आदेश की एकता से आप क्या समझते हैं?
आदेश की एकता से अभिप्राय- आदेश की एकता का अर्थ है कि संगठन के अन्तर्गत कार्य करने वाला कोई भी कर्मचारी अपने ऊँचे एक से अधिक अधिकारी से आदेश ग्रहण नहीं करेगा। यदि संगठन में किसी व्यक्ति से दो परस्पर विरोधी आदेशों को मानने को कहा जाता है, तो उसके परिणामस्वरूप भ्रम तथा अकुशलता उत्पन्न होती है। आदेश देने वाले को एक होने के कारण ही इसे आदेश की एकता का सिद्धान्त कहा जाता है।
पिफनर तथा प्रेस्थस के अनुसार-“आदेश की एकता से यह आशय है कि किसी संगठन का प्रत्येक सदस्य एक ओर केवल एक वरिष्ठ अधिकारी के प्रति ही जवाबदार होगा।”
फेयॉल के अनुसार— “किसी कर्मचारी को केवल एक ही उच्च अधिकारी द्वारा आदेश दिया जाना चाहिए।”
संगठन में आदेश की एकता की आवश्यकता
संगठन में अनेक समस्याएँ उठती हैं। कई बार प्रशासन कर्मियों को उच्च अधिकारी एक ही समय अलग-अलग आदेश दे देते हैं। कर्मियों की समझ में नहीं आता कि कौन-से आदेश का तुरन्त पालन करें। अनिश्चिय की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। संगठन से सम्बन्धित इस समस्या का केवल एक समाधान है—’आदेश की एकता’। यह सिद्धान्त संगठन की सफलता के लिए अत्यन्त आवश्यक है। इस सिद्धान्त के अनुसार प्रशासन के उच्च अधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मिकों को एक से आदेश देंगे। उन आदेशों में परस्पर विरोध नहीं होगा। प्रशासन को सक्षम तथा कुशल बनाने के लिए आदेश एकता मूलभूत सिद्धान्त है। सेना तथा प्रायः पुलिस विभाग में भी इस सिद्धान्त का पूर्णतः पालन किया जाता है। इसलिए इनका प्रशासन कुशल होता है। हरबर्ट साइमन के अनुसार “संगठन में एकता के सिद्धान्त को प्राथमिकता मिलनी चाहिये।”
आदेश की एकता सिद्धान्त के गुण
आदेश की एकता का सिद्धान्त संगठन में एक व्यक्ति, एक स्वामी अवधारणा को स्थापित करता है। इस सिद्धान्त के कई गुण हैं, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-
1. इस सिद्धान्त से प्रशासन में कार्य कुशलता का विकास होता है।
2. यह स्कैलर पद्धति के अनुकूल है।
3. कर्मचारियों में आज्ञा के सम्बन्ध में भ्रान्ति उत्पन्न नहीं होती।
4. इसमें प्रत्येक कर्मचारी अपने तात्कालिक उच्च अधिकारी को अच्छी तरह से जानता है, उसे यह पता रहता है कि उसे किससे आदेश ग्रहण करने हैं और वह किसके प्रति उत्तरदायी हैं।
आदेश की एकता स्थापित करने के उपाय
इनका प्रथम उपाय यह है कि एक प्रकार के कार्य से सम्बन्धित एक ही इकाई में एक ही उच्च अधिकारी होना चाहिये। यदि एक इकाई में दो उच्च अधिकारी होंगे, तो उनके आदेशों तथा निर्देशों में परस्पर विरोध की सम्भावना हो सकती है। एक विशिष्ट विषय में एक ही अधिकारी को आज्ञा देनी चाहिये। यदि एक विषय में दो उच्च अधिकारी परस्पर विरोधी आदेश देंगे, तो विवाद की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है और अनिश्चित की भी। इससे प्रशासन की कुशलता पर प्रभाव पड़ता है। यदि एक कर्मचारी को एक साथ दो आदेश प्राप्त हो जायें, तो उसे चाहिये कि वह उच्च अधिकारी से वस्तु स्थिति स्पष्ट कर लें।
आदेश की एकता में बाधाएँ
आदेश की एकता के सभी उपाय अपनाने पर भी कभी-कभी ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जाती है कि ‘आदेश की एकता’ का सिद्धान्त पूर्णतः कठोरता से लागू न किया जा सके। सिद्धान्त का व्यवहार में प्रयोग करते समय कई अकल्पनीय कठिनाइयाँ सामने आ जाती हैं। इसलिए विद्वानों का मत है कि आदेश की एकता के सिद्धान्त का कठोरता से पालन किये जाने पर बहुत आग्रह नहीं करना चाहिये। डॉ. एम. पी. शर्मा के अनुसार, “सैद्धान्तिक आधारों पर आदेश की एकता का सिद्धान्त नितान्त अनिवार्य प्रतीत होता है, परन्तु व्यवहार में इसमें महत्त्वपूर्ण अपवाद करने आवश्यक होते हैं।”
असमंजस्य की स्थिति में आदेश की एकता पर आग्रह करना उचित नहीं है। ऐसी स्थिति में तो समयानुसार सूझ-बूझ तथा स्वविवेक का सहारा लेना उपर्युक्त है। यद्यपि प्रशासन की कुशलता तथा सक्षमता के लिए आदेश को एकता एक आवश्यक सिद्धान्त है तथापि परिस्थिति के अनुसार इसके प्रयोग करने में उदारता बरती जा सकती है। यह सफल प्रशासन के लिए आवश्यक भी है।
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