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अन्तर्राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध | International and International Understanding in Hindi

अन्तर्राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध | International and International Understanding in Hindi
अन्तर्राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध | International and International Understanding in Hindi

अन्तर्राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध का वर्णन कीजिए।

अन्तर्राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध

जैसा कि हमें ज्ञात है, बीसवीं शताब्दी की सबसे बड़ी देन अन्तर्राष्ट्रीयता की भावना है। इस भावना को अनुभव करना और अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्क के लिए उपयुक्त बनने का प्रयत्न करना आज की भारी समस्या है। विश्व के राष्ट्रों के बीच बढ़ते अन्तर्राष्ट्रीय सम्पर्क का अर्थ यह नहीं लगाया जा सकता कि आज हम विश्व शान्ति के लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो रहे हैं। आज भी तीसरे विश्व युद्ध के घटने की आशंका बनी हुई है। कुछ राजनीतिक और आर्थिक स्वार्थों को लेकर कुछ राष्ट्रों के बीच इतना अधिक तनाव बढ़ते देखा जाता है कि तीसरे विश्व युद्ध की सम्भावना होने लगती है। इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के मार्ग में विश्व में व्याप्त राजनीतिक तनाव (Political Tension) और लड़ाई-झगड़े एक समस्या की जड़ है।

अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध की सहायता से हम विश्व के लोगों को विश्व नागरिकता (World Citizenship) की ओर अग्रसर कर सकते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध विश्व नगरिकता सम्बन्धी वह अहसास है जो विश्व के राष्ट्रों के बीच सौहार्द (Love), सहिष्णुता (Tolerance), मित्रता और सहयोग ( Co-operation) की भावना उत्पन्न कर सकता है। पहले विश्व शान्ति की समस्या केवल आर्थिक और राजनीतिक आधार पर ही देखी जाती थी। विश्व समृद्ध राष्ट्रों के बीच एक प्रतियोगिता (Competition) का मैदान बन गया था। एक राष्ट्र अपने हितों की रक्षा के लिए दूसरे राष्ट्र से लड़ाई करता था। परिणामस्वरूम विश्व का प्रथम महायुद्ध हुआ। युद्ध से बचने के लिए लीग ऑफ नेशन्स की स्थापना की गयी और मध्यस्थता द्वारा राष्ट्रों के झगड़े निबटाने का प्रयास किया गया। परन्तु इसमें भी सफलता प्राप्त नहीं हुयी और विश्व का दूसरा महायुद्ध हुआ। इस युद्ध के बाद वर्तमान संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गयी जिसने राष्ट्रों के सम्पकों को मधुर बनाने का प्रयत्न किया है। परन्तु यह भी अपने कार्यों में सफल नहीं हो रहा है। कोरिया, वियतनाम, मध्य एशिया के देशों के तनाव, अरब-इजराइल संघर्ष, ईरान ईराक युद्ध, अफ्रीकी राष्ट्रों की मुक्ति के लिए संघर्ष आज भी युद्ध की आशंका को हवा देते हैं। आज के राष्ट्र अपनी सुरक्षा और प्रगति के लिए गुटबन्दी में हिस्सा ले रहे हैं। प्रत्येक राष्ट्र सैनिक गठबन्धन और सैन्य शक्ति की वृद्धि में लग रहा है। इन परिस्थितियों को देखकर पता चलता है कि अभी भी विश्वशान्ति को बड़ा खतरा है। इस खतरे को समाप्त करने के लिए हमें अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के प्रसार पर अधिक जोर देना होगा जिससे व्यक्ति राष्ट्र का नागरिक होने के साथ-साथ विश्व का नागरिक होने के साथ-साथ विश्व का नागरिक बनने का प्रयास करें।

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