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श्रवण बाधिक तथा असमर्थता का क्या अर्थ है ? इनकी मुख्य विशेषताएँ, कारण, पहचान, देखभाल एवं प्रशिक्षण

श्रवण बाधिक तथा असमर्थता का क्या अर्थ है ? इनकी मुख्य विशेषताएँ, कारण, पहचान, देखभाल एवं प्रशिक्षण
श्रवण बाधिक तथा असमर्थता का क्या अर्थ है ? इनकी मुख्य विशेषताएँ, कारण, पहचान, देखभाल एवं प्रशिक्षण

श्रवण बाधिक तथा असमर्थता का क्या अर्थ है ? इनकी मुख्य विशेषताओं, कारणों, पहचान तथा देखभाल एवं प्रशिक्षण का वर्णन कीजिए।

श्रवण बाधिता और असमर्थता का अर्थ- श्रवण बाधिता का सम्बन्ध श्रवण यंत्र प्रक्रिया के क्षतिग्रस्त के होने से है। यह क्षति कान के किसी भी भाग में हो सकती है, जैसे बाहरी, मध्य, ‘या आन्तरिक कान। इसी श्रवण बाधिता से श्रवण असमर्थता पैदा होती है। यह श्रवण असमर्थता न्यूनतम से अधिकतम हो सकती है। व्यक्ति पूर्ण रूप से बहरा या ऊँचा सुनने वाला हो सकता है। यह दोष बाधित की प्रकृति और श्रवण-दोष की मात्रा पर निर्भर करता है। कोई भी व्यक्ति या बच्चा जन्म से ही श्रवण प्रक्रिया में बाधिता के कारण श्रवण बाधित होता है या जन्म केपश्चात् किसी रोग, रुकावट या दुर्घटना केकारण होता है।

श्रवण बाधित या श्रवण असमर्थी बच्चों की विशेषताएँ-

श्रवण बाधित एवं असमर्थी बच्चों या व्यक्तियों की मनोवैज्ञानिक और व्यवहारात्मक विशेषताओं का अध्ययन हम निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत कर सकते हैं-

  1. भाषा और वाणी का विकास
  2. बौद्धिक योग्यता
  3. शैक्षिक उपलब्धि
  4. सामाजिक और व्यावसायिक समायोजन
  5. कुछ अन्य विशेषताएँ

1. भाषा और वाणी का विकास- भाषा और वाणी के विकास से जुड़ी निम्न विशेषताएँ श्रवण असमर्थी लोगों में होती है-

  1. बिना प्रशिक्षण के श्रवण असमर्थी बालकों में भाषा का विकास सामान्य नहीं होता।
  2. श्रवण बाधित और असमर्थी बच्चों में भाषा सीखने की योग्यता कुप्रभावित होती है।
  3. बहरेपन से बोलने में अयोग्यता स्वयं ही आ जाती है, ऐसा दृष्टिकोण विज्ञान पर आधारित नहीं हैं।
  4. श्रवण दोष जितना प्रारम्भ में होगा, भाषा की कमी उतनी अधिक होगी।
  5. जबकि अत्यधिक श्रवण दोष सामान्य भाषा विकास में बाधक होता है फिर भी ऐसे बहुत कम बहरे लोग होते हैं जिन्हें भाषा का कुछ प्रयोग नहीं सिखाया जा सकता।

2. बौद्धिक योग्यता- बौद्धिक योग्यता से जुड़ी असमर्थी व्यक्ति की विशेषताएँ निम्नलिखित होती हैं-

  1. यह आवश्यक नहीं होता कि बहरे बच्चे समान्यों की तुलना में बौद्धिक विकास में धीमे ही हों।
  2. सामान्य और बहरे बच्चों में चिंतन प्रक्रिया एक समान ही होती है।
  3. बहरे बच्चे सामान्य बच्चों की तुलना में बौद्धिक क्रियाओं में कार्य सम्पन्नता का कम प्रदर्शन करते हैं।
  4. श्रवण बाधित बच्चों के अशाब्दिक बुद्धि परिक्षणों में शाब्दिक परीक्षणों की अपेक्षा अधिक अंक होते हैं।

3. शैक्षिक उपलब्धि- शैक्षणिक उपलब्धि के क्षेत्र में असमर्थी बच्चों की विशेषताएँ निम्नलिखित होती हैं-

  1. श्रवण बाधित या असमर्थी बच्चों की शैक्षिक उपलब्धियों के क्षेत्र में कमी रहती है।
  2. ऐसे बच्चों में पठन सम्बन्धी न्यूनता होती है जो कि भाषायी कौशलों पर निर्भर करती है।
  3. श्रवण बाधित या असमर्थी बच्चों की शैक्षिक उपलब्धि के चिंताजनक चित्र में कोई सुधार दिखाई नहीं देता।
  4. ऐसे बच्चों की शैक्षिक उपलब्धि में न्यूनतम का मुख्य कारण होता है- स्कूल और कक्षा का वातावरण जिसकी प्रकृति भाषायी होती है और बहरे बच्चों में भाषा-कौशलों का अभाव होता है।

4. सामाजिक और व्यावसायिक समायोजन- सामाजिक और व्यावसायिक समायोजन सम्बन्धी विशेषताएँ निम्नलिखित होती हैं-

  1. श्रवण बाधित बच्चों की सामाजिक और व्यक्तित्व विशेषताएँ सामान्य बच्चों की तुलना में बहुत भिन्न होती हैं।
  2. ऐसे बच्चे, सम्प्रेषण समस्याओं और सामाजिक अन्तःक्रिया में असफलता के कारण अलग-थलग रहते हैं।
  3. श्रवण बाधित बच्चे अपना एक समूह बना लेते हैं जिसमें इनकी रुचियाँ साँझी होती है।
  4. ऐसे बच्चों में सम्प्रेषण समस्या के कारण समाजिक समायोजन की समस्या भी बहुत गंभीर होती है।
  5. ऐसे बच्चों में सामाजिक अन्तःक्रिया और सामाजिक स्वीकृति की इच्छा बहुत सशक्त होती है।
  6. श्रवण बाधित बच्चे संवेगात्मक समायोजन की दृष्टि से सामान्य बच्चों से भिन्न होते।

5. कुछ अन्य विशेषताएँ- अध्ययनों ने श्रवण बाधित या असमर्थी बच्चों की कुछ अन्य विशेषताएँ भी बताई हैं, जैसे-

  1. श्रवण बाधित बच्चे बैद्धिक योग्य, शैक्षिक उपलब्धि और वैयक्तिक-सामाजिक समायोजन की दृष्टि से निम्न स्तर के होते हैं।
  2. ऐसे बच्चे IQ परीक्षण में अपेक्षाकृत कम अंक लेते हैं।
  3. शैक्षिक विषयों में भी इनकी कार्य सम्पन्नता निम्न स्तर की होती है।
  4. ये सभी न्यूनताएँ मूलभूत भाषायी कौशलों के विकास के अभाव के परिणामस्वरूप होती है।

यह आवश्यक नहीं कि उपरोक्त सभी विशेषताएँ हर एक असमर्थी में विद्यमान हों। हर श्रवण असमर्थी बालक इन विशेषताएँ की दृष्टि से एक दूसरे से भिन्न हो सकता है।

श्रवण असमर्थता के कारण

श्रवण असमर्थता के कारण लोगों को जानना भी अति आवश्यक है। यह ज्ञान इन दोष का सामना करने और बच्चों की सहायता करने में सहायक हो सकता है। इसके विभिन्न कारण हो सकते हैं, जो कि निम्नलिखित हैं-

1. जन्म के समय तथा जन्म के बाद की परिस्थितियाँ- जन्म के समय तथा जन्म के पश्चात् विभिन्न प्रकार की परिस्थितियाँ बच्चों में इस प्रकार की असमर्थता के लिए उत्तरदायी हो सकती हैं। जैसे जन्म के समय प्रयोग किये गये उपकरण रोगों से घाव आदि लगना, ऑक्सीजन का अभाव, आदि। इसी प्रकार बच्चे के जन्म के एकदम बाद बच्चे को पीलिया (श्रनंदकपबम) का होना, कान या आँख से किसी द्रव्य पदार्थ का बहना आदि। इन दोषों में को तुरन्त दूर किया जाना वरना यही दोष श्रवण बाधिता पैदा करते हैं।

2. वंशानुक्रम- कई बार यह दोष एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में भी स्थानान्तरित हो जाता है। अर्थात् यह वंशानुक्रमित भी हो सकता है।

3. कुपोषण- बच्चों का कुपोषण भी कई बार श्रवण बाधिता के लिए उत्तरदायी होत है। जैसे, गर्भावस्था के दौरान यदि माँ को संतुलित आहार न मिले तो ऐसे दोषों की संभावना रहती है। यदि गर्भावस्था में माँ तीखे मसाले, शराब, सिगरेट आदि का सेवन करती है तो भी इन दोषों के पनपने की पूर्ण संभावना रहती है। अतः गर्भावस्था में माँ को कुपोषण से बचना चाहिए।

4. छूत के रोग- बच्चे के जन्म लेते ही यदि वह छूत के रोगों का शिकार हो जाता है. तो इससे उसके श्रवण अंग प्रभावित होते हैं। परिणामस्वरूप श्रवण क्षमता ( Hearing capability) कुप्रभावित हो जाती है। अतः नये पैदा हुए बच्चे का छूत के रोगों से बचाना चाहिए।

5. दवाएँ- कभी बार गर्भवती महिला का अत्यधिक दवाओं का सेवन बी श्रवण बाधिता का कारण बनता है। जैसे, गर्भावस्था के दौरान यदि किसी महिला को मलेरिया जैसे बुखार हो जाये और उसे कुनीन जैसे दवा दी जाये तो इसका प्रभाव गर्भ में पल रहे बच्चे के किसी न किसी अंग पर पड़ सकता है। अतः गर्भवती महिलाओं को दवाओं के अधिक सेवन से बचना चाहिए।

श्रवण बाधितों या असमर्थियों की पहचान

श्रवण बाधितों की शीघ्र पहचान करना अति आवश्यक होता है। इनकी पहचान में देरी करने से इनकी भाषा का विकास कुप्रभावित होता है। परिणामस्वरूप वे स्कूल भी छोड़ देते हैं। श्रवण बाधितों की पहचान के लिए चेकलिस्ट का प्रयोग किया जा सकता हैं-

  1. क्या बच्चा बेचौनी का प्रदर्शन करता है?
  2. क्या बच्चे के कान में कोई विकृति है?
  3. क्या बच्चे के कान से कोई तरल पदार्थ बहता है?
  4. क्या बच्चा निर्देश की पुनरावृत्ति के लिए कहता है ?
  5. क्या बच्चा कान में बार-बार दर्द की शिकायत करता है?
  6. क्या बच्चा आपके निर्देशों का पालन करने में असमर्थ है?
  7. क्या बच्चा अपने कान में बार-बार खुजली करता है?
  8. क्या बच्चा बोलने वाले व्यक्ति के चेहरे में स्वयं को केन्द्रित करता है?
  9. कक्षा में जब अध्यापक शाब्दिक रूप से कुछ समझाता है तो क्या बच्चा अपने साथियों से नोट लेने के लिए सहायता मांगता है।

उपरोक्त प्रयत्नों के यदि कुछ उत्तर ‘हाँ’ में है तो अध्यापक बच्चे की श्रवण बाधिता का अनुमान लगा सकता है। ऐसे बच्चे को विशेषज्ञ के पास तुरन्त भेज देना चाहिए। यदि जाँच की रिपोर्ट मध्यम स्तर की श्रवण बाधिता बताती है तो उसे नियमित स्कूल में भेजना चाहिए।  यदि जाँच रिपोर्ट बहुत अधिक दोष बताती है तो उसे बहरों के स्कूल में भेजना चाहिए। श्रवण बाधित बालकों की शिक्षा के लिए प्रमुख व्यवस्थाएं / रणनीविधाँ श्रवण असमर्थ बालकों की देखभाल और प्रशिक्षण श्रवण असमर्थ बालक एक दूसरे से कई प्रकार से भिन्न होते हैं। यह भिन्नता श्रवण दोष के प्रकार और मात्रा के रूप में होती है।

शिक्षा का अधिकार हर व्यक्ति को है चाहे वह समर्थ हो या असमर्थ हो। इनकी देखभाल और प्रशिक्षण सभी का उत्तरदायित्व होना चाहिए जैसे परिवार का स्कूल का, समुदाय का, स्वास्थ्य का तथा समाज कल्याण से जुड़े व्यक्तियों का इन उत्तरदायित्वों का वर्णन इस प्रकार है-

1. माता पिता का उत्तरदायित्व- श्रवण बाधित बच्चे की देखभाल और प्रशिक्षण घर से माता-पिता, भाई-बहनों, तथा परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा शुरु होनी चाहिए । इनका इस संदर्भ में उत्तरदायित्व निम्नलिखित है-

  1. आवाज और वाणी के प्रति अनुक्रियाओं परआधारित बच्चे की शीघ्रतम पहचान करना।
  2. जाँच के लिए शक वाले केसों को ENT और ऑडियों विशेषज्ञों के पास भेजना।
  3. परिवार द्वारा श्रवण-असमर्थी बच्चे की प्रति प्रेम का प्रदर्शन करना तथा अन्य सामान्य बच्चों जैसा स्नेह देना।
  4. ऐसे बच्चों के प्रशिक्षण के लिए अध्यापकों और विशेषज्ञों से विचार-विमर्श करना।
  5. श्रवण-सहायता के नियमित प्रयोग के लिए बच्चे को प्रोत्साहित करना ।
  6. विशेषज्ञों की सलाह का अनुसरण करना।
  7. स्कूल में एकीकरण के लिए बच्चे को तैयार करना।
  8. बच्चे की घर में सामाजिक सामान्यतया के लिए परिस्थितियों को उत्पन्न करना।

2. स्कूल का उत्तरदायित्व- माता-पिता के अतिरिक्त स्कूल का भी बच्चों की देखभाल और प्रशिक्षण के लिए उत्तरदायित्व होता है। इन बच्चों की मुख्य समस्या इनकी बहरे बच्चों के प्रशिक्षण की तीन विधियाँ होती हैं

  1. शाब्दिक विधि
  2. मैन्यूअल विधि
  3. सम्पूर्ण सम्प्रेषण उपागम

(a) शाब्दिक विधि- जैसे सुनने या प्रशिक्षण होठों का पढ़ना या स्पीच पठन आदि सभी शाब्दिक विधि के उदाहरण हैं।

(b) मैन्यूअल विधि- यह विधि अत्यधिक बहरे बच्चों के लिए उपयुक्त है। इस विधि के उदारहण हैं- संकेत भाषा और फिंगर स्पेलिंग

(i) संकेत भाषा- प्रभावशाली संप्रेषण ही श्रवण असमर्थी बच्चों की मुख्य समस्या होती है। इस पर नियंत्रण पाने के लिए अधिकतर लोग संकेत भाषा का प्रयोग करते हैं। यह भाषा सामान्य भावों को समझाने के लिए हावभावों की एक प्रणाली होती है। सांकेतिक भाषाओं की बहुत-सी किस्में है। आजकल अमेरिकन सांकेतिक भाषा ‘अमेसलेन’ का प्रयोग बहुत से बहरे व्यक्ति करते हैं। इस भाषा में ऐसे बच्चों को प्रशिक्षित किया जाता है। यह केवल प्रशिक्षिक प्रशिक्षिकों का ही कार्य होता है। कक्षा में पढ़ाते समय अध्यापक को इस सांकेतिक भाषा का प्रयोग अधिक से अधिक करना चाहिए।

(ii) फिंगर स्पेलिंग- जो अत्यधिक बहरे बच्चे स्कूल जाने का अनुभव रखते हैं उन्हें स्पेलिंग का ज्ञान दिया जा सकता है ताकि सम्प्रेषण में उन्हें सहूलियत मिल सके। इस विधि के अन्तर्गत हवा में अंगुलियों द्वारा आकृतियाँ बनाकर लिखा जाता है। इसमें वे शब्द जिनके लिए की संकेत या चिन्ह नहीं होता, जैसे किसी व्यक्ति का ना, लिखा जाता है। इस प्रकार फिंगर स्पलिंग व्यक्ति द्वारा लिखित भाषा का प्रदर्शन है। साधारण भाषा में हम कह सकते हैं कि यह अक्षरों को अँगुलियों की स्थिति का प्रयोग करके समझाना होता है। कुछ सीमा तक यह छपे हुए अक्षरों से मेल खाता है।

भारत में दो प्रकार के फिंगर स्पेलिंग का प्रयोग किया जाता है। दोनों ही अंग्रेजी अक्षरों पर आधारित होते हैं। हर अक्षर (A To Z) का विशेष आकार होता है। अमेरिकन प्रणाली के अन्तर्गत इसमें एक ही हाथ का प्रयोग किया जाता है जबकि ब्रिटिश प्रणाली में दोनों का प्रयोग होता है। भारतीय प्रणाली ‘कारा पल्लवी’ के नाम से भारतीय परिस्थिति के लिए अमेरिका एक हाथ-प्रणाली पर आधारित इस विधि का विकास किया गया है।

(iii) स्पीच रीडिंग- स्पीच रीडिंग को कभी-कभी’ लिप रिडिंग’ भी कहा जाता है। इसमें श्रवण बाधित व्यक्ति होठों की हलचल या मुँह की हलचल का अवलोकन करता है तथा यह समझने का प्रयास करता है। कि बोलने वाला क्या बोल रहा है। स्पीच रीडिंग का मुख्य लक्ष्य हैं।

  1. वातावरण में दिखाई देने वाले उद्दापनों का अवलोकन करना।
  2. जो कुछ बोल रहा है उसे समझना।
  3. बोलने वाले होंठों की हलचल और चेहरे के हावभावों का अवलोकन करना।

(iv) श्रवण प्रशिक्षण- कई बार श्रवण बाधित बच्चे में कुछ सुनने की योग्यता होती है। इस थोड़ी सी बची हुई ( Residual) श्रवण क्षमता का प्रयोग करने के लिए उसे उचित प्रशिक्षण देना चाहिए। इस प्रशिक्षण के तीन लक्ष्य होते हैं-

  1. विभिन्न प्रकार की आवाजों का जागरूकता का विकास करना।
  2. वातावरणीय आवाजों में विभेदीकरण करने की योग्यता का विकास करना।

(v) सम्पर्ण संप्रेषण विधि- यह नवीन विधि हाल ही में विकसित हुई है। इस विधि में सभी विधियों और साधनों का मिश्रण कर दिया जाता है। शाब्दिक या वैयक्तिक विधि सभी प्रकार के श्रवण बाधितों के लिए उपयुक्त नहीं हो सकती। अतः यह सम्पूर्ण सम्प्रषेण विधि विभिन्न स्कूलों में अधिक लोकप्रिय हो रही है।

(vi) पाठ्यक्रम और शिक्षण व्यूह रचना- श्रवण बाधित बच्चे सभी प्रकार के पाठ्यक्रम को नहीं समझ पाते सकते। अतः हमे उनके लिए उनकी आवश्यकताओं और समस्याओं के अनुसार ही पाठ्यक्रम अपनाना चाहिए। इसके लिए निम्न सिद्धांत आवश्यक होते हैं-

(a) जब किसी पाठ्यक्रम को अपनाया जाता है तो निर्देशनों के लक्ष्य सामान्य और श्रवण असमर्थी बच्चों के लिए एक समान होने चाहिए। केवल सीखने की सामग्री और विधियों में संशोधन इस प्रकार किया जाना चाहिए। जिससे कक्षा में सामान्य बच्चों की शिक्षा को विचलित न किया जाये।

(b) कक्षा में भारत में श्रवण बाधित और सामान्य बच्चों का अनुपात 1:5 होना चाहिए। श्रवण बाधित बच्चों को कक्षा में आगे के बेंचों पर बिठाया जाना चाहिए। इससे उनको सुनने में सहायता मिलेगी।

(c) कक्षा में अध्यापक यह देखे कि श्रवण बाधित बच्चा अपनी सुनने की मशीन का नियमित प्रयोग कर रहा है या नहीं।

(d) ऐसे बच्चों का स्पीच और भाषा का पैटर्न पर्याप्त रूप से विकसित हो जाना चाहिए। श्रवण बाधित बच्चों का भाषा सीखने और उसके प्रयोग का पैटर्न दोषपूर्ण होता है। वे आमतौर पर जैसे बोलते है, वैसा ही लिखते हैं।

(e) ऐसे बच्चे अमूर्त प्रत्ययों को सीखने में कठिनाई का सामना करते हैं।

(f) ऐसे बच्चे स्पीच और भाषा सीखने में कठिनाई अनुभव करते हैं इसीलिए वे अन्य विषयों की सीखने में भी कठिनाई महसूस करते हैं।

(g) अध्यापक को इस बात का रिकार्ड रखना चाहिए कि बच्चे को क्या कुछ आता है, वह और क्या कर सकत है तथा उसे बच्चे करी शैक्षिक आवश्यकताओं को अनुसार पाठ की योजना बनानी चाहिए।

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