मूल्य का अर्थ, आवश्यकता, एंव इसका महत्त्व
“मूल्य’ शब्द अंग्रेजी भाषा के ‘Value’ शब्द का रूपान्तर है। यह लैटिन भाषा के ‘Valere’ (वैलियर) से निर्मित है। जिसका तात्पर्य किसी वस्तु की उपयोगिता अथवा कीमत से है। शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में मूल्य से तात्पर्य विद्यार्थियों में मानवता, देश-प्रेम व दूसरों के लिए कल्याण जैसी अनेक अच्छी भावनाओं का संचार करना है। ऐसे गुण व्यक्ति में आन्तरिक एवं बाह्य दोनों प्रकार के होते हैं।
मूल्य की परिभाषा- मूल्य शिक्षा को हम विभिन्न विद्वानों की परिभाषाओं के द्वारा परिभाषित कर सकते हैं-
‘बरटोन’ महोदय के शब्दों में- “नैतिक विकास एक संयुक्त घटना है, न कि पृथक्-पृथक् प्रक्रिया।”
‘पर्सी के शब्दों में- “किसी व्यक्ति के लिए वे रुचिकर वस्तुएँ मूल्य कही जा सकती हैं, जिनके आधार पर व्यक्ति की रुचि एवं वस्तु में एक सम्बन्ध स्थापित हो जाता है।”
‘जॉन जे. कॉने’ के शब्दों में- “मूल्य के आदर्श, विश्वास या मानक हैं, जिन्हें समाज के अधिकांश सदस्य ग्रहण किए हुए होते हैं।”
‘प्रो. सौरम सिंह’ के शब्दों में- “मूल्य वह साधन है, जिससे बालक एवं मनुष्य का सामाजीकरण किया जाता है।”.
मूल्यों की आवश्यकता
वर्तमान समय में विश्व में हो रही अशान्ति के पीछे मूल्यों का निरन्तर गिरना है। बालकों में मूल्यों के विकास हेतु नैतिक, आध्यात्मिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं मानव प्रेम जैसे ज्ञान को आधानित किया जाना आवश्यक है।
आधुनिक मानव स्वार्थ प्रधान होता जा रहा है। अतएव वह अपने बालकों में अच्छे संस्कार नहीं दे पा रहे हैं। इसी कारण विद्यालयों पर इस शिक्षा हेतु दायित्व आधिक हो जाता है। आज समाज में आध्यात्मिक, नैतिक व सामाजिक मूल्यों में आये ह्रास की वजह से व्यक्तियों की धारणाएँ दूषित हो गयी हैं। हर तरफ चाहे वह राजनीतिज्ञ हो अथवा उच्चस्तरीय अधिकारी या फिर निम्न स्तरीय कर्मचारी, डॉक्टर, वकील, अध्यापक एवं न्यायपालिका जैसे क्षेत्रों में भी अनैतिकता एवं भ्रष्टाचार का माहौल व्याप्त है। कोई भी अपने कर्तव्यों का निर्वहन भली-भाँति नहीं कर पा रहा है। थोड़े जो ईमानदार हैं, उनकी आवाज दबकर रह जा रही है। चारों ओर अनैतिक वातावरण व्याप्त है, यह सब मूल्यों के अभाव का ही कारण है। अतएव इस समय जीवन मूल्यों की शिक्षा प्रदान किए जाने की महती आवश्यकता महसूस हो रही है।
जहाँ तक समाज के आदर्शों, सिद्धान्तों, विश्वासों एवं व्यावहारिक मानदण्डों की बात है, इनकी चर्चा परिवारों के साथ ही समुदायों में भी होती रहती है। बच्चे भी इनसे परिचित हो जाते हैं परन्तु दुर्भाग्य से तो यह है कि सब केवल सिद्धान्तों तक ही सीमित रहते हैं, उनके व्यवहार को प्रभावित नहीं करते हैं और वास्तव में आवश्यकता इसी बात की है कि भारतीय जीवन मूल्यों से उसका व्यवहार भी प्रभावित हो ।
इस विषय में राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उल्लेखित किया गया है कि “हमारे बहुवर्गीय समाज में शिक्षा के सर्वव्यापी एवं शाश्वत मूल्यों को प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे भारतीय जन में राष्ट्रीय एकता की भावना बढ़े और संकीर्ण सम्प्रदायवाद, धार्मिक जातिवाद, हिंसा, अंधविश्वास में भाग्यवाद को समाप्त किया जा सके। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि मनुष्य अकेला शून्य में निवास करने वाला प्राणी नहीं हैं। उसकी मूल्य परक शिक्षा उसके विशिष्ट सामाजिक तथा सांस्कृतिक संदर्भ में जुड़ी होनी चाहिए और विश्वासनीय व शाश्वत मूल्यों में भी उनका सम्बन्ध होना चाहिए। वैज्ञानिक दृष्टिकोण, समानता, पर्यावरण संरक्षण, प्रजातंत्र, बंधुत्व, समाजवाद तथा धर्म निरपेक्षता आदि मूल्यों की शिक्षा सभी स्तरों के लिए आवश्यक है।
मूल्यों का महत्त्व
मूल्यों के अभाव में मानव जीवन व्यर्थ है। मूल्यों के विकास द्वारा ही बालकों एवं मनुष्यों का एक आदर्श नागरिक बनाया जा सकता है। मूल्यों के महत्त्व अग्रलिखित हैं-
(1) व्यक्तिगत विकास में मूल्यों का अहम् किरदार होता है, इसके माध्यम से सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा मानवीय मूल्यों का विकास होता है।
(2) मानवता के विकास में मूल्य महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, इससे राष्ट्र के अंतर्गत ही नहीं, बल्कि समस्त विश्व में शान्ति कायम करने एवं विश्व बन्धुत्व की भावना के विकास में महत्त्वपूर्ण होता है।
(3) शिक्षा सुधार में मूल्यों का महत्त्व अत्यन्त व्यापक है। इसके द्वारा बालकों में स्वानुशासन का बोध कराया जाना आसान होता है।
(4) मूल्यों के द्वारा ही जीवन स्तर को उठाया जा सकता है, जब व्यक्ति की सोच एवं विचारधारा बड़ी होगी तभी उसे सफलता प्राप्त हो सकती हैं, जिसमें मूल्य अहम् किरदार निभाते हैं।
(5) मूल्य समाज में एकरूपता लाकर व्यक्ति को व्यवस्थित, संगठित एवं सशक्त बनाते हैं। व्यक्ति की बहुमुखी क्रियाओं को निर्देशित भी करते हैं।
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