
नेतृत्व की शैलियाँ
ओहियो स्टेट विश्वविद्यालय के सेविवर्गीय शोध ने नेतृत्व को 5 वर्गों में रखा है-
1. नौकरशाह- ऐसा नेता केवल निर्धारित दिनचर्या से चिपका रहता है, अपने वरिष्ठों को सन्तुष्ट करने का प्रयास करता है, और अधीनस्थों की अपेक्षा करता है। अधीनस्थ ऐसे नेता के प्रति उदासीनता एवं अवज्ञा की भावना रखते हैं।
2. तानाशाह या अधिनायक- ऐसा नेता निरंकुश होता है और अपने कर्मचारियों से काम लेते समय भय दिखाना, डराना-धमकाना, प्रताड़ित करना, आदि विधियों का उपयोग करता है। ऐसे नेता के अधीनस्थ विरोधी हो जाते हैं एवं स्वार्थ सिद्धि में लगे रहते हैं।
3. कूटनीतिज्ञ – ऐसा नेता अवसरवादी होता है और लोगों का शोषण करता है। उनमें लोगों का विश्वास नहीं रहता है।
4. विशेषज्ञ- ऐसा नेता केवल अपने क्षेत्र से ही सम्बन्धित होता है। वह अपने अधीनस्थों के साथ सहयोग के रूप में व्यवहार करता है। उसके सहकर्मी उसका आदर करते हैं, परन्तु वे किसी परिवर्तन के विरुद्ध होते हैं।
5. शहभागी – ऐसा नेता अपने अधीनस्थों के साथ अपना घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित कर लेता है, चाहे उसके वरिष्ठ अधिकारी उससे अप्रसन्न ही क्यों न हो जायें। किस आर्गरिस ने तीन प्रकार के नेताओं में अन्तर स्थापित किया है— निदेशक अनुज्ञात्मक या अनुमतिबोधक तथा सहयोगी।
1. निदेशक प्रकार का नेता- यह पारितोषिक के साथ-साथ दण्ड की भी व्यवस्था करता है। इसके अधीनस्थ अपने आपको मातहत समझते हैं और इसके कारण निष्क्रिय होते हैं। उनका मनोबल क्षीण होता है जिसके कारण नेतृत्व विकसित नहीं हो पाता है।
2. अनुज्ञात्मक या अनुमतिबोधक प्रकार का नेता- ऐसा नेता दूसरे के लिए कार्य की शुरूआत करता है। इसमें सहनशक्ति अधिक होती है और वह दूसरों की भावनाओं के प्रति संवेदनशील होता है। यह निर्धारित कार्य को पूरा तो करा लेता है, परन्तु नेतृत्व का विकास करने में असफल होता है।
3. सहयोगी प्रकार का नेता- ऐसा नेता दूसरों में पहल शक्ति, निर्णय लेने की क्षमता तथा कार्य करने की विधियों को विकसित करने में सहायता प्रदान करता है। वह दूसरों को अपनी आवश्यकताओं और उनकी सीमाओं को समझने के अवसर देता है। वह अपनी भावनाओं को स्वतन्त्रतापूर्वक व्यक्त करता है।
टेरी ने नेतृत्व के छः प्रकार बतलाये हैं: व्यक्तिगत नेतृत्व अव्यक्तिगत नेतृत्व आदेशात्मक नेतृत्व लोकतान्त्रिक नेतृत्व पैतृकवादी नेतृत्व तथा स्थानीय नेतृत्व उपर्युक्त आधार पर सामान्यतः नेतृत्व की जो शैलियां देखने को मिलती हैं उनको निम्न खण्डों में स्पष्ट किया गया है-
1. निरंकुश नेतृत्व— यह एक एसा नेतृत्व है जिसके अन्तर्गत अनुयायी भयवश कार्य करते हैं। अधीनस्थ वही कार्य करते हैं जिसे करने के लिए कहा जाता है। ऐसा नेता अपने अधीनस्थों में दण्ड की भावना भर देता है जिससे लोगों में नौकरी के छूटने, पदावनति, मजदूरी कमी, आदि का भय बना रहता है।
इस प्रकार का नेता सम्पूर्ण अधिकार अपने हाथ में रखता है तथा समस्त शक्ति और निर्णय लेने का अधिकार उसी में केन्द्रित होता है। ऐसा नेता निर्णयन प्रक्रिया में अपने अधीनस्थ की भागीदारी की अनुमति नहीं देता है और इस बात को भी सहन नहीं करता है कि उसके अनुयायी उसकी आज्ञा का उल्लंघन करें। इस प्रकार के नेतृत्व के अन्तर्गत अनुयायी पूर्णतया अपने नेता पर ही निर्भर करते हैं तथा लक्ष्यों और अन्तिम उद्देश्य से अनिभिज्ञ होते हैं। नेता ही ऐसे निर्णय लेता है जो वह अपने अधीनस्थों के हित में सर्वोत्तम समझता है। दूसरे शब्दों में, वह अपनी इच्छाओं को निर्णय के रूप में अपने अधीनस्थों पर थोप देता है। ऐसे नेतृत्व से अपेक्षित | परिणाम तो प्राप्त हो जाते हैं, परन्तु इसमें सबसे अधिक गम्भीर दोष यह है कि जब तक नेतृत्व अच्छा होगा तब तक तो अनुयायियों के हितों की सुरक्षा होगी और नेता कमजोर और अकुशल होगा, तो उसके अनुयायी भी हीन और अकुशल बने रहेंगे।
2. निर्बाध नेतृत्व- यह एक ऐसे प्रकार का नेतृत्व है जिसमें नेता अपने अनुयायियों और अधीनस्थों के साथ सम्पर्क नहीं रखता है और उन्हें अपने लक्ष्य निर्धारित करने तथा स्वयं निर्णय लेने के लिए अवसर प्रदान करता है। वास्तव में, अधीनस्थों को पर्याप्त अधिकार सौंप दिये जाते हैं। ऐसा नेता मार्गदर्शन नहीं करता है। इस प्रकार वह आज्ञा देने के अयोग्य होता है। वह सम्पूर्ण प्रयास में शायद ही अपना योगदान देता है। फलतः सम्पूर्ण संगठन में अव्यवस्था पायी जाती है, क्योंकि यह व्यक्तियों को विभिन्न दशाओं में कार्य करने की अनुमति प्रदान करता है। ऐसा नेतृत्व उसी स्थिति में सफल हो सकता है जबकि अधीनस्थ पूर्णतया समझदार तथा कर्तव्य के प्रति निष्ठावान हो। यही कारण है कि इस प्रकार का नेतृत्व कुछ विशेष परिस्थितियों में ही सफल हो सकता है। सामान्य रूप से इस प्रकार के नेतृत्व को अपनाने का सुझाव नहीं दिया जा सकता।
3. जनतन्त्रीय नेतृत्व – जनतन्त्रीय विचारों वाला नेता ऐसा व्यक्ति होता है जो कि समूह के साथ विचार-विमर्श करके नीतियों का निर्माण करता है। इस प्रकार के नेतृत्व की अवधारणा अधिकार तथा निर्णयन के विकेन्द्रीकरण पर आधारित है। एक लोकतान्त्रिक नेता अपने अनुयायी को एक सामाजिक इकाई के रूप में कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करता है तथा समूह के सदस्यों की निपुणताओं और योग्यताओं का पूरा-पूरा लाभ उठाता है। वस्तुतः वह एक वाद्यमण्डल, न कि एक व्यक्ति वाले बैण्ड, के निदेशक के रूप में काम करता है और वह यह महसूस करता है कि उसका कार्य अपने कर्मचारियों के सहयोगशील कार्य को समन्वित करना है। नेता अपने अधीनस्थों की आवश्यकताओं और रुचियों को समझता है और उनके साथ दया व निष्ठापूर्वक व्यवहार करता है। ऐसे नेता को कर्मचारी केन्द्रित न कि कार्य केन्द्रित नेता कहा जाता है।
जनतन्त्रीय नेता के निम्नलिखित प्रमुख लक्षण होते है-
1. वह विचार-विमर्श द्वारा नीतियों का निर्माण करता है।
2. वह समूह के साथ परामर्श करने के बाद ही आदेश देता है।
3. वह अपने अधीनस्थों को अपने कार्यक्षेत्रों में महत्वपूर्ण निर्णय लेने की अनुमति देता है।
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