ई-अधिगम के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
ई-अधिगम के प्रकार (Types of E-Learning)– अधिगम के मुख्य प्रकार निम्नलिखित है-
(1) ऑनलाइन अधिगम (Online Learning)-
इसके अन्तर्गत संगठित करने के उपागम विद्यालय के विषयों में निष्पादन संतोषजनक स्तर पर करने में सहायता करता है। जिस व्यक्ति या विद्यार्थी में जितनी अधिक रुचि होती है, वह अपने स्थान से यंत्र को खोलकर उसी के अनुसार सीखने का प्रयास करता है। सबसे पहले सामग्री या पाठ्य-वस्तु को छोटी अधिगम इकाइयों में बाँटा जाता है। प्रत्येक इकाई के अपने उद्देश्य होते हैं। इन उद्देश्यों को समझाते हुए विद्यार्थी सामग्री या विषय-वस्तु की पहचान कर लेता है। इसका संचार कम्प्यूटर इण्टरनेट प्रणाली से भी होता है।
( 2 ) मिश्रित अधिगम (Blended Learning)-
इस प्रकार से पाठ्य-वस्तु का संचार तथा सम्प्रेषण मिश्रित रूप में किया जाता है। इससे मुक्त रूप से सीखने का अवसर प्राप्त होता है। मुक्त विद्यालयों में मिश्रित अधिगमों को प्रोत्साहन दिया जाता है। यह अधिगम एक से अधिक विषयों के बारे में अलग-अलग जानकारी को प्राप्त करने का अच्छा रूप है। कभी-कभी इसके अन्तर्गत कम्प्यूटर आधारित अधिगत तथा वास्तविक कक्षा शिक्षण को सम्मिलित कर लेते हैं। इसमें कई विषय या पाठ्यक्रमानुसार इकाइयाँ भिन्न-भिन्न रूप में दृश्यवत होती हैं जिन्हें विद्यार्थी समझते हुए कॉपी पर भी नोट कर लेते हैं।
( 3 ) वेब आधारित अधिगम (Web-based Learning ) –
इस प्रकार अधिगम में सूचनाएँ, जानकारी पाठ्य-सामग्री, लेखाचित्र (Graphics), ध्वनि तथा विभिन्न प्रकार के आँकड़ों के रूप में होते हैं। वेब पर आधारित तथा उपलब्ध सूचनाएँ व्यक्ति विशेष या संस्थाओं द्वारा विशेष उद्देश्यों हेतु वेब पृष्ठों (Web pages) पर रखे जाते हैं। विद्यार्थी या उपयोगकर्ता नेट पर वेब पृष्ठों में उपलब्ध सूचना ग्रहण कर लेते हैं। वेब वास्तव में सूचना की वह इकाई है जो एक समय में देखने के लिए ऑनलाइन वर्ल्ड वाइड वेब पर उपलब्ध रहती है। इस प्रकार वेबसाइट के अन्तर्गत सूचना सामग्री को वेब पृष्ठों में भण्डारित तथा सुरक्षित रखा जाता है। अतः अधिगम में सुविधा रहती है। विद्यार्थी अपनी इच्छानुसार उपलब्ध सूचना या पाठ्य-वस्तु को पुनः ग्रहण कर सकता है।
(4) स्वाध्याय (Self study) –
स्वाध्याय के लिए पुस्तकों से या इण्टरनेट से अधिगम किया जा सकता है। इस विषय में यह स्पष्ट है कि पाठ्य-पुस्तकों के पाठ्यक्रम पूर्व से निश्चित होते हैं। उन्हीं को यदि आवश्यकता होती है, तो कम्प्यूटर या इण्टरनेट में भण्डारण कर लेते हैं। उसके पश्चात् विद्यार्थी उनको स्मरण कर सकते हैं। स्वाध्याय में शिक्षक की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु पाठ्य-विषय रोचक, भविष्य में काम आने वाली तथा सरल रखे जाते हैं ताकि उपोगकर्त्ता उसका अध्ययन मनोयोग से कर सके।
5 ) वेब आधारित अधिगम (Web-based learning ) –
इसके अन्तर्गत विश्व प्रसारित (World-wide) वेब से कार्य किया जाता है। यह सर्वरों (Servers) के रूप में स्रोतों को उपलब्ध कराती है। यह विश्व में सभी स्थानों पर बैठे हुए उपयोगकर्ताओं को नेट पर अधिगम की सामग्री प्रदान करने की क्षमता रखती है। विशेष व्यक्तियों द्वारा, संस्थाओं द्वारा, विद्यालयों द्वारा, संस्थाओं व संगठन द्वारा शिक्षा सम्बन्धी या व्यावसायिक उद्देश्यों की पूर्ति वेबसाइट स्थापित करने का प्रयास भी किया जाता है।
(6) कम्प्यूटर आधारित अधिगम (CD Rom)-
अध्ययन के आधार पर यह देखा गया है कि विद्यार्थी जो शिक्षा प्राप्त करते या अधिगम करते हैं, कम्प्यूटर उन्हें क्रमबद्ध कर देता है। कम्प्यूटर में छात्र-छात्राओं की प्रगति सम्बन्धी विवरण भी भण्डारित होता है जो उनसे सम्बन्धित गतिशीलता को बनाए रखता है। कम्प्यूटर आधारित अधिगम या शिक्षा परिशुद्ध होती है उसमें त्रुटि की सम्भावना बहुत कम होती है। आजकल छात्रों की संख्या बहुत बढ़ रही है। अतः उसे देखते हुए कम्प्यूटर द्वारा उत्तम ढंग से शिक्षण अधिगम की परिस्थितियाँ उत्पन्न करके ज्ञान के संचार प्रवाह को प्रभावशाली बनाया जा रहा है। विद्वानों का कहना है कि कम्प्यूटर आधारित शिक्षा या अधिगम का समाज के विकास पर वही प्रभाव पड़ रहा है जो मुद्रित पुस्तकों का जनजीवन और शिक्षण सम्प्रेषण तथा संरचना पर पड़ता है।
( 7 ) दृश्य-श्रव्य टेप द्वारा अधिगम (Learning by Audio Visual Tape or Aid ) –
आज आवश्यकता इस बात की है कि विद्यार्थियों में उनकी रुचि के अनुसार वांछनीय, सामाजिक तथा व्यावसायिक ज्ञान के लिए अधिगम निर्धारित करते समय यह निश्चित किया जाए कि वे अधिक-से-अधिक ज्ञानेन्द्रियों का प्रयोग करें। इसके लिए दृश्य-श्रव्य उपकरणों के माध्यम से शिक्षा देना प्रभावशाली हो सकता है। इसमें चित्र, प्रारूप, चलचित्र, दूरदर्शन, शैक्षिक भ्रमण आदि के कार्यक्रम बनाए जाते हैं। सहायक साधनों में वार्ताओं, प्रवचन, टेपरिकॉर्डर, आकाशवाणी आदि का प्रयोग किया जाता है। श्रव्य सहायक साधनों में ध्वनि रिकॉर्ड, विषय वस्तु का पूर्व से रिकॉर्डिंग, भाषा तथा संगीत के साथ श्रव्य-साधन आदि का प्रयेग होता है।
श्रव्य सहायक साधन के रूप में जिन उपकरणों का प्रयोग किया जाता है वे अधिक महँगे नहीं होते हैं।
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