संस्कृति का मूल्य शिक्षा पर प्रभाव
संस्कृति मूल्य शिक्षा को निम्न प्रकार से प्रभावित करती है-
(1) संस्कृति मानव के व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास के रूप में- संस्कृति में विचार व व्यवहार दोनों के ही तरीके सम्मिलित होते हैं। जिनके प्रति व्यक्ति के व्यक्तित्व के विभिन्न पक्ष जागरूक होते हैं और यह जागरूकता व्यक्ति को एक सुलझा हुआ व्यक्तित्व प्रदान करती है जिसके फलस्वरूप उसका व्यक्तित्व सम्पूर्ण एवं संगठित रूप में उभरकर हमारे समक्ष प्रकट होता है।
(2) सांस्कृतिक मूल्यों का बालक पर प्रभाव- बालक भी समाज का एक अंग होता है तथा वह जब विद्यालय में प्रवेश करता है तो वह संस्कृति जानता है, जो उसके परिवार विशेष से सम्बन्धित होती है। अध्यापक व विद्यालय उसे समाज की संस्कृति के अनुकूल ढालने का प्रयास करते हैं।
(3) सांस्कृतिक मूल्यों का अनुशासन पर प्रभाव- सांस्कृतिक मूल्यों का अनुशासन पर भी प्रभाव पड़ता है। जिस समाज में अधिनायक तत्त्व होगा, वहाँ दमनात्मक अनुशासन होगा एवं जहाँ प्रजातंत्र होगा, वहाँ स्वतंत्र अनुशासन होगा।
(4) सांस्कृतिक मूल्य मनुष्य का सामाजिक वातावरण से समायोजन करती है- प्रत्येक समाज की आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक परिस्थितियाँ भिन्न-भिन्न होती हैं एवं इसके साथ ही प्रत्येक व्यक्ति से यह अपेक्षा की जाती है कि अपने समाज की विभिन्न परिस्थितियों के साथ स्वयं का अनुकूलन कर सके। संस्कृति व्यक्ति को इतना सूक्ष्म बनाती है कि व्यक्ति स्वयं को सामाजिक पर्यावरण के अनुकूल ढालता है।
(5) सांस्कृतिक मूल्य का मनुष्य का प्राकृतिक वातावरण से समायोजन करती है- मनुष्य का रहन-सहन उसकी भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप होता है। एक शिक्षित मनुष्य वही है जो इन भौगोलिक परिस्थितियों के अनुरूप स्वयं को ढाल सके। अपने देश को ही यदि हम देखे तो यहाँ कुछ प्रदेश हैं जहाँ साल भर गर्मी पड़ती है जबकि कुछ प्रदेश ऐसे भी हैं जहाँ सदैव भीषण सर्दी पड़ती है तो व्यक्ति को अपना जीवन-यापन उस वातावरण के अनुकूल करना चाहिए जिसमें वह रहता है।
(6) सांस्कृतिक मूल्यों का शिक्षा के उद्देश्यों पर प्रभाव- प्रत्येक समाज में शिक्षा के कुछ उद्देश्य शाश्वत होते हैं एवं कुछ सामाजिक यह दोनों ही उद्देश्य संस्कृति के आदर्शों, मूल्यों व प्रारूपों से प्रभावित होते हैं, उदाहरणार्थ- भारतीय संस्कृति के कुछ शाश्वत मूल्य हैं, जैसे- आध्यात्मिक, मानव सेवा, परोपकार आदि। शिक्षा में इन्हें ही स्थान दिया गया है व कुछ मूल्य तत्कालीन समाज से सम्बन्ध रखते हैं। शिक्षा में इन्हें सामाजिक मूल्य की संज्ञा दी गई है, जो समाज के अनुकूल बदल जाते हैं।
(7) सांस्कृतिक मूल्यों का शिक्षा पद्धतियों पर प्रभाव- प्राचीन संस्कृति में गुरु को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। इसी कारण शिक्षण पद्धतियाँ अध्यापक केन्द्रित थी या उनके अन्तर्गत अध्यापक को अहम् स्थान प्राप्त था। आज के मनोवैज्ञानिक युग में शिक्षा बालकेन्द्रित हो गई है। अतः शिक्षण पद्धति भी बालक केन्द्रित है। शिक्षा को बालक की रुचियों, योग्यताओं, क्षमताओं एवं अभिवृत्तियों के अनुरूप बनाने का प्रयास किया जाता है।
(8) सांस्कृतिक मूल्यों का पाठ्य पुस्तकों पर प्रभाव- सांस्कृतिक मूल्यों का संस्कृति पर प्रभाव पड़ता है। पाठ्यक्रम के अनुकूल पाठ्य पुस्तक लिखी जाती हैं- पाठ्यक्रम उद्देश्य पर आधारित होता है व उद्देश्य समाज एवं संस्कृति के मूल्यों पर आधारित होते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर हम उसी पाठ्य पुस्तक की स्वीकृति देते हैं जो सांस्कृतिक मूल्यों एवं आदशों की प्रोन्नति में सहायक होता है।
(9) सांस्कृतिक मूल्यों का पाठ्यक्रम पर प्रभाव- पाठ्यक्रम का निर्धारण करने में शिक्षा के उद्देश्य महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। जो उद्देश्य निर्धारित किए जाते हैं, उन्हीं के अनुकूल पाठ्यक्रम बनता है। जब यह उद्देश्य सांस्कृतिक तत्वों पर आधारित होते हैं तो पाठ्यक्रम निःसंदेह संस्कृति के अनुकूल ही होगा। दूसरे शब्दों में, हम कह सकते हैं कि शिक्षा में पाठ्यक्रम के द्वारा समाज की आवश्यकताओं एवं मूल्यों को प्राप्त किया जाता है।
(10) सांस्कृतिक मूल्यों का अध्यापक पर प्रभाव- शिक्षक समाज का एक सदस्य होता है व उसमें ही वह विकसित होता है। अतः समाज व संस्कृति का प्रभाव उसके आचरण व विचारों पर पड़ता हैं एवं समाज उन्हीं अध्यापकों को अच्छा समझता है, जो सांस्कृतिक विरासत व मूल्यों का सम्मान करता है चूँकि ऐसा ही शिक्षक बच्चे को सही दिशा दिखा सकता है, जो शिक्षक संस्कृति की उपेक्षा करता है, वह बालकों का सांस्कृतिक विकास कदापि नहीं कर सकेगा।
(11) सांस्कृतिक मूल्यों का विद्यालय पर प्रभाव- विद्यालय की सभी गतिविधियाँ एवं कार्यक्रम सांस्कृतिक आदर्शों व परम्पराओं पर आधारित होते हैं। इसी कारण विद्यालय संस्कृति को विकसित करने व सुधारने में सहायक होता है। विभिन्न सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित विद्यालय उसी संस्कृति का प्रसार व प्रचार करते हैं, जिस पर वह आधारित है।
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