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सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्ध | Interrelationship of social changes and education in Hindi

सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्ध | Interrelationship of social changes and education in Hindi
सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्ध | Interrelationship of social changes and education in Hindi

सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्ध

सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्ध एक-दूसरे से प्रगाढ़ रूप से जुड़े हुए हैं। सामाजिक परिवर्तन करने वाले प्रमुख कारकों में शिक्षा भी एक है। सर्वप्रथम तो शिक्षा सामाजिक परिवर्तनों के लिए पृष्ठभूमि तैयार करती है तथा परिवर्तन हो जाने के बाद उनके अनुसार, स्वयं को अनुकूल बनाती है। इस प्रकार शिक्षा तथा सामाजिक परिवर्तनों के आपसी सम्बन्ध को निम्न प्रकार से समझा जाता है.

(1) सामाजिक परिवर्तन के लिए शिक्षा आवश्यक- सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए शिक्षा का होना अति आवश्यक है। कोई भी सामाजिक परिवर्तन बिना शिक्षा के नहीं लाया जा सकता है। हमारे देश में पुराने समय से ही अनेक प्रकार की परम्पराएँ, रीति-रिवाज, रूढ़ियाँ चली आ रही हैं किन्तु ग्रामीण समाज में अशिक्षा का प्रसार इतना अधिक है कि इन पुराने रीति-रिवाजों, परम्पराओं, रूढ़ियों मान्यताओं को परिवर्तन करने का कोई भी प्रयास सार्थक नहीं हो पाता है। इन रूढ़ियों के कारण ही अनेक प्रकार के अन्धविश्वास, आडम्बर, कर्मकाण्ड हमारे देश की अधिकांश जनता में छाए हुए हैं। जब तक इनको परिवर्तित नहीं किया जायेगा तब तक समाज में परिवर्तन नहीं हो सकता है तथा ये परिवर्तन शिक्षा ही ला सकती है।

(2) शिक्षा, सामाजिक परिवर्तन का अभिकर्ता- सामाजिक परिवर्तन लाने वाले कारकों में शिक्षा भी एक प्रमुख कारक है। शिक्षा के माध्यम से अनुभवों को पुनः संरचित किया जाता है तथा इस प्रकार से ही लोगों के व्यवहार में, रुचियों में परिवर्तन आता है। इन परिवर्तनों से सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन आता है जो सामाजिक परिवर्तन कहलाता है। इस प्रकार शिक्षा, सामाजिक परिवर्तन का प्रमुख कारक है।

(3) शिक्षा, सामाजिक परिवर्तन की अनुगामी है- निष्पक्ष भाव से देखा जाए तो एक स्वस्थ तथा दोषमुक्त शिक्षा ही सामाजिक परिवर्तन लाने में सहायक हो सकती है लेकिन यदि वर्तमान समय की शिक्षा का अवलोकन करें तो पायेंगे कि आज शिक्षा में अनेक प्रकार के दोष आ गये हैं। समाज को परिवर्तन देने वाली शिक्षा आज स्वयं परिवर्तित होकर रह गई है तथा शासन शिक्षा को अपने अनुसार चलाता है तथा परिवर्तित करता है। इस प्रकार शिक्षा सामाजिक परिवर्तनों की अनुगामी बन गयी है तथा वह समाज में परिवर्तन न करके, होने वाले परिवर्तन का अनुगमन करती है।

(4) सामाजिक परिवर्तन का शिक्षा व अन्य माध्यमों पर पड़ने वाला प्रभाव वर्तमान समय में – समाज में अनेक परिवर्तन हो रहे हैं। यदि हम स्वयं भी आज से 15 वर्ष पूर्व के समाज को याद करें तो आज के समाज की मान्यताओं तथा विश्वासों में जमीन आसमान का अन्तर दिखाई देगा। शिक्षा के क्षेत्र में अनेक परिवर्तन हुए हैं। कम्प्यूटर प्रबन्ध व अन्य तकनीकी शिक्षा व चिकित्सा के अनेक कॉलिज खुल गए हैं। अनेक नये विषय विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए उपलब्ध हैं। पुराने समय में समाज में परिवर्तन इतनी लम्बी अवधि में होते थे कि शिक्षा पर पड़ने वाला उनका प्रभाव नगण्य होता था परन्तु आज के द्रुतगामी समाज में परिवर्तन इतनी शीघ्रता से होते हैं कि शिक्षा इन परिवर्तनों से प्रभावित होती है।

(5) शिक्षा पर विज्ञान तथा तकनीक का प्रभाव वर्तमान समय में शिक्षा का आधार विज्ञान तथा टेकनीक है। आज के समाज में परिवर्तन का प्रभाव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर पड़ा है तथा इसी कारण शिक्षा भी इसी परिवर्तन से प्रभावित हुई है। आज सम्पूर्ण समाज विज्ञान व तकनीक के ऊपर आश्रित है । समाज में कम्प्यूटर, ई-मेल, नेट सर्फिंग आदि से शिक्षा का स्तर तथा उसकी सभी विषयों की उपलब्धता तथा महानता बढ़ी है। आज अनेक तकनीक शिक्षण संस्थान जिस प्रकार से सभी शहरों, कस्बों में उपलब्ध हैं वह समाज की जागरूकता तथा तकनीक से परिचित होने के कारण ही सम्भव हुआ है। कुछ समय पहले तक आई० टी० आई०, पोलीटेक्नीक ही तकनीकी शिक्षा के अध्ययन केन्द्र थे तथा उच्च तकनीकी शिक्षा के लिए प्रवेश परीक्षा के द्वारा आई० आई० टी० व प्रादेशिक कॉलेज थे जिनमें प्रवेश लेने से बहुत-से विद्यार्थी वंचित रह जाते थे। परन्तु आज प्रत्येक शहर में अनेक इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, प्रशिक्षण संस्थान आदि खुल रहे हैं, उसमें इंजीनियरिंग व चिकित्सा के क्षेत्र में शीघ्र ही भारत विश्व के अग्रणी राष्ट्रों में सम्मिलित हो जायेगा। इस प्रकार का परिवर्तन समाज पर विज्ञान व तकनीक के प्रभाव द्योतक ही है। समाज पर विज्ञान व तकनीक का प्रभाव पड़ने पर उसके अंगों पर भी प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।

(6) सामाजिक परिवर्तन के प्रभाव के रूप में शिक्षा जिस गति से समाज में परिवर्तन हो रहे हैं उसी गति से यदि शिक्षा में भी परिवर्तन होते हैं तो उचित है, अन्यथा समाज में सांस्कृतिक विलम्बना की स्थिति उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है। इस स्थिति को शिक्षा के माध्यम से ही दूर किया जा सकता है। अत: शिक्षा को एक गत्यात्मक नीति अपनाने की आवश्यकता होती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि समाज में होने वाले परिवर्तन शिक्षा को भी प्रभावित करते हैं तथा इन परिवर्तनों को ग्रहण करने में यदि शिक्षा असमर्थ हो जाती है तो सामाजिक परिवर्तन नहीं लाये जा सकते हैं। इस प्रकार सामाजिक परिवर्तनों के प्रभाव से शिक्षा की संरचना में भी मूलभूत परिवर्तन होते हैं।

(7) समान स्कूल प्रणाली समाज में होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव स्कूलों के शिक्षा प्रणाली पर भी पड़ा है। समाज अब वर्ग-भेद व स्तरों को भुलाकर एक समान स्तर वाला समाज बनने की ओर अग्रसर है। इसलिए अब अनेक पब्लिक स्कूलों में भी अपनी स्तर व सोच में परिवर्तन कर दिया है तथा अब स्कूल भी किसी वर्ग विशेष के न होकर प्रत्येक प्रतिभाशाली बालक चाहें, वह किसी भी वर्ग से हों उसे प्रवेश देते हैं। इस प्रकार जैसे-जैसे समाज में वर्ग-भेद समाप्त होता जा रहा है तथा केवल आर्थिक स्थिति ही महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में उभर कर सामने आ रही है, समान स्कूल प्रणाली जोर पकड़ती जा रही है।

(8) स्त्री शिक्षा का विकास प्राचीन समय में नारी को हेय दृष्टि से देखा जाता था। नारी की स्थिति अच्छी नहीं थी तथा उसका एक प्रमुख कारण नारी को शिक्षा से वंचित रखना था। जैसे-जैसे समाज में शिक्षा का महत्त्व बढ़ा वैसे ही नारी के लिए भी उचित शिक्षा की आवाज उठने लगी। स्त्री शिक्षा को महत्त्वपूर्ण मानकर सरकार ने इस सम्बन्ध में अनेक विद्यालयों की स्थापना की स्त्री शिक्षा का विकास किया। इस प्रकार समाज में होने वाले परिवर्तनों से स्त्री शिक्षा का विकास हुआ है।

(9) पिछड़े वर्ग का विकास समानता पर आधारित समाज की स्थापना के प्रयास होने से अनेक जातियाँ जो आर्थिक तथा सामाजिक रूप से सदियों से पिछड़ी हुई थीं उन्हें समानता पाने का अवसर मिला तथा आरक्षण के फलस्वरूप इनकी सामाजिक स्थिति में भी परिवर्तन हुआ। इन्हें शिक्षा के क्षेत्र में, नौकरियों में आरक्षण मिला जिससे उनकी सामाजिक स्थिति बदली। अनेक शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का प्रावधान होने से पिछड़े वर्ग के विद्यार्थी के लिए शिक्षा के अवसरों में वृद्धि हुई। इस प्रकार से समाज में शिक्षा का स्वरूप परिवर्तित हुआ तथा समाज में परिवर्तन की लहर आ गई।

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