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परिपृच्छा शिक्षण प्रतिमान | Inquiry Training Model in Hindi

परिपृच्छा शिक्षण प्रतिमान (Inquiry Training Model)

परिपृच्छा शिक्षण प्रतिमान के मुख्य प्रवर्तक रिचर्ड सचमैन (Richard Suchman) हैं। सचमैन का मुख्य बल पुष्ट आधार वाले ज्ञान के लिए शिक्षण न होकर उस तरीके या साधन के शिक्षण से है जिसके द्वारा प्रत्यय निर्माण घटनाओं की व्याख्या हेतु सिद्धान्तों का निरूपण तथा तथ्यों की पुष्टि करनेमें सहायता मिलती है। इस शिक्षण विधि का मुख्य उद्देश्य न तो सिद्धान्तों को बनाना है न ही समस्या का समाधान प्रस्तुत करना है।

सचमैन के शब्दों में, “पृच्छा अर्थ का विश्वास है और वह किसी एक विशेष के चेतन अवस्था के विभिन्न पहलुओं में एवं उनके मध्य एक नयी सम्बद्धता के पाने की इच्छा से प्रेरित होती है।

“Inquiry is the pursuit of meaning and thus it is motivated by the desire to obtain a new level to relatedness between and among separate aspect of ones consciousness.”  -Suchman

परिपृच्छा शिक्षण प्रतिमान का अध्ययन इसके विभिन्न तत्वों के आधार पर किया जा सकता है-

1. उद्देश्य (Focus) – इस प्रतिमान का मुख्य उद्देश्य है-

(अ) सामाजिक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए व्यक्तिगत क्षमताओं का विकास करना तथा

(ब) वैज्ञानिक पृच्छा की नीतियों एवं युक्तियों का विकास करना।

उद्देश्यों के तौर पर देखने पर यह ज्ञात होता है कि सचमैन के प्रतिमान का मुख्य उद्देश्य पुष्ट आधार वाला (Substantive) ज्ञान का शिक्षण न होकर तरीके का शिक्षण है जिसके माध्यम से उस ज्ञान को विकसित किया गया है।

2. संरचना (Syntax) – इस प्रतिमान की संरचना व्यवस्था का वर्णन इसमें दी जाने वाली अनुदेशन सहायता की मात्रा एवं प्रकृति की ओर संकेत करता है। इस प्रतिमान में शिक्षण काल लगभग एक घण्टा है और सम्पूर्ण शिक्षण काल निम्नलिखित तीन सोपानों में विभक्त है

(अ) समस्या का प्रस्तुतीकरण एवं पहचानना – इस पद में शिक्षक इस प्रकार की समस्या का चयन शिक्षण हेतु करता है जिसमें विद्यार्थी निष्क्रिय न रहकर सक्रिय कार्य करे। इस समस्या का चयन क्योंकि छात्रों के मानसिक स्तर, पूर्ण ज्ञान तथा उनकी रुचि को ध्यान में रखकर किया जाता है, अतः छात्र अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिए स्वयं प्रयासशील रहते हुए समस्या का हल प्राप्त करने का प्रयास करते हैं।

(ब) समस्या सम्बन्धी प्रयोग करना- इस सोपान में छात्र लगभग 30 मिनट तक समस्या से सम्बन्धित सूचना प्राप्त करने या पुष्टीकरण करने वाले प्रश्न पूछता है तथा शिक्षक उसका स्तर केवल हाँ या नहीं में देने तक ही सीमित रखता है तथा कुछ प्रश्नों को जिसके माध्यम से समस्या के समाधान की सम्भावना होती है, पूछने से मना भी कर सकता है। यह सोपान उस समय समाप्त होता है जब छात्र या तो देखे जाने वाली घटनाओं के स्पष्टीकरण पर पहुँच जाता है या समय समाप्त हो जाता है।

(स) छात्र व शिक्षक की समस्या समाधान के लिए नीति निर्माण – इसमें शिक्षक छात्रों द्वारा समस्या समाधान के दौरान प्रयुक्त युक्तियों एवं नीतियों का मूल्यांकन एवं पुनर्निरीक्षण करता है तथा उनके प्रश्नों को सुधारने के लिए विभिन्न सुझाव प्रस्तुत करने का प्रयास करता है।

3. प्रतिक्रिया सिद्धान्त – इसमें छात्रों के सम्मुख समस्या निवारण हेतु परिस्थितियाँ प्रस्तत करनी चाहिए और उनकी तार्किक क्षमता, जिज्ञासा एवं स्वयं निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना चाहिए। समस्या प्रस्तुतीकरण के पश्चात् छात्रों को परिपृच्छा का अवसर देना चाहिए। छात्रों की समस्या हल के लिए सभी सूचनायें और सुविधाएँ उपलब्ध करानी चाहिए तथा स्वयं उत्तर नहीं बताना चाहिए।

4. सामाजिक प्रणाली – सामाजिक प्रणाली के अन्तर्गत शिक्षक इस बात पर बल देता है कि विद्यार्थी स्वयं अपनी जिज्ञासाओं तथा ज्ञान प्राप्त करने में उपस्थित होने वाली समस्याओं के निराकरण हेतु योजनाओं का निर्माण करें। समस्या निवारण हेतु परिपृच्छा काल में विद्यार्थियों के परस्पर सहयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए। कक्षा में उपलब्ध सभी साधन एवं सामग्री के साथ उन्हें स्वतन्त्रतापूर्वक सभी सिद्धान्तों का परीक्षण करने देना चाहिए।

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