अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Learning Process)
अधिगम की प्रक्रिया अनेक कारकों से प्रभावित हो सकती है। अधिगम को प्रभावित करने वाले कारक 9 प्रमुख कारकों का वर्णन आगे किया गया है –
1. पूर्व अधिगम (Previous Learning) –
बालक कितनी शीघ्रता से अथवा कितनी अच्छी तरह से सीखता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह पहले से क्या सीख चुका है। नवीन अधिगम की प्रक्रिया प्रायः शून्य से प्रारम्भ नहीं होती है वरन् बालक द्वारा पूर्व अर्जित ज्ञान से प्रारम्भ होती है। बालक के ज्ञान की आधारशिला जितनी सुदृढ़ तथा व्यापक होती है, उसके ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया उतनी ही अधिक सुचारु ढंग से चलती है। अतः अध्यापकों को ‘ज्ञात से अज्ञात की ओर’ के शिक्षण सिद्धान्त के अनुरूप शिक्षण कार्य करना चाहिए।
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2. विषयवस्तु (Subject Matter) –
अधिगम की प्रक्रिया पर सीखी जाने वाली विषयवस्तु का भी प्रभाव पड़ता है। कठिन व असार्थक बातों की अपेक्षा सरल व सार्थक बातों को बालक अधिक शीघ्रता व सुगमता से सीख लेता है। विषय सामग्री की व्यक्तिगत उपादेयता भी सीखने में महत्वपूर्ण योगदान करती है। यदि सीखने वाली विषय सामग्री बालक के लिए व्यक्तिगत उपयोग तथा महत्व रखती है तो बालक उसे सरलता से सीख लेता है। अतः बालक के जीवन से संबंधित तथा महत्वपूर्ण विषय-सामग्री को पाठ्यक्रम में प्रमुख स्थान दिया जाना चाहिए।
3. शारीरिक स्वास्थ्य व परिपक्वता (Physical Health and Maturity)-
शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ व परिपक्क बालक सीखने में रुचि लेते हैं है जिससे वे शीघ्रता से नवीन बातों को सीख लेते हैं। इसके विपरीत कमजोर, बीमार व अपरिपक्व बालक सीखने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। छोटी कक्षाओं में पढ़ने वाले बालकों के लिए शारीरिक स्वास्थ्य व परिपक्वता का विशेष महत्व है जिससे वे पुस्तक, कलम, कापी आदि ठीक ढंग से पकड़ सके। इसलिए बालकों के शारीरिक स्वास्थ्य व परिपक्वता के अनुरूप ही उन्हें नवीन बातें सिखानी चाहिए।
4. मानसिक स्वास्थ्य व परिपक्कता (Mental Health and Maturity) –
मानसिक रूप से स्वस्थ व परिपक्क बालकों में सीखने की क्षमता अधिक होती है। अधिक बुद्धिमान बालक कठिन बातों को शीघ्रता से तथा सरलता से सीख लेता है। मानसिक रोगों से पीड़ित या कम बुद्धि वाले बालक प्रायः मन्दगति से नवीन बातों को सीख पाते हैं। बड़ी कक्षाओं में पढ़ने वाले छात्रों के सीखने में उनकी बुद्धि तथा मानसिक परिपक्कता दोनों का ही विशेष महत्व होता है।
5. अधिगम की इच्छा (Will to Learn)-
अधिगम सीखने वाले की इच्छा पर भी निर्भर करता है। यदि बालक में किसी बात को सीखने की दृढ़ इच्छा शक्ति होती है तो वह प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उस बात को सीख लेता है। इसके विपरीत यदि कोई बालक किसी बात को सीखना ही नहीं चाहता है तो उसे जबरदस्ती सिखाया नहीं जा सकता है। अतः बालकों को सिखाने से पहले अध्यापको व अभिभावकों को उनमें दृढ़ इच्छा शक्ति को उत्पन्न करना चाहिए ।
6. प्रेरणा (Motivation) –
प्रेरणा का अधिगम की प्रक्रिया में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान है। यदि बालक सीखने के लिए प्रेरित नहीं होता है तो वह सीखने के कार्य में रुचि नहीं लेता है। अतः अध्यापकों को चाहिए कि सीखने से पहले बालकों को सीखने के लिए प्रेरित करे। प्रशंसा व प्रोत्साहन के द्वारा तथा प्रतिद्धन्दिता व महत्वाकांक्षा की भावना उत्पन्न करके बालकों को प्रेरित किया जा सकता है।
7. थकान (Fatigue) –
थकान सीखने की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करती है। थकान की स्थिति में बालक पूर्ण मनोयोग से सीखने की क्रिया में रत नहीं हो पाता है तथा उसका ध्यान विकेन्द्रित होता रहता है जिससे सीखना संदिग्ध हो जाता है। प्रातःकाल बालक स्फूर्ति से युक्त रहते हैं जिसके कारण प्रातःकाल में सीखने में सुगमता रहती है। धीरे-धीरे बालकों की स्फूर्ति में शिथिलता आती जाती है जिसके कारण बालकों की सीखने की गति मन्द होती जाती है। अतः बालकों के पढ़ने की समय-सारणी बनाते समय विश्राम की व्यवस्था रखने का भी ध्यान रखना चाहिए।
8. वातावरण (Atmosphere)-
अधिगम की प्रक्रिया पर वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। शान्त, सुविधाजनक, नेत्रप्रिय, उचित प्रकाश तथा वायु वाले वातावरण में बालक प्रसन्नता से व एकाग्रचित होकर सीखता है। इसके विपरीत शोरगुल वाले अनाकर्षक तथा असुविधाजनक वातावरण में बालक के सीखने की प्रक्रिया मन्द हो जाती है। ऐसे वातारण में बालक जल्दी ही थकान का अनुभव करने लगता है। अतः अभिभावकों, अध्यापकों तथा प्राचार्यों को घर, कक्षा व विद्यालय के अंदर सीखने में सहायक वातावरण तैयार करने का प्रयास करना चाहिए।
9. सीखने की विधि (Learning Methods)-
सीखने की विधि का भी अधिगम की क्रिया में महत्वपूर्ण स्थान होता है। कुछ विधियों से सीखा ज्ञान अधिक स्थायी होता है। खेल विधि या करके सीखना विधि जैसी मनोवैज्ञानिक व आधुनिक विधियों से ज्ञान शीघ्रता व सुगमता से प्राप्त किया जाता है तथा यह ज्ञान अधिक स्थायी होता है। इसके विपरीत अमनोवैज्ञानिक विधियों से यदि बालकों को जबर्दस्ती सिखाये जाने का प्रयास किया जाता है तो बालक सीखने में रुचि नहीं लेता है। अतः बालकों को सिखाते समय उनकी आयु, क्षमता आदि एवं विषयवस्तु की प्रकृति जैसी बातों को ध्यान में रखकर ही उपयुक्त विधि का चयन करना चाहिए।
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