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मानसिक अस्वस्थता का अर्थ | मानसिक अस्वस्थता के मुख्य कारण

मानसिक अस्वस्थता का अर्थ
मानसिक अस्वस्थता का अर्थ

मानसिक अस्वस्थता से आप क्या समझते हैं? 

मानसिक अस्वस्थता का अर्थ- मानसिक अस्वस्थता व्यक्ति की वह मानसिक स्थिति या दशा है जिसमें उसका व्यवहार एवं कार्य असामान्य हो जाता है। मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति का जीवन का अव्यवस्थित तथा असन्तुलित हो जाता है। ऐसा व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में समायोजन नहीं कर पाता। मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में असफल रहता है। परन्तु सामान्य रूप से वह अपनी असफलताओं का जिम्मेवार अपने आपको स्वीकार नहीं करता, ऐसा व्यक्ति अपनी समस्त असफलताओं का दोष अन्य लोगों के सिर मढ़ता है तथा परिस्थितियों के प्रतिकूल कहकर स्वयं को दोषमुक्त करने का प्रयास करता है। मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति अपने मुख्य व्यवसाय को न तो अधिक महत्त्व देता है और न ही उसमें रुचि ही लेता है। संक्षेप में कहा जाता है कि मानसिक अस्वस्थता व्यक्ति की वह अभावपूर्ण स्थिति है जिसमें वह न तो सामान्य व्यवहार करता है और न ही सामान्य चिन्तन। साधारण बोलचाल की भाषा में मानसिक व्यक्ति को पागल या नीम पागल भी कह दिया जाता है।

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मानसिक अस्वस्थता के मुख्य रूप

वैसे तो मानसिक अस्वस्थता असंख्य प्रकार की हो सकती है। प्रत्येक मानसिक रोगी की अपनी अलग ही कहानी होती है तथा अलग ही किस्म होती है। परन्तु व्यवस्थित अध्ययन के लिए मानसिक अस्वस्थता के मुख्य प्रकारों या रूपों का उल्लेख करना अनिवार्य हैं। इन्हें मानसिक अस्वस्थता के लक्षण भी कहा जा सकता है।

1. यौन विकृतियाँ – मानसिक अस्वस्थता की स्थिति में व्यक्ति का यौन व्यवहार असामान्य एवं विचलित हो जाता है। यौन इच्छा या यौन आनन्द प्राप्त करना तो व्यक्ति का नैसर्गिक एवं स्वाभाविक गुण है। परन्तु इस क्षेत्र में भी कुछ नियम हैं। सामान्य यौन व्यवहार से प्रत्येक सामान्य व्यक्ति परिचित होता है। यहाँ कुछ यौन विकृतियाँ का उल्लेख किया जा सकता है, जो किसी मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति में पायी जाती है। कुछ मानसिक रोगी हस्त-मैथुन, गुदा-मैथुन जैसे विचलित व्यवहार में ही आनन्द लेने लगते हैं। कुछ रोगी आत्मपीड़न रति अथवा परपीड़न रति के ही शिकार हो जाते हैं। ऐसे मानसिक रोगी भी देखे जाते हैं जो दूसरे व्यक्तियों को नंगा देखकर, विपरीत लिंगीय व्यक्तियों के कपड़े पहनकर अपने आपको नग्न प्रदर्शित करके ही यौन सुख की अनुभूति प्राप्त करते हैं। कुछ मानसिक रोगी पशुओं से अथवा शव से यौनाचार करते भी पाये जाते हैं। इस प्रकार के विभिन्न विचलित यौनाचार मानसिक अस्वस्थता के लक्षण होते हैं।

2. सामान्य जीवन में विकृतियाँ- सामान्य जीवन की कुछ साधारण विकृतियाँ भी मानसिक अस्वस्थता का प्रतीक बन जाती हैं। कुछ व्यक्ति लिखने, पढ़ने तथा विभिन्न क्रियाएँ करने में अनेक प्रकार की त्रुटियाँ किया करते हैं। ये त्रुटियाँ जब काफी अधिक हो जाती हैं तो मानसिक अस्वस्थता की प्रतीत बन जाती हैं। हकलाना, गलत क्रम में बोलना, दाँत से नाखून काटना, अंगुलियाँ चटखाना तथा अस्त-व्यस्त ढंग से कपड़े पहनना सभी कुछ मानसिक अस्वस्थता के प्रतीक हैं।

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3. मनोस्नायुविक विकृतियाँ–कुछ मनोस्नायुविक विकृतियाँ भी अस्वस्थता की प्रतीक मानी जाती हैं। ऐसी विकृतियाँ सामान्य रूप से स्त्रियों में अधिक पायी जाती हैं। स्त्रियों को समय-समय पर पड़ने वाले दौरे इसी के उदाहरण हैं। कुछ स्त्रियाँ दिन में अनेक बार स्नान करती हैं, बार-बार हाथ माँजती हैं तथा कुल्ला करती हैं। ये सब कार्य मानसिक अस्वस्थता के ही लक्षण हैं।

4. मनो विकृतियाँ – जब मनोस्नायुविक विकृतियाँ अधिक गम्भीर रूप ग्रहण कर लेती हैं तो उन्हें मानसिक मनोविकृतियाँ कहा जाने लगता है। मनोविकृतियाँ गम्भीर मानसिक अस्वस्थता है। मनोविकृत व्यक्ति को तो सामान्य रूप से पगल ही मान लिया जाता है। इस स्थिति में आकर व्यक्ति तर्कहीन, असंगत एवं निरर्थक बात अधिक करने लगता है। उसका चिन्तन विकृत हो जाता है। अनेक बार ऐसे व्यक्तियों में आत्महत्या की प्रवृत्ति भी पायी जाती है। गम्भीर मनोविकृतियों का शिकार व्यक्ति अधिक समय तक जीवित नहीं रहता।

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मानसिक अस्वस्थता के मुख्य कारण

मानसिक अस्वस्थता एक जटिल एवं बहुपक्षीय मानसिक स्थिति है। इस मानसिक स्थिति को उत्पन्न करने वाले कारक भी अनेक हैं। इस स्थिति में मानसिक अस्वस्थता के समस्त कारकों को जानने के लिए इन्हें भिन्न-भिन्न वर्गों में विभक्त करना ही उचित होगा। कुछ कारण ऐसे होते हैं जो व्यक्ति को सामान्य समंजन स्थापित नहीं करने देते हैं। दूसरे वर्ग में उन कारकों को सम्मिलित किया जाता है, जो अस्वस्थता की विकृति को जन्म देते हैं। तीसरे वर्ग में मुख्य रूप से उन कारणों को सम्मिलित किया जाता है, जो अस्वस्थता की विकृत को जन्म देते हैं। तीसरे वर्ग में मुख्य रूप से उन कारकों को सम्मिलित किया जाता है जो प्रत्यक्ष रूप से मानसिक अस्वस्थता उत्पन्न करते हैं। इन तीनों वर्गों के कारकों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है-

(A) सामंजस्य स्थापित करने में बाधक कारक

मानसिक स्वास्थ्य के अर्थ एवं लक्षणों के विवेचन द्वारा स्पष्ट हो चुका है कि जब तक व्यक्ति के जीवन में सामंजस्यता बनी रहती है तब तक वह मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है। सामंजस्यता समाप्त होने से मानसिक स्वास्थ्य भी बिगड़ने लगता है। इस स्थिति में कहा जा सकता है कि वे सब कारण मानसिक अस्वस्थता के कारण हैं जो व्यक्ति के सामंजस्य स्थापित होने में बाधक होते हैं। इस प्रकार के कुछ कारकों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित हैं

1. परिस्थितिजनित कारक- अनेक बार कुछ ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं, जो व्यक्ति को निरन्तर एक के बाद एक समस्या अथवा कठिनाई में डाल देती हैं। ऐसी परिस्थितियों में व्यक्ति कहाँ तक सामंजस्य स्थापित करे? उदाहरण के लिए कल्पना कीजिए किसी व्यक्ति के असमय ही माँ-बाप मर जायें. उसके बाद स्वयं किसी लम्बी बीमारी का शिकार हो जाये तथा परीक्षा में फेल हो जाये उसके साथ ही साथ मकान मालिक उसे मकान से भी निकाल दें तब इन सब विषम परिस्थितियों में वह व्यक्ति किस प्रकार से समंजन कर सकता है? जीवन में सामंजस्य समाप्त होते ही व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य भी बिगड़ने लगता है।

2. विभिन्न व्यक्तिगत दोष- जब किसी व्यक्ति को इस बात का एहसास होने लगता है कि वह दोष युक्त है तो वह व्यक्ति अपने जीवन में सामान्य रूप से सामंजस्य स्थापित नहीं कर पाता। यहाँ यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि कोई वास्तविक दोष ही वरन काल्पनिक दोष भी व्यक्ति को बना देने के लिए पर्याप्त होता हैं। उदाहरण के लिए यदि कोई लड़की अपने आपको बदसूरत समझने लगे तो वह क्रमशः हीनभावना का शिकार होने लगता है तथा शीघ्र ही उसकी सामंजस्यता की क्षमता भी कुण्ठित होने लगती हैं, इसी प्रकार से कुछ ऐसे लड़के जो पढ़ाई, खेल-कूद एवं शारीरिक रूप से अच्छे नहीं होते, वे क्रमशः समायोजन में असफल होने लगते हैं तथा कुछ समय बाद मानसिक रूप से अस्वस्थ बन जाते हैं।

3. रुचियों एवं आकांक्षाओं में विरोध – प्रत्येक व्यक्ति की अनेक रुचियाँ होती हैं। कुछ रुचियाँ जन्मजात होती हैं तथा कुछ अर्जित होती हैं। इसके अतिरिक्त व्यक्ति की विभिन्न प्रकार की आकांक्षाएँ भी होती हैं। कुछ कभी-कभी व्यक्ति की ये रुचियों एवं आकांक्षाएँ इस प्रकार से विकसित हो जाती हैं कि इनमें परस्पर विरोध अथवा संघर्ष भी होने लगता है। उदाहरण के लिए कोई व्यक्ति महान ज्ञानी बनने में आकांक्षा रखता है परन्तु साथ ही साथ वह भोग एवं सांसारिक सुखों को अधिक प्राप्त करने में भी वि रखता है। ऐसी स्थिति में किस प्रकार से सामंजस्यता बनायी जा सकती हैं, रुचियों एवं आकांक्षाओं में विरोध होने पर व्यक्ति का सामंजस्य समाप्त होने लगता है तथा क्रमशः वह व्यक्ति विभिन्न लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल होने लगता है। ये सब घटनाएँ व्यक्ति के मानसिक सन्तुलन को छिन्त्र-मित्र कर देती हैं तथा समय आने पर वह व्यक्ति मानसिक रूप से अस्वस्थ हो जाता है।

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(B) अस्वस्थता की विकृति को प्रेरित करने वाले कारक

मानसिक अस्वस्थता भी एक प्रकार की विकृत मानसिक दशा है। इस दशा या स्थिति के आने तथा विद्यमान रहने की एक प्रवृत्ति होती है। जब यह प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है तब निरन्तर मानसिक स्थिति बिगड़ती चली जाती हैं। मनोवैज्ञानिक अध्ययन से ज्ञात है कि कुछ ऐसे भी कारक होते हैं जो मानसिक अस्वस्थता की प्रवृत्ति को प्रेरित करते हैं तथा उत्पन्न । करते हैं। मानसिक अस्वस्थता को उत्पन्न करने वाले कारकों में इन कारकों को भी सम्मिलित किया जा सकता है। इस वर्ग के मुख्य कारकों का संक्षिप्त विवरण निम्नांकित हैं—

1. दूषित वातावरण- मानसिक अस्वस्थता की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देने से दूषित वातावरण का विशेष हाथ होता है। व्यक्ति जिस प्रकार के पर्यावरण में रहेगा वैसा ही उसका जीवन एवं प्रवृत्तियाँ विकसित हो जाती हैं। अनेक मनोवैज्ञानिक सर्वेक्षणों द्वारा ज्ञात हो चुका है कि नगरीय वातावरण में रहने वाले अनेक व्यक्ति विभिन्न मानसिक विकृतियों से पीड़ित हो जाते हैं। वास्तव में नगरीय वातावरण में रहने वाले व्यक्तियों को अनेक परस्पर विरोधी प्रवृत्तियों को अपनाना पड़ जाता है। ये प्रवृत्तियाँ मानसिक दुविधा एवं संघर्ष को जन्म देती हैं। ऐसे में उलझनें बढ़ती ही चली जाती हैं तथा व्यक्ति चाहते हुए भी अपने आपको सामान्य नहीं बनाये रख पाता। काफी समय तक इस प्रकार का असामान्य जीवन व्यतीत करने वाला व्यक्ति एक दिन मानसिक रोगी बन जाता है।

2. दोष पूर्ण शारीरिक रचना एवं स्वास्थ्य- मानसिक अस्वस्थता की प्रवृत्ति को उत्पन्न करने वाले. कारकों में दोष पूर्ण शारीरिक रचना तथा खराब स्वास्थ्य का भी विशेष योगदान रहता है। दोष पूर्ण शारीरिक रचना वाला व्यक्ति सामान्य रूप से हीन भावना का शिकार रहा करता है। ऐसे व्यक्ति के व्यक्तित्व का समुचित विकास नहीं होता तथा वह कुण्ठित हो जाता है। ऐसे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति में आत्मविश्वास की भी कमी आ जाती है। आत्म-विश्वास के अभाव में कोई भी व्यक्ति समायोजन नहीं कर सकता। ऐसा व्यक्ति क्रमशः चिड़चिड़ा, शीघ्र उत्तेजित हो जाने वाला तथा खिन स्वभाव वाला बन जाता है। स्वभाव के ये दोष ही बाद में व्यक्ति को मानसिक रोगी बना देते हैं।

3. आनुवांशिकता- मानसिक अस्वस्थता के कारणों का वर्णन करते समय आनुवंशिकता के कारक की भी अवहेलना नहीं की जा सकती है— अब से कुछ समय पूर्व तक तो मानसिक अस्वस्थता का मुख्यतम कारक आनुवंशिकता को ही माना जाता था। परन्तु अब इसे मानसिक अस्वस्थता के विभिन्न कारकों में एक कारक माना जाने लगा है। यह तो निर्विवाद रूप से मान लिया गया है कि विभिन्न शारीरिक रोग आनुवंशिकता द्वारा हुआ करते हैं, ये शारीरिक रोग भी सम्बन्धित मानसिक रोग उत्पन्न कर दिया करते हैं। मिर्गी का दौरा पड़ना एक मानसिक विकार है। ब्राउन ने एक विस्तृत सर्वेक्षण के द्वारा यह सिद्ध करने प्रयास किया है कि यह मानसिक विकार आनुवंशिक रूप से चलता है। उन्होंने बताया कि मिर्गी के रोग से पीड़ित व्यक्तियों के 64 प्रतिशत सम्बन्धी पहले से ही इस रोग से पीड़ित थे। इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इन मिर्गी से पीड़ित व्यक्तियों के 78 प्रतिशत सम्बन्धी मिर्गी अथवा अन्य मानसिक रोगों से पीड़ित थे। मानसिक रोगों में आनुवंशिकता के कारक को दर्शाने के लिए भी सीडर ने भी कुछ सर्वेक्षण किये थे। उसने दर्शाया कि जुड़वा बच्चों में मानसिक विकार समान रूप से पाये जाते हैं अर्थात् यदि एक बच्चा मानसिक रूप से रोगी है तो काफी सम्भावना रहती है कि उस जोड़े का दूसरा बच्चा भी उसी मानसिक रोग से पीड़ित हो। इन तथ्यों से स्पष्ट होता है कि मानसिक अस्वस्थता में आनुवंशिकता का भी विशेष योगदान होता है।

(स) मानसिक अस्वस्थता उत्पन्न करने वाले प्रत्यक्ष कारक

उपर्युक्त दो वर्गों के कारकों के अलावा कुछ ऐसे कारक हैं जो प्रत्यक्ष रूप से मानसिक अस्वस्थता को उत्पन्न करते हैं। इस वर्ग के प्रमुख कारकों का संक्षिप्त उल्लेख निम्न प्रकार है-

1. अत्यधिक थकान एवं परिश्रम- प्रत्येक व्यक्ति की परिश्रम करने की निश्चित क्षमता होती है। अपनी क्षमता से अधिक परिश्रम करने से व्यक्ति थक जाता है। यदि यह थकान अत्यधिक बढ़ आती है तो व्यक्ति अपना सन्तुलन खो बैठता है तथा विभिन्न मानसिक रोगों का शिकार हो जाता है।

2. संवेगात्मक उथल-पुथल – व्यक्ति की मानसिक दशा का उसके संवेगों से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। यदि किसी व्यक्ति को अत्यधिक संवेगात्मक उथल-पुथल का सामना करना पड़ता है तब वह व्यक्ति क्षुब्ध हो उठता है। निरन्तर बनी रहने वाली यह क्षुब्धावस्था व्यक्ति को मानसिक रूप से अस्वस्थ बना देती है।

3. मानसिक दौर्बल्य – कुछ व्यक्ति मानसिक रूप से दुर्बल हुआ करते हैं। ये व्यक्ति पर्याप्त ज्ञानात्मक योग्यता से वंचित होते हैं। ये व्यक्ति अपना सामान्य विकास नहीं कर पाते तथा अनेक बार मानसिक रोगों के शिकार हो जाते हैं।

4. हीन भावना – अनेक बार विभिन्न कारणों से व्यक्ति में हीन भावनाएँ घर कर जाती हैं ये हीन – भावनाएँ एक हीन- ग्रन्थि का रूप धारण कर लेती हैं। ऐसी ग्रन्थियाँ भी अनेक मानसिक विकारों को उत्पन्न करती हैं। –

5. दमित भावनाएँ- प्रत्येक व्यक्ति की अनेक भावनाएँ होती हैं। अनेक बार हर प्रकार की भावना को प्रदर्शित कर पाना सम्भव नहीं होता। ऐसे में भावनाओं को हठात् दबा दिया जाता है। भावनाओं का यह दमन हानिकारक होता है, क्योंकि दमित भावनाएँ समाप्त नहीं होती वरन् अन्दर ही अन्दर सक्रिय रहती हैं। तथा अनेक बार भयंकर मानसिक भावनाएँ अस्वस्थता को उत्पन्न कर देती हैं।

6. प्रबल मानसिक संघर्ष- वैसे तो प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी रूप में मानसिक संघर्ष करता ही रहता है, किन्तु कभी-कभी ये मानसिक संघर्ष अत्यधिक प्रबल हो जाते हैं तथा कभी-कभी ये काफी हद तक स्थायी बन जाते हैं। ये स्थायी मानसिक संघर्ष अनेक बार भयंकर रूप धारण कर लेते हैं, जिनके कारण व्यक्ति असामान्य तथा मानसिक रोगी बन जाता है।

मानसिक अस्वस्थता के कारणों का उपर्युक्त विवेचना वास्तव में एक परिचय पत्र हैं। मानसिक अस्वस्थता एक अत्यधिक जटिल एवं बहुपक्षीय स्थिति है। इसकी व्याख्या कुछ सीमित कारणों से नहीं की जा सकती। वास्तव में प्रत्येक मानसिक रोग के कारण भिन्न ही होते हैं।

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