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सामाजिक गतिशीलता का अर्थ, परिभाषा, कारक एंव इसके रूप

सामाजिक गतिशीलता का अर्थ, परिभाषा, कारक एंव इसके रूप
सामाजिक गतिशीलता का अर्थ, परिभाषा, कारक एंव इसके रूप

सामाजिक गतिशीलता का अर्थ एवं परिभाषा

गतिशीलता का तात्पर्य है व्यक्ति की किसी सामाजिक ढाँचे में गति। इस दृष्टि से सामाजिक गतिशीलता का अर्थ किसी व्यक्ति व समूह के सामाजिक पद में होने वाला परिवर्तन है। सामाजिक ढाँचे में पद व स्थान ऊँच-नीचे होते रहते हैं और अपनी स्थिति को ऊँचा व नीचा कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि एक सामाजिक स्थिति का दूसरी सामाजिक स्थिति में परिवर्तन ही सामाजिक गतिशीलता हैं, सामाजिक गतिशीलता व भौतिक गतिशीलता दोनों में भिन्नता पाई जाती है। सामाजिक गतिशीलता में व्यक्ति के सामाजिक परिवर्तन की ओर संकेत करती है जबकि भौतिक गतिशीलता व्यक्ति व समूह का एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण है। उदाहरण के लिए, एक शहर से दूसरे शहर जाना भौतिक गतिशीलता है, जबकि छोटे बाबू से बड़ा बाबू बन जाना सामाजिक गतिशीलता कहलाएगी।

पी० सोरोकिन के शब्दों में- “सामाजिक गतिशीलता सामाजिक समूहों व स्तरों में किसी व्यक्ति का एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में पहुँच जाना है।”

सामाजिक गतिशीलता के कारक (Factors Affecting Social Mobility)

सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक हैं, जो इस प्रकार से हैं-

(1) सामाजिक संरचना- सामाजिक गतिशीलता का जनसंख्या के वितरण, आकार व घनत्व में गहरा सम्बन्ध होता है। जन्म-दर के कम अथवा अधिक तथा ग्रामीण लोगों के नगरों में स्थानान्तरण होने से सामाजिक गतिशीलता प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकती। जिन स्थानों पर जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है वहाँ पर बाहर से आए हुए लोग नीची स्थितियों में कार्य करने तैयार हो जाते हैं।

(2) आर्थिक सफलता- आर्थिक दृष्टि से समाज में तीन वर्ग होते हैं- (1) धनाढ्य, (2) मध्यम, (3) निम्न । उक्त तीनों वर्गों में धनवान लोगों का अधिक सम्मान होता है। इस दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति चाहे उसका सम्बन्ध किसी वर्ग से हो, अधिक-से-अधिक धन कमाने का प्रयास करता है जिससे उसकी सामाजिक स्थिति ऊपर उठ जाये।

(3) व्यावसायिक उन्नति- कुछ व्यवसाय ऐसे होते हैं जिनको सामाजिक दृष्टि से प्रतिपादित तथा ऊँचा समझा जाता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति अपनी उन्नति के लिए निम्न सामाजिक स्थिति वाले व्यवसाय को छोड़कर उच्च सामाजिक स्थिति वाले व्यवसाय को अपनाने का प्रयास करता है, इससे सामाजिक गतिशीलता बढ़ जाती है। भारत में व्यावसायिक उन्नति दिन-प्रतिदिन हो रही है।

(4) शिक्षा- व्यक्ति की सामाजिक स्थिति को ऊँचा अथवा नीचा करने में विकास, प्रसार एवं प्रचार का महत्त्वपूर्ण स्थान है जो व्यक्ति जितनी अधिक शिक्षा प्राप्त कर लेता है। उसकी सामाजिक स्थिति उतनी ही ऊँची हो जाती है। इससे सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि होना स्वाभाविक है।

(5) स्वचालित यंत्रों का प्रभाव- स्वचालित यंत्रों के विकसित हो जाने से बहुत से लोग बेकार हो जाते हैं। अतः वे दूसरे व्यवसायों में चले जाते हैं यहीं नहीं, इन यंत्रों के विकास तथा प्रयोग से सफेद पोश कर्मचारियों की स्थिति प्राप्त करने की सम्भावनायें भी बढ़ जाती हैं दोनों ही दशायें सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करती हैं।

( 6 ) महत्त्वाकांक्षा का स्तर- समाज में कुछ लोग तो स्वभाव से ही महत्त्वाकांक्षी होते हैं तथा कुछ को समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया जाता है जिस समाज में जितने अधिक महत्त्वाकांक्षी लोग होते हैं, उस समाज में उतनी ही अधिक गतिशीलता बढ़ जाती है।

शिक्षा के सम्बन्ध में सामाजिक गतिशीलता

शिक्षा एवं सामाजिक गतिशीलता का घनिष्ट सम्बन्ध रहा है। आज जो देश पिछड़े हुए हैं उनमें शिक्षा के आधार उत्पादन बढ़ाने का प्रयत्न किया जा रहा है परन्तु आधुनिक युग में कुछ ऐसे भी टैक्नालॉजी की दृष्टि से विकसित देश हैं जो उत्पादन की दृष्टि से इतने अधिक विकसित हो गए हैं कि उनका और अधिक विकास करना सम्भव नहीं है इससे यह स्पष्ट है कि विकासशील देशों में सामाजिक गतिशीलता अभी और ज्यादा बढ़ेगी तथा विकसित देशों में इसके विपरीत बहुत कम या न के बराबर होगी।

विकासशील देशों में सामाजिक गतिशीलता कितनी मात्रा में बढ़ेगी यह उन देशों की शिक्षा पर निर्भर करता है। इस बात का ध्यान रहे कि आज के औद्योगिक समाज में प्रतिभाशाली बालकों को शिक्षा अवश्य मिलेगी तथा वे ऊँचे पदों को भी अवश्य प्राप्त कर सकेंगे। लेकिन जो बालक प्रतिभाशाली नहीं होंगे वे उच्च पदों को भी प्राप्त करने कि विफल रहेंगे इनसे उनकी गतिशीलता अधोमुखी हो जायेगी। कहने का अर्थ यह है कि भविष्य की शिक्षा द्वारा उपरिमुखी व अधोमुखी दोनों प्रकार की गतिशीलता के बीच संतुलन स्थापित होगा।

 सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूप

सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूप यह निम्न प्रकार है-

(1) समाज का स्वरूप – समाज को दो वर्गों में बाँटा जा सकता है । बन्द समाज और खुले समाज। बन्द समाज में वे आते हैं जो प्राय: जाति और धर्म पर आधारित होते हैं। इसलिए इन्हें परम्परात्मक समाज भी कहा जाता है। खुले समाज वे होते हैं जो जाति, धर्म, परम्पराओं आदि के बन्धनों से मुक्त होते हैं। व्यक्ति और समूहों को अपना-अपना विकास करने के पूर्ण अवसर होते हैं। इन समाजों में सामाजिक गतिशीलता बहुत अधिक होती है। जिस समाज में जाति, धर्म व परम्पराओं के बन्धन जितने कम होते हैं। उनमें उतनी ही अधिक सामाजिक गतिशीलता पाई जाती है।

(2) समाज का राजतन्त्र- राजतन्त्र को भी तीन वर्गों में बाँटा जाता है – एकतन्त्र, अल्पतन्त्र और प्रजातन्त्र पहले दो प्रकार के शासनतन्त्रों में शासक वर्ग अपने हितों की रक्षा पर अधिक ध्यान देता है। ऐसे समाजों में शासक वर्ग को अपने विकास के पूर्ण अवसर प्राप्त होते हैं। परन्तु शासित वर्ग को अपने विकास करने के स्वतन्त्र अवसर प्राप्त नहीं होते और वह अपने सामाजिक स्तर को ऊँचा नहीं उठा पाता। तीसरे वर्ग के समाजों में पूरी जनता शासक होती है अतः वह अपने हितों का ध्यान रखती है। परिणामतः व्यक्ति अथवा समूह अपने प्रयत्नों के अनुसार सामाजिक स्थान प्राप्त करते हैं। ऐसे समाजों में सामाजिक गतिशीलता अधिक पाई जाती है।

(3) समाज की आर्थिक व्यवस्था- आर्थिक व्यवस्था के तीन भेद होते हैं- कृषि प्रधान, वाणिज्य प्रधान और उद्योग प्रधान। कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था वाले समाजों में सामाजिक गतिशीलता कम होती है। वाणिज्य प्रधान समाजों में अपेक्षाकृत अधिक और उद्योग प्रधान समाजों में सर्वाधिक। जैसे-जैसे उद्योगों में विकास होता है वैसे अधिक प्रशिक्षित उच्च शिक्षा प्राप्त व्यवस्थापकों एवं प्रबन्धकों तथा तकनीकी शिक्षा प्राप्त इन्जीनियरों आदि की आवश्यकता पड़ती है। परिणामतः लोग अपनी योग्यता एवं क्षमताओं में विकास करते हैं और उच्च से उच्चतर पद प्राप्त करते हैं। सामाजिक गतिशीलता पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में सबसे कम, मिश्रित में उससे अधिक और समाजवादी में सर्वाधिक होती है।

(4) व्यवसायिक प्रतिष्ठा – भिन्न-भिन्न समाज में सामाजिक स्तर के भिन्न-भिन्न तत्व होते हैं। इनमें जाति, धर्म, रंग, आर्थिक स्थिति, पद, अधिकार एवं उत्तरदायित्व और व्यवसाय आदि मुख्य होते हैं। पद और अधिकारों की प्राप्ति व्यक्ति अपनी योग्यतानुसार कर सकता है।

(5) शिक्षा- शिक्षा सामाजिक गतिशीलता का सबसे मुख्य कारक है। जिन समाजों में शिक्षा की सुविधाएँ जितनी अधिक मात्रा में सुलभ होती हैं उन समाजों में सामाजिक गतिशीलता के अन्य सभी घटक भी शिक्षा पर ही निर्भर करते हैं। उचित शिक्षा की व्यवस्था से ही विज्ञान और तकनीकी ज्ञान का विकास होता है। उसी के आधार पर उद्योग के क्षेत्र में विकास किया जाता है। उसी से वाणिज्य को बढ़ावा मिलता है।

शिक्षा सामाजिक गतिशीलता का आधारभूत घटक एवं साधन है। सामाजिक गतिशीलता को बढ़ाने के लिए समाज में उच्च शिक्षा की व्यवस्था की आवश्यकता होती है।

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