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शिक्षा का अर्वाचीन अर्थ | Modern Meaning of Education

शिक्षा का अर्वाचीन अर्थ | Modern Meaning of Education

Modern Meaning of Education

Modern Meaning of Education

शिक्षा का अर्वाचीन अर्थ
Modern Meaning of Education

शिक्षा का अर्वाचीन अर्थ- आधुनिक समय में शिक्षा को गतिशील (Dynamic) माना गया है तथा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया (Long life process) बताया गया है, जो कि शिक्षा का व्यापक अर्थ है। अर्वाचीन शिक्षा में शिक्षा शब्द का प्रयोग तीन रूपों में किया जाता है-

  1. ज्ञान के लिये
  2. मानव के शारीरिक एवं मानसिक व्यवहार में परिवर्तन हेतु प्रक्रिया के लिये और
  3. पाठ्यचर्या के एक विषय के लिये।

शिक्षा, इन विषयों के रूप में शिक्षा शास्त्र कहलाता है। शिक्षा शास्त्र में शिक्षा की प्रक्रिया के विभिन्न अंगों-शिक्षक, शिक्षार्थी, सामाजिक परिवेश और पाठ्यचर्या का विस्तृत अध्ययन किया जाता है। अर्वाचीन रूप में अब हम शिक्षा के सम्पूर्ण अर्थों को समझने का प्रयास करेंगे-

1. शिक्षा का शाब्दिक अर्थ (Word meaning of education) –

शिक्षा को अंग्रेजी भाषा में एज्युकेशन (education) कहते हैं। शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार ‘एजूकेशन’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के तीन शब्दों ‘एडूकेटम’ (Educatum), ‘एडूसियर’ (Educere) तथा ‘एडुकेयर’ (Educare) से हुई है। ‘एडूकेटम’ शब्द की रचना दो शब्दों ए’ (E) एवं डूको’ (Duco) के मिलने से हुई है। इनमें से ए’ (E) का अर्थ ‘अन्दर’ से तथा डूको (Duco) का अर्थ अग्रसर करने या आगे बढ़ने से है, इस प्रकार एडूकेटम का अर्थ अन्दर से विकास करना है। अन्दर से विकास का तात्पर्य बालक की अन्तर्निहित शक्तियों को विकसित करना है। इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि अध्यापक ज्ञान को बालक के मस्तिष्क में ठूसकर भरे। बालक में कुछ जन्मजात शक्तियाँ होती हैं, उनको विकसित करने का कार्य ही शिक्षा है। लैटिन भाषा के अन्य दो शब्द एडूकेयर’ तथा एडूसियर’ हैं। इनमें से एडूकेयर (Educare) का अर्थ है-आगे बढ़ना, विकसित करना अथवा बाहर निकालना। दूसरा शब्द ‘एडूशियर’ (Educere) है, जिसका अर्थ है-बाहर निकालना। इन दोनों शब्दों के अर्थ क्रिया के द्योतक हैं। चूँकि शिक्षाशास्त्रियों के अनुसार एजूकेशन’ शब्द की उत्पत्ति उपरोक्त दोनों शब्दों से मानी जाती है, अतएव शिक्षा कोई वस्तु न होकर विकास सम्बन्धी प्रक्रिया है।

हिन्दी का ‘शिक्षा’ शब्द संस्कृत भाषा के ‘शिक्ष्’ धातु से बना है। ‘शिक्ष्’ धातु में (आ) प्रत्यय लगाने से ‘शिक्षा’ की उत्पत्ति हुई है। ‘शिक्षा’ शब्द से तात्पर्य ‘सीखना और सिखाना’ (Learning and teaching) है। इस दृष्टि से भी शिक्षा एक प्रक्रिया है, इसमें सीखने और सिखाने की प्रक्रिया चलती रहती है। यह प्रक्रिया मानव जीवन के किसी विशेष स्तर तक ही सीमित नहीं रहती वरन् बालक के जन्म के साथ ही शिक्षा प्रक्रिया आरम्भ होकर आजीवन चलती रहती है।

2. शिक्षा का संकुचित अर्थ (Narrower meaning of Education) –

संकुचित अर्थ में शिक्षा से अभिप्राय विद्यालयी शिक्षा से है, जिसमें नियन्त्रित वातावरण में बालक को बिठाकर पूर्व निर्धारित अनुभवों का ज्ञान करवाया जाता है। इस प्रकार की शिक्षा की एक निश्चित अवधि होती है तथा इसका एक निर्धारित पाठ्यक्रम बनाया जाता है। शिक्षा के संकुचित अर्थ में बालक का स्थान गौण तथा शिक्षक का स्थान मुख्य होता है। इस अर्थ के अनुसार व्यक्ति का विद्यालयी जीवन ही शिक्षा काल होता है। शिक्षा के संकुचित अर्थ एवं महत्त्व को स्पष्ट करते हुए जी. एच. थॉमसन ने लिखा है-

“शिक्षा एक प्रकार का वातावरण है जिसका प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार की आदतों, चिन्तन और दृष्टिकोण पर स्थायी रूप में परिवर्तन करने के लिये डाला जाता है।” जे. एस. मैकेन्जी के शब्दों में, “संकुचित अर्थ में शिक्षा से तात्पर्य हमारी शक्तियों के विकास अथवा सम्वर्द्धन करने के लिये चेतनापूर्ण प्रयासों से हैं। 

अनेक शिक्षाशास्त्री संकुचित अर्थ में शिक्षा के रूप की आलोचना करते हैं। उनके मतानुसार पुस्तकीय शिक्षा के कारण बालक व्यावहारिक ज्ञान से वंचित रह जाते हैं। पुस्तकीय ज्ञान उनको तोते की भाँति कण्ठस्थ तो करा दिया जाता है, किन्तु ऐसे बालक अपने भावी जीवन में समस्याओं के समाधान में स्वयं को अपंग पाते हैं। इस प्रकार की शिक्षा बालकों के मानसिक और चारित्रिक विकास में कोई योगदान प्रदान नहीं करती और न ही उनमें आत्म-विश्वास का भाव सबल बनाती है।

3. शिक्षा का व्यापक अर्थ (Extensive meaning of Education) –

व्यापक दृष्टि से शिक्षा का अर्थ उन सभी अनुभवों से है, जो बालक विभिन्न परिस्थितियों में अर्जित करता है। इस अर्थ के अनुसार ‘शिक्षा’ आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है। बालक को प्राकृतिक वातावरण के साथ अनुकूलन करना पड़ता है। थोड़ी आयु बढ़ने के साथ वह युवक के रूप में सामाजिक एवं आध्यात्मिक वातावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करते समय अनेक अनुभव अर्जित करता है ,इस प्रकार अर्जित अनुभव ही शिक्षा है। सीखने और सिखाने की प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। व्यापक दृष्टि से शिक्षा के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति शिक्षक और शिष्य दोनों ही हैं। इस शिक्षा प्रक्रिया में नियन्त्रित वातावरण का अंकुश नहीं होता। शिक्षा के व्यापक अर्थ को स्पष्ट करते हुए प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री टी रेमण्ट ने लिखा है कि “शिक्षा विकास का वह क्रम है जो बाल्यावस्था से परिपक्वास्था तक चलता है तथा जिसमें मनुष्य अपने आपको आवश्यकतानुसार धीरे-धीरे भौतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक वातावरण के अनुकूल बना लेता है।” इस प्रकार अर्जित अनुभवों के आधार पर अपने को विभिन्न वातावरण के साथ अनुकूलन करने की क्षमता का विकास करना ही शिक्षा है।

शिक्षा के व्यापक अर्थ के अनुसार शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है। इस कथन की पुष्टि शिक्षाशास्त्री डम्बिल के शब्दों से होती है-“शिक्षा के व्यापक अर्थ में वे सभी प्रभाव आते हैं, जो मानव को बाल्यावस्था से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक प्रभावित करते हैं।” इसी विचार की पुष्टि मैकेन्जी के शब्दों से होती है-“व्यापक अर्थ में शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है, जो जीवन पर्यन्त चलती है और जीवन के प्रत्येक अनुभव से उसमें वृद्धि होती है।” शिक्षाशास्त्रियों के कथन से स्पष्ट है कि शिक्षा केवल घर या विद्यालय तक ही सीमित नहीं है। शिक्षा का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। सिखाने वाली प्रत्येक परिस्थिति या स्थान विद्यालय है तथा सिखाने वाला प्रत्येक व्यक्ति शिक्षक है और जिनको वह सिखाता है वे सभी शिष्य हैं। इस दृष्टि से प्रत्येक प्राणी शिक्षक एवं विद्यार्थी है और सम्पूर्ण जीवन शिक्षा काल है। लॉक का कथन भी इसी विचार की पुष्टि करता है, “जीवन ही शिक्षा है और शिक्षा ही जीवन है।”

4. शिक्षा का विश्लेषणात्मक अर्थ (Analytical meaning of Education) –

शिक्षा शब्द इतना बहुअर्थी है कि इसकी व्याख्या विविध प्रकार से की जाती है। यहाँ शिक्षा के अर्थको और अधिक स्पष्ट करने के लिये शिक्षा शब्द का विश्लेषण करके उसके निश्चित अर्थ की ओर बढ़ने का प्रयास करेंगे-

  1. शिक्षा-जन्मजात शक्तियों के विकास के रूप में – शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र में होने वाली प्रगति के परिणामस्वरूप मनोवैज्ञानिकों की मान्यता है कि ज्ञान को छात्रों के मस्तिष्क में ठूस-ठूस कर भरना शिक्षा नहीं है। इसके विपरीत शिक्षा का अर्थ छात्र की जन्मजात शक्तियों का सर्वांगीण विकास करना है। शिक्षाशास्त्री एडीसन ने भी शिक्षा के इसी रूप पर बल देते हुए लिखा है कि, “शिक्षा वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा मानव में निहित शक्तियों का विकास होता है।”
  2. शिक्षा-नवीन सूचनाओं के रूप में – कुछ व्यक्तियों के मतानुसार नवीन सूचनाओं का संग्रह तथा निष्पादन ही शिक्षा है, वे सूचनाओं को ही ज्ञान कहते हैं।यद्यपि शिक्षा प्रक्रिया में सूचनाएँ सहायक होती हैं, किन्तु ये शिक्षा का स्थान ग्रहण नहीं कर सकती ।
  3. शिक्षा-एक गतिशील प्रक्रिया के रूप में – शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है जो व्यक्ति एवं समाज दोनों को ही विकास के पथ पर अग्रसर करती है। गतिशीलता से यह भी तात्पर्य है कि सामाजिक परिवर्तनों के साथ-साथ शिक्षा की प्रक्रिया में परिवर्तन होते रहते हैं। यह जड़ प्रक्रिया नहीं है।
  4. शिक्षा-विद्यालय की परिधि के सीमित ज्ञान के रूप में – कुछ विद्वान् पिता को विद्यालय की परिधि तक ही सीमित मानते हैं किन्तु शिक्षा के सम्बन्ध में इस प्रकार की धारणा दोषपूर्ण है। शिक्षा तो जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है, जिस पर आयु या स्थानक कोई प्रतिबन्ध नहीं होता।

5. शिक्षा का वास्तविक अर्थ (Real meaning of Education) –

शिक्षा के शाब्दिक, संकुचित, व्यापक और विश्लेषणात्मक अर्थ से शिक्षा की वास्तविक धारणा स्पष्ट नहीं होती। प्रश्न यह उठता है कि हमको शिक्षा का कौन-सा रूप स्वीकार करना चाहिये? शिक्षा का शाब्दिक अर्थ स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि यह आवश्यक नहीं कि शाब्दिक अर्थ वास्तविक अर्थ भी हो। संकुचित अर्थ में शिक्षा को विद्यालय की सीमाओं में बाँध दिया जाता है और नियन्त्रित वातावरण में पूर्व निर्धारित अनुभवों का ज्ञान बालकों के मस्तिष्क में ठूंसकर भरा जाता है। इससे मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों की अवहेलना होती है। व्यापक अर्थ में शिक्षा आवश्यकता से अधिक उदार हो जाती है किन्तु उससे निश्चित उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती। अत: शिक्षा की उचित धारणा के लिये आवश्यक है कि हम सभी प्रकार के अर्थों का एक समन्वित रूप लेकर चलें। समन्वित रूप में शिक्षा के वास्तविक अर्थ को निम्नलिखित शब्दों में व्यक्त किया जा सकता है-

“शिक्षा एक ऐसी सामाजिक एवं गतिशील प्रक्रिया है जो व्यक्ति के जन्मजात गुणों का विकास करके उसके व्यक्तित्व को निखारती है और सामाजिक वातवरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने के योग्य बनाती है। यह प्रक्रिया व्यक्ति को उसके कर्तव्यों का ज्ञान कराते हुए उसके विचार एवं व्यवहार में समाज के लिये हितकर परिवर्तन करती है।”

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