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व्यावहारिक जीवन में मूल्य की अवधारणा | Concept of value in Practical life

व्यावहारिक जीवन में मूल्य की अवधारणा
व्यावहारिक जीवन में मूल्य की अवधारणा

व्यावहारिक विज्ञानों में मूल्य की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।

व्यावहारिक जीवन में मूल्य की अवधारणा – पुराकाल में मानव के जीवन में व्यावहारिकता की उन्नति हेतु शक्ति एवं मूल्यों की शिक्षा पर अत्यधिक बल दिया जाता था। बालकों को शिक्षक कहानियों, आध्यात्मिक कथाएँ एवं नीति विधियों के द्वारा शक्ति एवं मूल्यों की शिक्षा प्रदान करते थे, जिनके कारण वह एक आदर्श नागरिक बन सके। इसके लिए निम्न विधियों का प्रयोग किया गया-

व्यावहारिक विधियों से अभिप्राय- पाठ्य सामग्री क्रियाओं के सफल आयोजन व उनके माध्यम से जीवन मूल्यों की पुनः स्थापना करने का दायित्व निभाना व्यावहारिक विधियों का कार्य है। समाज भी हमसे इसकी अपेक्षा रखता है, व हमें दृढ़ संकल्प के साथ उत्तरदायित्व पूर्ण व्यवहार करके कर्तव्य पालन में पीछे नहीं रहना चाहिए। शिक्षक छात्रों के जीवन में मूल्यों की प्रतिष्ठा भर सकते हैं। कुछ उपयोगी पाठ्य-क्रियाएँ निम्न हैं –

(1) समाज एवं मूल्यों के विकास में खेल की भूमिका उल्लेखनीय होती है। खेलते समय उचित खेल भावना के प्रदर्शन पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए। खेल के समय अनुशासित रहकर वह प्रारम्भिक निराशाओं के बावजूद ईर्ष्या, घृणा, द्वेष, चालबाज, हिंसा आदि। शारीरिक व्यायाम तथा योग क्रियाओं के माध्यम से स्वास्थ्य सहयोग, व्यवस्था, सौन्दर्यबोध, शालीनता आदि मूल्य विकसित किए जा सकते हैं-

(2) सभी विद्यालयों में एक प्रार्थना स्थल होता है जहाँ सभी अध्यापक एवं छात्र एकत्र होकर रुचिपूर्ण ढंग से लय व गति के साथ याचना करते हैं। समय-समय पर विद्यार्थियों को प्रार्थना के अर्थ एवं उसमें निहित विचारों की उपयोगिता को स्पष्ट किया जाना चाहिए।

(3) भारत में विविधता है, यहाँ पर विभिन्न धर्मों एवं मतों के अनुयायी रहते हैं, तथा वे अनेक पर्वों एवं उत्सवों का आयोजन करते हैं। इसके अलावा कुछ राष्ट्रीय पर्व भी आयोजित किए जाते हैं। इन सब के माध्यम से विद्यार्थियों में भेदभाव रहित वातावरण विकसित करने, प्रेमनिष्ठा, दया, परोपकार, त्योग, धर्मनिरपेक्षता आदि मूल्य विकसित किए जाने चाहिए। इन मूल्यों के सशक्त संस्कार उत्पन्न करने के प्रयास करके छात्रों को दिशा-निर्देशित किया जाना परमावश्यक है।

(4) प्रत्येक विद्यालय तथा प्रत्येक कक्षा में एक छात्र संसद बनाई जा सकती है, इनके क्रिया कलापों में गति एवं कार्य करने की प्रवृत्ति होती है। छात्रों को समूह में तथा आपस में मेल-जोल बढ़ाना चाहिए।

पारस्परिक विधियाँ एवं मूल्य

(1) कहानी प्रस्तुतीकरण विधि द्वारा बालकों के मन मस्तिष्क पर अमिट छाप पड़ती हैं। बालक कहानियों को सुनने में अत्यधिक रुचि लेते हैं। कहानी संस्कृति, इतिहास आदि से संजोकर बनाई जाती हैं, जिनके द्वारा व्यक्ति में दया, प्रेम, अहिंसा, कर्तव्यनिष्ठा, परोपकार, राष्ट्रप्रेम, भ्रातृत्व, विश्ववन्धुत्व, सच्चरित्रता, बलिदान, आतिथ्य सत्कार, त्याग एवं सत्य आदि जैसे मूल्यों का विकास किया जाता है।

(2) आध्यात्मिक कहानियाँ हमारे धर्म से जुड़ी होती हैं, जो ईश्वर विषयक होती हैं। जैसे रामायण, महाभारत, पुराण आदि।

(3) नीति कथन विधि हमारे कवियों ने इसे विभिन्न प्रकार से प्रदर्शित किया है, किसी कवि ने गद्यांश के रूप में तो किसी ने पद्यांश के रूप में नीति कथन से बालकों को सही-गलत या सत्य-असत्य का अर्थ पता चलता है तथा मूल्यों की ओर अग्रसर होते हैं।

(4) कथा ऐसी कहानियाँ होती हैं जिसे मनुष्य सत्य मानंता है एवं उसमें अटूट विश्वास रखता हैं। एक ही कथा विभिन्न संदर्भों एवं अंचलों से बदल कर अनेक रूप ग्रहण कर लेती हैं, कथाएँ मानव को परम्परागत वसीयत के रूप में प्राप्त हुई हैं।

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