लोक प्रशासन का सांस्कृतिक परिवेश
लोक प्रशासन का सांस्कृतिक परिवेश- किसी भी देश का सांस्कृतिक परिवेश प्रशासन के मूल्यों और दृष्टिकोणों को निर्धारित करता है। यह एक आम धारणा है कि संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्य परिवर्तनशील होते हैं और प्रशासन इस परिवर्तन को लाने वाला महत्वपूर्ण यन्त्र है। भारत में लोक प्रशासन और संस्कृति के सम्बन्ध का अध्ययन करते हुए कॉ. पी. सिंह ने लिखा है, “भारत में नए परिवेश से उत्पन्न नवीन चुनौतियों का सामना करने के लिए प्रशासन नए स्वभाव और व्यवहार को अपना रहा है। इस दृष्टि से प्रशासन निरन्तर ही हमारे समाज की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य व्यवस्था के साथ अन्तरक्रिया कर रहा है।”
संस्कृति की परिभाषा करते हुए पं. जवाहर लाल नेहरू ने लिखा है: “संस्कृति शारीरिक या मानसिक शक्तियों का प्रशिक्षण, दृढ़ीकरण या विकास अथवा उससे उत्पन्न अवस्था है। यह मन, आचार अथवा रूढ़ियों की परिष्कृति या शुद्धि है। यह सभ्यता का भीतर से उठना है।”
महाकवि इकबाल ने ठीक ही कहा था, “यूनान, मिस्र, रोमां सब मिट गए जहां से, बाकी नगर है अब तक नामों निशां हमारा ।” विश्व के इतिहास से ईरान, रोम, यूनान, मिस्त्र, आदि देशों की प्राचीन संस्कृतियों के अस्तित्व का लोप हो गया तथा वे केवल इतिहास की बात बनकर रह गए, किन्तु भारत अपनी प्राचीन संस्कृति के साथ आज भी मौजूद है। भारतीय संस्कृति की अविरल धारा आज भी प्रवाहित हो रही है।
वस्तुतः भारतीय संस्कृति की कहानी एकता, समाधानों के समन्वय एवं प्राचीन परम्पराओं के पूर्व सहयोग तथा उन्नति की कहानी है। भारतीय संस्कृति का प्रवाह अविरल है। मार्ग में व्यवधान आए और उसे अवरुद्ध करने का प्रयास किया। वे व्यवधान भारतीय संस्कृति के प्रवाह को मन्थर तो कर सर्व, किन्तु उसे पूर्णतया अवरुद्ध नहीं कर सके। संक्षेप में, भारतीय संस्कृति का प्रवाह अविरल बन, रहा, पूर्णतया शुष्क नहीं हो सका।
भारतीय संस्कृति की धारा कभी-कभी और कहीं-कहीं अवरुद्ध तो हुई, किन्तु समय-समय पर भारतीय महापुरुषों ने उन्हें पुनः एकता के सूत्र में गठित कर दिया। आधुनिक स्वरूप प्रदान किया तथा पुनः एक संजीव धारा के रूप में प्रवाहित कर उसे शाश्वत बना दिया। संक्षेप में भारतीय संस्कृति की निम्नलिखित विशेषताएं हैं।
उदारता- भारतीय संस्कृति विभिन्न संस्कृतियों के समागम से बनी एक ऐसी संस्कृति है। जो सबकी विशेषताओं से संयुक्त है। यह समन्वय इसलिए सम्भव हो सका क्योंकि यहां की कृति में अपार सहिष्णुता के तत्व हैं जो समन्वय की प्रक्रियाओं को बल देते हैं। आर्य लोगों 4 सिन्हा सभ्यता के तत्वों को स्वीकार कर लिया और सिन्धु सभ्यता आर्यों के जीवन में शनैः शनैः सही गयी। यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रही। यद्यपि इस्लाम की विचारधारा तत्कालीन संस्कृति से भिन्न-भिन्न रहने की थी; फिर भी इस्लाम तथा भारतीय संस्कृति ने एक दूसरे को प्रभावित किया और दोनों में काफी परिवर्तन आ गया। सुप्रसिद्ध इतिहासकार डाडवेल ने लिखा है, “भारतीय संस्कृति महासमुद्र के समान है, जिसमें अनेक नदियां आ-आकर विलीन होती रही। हैं।”
अनेकता में एकता- अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की अपूर्व विशेषता है। भारत एक ऐसा देश है जिसमें अनेक धर्म, जाति भाषा और उप-संस्कृति के लोग निवास करते । हैं। जहां पंजाब में सिखों की काफी संख्या है, वहां जम्मू-कश्मीर में मुसलमान धर्मावलम्बी मिल जाएंगे तो उत्तरी भारत में जैन धर्मावलम्बी काफी संख्या में निवास करते हैं। भाषा की विविधता भारतीय समाज की विलक्षणता है। उत्तर भारत का निवासी दक्षिण की भाषा नहीं समझ पाता और न ही दक्षिण का निवासी उत्तर की भाषा। भारत के संविधान में 18 भाषाओं को मान्यता दी गई हैं। भारत में क्षेत्रीय विविधता भी पायी जाती है। भारत में हिन्दू दीपावली और होली मनाते हैं तो मुसलमान ईद का त्यौहार तथा ईसाई क्रिसमस ।
इन सब विविधताओं के बावजूद भारतीय संस्कृति विभिन्न संस्कृतियों का समन्वित रूप है। यह संस्कृति रसायन के प्रयोग से तैयार हुई है। इसके अन्तर्गत अनेक संस्कृतियों का रस समाहित है।
पन्थ निरपेक्षता – भारत में सभी धर्मों के मानने वालों को न केवल सम्मान और इज्जत के साथ समान अधिकार और संरक्षण की गारण्टी प्राप्त है बल्कि वे देश के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में सक्रिय रूप से भाग ले रहे हैं। इस बात को कोई भूल नहीं सकता कि मौलाना अबुल कलाम आजाद और रफी अहमद किदवई भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख सेनापतियों में से थे। दो प्रमुख मुस्लिम नेता डॉ. जाकिर हुसैन और फखरुद्दीन अली अहमद और एक सिख ज्ञानी जैलसिंह राष्ट्रपति के सर्वोच्च पद को सुशोभित कर चुके हैं। एयर चीफ मार्शल लतीफ, मुसलमान, एयर मार्शल अर्जुनसिंह सिख थे। हमारे एकमात्र फील्ड मार्शल मानेकशा पारसी हैं।
सांस्कृतिक एकता- भारत की संस्कृति की राष्ट्रीय एकता को जन्म देती है। सांस्कृतिक एकता ने भारत को एकता के सूत्र में बांधा है। राजनीतिक दृष्टि से भारत की एकता छिन्न-छिन्न हुई है, किन्तु सांस्कृतिक एकता ने भारत को बनाए रखा है। सांस्कृतिक एकता की जड़ें भारत में इतनी गहरी हो गयी हैं कि बाह्य विविधता निरर्थक ही सिद्ध होती है।
राजनीतिक संस्कृति- किसी राजनीतिक संस्कृति में उस समाज की अभिवृत्तियाँ, विश्वास, भावनाएं, और सत्य शामिल होते हैं जिनका राजनैतिक व्यवस्था और राजनीतिक मुद्दों से सम्बन्ध होता है। जब हम भारत के सन्दर्भ में राजनीतिक संस्कृति की चर्चा करते हैं तो हमारा अभिप्राय भारत के लोगों की अभिवृत्तियों, विश्वासों, भावनाओं और मूल्यों से है अर्थात भारत के लोगों की राजनीतिक संस्थाओं, प्रक्रियाओं और संरचनाओं के बारे में क्या धारणाएं हैं?
भारत के लोगों के विश्वास हैं—कोई भी शासक हो, हमें क्या लेना-देना; जनता और नेता लोकतान्त्रिक व्यवस्था में रहते हुए भी सामन्ती तथा अर्द्ध-सामन्ती मूल्यों से चिपके रहते हैं; भारत की जनता पुलिस और कलक्टर को आज भी ‘माई-बाप’ मानती है। यहां नागरिकों का मानस अधीनस्थता का है, राजनीति और परिवार व्यक्ति प्रधान हैं। ऐसे सांस्कृतिक माहौल में प्रशासक मालिक बन जाता है और जनता सेवक, प्रशासक उच्च हो जाता है और जनता निम्न अधीनस्थ है। प्रशासन में जन उदासीनता के कारण व्यापक रूप से भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी बढ़ती है।
ऐसी सांस्कृतिक विरासत वाले देश में स्वाधीनता के बाद प्रशासन की क्या भूमिका हो? स्वाधीनता के बाद अनेक कारणों से भारत की एकता संकट में पड़ी है; विभाजनकारी प्रवृत्तियां तीव्रतम हुई हैं, धार्मिक और साम्प्रदायिक उन्माद एवं कट्टरता के कारण धर्म निरपेक्षता पर आंच आने लगी है। अतः ऐसे परिवेश में लोक प्रशासन का दायित्व राष्ट्रीय एकता को बनाए रखना, मिली-जुली सांस्कृतिक धरोहर की रक्षा करना तथा पंथ निरपेक्ष स्वरूप को सुदृढ़ करना है। संविधान निर्माताओं ने सांस्कृतिक एकता को पुष्ट करने के लिए प्रशासनिक एकरूपता पर बल दिया है। इसीलिए संविधान में अखिल भारतीय सेवाओं का प्रावधान किया गया तथा साथ ही निर्वाचन आयोग, नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक, संघ लोक सेवा आयोग, एकीकृत न्याय व्यवस्था, आदि अभिकरणों की व्यवस्था की है।
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