भूगोल / Geography

एशिया महाद्वीप के उच्चावय भौगोलिक | Altitude geography of the continent of Asia in Hindi

एशिया महाद्वीप के उच्चावय भौगोलिक | Altitude geography of the continent of Asia in Hindi
एशिया महाद्वीप के उच्चावय भौगोलिक | Altitude geography of the continent of Asia in Hindi

एशिया महाद्वीप के उच्चावय का एक भौगोलिक विवरण प्रस्तुत कीजिए। 

एशिया महाद्वीप के उच्चावच

एशिया के मध्य भाग में फैली हुई तृतीय कल्प की पर्वत श्रेणियां सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। इन पर्वत श्रेणियों की केन्द्र पामीर की गांठ है, जो अपनी अधिकतम ऊंचाई के कारण संसार की छत के नाम से प्रसिद्ध है। इसके पश्चिमी भाग में फैली दक्षिण-पश्चिमी एशिया की पर्वत श्रेणियां हैं, जिनमें आरमीनिया की गांठ एक विशेष महत्वपूर्ण स्थिति रखे हुए है। पामीर की गांठ के उत्तर-पूरब में अल्टाई पर्वत श्रेणियां फैली हुई हैं।

धरातल की अन्य प्रमुख विशेषता एशिया के दक्षिणी भाग में फैले हुए विस्तृत एवं उपजाऊ नदियों के मैदान हैं, जहां एशिया महाद्वीप की प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति का विकास हुआ है। यद्यपि एशिया महाद्वीप में अनेक छोटी-बड़ी नदियों के मैदान मिलते हैं लेकिन दक्षिण में स्थित उत्तरी भारत का विशाल मैदान संसार का सबसे प्रमुख उपजाऊ मैदान है जो सिन्धु तथा गंगा नदियों द्वारा निर्मित है। पूरब की ओर स्थित चीन का उत्तरी बड़ा मैदान ह्वांगहो नदी द्वारा प्रतिवर्ष लाई गई मिट्टी की पर्तों से बना है। पश्चिमी की ओर स्थित इराक (मैसोपोटामिया) का मैदान दजला एवं फरात नदियों द्वारा निर्मित है जो एशिया की प्राचीन संस्कृति का केन्द्र है।

एशिया महाद्वीप के दक्षिण-पश्चिमी एवं दक्षिण भाग में स्थित अरब तथा भारत के प्रायद्वीपीय पठार उन प्राचीन चट्टानों के बने हुए हैं जिनका निर्माण पृथ्वी की उत्पत्ति के साथ हुआ था। ये विश्व के उन प्राचीन पठारों में से हैं जहां पर कोई भी धरातलीय परिवर्तन नहीं हुआ है।

एशिया महाद्वीप के उत्तर में स्थित विशाल उत्तरी मैदान एक निचली भूमि के रूप में है जहां आर्कटिक सागर के निकट अत्यन्त मन्द ढाल होने के कारण अनेक दलदल बन गए हैं यह विशाल निचली भूमि साइबेरिया के मैदानी भाग में फैली हुई है, जिसका निर्माण ओब, यनीसी तथा लीना नदियों के बेसिनों से हुआ है।

एक अन्य धरातलीय विशेषता महाद्वीप के पूरब एवं दक्षिण-पूरब में फैली हुई द्वीप समूह मालाएं हैं। पूरब में जापान से लेकर दक्षिण-पूरब में पूर्वी द्वीपसमूह तक अनेक द्वीपसमूह मालाएं फैली हुई हैं, जिनमें अनेक छोटे-छोटे द्वीपों की स्थिति है। अकेले फिलीपाइन द्वीपसमूह में ही 7,100 द्वीप विद्यमान हैं

उपर्युक्त धरातलीय विशेषताओं के आधार पर हम एशिया महाद्वीप को निम्न भू आंकृतिक प्रदेशों में विभाजित कर सकें हैं:

  1. दक्षिणी प्रायद्वीपीय पठार
  2. उत्तर की निचली भूमि
  3. द्वीपसमूह मालाएं

1. मध्यवर्ती पर्वत एवं पठार- विश्व का सबसे विशाल महाद्वीप अपनी धरातलीय विशेषताओं के कारण संसार के अन्य सभी महाद्वीपों से विचित्र है। एशिया के मध्य भाग में फैली हुई ये उच्च पर्वत श्रेणियां एशिया महाद्वीप के 20 प्रतिशत से भी अधिक भाग को घेरे । हुए इसका विस्तार एशिया के लगभग 78 लाख वर्ग किलोमीटर भाग पर है। यह पर्वत क्रम पश्चिमी में टर्की से प्रारम्भ होकर पूरब में चीन तथा उत्तर-पूरब में बेरिंग सागर तक विस्तृत है। में इसमें अनेक उच्च पर्वत एवं पठार सम्मिलित हैं इस क्रम में पर्वत शिखरों की सामान्य ऊंचाई 1,000 मीटर से लेकर 8,848 मीटर तक है। एशिया के इस मध्यवर्ती पर्वत-पठार क्रम (पर्वतमालाओं) का केन्द्र पामीर की गांठ हैं जो विश्व की छत कहलाती है।

पामीर की गांठ से निकलने वाली पर्वत श्रेणियों का प्रथम क्रम पश्चिम की ओर फैला हुआ है। इस क्रम के अन्तर्गत निम्न पर्वत एवं पठार सम्मिलित हैं:

  1. उत्तर-पश्चिम की ओर हिन्दुकुश तथा एल्बुर्ज पर्वत श्रेणियां हैं। एल्बुर्ज पर्वत श्रेणी आरमीनिया की गांठ पर समाप्त हो जाती हैं।
  2. उत्तर-दक्षिण की ओर गिलगिट, सुलेमान, किरथर तथा जैग्रोस पर्वत श्रेणियां हैं। जैग्रोस पर्वत श्रेणी आरमीनिया की गांठ पर समाप्त हो जाती है।

पामीर की गांठ से निकलने वाली पर्वत श्रेणियों का तीसरा क्रम पूरब की ओर फैला हुआ हैं इस क्रम के अन्तर्गत निम्न पर्वत एवं पठार सम्मिलित हैं:

  1. पामीर की गांठ के पूरब की ओर एक पर्वत श्रेणी दक्षिण-पूरब दिशा में चली गई जिसमें कुनलुन, बाथानकारा तथा सिनलिंग पर्वत है।
  2. पामीन की गांठ के पूरब की ओर दूसरी पर्वत श्रेणी उत्तर-पूरब दिशा में चली गई हैं। जिसमें अल्टाइताग, नानश्खान तथा खिंगन प्रमुख हैं।

पामीर की गांठ के निकलने वाली पर्वत श्रेणियों का चौथा क्रम उत्तर-पूरब दिशा में फैला हुआ है। इस क्रम के अन्तर्गत निम्न पर्वत एवं पठार सम्मिलित है:

  1. पामीर की गांठ के उत्तर-पूरब की ओर एक पर्वत श्रेणी क्रम निकल गया है जिसमें मुख्य पर्वत तियानशान, अल्टाई, यावलोनोय तथा स्टेनोबोय हैं
  2. पामीर की गांठ के उत्तर-पूरब की ओर एक पर्वत श्रेणी क्रम और आगे निकल गया है जिसमें मुख्य पर्वत बर्खोयांस्क, कोलिया, अनादिर तथा कमचटका हैं।

नदियों के मैदान

एशिया महाद्वीप के धरातल पर नदियों के अनेक छोटे-बड़े मैदान मिलते हैं। ये अत्यन्त उपजाऊ मैदान हैं। इन मैदानों में एशिया महाद्वीप की सभ्यता का विकास हुआ है। सिन्धु घाटी एवं दजला-फरात बेसिन की सभ्यता एशिया की प्राचीन सभ्यताओं में से हैं जहां से इसका प्रचार संसार के अनेक देशों में हुआ है। ये एशिया के सांस्कृतिक विकास केन्द्र हैं। आज भी एशिया महाद्वीप की जनसंख्या का सबसे अधिक घनत्व इन्हीं मैदानों में मिलता है। पश्चिम से पूरब की और ये मैदान क्रमशः निम्नलिखित हैं:

(i) दजला-फरात का मैदान- इस मैदान का विस्तार इराक में है। इसे मैसोपोटामिया का मैदान भी कहते हैं। दजला-फरात नदियां अरारात पर्वत से निकलकर इराक में होती हुई फारस की खाड़ी में गिर जाती हैं। खाड़ी में गिरने से पूर्व वे आपस में मिलकर शत्तल अरब कहलाती हैं। यहां एशिया की प्राचीन बेबीलोन सभ्यता का विकास हुआ है। इनके अतिरिक्त असीरी व सुमेरी सभ्यता का विकास भी इसी मैदान पर सिंचाई करके कृषि की जाती हैं।

(ii) सिन्धु-गंगा का मैदान- इसका विस्तार भारत तथा पाकिस्तान में है। सिन्धु तथा गंगा और इन नदियों की अनेक सहायक नदियों की उपजाऊ काँप मिट्टी से यह मैदान निर्मित हुआ है। सिन्धु घाटी की सभ्यता एशिया के इसी क्षेत्र में प्रसारित हुई थी। आर्य संस्कृति इसी मैदान में विकसित हुई थी। ये संसार के माने हुए प्रसिद्ध उपजाऊ मैदान में हुआ है। इस मैदान भाग में प्राचीन द्रविण तथा आर्य सभ्यताओं का विकास हुआ है।

(iii) सीक्यांग का मैदान- यह दक्षिणी चीन में विस्तृत है। इसका निर्माण सीक्यांग नदी द्वारा किया गया है। यह नदी प्रशान्त महासागर में गिरती है तथा महासागर में गिरने से पूर्व उपजाऊ मैदान का निर्माण करती है। मैदान का विस्तार अधिक नहीं है। यह एक तंग तथा सँकरा मैदान है लेकिन यह चावल तथा चाय की कृषि के लिए अत्यन्त उपजाऊ मैदान है।

(iv) ह्वांगहो का मैदान- इसका निर्माण ह्वांगहो अथवा पीली नदी द्वारा लोयस के पठार से बहाकर लाई गई मिट्टी से हुआ है। इसलिए इसे उत्तरी चीन का विशाल पीला मैदान भी कहते हैं। यह चीन के उत्तरी भाग में है। इस मैदान में नदी का तल अन्य भाग से ऊंचा होने के कारण नदी प्रतिवर्ष मात्र गदल देती है जिससे इस नदी में भयंकर बाढ़े आती रहती हैं इसीलिए ह्वांगहो नदी को ‘चीन का शो’ कहते हैं। यह गेहूं की कृषि के लिए विश्व का प्रसिद्ध उपजाऊ मैदान है।

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