
नेतृत्व की परिभाषाएं
कतिपय प्रमुख प्रबन्धशास्त्रियों द्वारा दी गयी नेतृत्व की परिभाषाएं निम्नलिखित है-
जॉर्ज आर टेरी ने नेतृत्व को उस योग्यता के रूप में परिभाषित किया है जो उद्देश्यों के लिए स्वेच्छा से कार्य करने हेतु प्रभावित करता है।
लिर्बिग्स्टन के अनुसार नेतृत्व से आशय उस योग्यता से है जो अन्य लोगों में एक सामूहिक उद्देश्य का अनुसरण करने की इच्छा जाग्रत करती हैं।
मूरे नेतृत्व को एक ऐसी योग्यता मानते हैं जो व्यक्तियों को नेता द्वारा अपेक्षित विधि के अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित करती है।
जॉन जी. ग्लोबर नेतृत्व को प्रबन्ध का वह महत्वपूर्ण पक्ष मानते हैं जो उस योग्यता, सृजनशीलता, पहल शक्ति तथा सहानुभूति को व्यक्त करता है जिसकी सहायता से संगठन प्रक्रिया में मनोबल का निर्माण करके लोगों का विश्वास, सहयोग एवं कार्य करने की तत्परता प्राप्त की जाती है।
ऑर्डवे टीड के अनुसार, “नेतृत्व उन गुणों के संयोग का नाम है जिसको रखने पर कोई व्यक्ति अन्य व्यक्तियों से काम लेने के योग्य होता है, विशेषकर उसके प्रभाव द्वारा अन्य लोग स्वेच्छा से कार्य करने के लिए तैयार हो जाते हैं।’
उपर्युक्त परिभाषाओं का अध्ययन करने पर यह ज्ञात होता है कि नेतृत्व एक दी हुई स्थिति में लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में किसी व्यक्ति या समूह के प्रयासों को प्रभावित करने की प्रक्रिया है।
नेतृत्व की प्रमुख विशेषताएं
नेतत्व की परिभाषाओं का विश्लेषण करने पर उसकी निम्नलिखित प्रमुख विशेषताएं स्पष्ट होती है—
1. अनुयायियों को एकत्रित करना- बिना अनुयायियों के नेतृत्व की कल्पना करना कठिन है। वास्तव में, बिना समूह के नेतृत्व का कोई अस्तित्व ही नहीं है, क्योंकि नेता या नायक केवल अनुयायियों अथवा समूह पर ही अपने अधिकार का प्रयोग कर सकता है। नेतृत्व का उद्देश्य अपने चारों ओर अपने अनुयायियों अथवा व्यक्तियों के समूह को एकत्र करना तथा उन्हें किसी पूर्व निर्धारित सामूहिक उद्देश्य के प्रति निष्ठावान बनाये रखना है।
2. आचरण एवं व्यवहार को प्रभावित करना- नेतृत्व प्रभाव के विचार की अपेक्षा करता है, क्योंकि बिना प्रभाव के नेतृत्व की कल्पना नहीं की जा सकती। नेतृत्व की सम्पूर्ण अवधारणा अब व्यक्तियों के एक-दूसरे के प्रभाव पर केन्द्रित है। लोक प्रशासन में नेतृत्व की भूमिका का सार ही यह है कि कोई अधिशासी किस सीमा तक अपने सहयोगी अधिशासियों के आचरण या व्यवहार की अपेक्षित दिशा में प्रभावित कर सकता है। परन्तु इस सम्बन्ध में यह ध्यान रहे कि अन्य व्यक्तियों के आचरण को प्रभावित करे के आशय उनसे अनुचित रूप से कार्य लेने से नहीं है। उसका कार्य अपने अधीनस्थ व्यक्तियों को निदेशन देना तथा उन्हें एक निश्चित ढंग से कार्य करने के लिए प्रेरित करना है ताकि उनमें समझदार स्वहित वाली प्रतिक्रिया स्वतः जाग्रत हो सके।
3. पारस्परिक सम्भव- मेरी पार्कर फौले ने नेता तथा अनुयायियों के मध्य पारस्परिक सम्बन्ध को नेतृत्व की प्रमुख विशेषता माना है। नेता वह नहीं है जो दूसरों की इच्छा को निर्धारित करता है, परन्तु वह है जो यह जानता है कि दूसरों की इच्छाओं को किस प्रकार अन्तर सम्बन्धित किया जाय कि उनमें एक साथ मिलकर कार्य करने की प्रेरणा स्वतः जाग्रत हो सके। इस प्रकार एक नेता न केवल अपने समूह को प्रभावित करता है वरन् वह स्वयं भी अपने समूह द्वारा प्रभावित होता है।
4. सामूहिक लक्ष्य – नेतृत्व की यह प्रकृति एवं स्वभाव है कि वह अपने अनुयायियों के प्रयत्नों को सामूहिक लक्ष्यों या उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु निदेशित करता है। अतः नेता का यह कर्तव्य है कि वह कुछ लक्ष्यों को स्पष्ट रूप से परिभाषित कर दे जिससे कि अनुयायी इन लक्ष्यों से अपने हितों का एकीकरण कर सकें।
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