‘मैकियावेली अपने युग का शिशु है’ विवेचना कीजिए।
मैकियावेली का जन्म 1469 ई. में इटली के फ्लोरेंस नगर में हुआ था। इन्हें इटली का चाणक्य भी कहा जाता है। यह अपनी योग्यता तथा प्रतिभा के बल पर साधारण लिपिक के पद से गणराज्य के द्वितीय सचिव के पद पर पहुँच गया था। इसके बाद कई वर्षों तक वह फ्लोरेंस राज्य का राजदूत बनकर विदेशों में रहा। 1512 ई. में फ्रांस के प्रतिद्वन्द्वी स्पेन राज्य में इटली पर आक्रमण कर दिया और फ्रांस समर्थित शासन का अन्त करके स्पेन समर्थित शासन को स्थापित कर दिया तथा गणतन्त्रीय शासन के सभी अधिकारियों के साथ मैकियावेली को भी शासकीय पद से हटाकर कारागार में डाल दिया। परन्तु मैकियावेली अपने मित्रों की सहायता से कुछ समय बाद कारागार से मुक्त हो गया। जीवन के अन्तिम पन्द्रह वर्ष उसने समाज सेवा तथा लेखन कार्य करते हुए अत्यन्त साधारण नागरिक के समान व्यतीत की और 1527 ई. में 58 वर्ष की अवस्था में इटली के इस महान कूटनीतिज्ञ की मृत्यु हो गयी। मैकियावेली ने अपने समय में अनेक प्रसिद्ध ग्रन्थों की रचनाएँ की जिसमें प्रिंस (Prince), युद्ध की कला (the art of war) तथा फ्लोरेंस का इतिहास आदि महत्त्वपूर्ण हैं। मैकियावेली पर अपने समय की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं नैतिक वातावरण का अत्यधिक प्रभाव पड़ा था। उसे अपने समय का दार्शनिक और पर्यवेक्षक भी कहा जाता है। उसने अपने समय की परिस्थितियों को सही रूप से देखा था तथा उस समय की सामाजिक और राजनीतिक बुराइयों का अनुभव करके अपनी रचनाओं के माध्यम से उनका समाधान प्रस्तुत किया था। सेबाइन महोदय ने मैकियावेली के सम्बन्ध में लिखा है कि, “इसके युग का कोई भी अन्य व्यक्ति यूरोप के राजनीतिक विकास की दिशा को इतनी स्पष्टता के साथ नहीं देख सका, जितनी स्पष्टता के साथ इसे मैकियावेली ने देखा था। कोई भी अन्य इटली को उतने अच्छे रूप में नहीं जानता था, जितना कि मैकियावेली।”
पुनर्जागरण युग कि जिन बातों ने मैकियावेली को प्रभावित किया और उसके राजनीतिक दर्शन की दिशा को निर्धारित किया उसका वर्णन हम निम्नलिखित आधारों पर कर सकते हैं।
(1) निरंकुश राजतन्त्रों की स्थापना-चर्च तथा राज्य की सीमित सत्ता का आन्दोलन सोलहवीं सदी में पूर्णतया समाप्त हो गया था तथा दोनों ही क्षेत्रों में चर्च तथा राज्य में केन्द्रीकरण प्रारम्भ हो गया था। राजतन्त्र ने सामन्तों की शक्ति एवं पोप ने कौंसिल आन्दोलन की प्रतिनिधि । संस्थाओं का अन्त कर दिया था। इसी समय इंग्लैण्ड में हेनरी सप्तम ने, फ्रांस में लुई एकादश, चार्ल्स अष्टम तथा लुई द्वादश ने और स्पेन में फर्डिनेण्ड ने निरंकुश राजतन्त्र की स्थापना कर ली थी तथा दिन-प्रतिदिन सबल व समृद्धशाली होते जा रहे थे। इस प्रकार इस युग शक्तिशाली राजतन्त्रों का युग बन गया था। इसके मैकियावेली की रचनाओं में पर्याप्त प्रमाण प्राप्त होते हैं।
(2) राष्ट्रीयता की भावना-नैकियावेली के समय बड़े-बड़े राजतन्त्रों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हो रहा था इन शक्तिशाली राज्यों इंग्लैण्ड, फ्रांस तथा स्पेन के निवासियों में एकता की भावना विकसित हो गयी थी और वे अपने आप को दूसरे राज्यों के निवासियों से अलग समझने लगे थे किन्तु इस समय इटली पाँच राज्यों नेपल्स, रोमन चर्च मीलान की उची, वेनिस तथा फ्लोरेंस में बँटा हुआ था। ये राज्य परस्पर संघर्ष किया करते थे और पोप इनके संघर्ष का लाभ उठाते थे। इस प्रकार इटली में फूट, गृह युद्ध तथा विदेशी व्यक्तियों शासन चल रहा था। मैकियावेली में राष्ट्रीयता की भावना विद्यमान थी इस कारण वह शक्तिशाली राष्ट्रीय राजा के नेतृत्व में इटली के राज्यों का एकीकरण करना चाहता था। इसका वर्णन उसने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ प्रिंस में विशेष रूप से किया है।
(3) पुनर्जागरण-मैकियावेली की रचनाओं में पुनर्जागरण की आत्मा स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। इस समय साहित्य, कला, दर्शन, राजनीति एवं विज्ञान के क्षेत्र में मध्यकाल से आदर्शों का अन्त हो रहा था तथा यूनान और रोम के प्राचीन आदर्शों में लोगों की आस्था बढ़ रही थी। राजनीतिक क्षेत्र में सामन्तवाद का अन्त हो रहा था तथा राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना हो रही थी। और धर्म, नैतिकता, चर्च और बाइबिल का प्रभाव समाप्त हो रहा था। इसके साथ-साथ पोप की निरंकुश धार्मिक सत्ता तथा नैतिकता से लोग ऊब गये थे, धर्म और नैतिकता के स्थान पर बुद्धि, विवेक, तथा तर्क का विकास हो रहा था, इस समय व्यापार छापेखाने की कला यातायात के साधन आदि का विकास हो रहा था जिसके कारण व्यक्ति में नयी चेतना, नया दृष्टिकोण तथा स्वतन्त्रता की नयी भावना का विकास हो रहा था। इस युग की प्रमुख विशेषता सभी सीमाओं और प्रतिबन्धों से मुक्त होकर स्वच्छन्द रूप से बौद्धिक भ्रमण था। मैकियावेली ने राजनीतिक समस्याओं को सुलझाने के लिए जो सुझाव प्रस्तुत किये उनमें पुनर्जागरण का प्रभाव प्रमुक रूप से दिखाई पड़ता है।
(4) धर्म और नैतिकता- पोप का धार्मिक साम्राज्य पन्द्रहवीं शताब्दी में समाप्त हो चुका था। पॉप के विलासमय जीवन एवं कुकर्मों ने लोगों के हृदय में धर्म के प्रति श्रद्धा एवं विश्वास पूर्णतया समाप्त कर दी थी। मैकियावेली पर अपने समय की परिस्थितियों का पर्याप्त प्रभाव पड़ा था इसलिए उसने राजाओं को सलाह दी थी कि राज्य का अस्तित्व बनाए रखने के लिए आचार तथा धर्म के सिद्धान्तों की चिन्ता नहीं करनी चाहिए तथा राज्य के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए लोक कल्याण के इन सिद्धान्तों की अवहेलना करने को तैयार रहना चाहिए इस प्रकार मैकियावेली ने राजाओं को छल-बल से राज्य तथा अपने शासन को सुरक्षा करने की बात कही है। वह इटली को पोप के प्रभाव तथा नैतिक बन्धनों से मुक्त कर एक राज्य के रूप में देखना चाहता था। उसने चर्च के भ्रष्ट रूप को देख कर यह लिखा है कि, “हम इटैलियन रोम के चर्च और उसके पुजारियों के कारण ही अधार्मिक और बुरे हो गये हैं। चर्च के हम एक बात के और ऋणी हैं और यही बात हमारे लिए विध्वंस का कारण है, कि चर्च ने हमारे देश को विभाजित कर रखा है और वह अब भी ऐसा कर रहा है।”
(5) मानव स्वभाव सम्बन्धी विचार- अपने समय में मैकियावेली ने इटली के शासकों, धर्माधिकारियों, सरकारी कर्मचारियों तथा साधारण नागरिकों लगभग सभी को भ्रष्टाचार में लगे हुए देखा था। पोप और शासक के संघर्षों, पोप के षड्यन्त्रों, साधारण नागरिकों के पतित तथा स्वार्थी आचरण ने इस पर मानव के स्वभाव की अत्यन्त खराब छाप छोड़ी थी इस कारण उसके विचार से मनुष्य में न तो ईश्वरीय गुण है और न ही यह नैतिक प्राणी है वह केवल एक जानवर हैं और जानवरों की चालाकी तथा खूँखार प्रवृत्ति ही उसमें दिखाई पड़ती है।
(6) शक्तिवादी राजनीति का विचार- शक्तिवादी राजनीति का विचार मैकियावेली ने ही सर्वप्रथम प्रस्तुत किया था उन्होंने एक केन्द्रीय सत्ता की स्थापना पर विशेष बल दिया है और शक्ति की सर्वोच्चता को श्रेष्ठ माना है। डोनाल्ड एटबैल जोल ने इस सम्बन्ध में लिखा है कि, “यदि एक शब्द में मैकियावेली के चिन्तन के केन्द्रीय तत्त्व को संक्षिप्त करना सम्भव हो तो वह तत्त्व है शक्ति ।। उसका कैसे निर्माण किया जाय, उसे कैसे बनाये रखा जाय और उसका विस्तार कैसे किया जाय।” इसके साथ-साथ मैकियावेली ने राजनीति में राजनीतिक एवं कूटनीतिक दाँव-पेंच का छल-कपट के प्रयोग का समर्थन किया है।
(7) व्यक्तिवादी विचारधारा- मैकियावेली ने व्यक्तिवादी विचारधारा का भी समर्थन किया है। उन्होंने इसी विचारधारा के अनुसार शासन को यह परामर्श दिया कि प्रजाजन के धन को किसी भी दशा में छीना नहीं जाना चाहिए और व्यापार तथा वाणिज्य के विकास के लिए राज्य द्वारा सभी आवश्यक प्रयास किये जाने चाहिए। तथा शासन को व्यापार तथा वाणिज्य के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। इस प्रकार मैकियावेली ने व्यक्तिवाद का समर्थन करते हुए मानवीय व्यक्तित्व को रोमन चर्च के प्रभाव से मुक्त करके उसे पुनः प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया है।
(8) भौतिकवाद तथा उपयोगितावाद के प्रणेता- मैकियावेली ने भौतिकता और उसकी उपयोगिता का विचार भी प्रस्तुत किया है। उन्होंने माना है कि मनुष्य को इस लोक के सुख की ही कामना करनी चाहि और उसके लिए सारा प्रयत्न किया जाना चाहिए। उनके अनुसार राज्य और प्रभुता, कला और सौन्दर्य, नारी और मदिरा ये सभी भोग की वस्तुएँ हैं। उनका यह सुख प्रदान करने वाला सन्देश आधुनिक मनुष्य के लिए अत्यधिक लाभकारी है। इस प्रकार इसी आधार पर मैकियावेली को उपयोगितावादी विचारधारा का प्रवर्तक कहा जाता है।
(9) संघ राज्य के विचारक- मैकियावेली ने संघीय राज्यों की स्थापना का विचार भी प्रस्तुत किया था। इसके लिए उन्होंने इटली में कॉमनवेल्थ राज्य के निर्माण का विचार प्रस्तुत किया था। उनके अनुसार एक बार प्रिंस इकाई राज्यों को विभाजित कर उन्हें अपनी अधीनता में कर लेगा, फिर एक ऐसा राज्य बनेगा जिसमें शासन की शक्ति कुछ सीमा तक इकाइयों में विभाजित होगी। इस प्रकार मैकियावेली ने संघीय राज्यों के निर्माण की कल्पना की थी।
(10) आधुनिक शिक्षा प्रणाली के अनुयायी- मैकियावेली ने आधुनिक शिक्षा प्रणाली का समर्थन करते हुए उसके प्रमुख लक्षण भी बताए हैं। उनके अनुसार पर्यवेक्षण, यथार्थवादी दृष्टिकोण, वैज्ञानिक तटस्थता, विश्लेषण तथा ऐतिहासिक आधार ये आधुनिक अध्ययन पद्धति के प्रमुख लक्षण हैं। मैकियावेली ने अपनी सूक्ष्म और स्पष्ट दृष्टि के आधार पर तत्कालीन परिस्थितियों का पर्वयेक्षण करने तथा ऐतिहासिक आधार पर अनेक परिणाम निकाले हैं।
इस प्रकार उपर्युक्त आधारों पर हम यह स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि मैकियावेली अपने समय के शिशु हैं और इसका समर्थन करते हुए ‘डनिंग’ महोदय ने लिखा है कि, यह प्रतिभा सम्पन्न फ्लोरेंस वास्तव में अपने युग का शिशु था।” जो कि सर्वथा सत्य है। “
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