका के साथ बिगड़ रहे अपने सम्बन्धों को सामान्य बनाने का प्रयत्न अवश्य किया किन्तु इसी बीच सन् 1983 में सोवियत संघ द्वारा दक्षिण कोरिया के एक यात्री विमान को मार गिराने में सोवियत प्रयत्नों को गहरा आघात लगा किन्तु बाद में मार्च 1985 में मिखाइल गोर्बाच्चोव के सत्ता में आने के पश्चात् विश्व शान्ति की स्थापना, क्षेत्रीय सामरिक संतुलन व परमाणु निरस्त्रीकरण की दिशा में अमेरिका से बातचीत की पहल के फलस्वरूप तनाव-शैथिल्य को अपेक्षित सफलता मिली। रीगन-गोर्बाच्चोव के मध्य सम्पन्न शिखर सम्मेलनों के फलस्वरूप 8 दिसम्बर, 1987 को सम्पन्न आई. एन. एफ. सन्धि व 14 अप्रैल, 1988 को हुए अफगान-समझौते के फलस्वरूप धीरे-धीरे सोवियत अमेरिकी सम्बन्धों में छाया अविश्वास व घृणा का वातावरण मैत्रीपूर्ण वातावरण में परिवर्तित हो सका। 15 फरवरी, 1989 को अन्तिम रूप से सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान से अपनी सेनाओं की वापसी के पश्चात् सोवियत संघ में उत्पन्न अस्थिरता से जहाँ एक ओर गोर्बाच्चोव की ‘पेरेस्त्रइका’ व ग्लासनोस्त’ नीतियों के कारण उसकी शक्ति क्षीण होती गयी वहीं पाकिस्तान द्वारा अफगान मुजाहिदीनों के समर्थन व अफगान-समझौते के उल्लंघन से इस क्षेत्र में शान्ति स्थापना का प्रयास निष्फल दिखने लगा। फलतः, अमेरिका व सोवियत संघ ने 12 अगस्त, 1991 को मास्को में पुनः समझौते पर हस्ताक्षर करके अफगानिस्तान को सैन्य आपूर्ति प्रतिबन्धित कर क्षेत्रीय स्थिरता व शान्ति स्थापना का महत्त्वपूर्ण प्रयास किया। इसी बीच सोवियत-विघटन के परिणामस्वरूप न केवल शीतयुद्ध का अन्त हो गया अपितु अमेरिकी नेतृत्व में स्थापित नूतन विश्व-प्रणाली व एकध्रुवीय ने नवीन सामरिक, कूटनीतिक व राजनैतिक समीकरण उत्पन्न करके अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया।
इसे भी पढ़े…
- शीत युद्ध का अर्थ | शीत युद्ध की परिभाषा | शीत युद्ध के लिए उत्तरदायी कारण
- शीत युद्ध के बाद यूरोप की प्रकृति में क्रांतिकारी परिवर्तन हुए। इस कथन की विवेचना करो ?
- शीतयुद्ध को समाप्त करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
- शीत युद्ध में अमेरिका और सोवियत संघ की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- शीत युद्ध के विकास के प्रमुख कारणों की विवेचना करो।
- दितान्त अथवा तनाव शैथिल्य का अर्थ एवं परिभाषा | दितान्त के कारण
- अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर शीत युद्ध का प्रभाव की विवेचना कीजिए।
- शीत युद्धोत्तर काल के एक ध्रुवीय विश्व की प्रमुख विशेषतायें का वर्णन कीजिए।
- शीतयुद्धोत्तर काल में निःशस्त्रीकरण हेतु किये गये प्रयास का वर्णन कीजिए।
- तनाव शैथिल्य का प्रभाव | अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था पर दितान्त व्यवहार का प्रभाव
- द्वितीय शीत युद्ध के प्रमुख कारण | नवीन शीत युद्ध के प्रमुख कारण | उत्तर शीत युद्ध के शुरू होने के कारक
- नये एवं पुराने शीत युद्ध में क्या अंतर है स्पष्ट कीजिए?