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प्राथमिक उपचार का अर्थ | प्राथमिक सहायता का क्षेत्र | प्राथमिक सहायता के सिद्धान्त

प्राथमिक उपचार का अर्थ | प्राथमिक सहायता का क्षेत्र | प्राथमिक सहायता के सिद्धान्त
प्राथमिक उपचार का अर्थ | प्राथमिक सहायता का क्षेत्र | प्राथमिक सहायता के सिद्धान्त

प्राथमिक उपचार या सहायता से आपका क्या तात्पर्य है?

प्राथमिक उपचार का अर्थ | प्राथमिक सहायता का क्षेत्र | प्राथमिक सहायता के सिद्धान्त

प्राथमिक उपचार का अर्थ- प्राचीन समय से लेकर आधुनिक समय तक मानव जीवन के अनेक क्षेत्रों में निरन्तर प्रगति व विस्तार करता चला आ रहा है। दूसरी तरफ देखा जाए तो उसकी यह प्रगति या विकास ऐसी परिस्थितियाँ पैदा कर चुका है कि व्यक्ति के साथ कहीं भी, कुछ भी घट सकता है, क्योंकि दुर्घटनाओं का कोई निश्चित समय व स्थान नहीं होता। आजकल सड़क पर यातायात बढ़ने, घरों में खाना बनाते समय गृहणियों के साथ आग लगने की दुर्घटना तथा बिजली का झटका लगना आदि ऐसी दुर्घटनाएँ हैं जो व्यक्ति की आधुनिक सुविधाओं से जुड़ी हैं। इसी प्रकार पानी में बच्चों का डूबना, सर्प या जहरीले कीड़ों का काटना, खेल के मैदान में चोट लगना भी कुछ दैनिक जीवन की आवश्यकताओं से जुड़ी दुर्घटनाएँ हैं, जिसके कारण जीवन खतरों से घिरा हुआ है। ऐसे समय में आवश्यक नहीं कि डॉक्टर पास में ही हो। ऐसे समय पर घायक बच्चे या व्यक्ति को तत्काल प्राथमिक सहायता की आवश्यकता होती है, नहीं तो जीवन खतरे में पड़ सकता है।

प्राथमिक सहायता क्या है?

दुर्घटना घटने पर डॉक्टर के आने से पूर्व जो ईलाज किया जाता है, उसे प्राथमिक सहायता कहते हैं। दूसरे शब्दों में आपातकाल के समय उपलब्ध सुविधा के अनुसार आपत्ति प्रस्त व्यक्ति को प्रदान की गई सेवा को ही प्राथमिक सहायता कहते हैं। यह किसी दुर्घटना या अचानक बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को दी जाने वाली तात्कालिक तथा अस्थायी देखभाल है। प्राथमिक सहायता के लिए उपलब्ध साधनों का अधिकतम और उचित प्रयोग करने का गुण चारित्रिक बल, समर्पण व प्रतिभा प्राथमिक सहायता की पूंजी है।

प्राथमिक सहायता को परिभाषित करते हुए एज. जे. आटो कहते हैं, “प्राथमिक चिकित्सा में तात्कालिक चिकित्सा से अधिक और कुछ नहीं होना चाहिए।”

प्राथमिक सहायता वह सहायता है जो डॉ. की सहायता आने या अस्पताल तक पहुंचाए जाने से पहले आवश्यक रूप से होनी चाहिए, क्योंकि इससे रोगी का भय दूर हो सकता है तथा घाव या चोट को और अधिक बढ़ने से रोका जा सकता है।

प्राथमिक सहायक से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वह कोई इलाज या उपचार करेगा। वह तो उन मूलभूत सिद्धान्तों को क्रियान्वित करेगा जो प्राथमिक सहायता से सम्बंधित हैं। प्राथमिक सहायता का उद्देश्य व्यक्ति को मृत्यु से बचाना है। दुर्घटना से बिगड़े हुए शरीर को अधिक बिगड़ने से तब तक बचाना है जब तक डॉक्टर की सेवाएँ उपलब्ध न हो जाएँ। इस संदर्भ में प्राथमिक सहायता के कुछ नियम (सिद्धांत) हैं, जिनका पालन प्राथमिक सहायक के लिए अनिवार्य है।

प्राथमिक सहायता का क्षेत्र

प्राथमिक सहायता के क्षेत्र के अंतर्गत निम्नलिखित तीन बातों का अध्ययन किया जाता है—

  1. रोग के लक्षणों का पता लगाना।
  2. लक्षणों के आधार पर उपचार करना।
  3. रोग का अंतिम रूप से निपटारा करना।

(1) रोग के लक्षणों का पता लगाना- किसी भी बीमारी का उपचार करने से पहले रोग के लक्षणों का पता लगाना जरूरी है। लक्षणों के आधार पर ही बीमारी के स्वरूप को जाना जा सकता है, और इसी आधार पर उपचार करना संभव हो सकता है। अलग-अलग रोगों के अलग-अलग लक्षण होते हैं। जैसे- मूर्छित होना, सूजन आ जाना, कपकपी चढ़ना, नाक से खून आना, खून का जम जाना, सिर और गर्दन में भयंकर दर्द होना, उल्टी आना, दस्त लगना, अधिक प्यास लगना, अधिक भूख लगना इत्यादि।

(2) रोग का उपचार करना- लक्षणों का पता लगाने के बाद तुरंत ही उसका उपचार करना चाहिए, जिससे कि रोगी को अस्पताल पहुँचाने या डॉक्टर के घर आने तक उसकी दशा और अधिक बिगड़ने से रोकी जा सके। जैसे पेट में दर्द होना पर सोड़ा बॉयकार्ब देना, उल्टी और दस्त लगने पर जीवन रक्षक घोल देना, किसी जहरीले जानवर के काटने पर काटे गए स्थान के थोड़ा ऊपर जोर से पट्टी बाँधना, नाक से खून आने पर नीचे गर्दन करके लिटाना और गीली मिट्टी सुँघाना आदि।

(3) रोग का निपटारा- रोग का अन्तिम रूप से निपटारा करने के लिए आवश्यक है। कि या तो रोगी को तुरंत अस्पताल पहुंचाया जाए, जहाँ उसका उचित इलाज हो सके या डॉक्टर को उसी स्थान पर उपचार के लिए बुला लिया जाए। माता-पिता तथा घर के अन्य सदस्यों को . भी रोगी की तुरंत सूचना दे देनी चाहिए।

प्राथमिक सहायता के सिद्धान्त

प्राथमिक सहायता के कुछ ऐसे सिद्धान्त होते हैं जिनका यदि समय पर पालन किया जाए तो बहुत-सी दुर्घटनाओं के प्रकोप से बचने में सहायता मिल सकती है तथा जीवन को बचाया जा सकता है।

(1) डॉ. की जगह न ली जाए- प्राथमिक सहायक को याद रखना चाहिए कि वह स्वयं डॉक्टर नहीं है, उसे डॉक्टर के कार्य या उत्तरदायित्व निभाने का कभी भी प्रयास नहीं करना चाहिए। उसे तो बिगड़ी हुई परिस्थिति को उस समय तक नियन्त्रित करना है जब तक डॉक्टर की सेवाएँ उपलब्ध न हो जाएँ।

(2) चोट के कारण का निवारण- यथासंभव शीघ्रता से चोट या दुर्घटना के कारण का निवारण करें या रोगी को उस कारण से दूर किया जाए ताकि क्षति अधिक न हो, जैसे यदि किसी को बिजली का झटका लगता है या वह बिजली के तार से जुड़ा हुआ है तो पहले सावधानीपूर्वक मरीज को इससे अलग करें और फिर प्राथमिक उपचार दें।

(3) भीड़ को दूर रखना चाहिए- दुर्घटना के समय भीड़ का इकट्ठा होना स्वाभाविक है तथा हर व्यक्ति चोटग्रस्त व्यक्ति को देखना चाहता है और इस प्रकार घायल व्यक्ति चारों ओर से भीड़ से घिर जाता है, जिससे उसे खुली हवा नहीं लगती। इसी के साथ वह भीड़ को देखकर भी भयभीत हो जाता है तथा घबराने लगता है। इसलिए भीड़ को समझाकर व घायल की स्थिति का हवाला देकर दूर रखें ताकि घायल प्राथमिक सहायता के कार्य में सहायक की स्वयं भी सहायता कर सके।

(4) रक्त रोकना – प्राथमिक सहायता का यह सिद्धान्त बहुत महत्त्वपूर्ण है कि यदि घायल का रक्त बह रहा हो तो सबसे पहले उसे रोकने का प्रत्यन करना चाहिए, क्योंकि अधिक रक्त बहने से घायल का जीवन खतरे में पड़ सकता है। इसके लिए रक्त बहने वाले स्थान की कस कर किसी कपड़े से बांधे तथा उस अंग को हृदय के स्तर से ऊपर रखना चाहिए ताकि रक्त के संचार की गति कुछ धीमी रह सकें।

(5) सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना- दुर्घटना की वजह से घायल व्यक्ति डरा हुआ होता है और उसका मस्तिष्क ठीक से कार्य नहीं कर रहा होता। ऐसे में उसका भय दूर करने के लिए उसके साथ विनम्रता तथा सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। ताकि उसे विश्वास हो जाए कि वह ठीक हो जायेगा। कोई विशेष बात नहीं है। ऐसा व्यवहार घायल का विश्वास जीतने के लिए आवश्यक है ताकि वह प्राथमिक सहायक को उसका इलाज करने में सहायता दे सकें।

(6) रोगी को विश्राम दिया जाए- घायल व्यक्ति को जहां तक हो सके आराम की अवस्था में रखने का प्रयास करें और उसे पूर्ण विश्राम करने दें। व्यर्थ के प्रश्न पूछकर या उसकी गलतियाँ निकाल कर उसे परेशान न करें।

(7) चेतना का निर्धारण करना— रोगी की सही दशा का निरीक्षण करने के बाद उसकी सही चेतना के स्तर का पता लगाएँ कि रोगी अर्ध चेतना में है, चेतन है या अचेतन अवस्था में है।

(8) अचेतन व्यक्ति को तरल पदार्थ न दें- यदि दुर्घटना में व्यक्ति अचेतन हो जाता है। तो उसको कभी भी कोई तरल या पेय पदार्थ नहीं देना चाहिए, क्योंकि अचेतन अवस्था में पेय पदार्थ श्वास नली में चला जाता है, जिसके कारण दम घुट सकता है और कभी-कभी मौत भी हो जाती है।

(9) स्थिति का अवलोकन- गम्भीर रूप से चोट वाले रोगी की स्थिति में आए परिवर्तनों पर ध्यान दें, विशेषकर निम्न पर नजर रखें-

  1. सांस लेने की दर व गहराई।
  2. नाड़ी की गति की दर व प्रकृति। 
  3. रोगी के चेहरे का रंग।
  4. शरीर का तापमान।
  5. कान, नाक व मुँह से रक्त का बहना।

(10) रोगी के घरवालों को तुरन्त सूचना देना- रोगी या घायल द्वारा बताए गए टेलीफोन नं. पर या पते पर तुरन्त उसके घरवालों को सूचना भेजें, जिसमें सही जगह की स्थिति (Location) व दूरी आदि के बारे स्पष्ट जानकारी हो ताकि उन्हें पहुंचने में देरी न हो।

(11) तुरन्त परिवहन के साधन की व्यवस्था करना- किसी सहायक की सहायता से या घायल के अन्य साथी की सहायता लेकर किसी परिवहन साधन की तुरन्त व्यवस्था कराएँ। ताकि घायल को जितना जल्दी हो सके उचित स्थान पर पहुंचाया जाए।

(12) सामान्य बुद्धि का प्रयोग – सामान्य बुद्धि का उचित प्रयोग करने में प्राथमिक सहायक सक्षम होना चाहिए ताकि उपलब्ध साधनों का अधिक से अधिक उपयोग किया जा सके और सहायता पूर्ण रूप से की जा सके या किसी सहायक सामग्री की कमी महसूस न हो।

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