अरस्तू के राजनीति का जनक क्यों माना जाता है?
अरस्तू के अनुसार, “कानूनों की प्रभुता तथा एक समुचित तथा सन्तुलित मात्रा में सम्पत्ति एवं निजी पारिवारिक जीवन का उपबन्ध ही श्रेष्ठ है।” अरस्तू ने, रिपब्लिक में जिस आदर्श राज्य को मान्यता दी गई है, उसे ठुकराते हुए लिखा है कि “जो शासन अपनी प्रजा की भलाई के लिए होता है, वह कानून के अनुसार होता है। उसका आधार मानव प्रकृति के स्वरूप पर होता है। अतएव ऐसे शासन की प्राप्ति के लिए आवश्यक शर्ते असम्भव तथा असाध्य नहीं होनी चाहिए। अरस्तू ने अपने आदर्श राज्य का लक्ष्य नागरिकों के लिए अच्छा जीवन सुलभ होना चाहिए रखा था।
अरस्तू के आदर्श राज्य का चित्रण
व्यावहारिक सुन्दरतम राज्य अरस्तू के आदर्श राज्य का वर्णन मैकियावेली ने निम्नलिखित शब्दों में किया है—
“अरस्तू का सर्वश्रेष्ठ राज्य वह है, जिसमें अधिक-से-अधिक अनुकूल परिस्थितियाँ हों, उसके अनुसार ऐसा राज्य न तो अधिक धनी होगा और न अधिक निर्धन वह बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित होगा। वह अधिक सम्पत्ति संग्रह और व्यापार या क्षेत्र प्रसार की इच्छा से रहित होगा। वह एकतावाद सदाचारी, सुसंस्कृत और संरक्षणीय होगा। वह महत्त्वाकांक्षाओं से परे और स्व-पर्याप्त होगा।”
अरस्तू के आदर्श राज्य का चित्रण
व्यावहारिक सुन्दरम राज्य अरस्तू के आदर्श राज्य का वर्णन मैकियावेल ने निम्नलिखित शब्दों में किया है—
“अरस्तू का सर्वश्रेष्ठ राज्य वह है, जिसमें अधिक से अधिक अनुकूल परिस्थितियाँ हों, उसके अनुसार ऐसा राज्य न तो अधिक धनी होगा और न अधिक निर्धन वह बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित होगा। वह अधिक सम्पत्ति संग्रह और व्यापार या क्षेत्र प्रसार की इच्छा से रहित होगा। वह एकतावाद सदाचारी, सुसंस्कृत और संरक्षणीय होगा। वह महत्त्वकांक्षाओं से परे और स्व-पर्याप्त होगा।”
अरस्तू के आदर्श राज्य की प्रमुख विशेषतायें
अरस्तू के आदर्श राज्य की प्रमुख विशेषताओं को निम्न प्रकार वर्णित किया जा सकता है
(1) राज्य का भू-क्षेत्र
राज्य के भू-क्षेत्र के बारे में अरस्तू का विचार कि राज्य का क्षेत्र न तो छोटा हो और न ही बहुत बड़ा अर्थात् राज्य का भू-क्षेत्र उतना ही होना चाहिये कि जनता अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सुखमय जीवन व्यतीत कर सके और उसकी रक्षा भी सरलता से की जा सके। स्वयं अरस्तू के अनुसार, “राज्य के भू-क्षेत्र का विस्तार इतना होना चाहिये कि उसे एक निगाह से देखा जा सके, क्योंकि सरलता से देखे जाने वाले राज्य की सरलता से रक्षा भी हो सकती है।”
(2) राज्य की स्थिति
राज्य की स्थिति ऐसी होनी चाहिये कि वह व्यापार और सुरक्षा की दृष्टि से लाभदायक हो। डनिंग के विचारानुसार “अरस्तू के मत से राज्य समुद्रतट के काफी निकट होना चाहिये, ताकि व्यापार में कठिनाई न हो, पर समुद्रतट से इतना निकट भी न होना कि लोगों में व्यापारिक प्रवृत्ति प्रबल हो जाय।”
(3) राज्य का क्षेत्रफल
अरस्तू के अनुसार राज्य का क्षेत्रफल जनता की अनिवार्य आवश्यकताओं को पूर्ण करने योग्य तो होना ही चाहिये । क्षेत्रफल के विस्तार के सम्बन्ध में अरस्तू ने लिखा है कि “राज्य का विस्तार आत्मसंयम और उदारतापूर्ण जीवन को विकसित करने में सहायता प्रदान करता है।”
(4) जनसंख्या
जनसंख्या के सम्बन्ध में अरस्तू का विचार है कि जनसंख्या बहुत ज्यादा या बहुत कम नहीं होनी चाहिये। ज्यादा जनसंख्या में प्रत्येक नागरिकों को उसका पूरा अधिकार नहीं ल पाता और जनसंख्या कम होने से राज्य के अस्तित्व के समाप्त हो जाने का भय रहता है। परिवार भी बहुत शीघ्र या बहुत देर में नहीं करना चाहिये। अरस्तू शारीरिक या मानसिक दृष्टि से अयोग्य व्यक्तियों के विवाह की अनुमति नहीं देता।
(5) मिश्रित राज्य
अरस्तू ने एक ऐसे आदर्श राज्य की कल्पना की थी कि जो कुलीनतन्त्र तथा प्रजातन्त्र दोनों प्रणालियों पर आधारित हो। इससे स्पष्ट होता है कि वह बड़े लोगों के साथ-साथ बहुसंख्यक मध्यम वर्ग को भी सत्ता सौंपना चाहता था।
(6) नागरिकों का चरित्र
अरस्तू आदर्श राज्य के नागरिकों का चरित्र यूनानियों जैसा चाहता था अर्थात् उसके विचारानुसार नागरिकों में बुद्धि, साहस, उत्साह, आत्मसंयम एवं न्यायप्रियता आदि गुण अनिवार्य रूप से होने चाहिए।
(7) धन का बँटवारा
अधिक धन या धन की कमी दोनों ही स्थितियाँ समाज में बुराइयाँ उत्पन्न करती हैं। जिस प्रकार अधिक धन व्यक्ति को घमण्डी बनाता है उसी प्रकार धन की कमी व्यक्ति को दास के समान कुण्ठित बना देती है। इस दोनों ही स्थितियों से बचने के लिये अरस्तू ने अपने आदर्श राज्य में धन का समान वितरण किया। उसके विचारानुसार सभी नागरिकों को समान रूप से धन मिलना चाहिये ।
(8) शिक्षा व्यवस्था
अरस्तू के अनुसार शिक्षा ही मनुष्य का भौतिक, मानसिक एवं नैतिक/ विकास करती है, फिर भी अरस्तू सैनिक शिक्षा के पक्ष में नहीं। उसके विचार से सैनिक शिक्षा राज्य में अराजकता उत्पन्न करती है।
(9) कानून की सम्प्रभुता
अरस्तू कानूनी सम्प्रभुता को सर्वोच्च मानता है। वह दार्शनिक सम्राट को भी कानूनों के बन्धन से युक्त रखना नहीं चाहता है।
(10) आत्मनिर्भर राज्य
अरस्तू आत्म निर्भर राज्य की कल्पना करता है क्योंकि वह मनुष्य की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ-साथ नैतिक व बौद्धिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में भी सक्षम होता है।
(11) अन्य विशेषतायें
अरस्तू के अनुसार राज्य को बाह्य आक्रमणों से बचाने के लिये रक्षा के अच्छे साधन होने चाहिये। इसके अतिरिक्त राज्य में पानी, सड़कों, किलों आदि की सुन्दर व्यवस्था होनी चाहिये।
अरस्तू के आदर्श राज्य की आलोचना
अरस्तू के आदर्श राज्य के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-
(1) आदर्श राज्य की आलोचना करते हुए मैक्लिबेन का विचार है कि, “अरस्तू यह निश्चित नहीं कर पाया कि आदर्श राज्य कुछ राजनैतिक विशेषताओं द्वारा संचालित किया जाय या जनता द्वारा।”
(2) नगर राज्यों तक तो अरस्तू का आदर्श राज्य नहीं सिद्ध होता है, परन्तु आज की भाँति विशाल राज्यों के लिए वह सर्वथा अनुपयुक्त है।
(3) वर्ग व कार्य विभाजन का सिद्धान्त अव्यावहारिक है।
(4) कृषक एवं शिल्पियों को नागरिकता का अधिकार न देना भी अरस्तू का अमानवीय कार्य है। यद्यपि अरस्तू के आदर्श राज्य की बहुत आलोचना की गयी है फिर भी उसका आदर्श राज्य व्यवहारिक है।
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