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विद्यालयीय चिकित्सा सेवा का अर्थ एंव इसके विभिन्न पक्ष और कार्य

विद्यालयीय चिकित्सा सेवा का अर्थ एंव इसके विभिन्न पक्ष और कार्य
विद्यालयीय चिकित्सा सेवा का अर्थ एंव इसके विभिन्न पक्ष और कार्य
विद्यालयीय चिकित्सा सेवा से क्या तात्पर्य है? इसके विभिन्न पक्षों और कार्यों का वर्णन कीजिए।

विद्यालयीय चिकित्सा सेवा का शब्दिक अर्थ है- विद्यालय में छात्रों के स्वास्थ्य की रक्षा एवं उपचार सम्बन्धी सेवा। किन्तु इस अर्थ में यह शब्द अत्यन्त व्यापक रूप धारण कर लेता है जो कि इसके तात्पर्य की परिधि का उल्लंघन कर जाता है। अतः यहाँ विद्यालयीय चिकित्सा सेवा का अर्थ उस प्रक्रिया से है जिसके अन्तर्गत छात्रों के स्वास्थ्य का मूल्यांकन, उनके स्वास्थ्य की रक्षा के लिए उनका सहयोग करना, बालकों के माता-पिता को को उनके बालकों के स्वास्थ्य सम्बन्धी रोगों एवं दोषों से परिचित कराना, रोगों की रोकथाम के उपाय बताना तथा यथासम्भव उनका उपचार करना सम्मिलित होता है। दूसरे शब्दों में विद्यालय में छात्रों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए विभिन्न उपायों का उपयोग करने को विद्यालय चिकित्सा सेवा कहा जाता है। इसके लिए विद्यालय बालकों के माता-पिता अथवा अभिभावकों, चिकित्सकों, परिचारिकाओं, शिक्षकों, मनौवैज्ञानिकों आदि का सहयोग प्राप्त करता है।

विद्यालयीय चिकित्सा सेवा के विभिन्न पक्ष

विद्यालयलय चिकित्सा सेवा के अर्थ से यह स्पष्ट है कि इसके निम्नलिखित पक्ष है-

(1) छात्रों के स्वास्थ्य का मूल्यांकन एवं निरीक्षण- विद्यालयीय चिकित्सा सेवा के अन्तर्गत सभी छात्रों की स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताओं का ज्ञान प्राप्त किया जाता है तथा छात्रों के स्वास्थ्य स्तर को निर्धारित किया जाता है जिसके लिए छात्रों के स्वास्थ्य का मूल्यांकन एवं निरीक्षण किया जाता है। इस प्रकार से किये गये स्वास्थ्य निरीक्षण के द्वारा छात्रों में होने वाले सम्भावित रोगों के प्रारम्भिक लक्षणों एवं शारीरिक दोषों का सहज ही ज्ञान हो जाता है।

(2) प्राथमिक चिकित्सा- प्राथमिक चिकित्सा विद्यालयीय चिकित्सा सेवा का प्रमुख अंग होती है, क्योंकि प्रायः विद्यालय में खेलते समय अथवा विद्यालय आते समय बच्चे दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं जिससे उन्हें चोट मोच, रक्तस्त्राव आदि से ग्रस्त होते ही प्राथमिक उपचार सेवा प्रदान की जाती है।

(3) संक्रामक रोगों का निदान एवं नियन्त्रण- एक शरीर से दूसरे शरीर में रोग के कीटाणुओं द्वारा फैलने वाले रोगों को संक्रामक रोग कहा जाता विद्यालय में क्योंकि विभिन्न परिवारों से छात्रों का आगमन होता है और यदि किसी बच्चे को अपने परिवार से ही ऐसा रोग हो जाये तथा उसी स्थिति में वह विद्यालय में आ जाये तो उससे अन्य बच्चों को भी वह रोग लगने की सम्भावना रहती है। अतः विद्यालय में शिक्षकों का यह कर्तव्य होता है कि ऐसे रोगों को संक्रमित होने से रोकने की व्यवस्था करें तथा बच्चों को ऐसे रोगों से बचने के लिए अपनाये जाने वाले उपायों का ज्ञान प्रदान करें। इसके अतिरिक्त यदि किन्हीं छात्रों को संक्रामक रोग हो जाये तो उनके उपचार की भी समुचित व्यवस्था करना विद्यालय चिकित्सा सेवा का कार्य है।

( 4 ) बाधाग्रस्त छात्रों की शिक्षा एवं देखभाल- जो बच्चे देखने, सुनने और बोलने में समर्थ नहीं होते उनको बाधाग्रस्त बालक कहा जाता है। ऐसे बच्चों का सामान्य छात्रों के साथ पढ़ाना सम्भव नहीं होता है। इसी कारण विद्यालय में ऐसे बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए विशेष प्रकार की अलग व्यवस्था करना आवश्यक हो जाता है यह भी विद्यालय चिकित्सा सेवा का ही एक अंग है।

(5) शारीरिक स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा- विद्यालय चिकित्सा सेवा के अन्तर्गत विद्यालय में व्यायाम, आसन, खेलकूद आदि के लाभ एवं महत्तव को समझाया जाता है जिससे छात्रों के शारीरिक स्वास्थ्य की रक्षा होती है। इसके अलावा छात्रों का समुचित रूप से शारीरिक विकास हो सके, इसके लिए उन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी नियमों एवं सिद्धान्तों की जानकारी प्रदान की जाती है।

(6) मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा- यह एक सर्वमान्य सिद्धान्त है कि स्वस्थ्य शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। अतः शारीरिक स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करने का लक्ष्य बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य ठीक करना होता है। इसके अतिरिक्त यह भी अनेक अनुसंधानों द्वारा सिद्ध हो चुका है कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। अतः यह भी ध्यान रखा जाना आवश्यक हो जाता है कि शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक स्वास्थ्य भी सन्तुलित रहे जिसके लिए मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान की जानी आवश्यक हो जाती है।

(7) यौन शिक्षा- अन्य अनेक प्रवृत्तियों की भाँति ही यौन प्रवृत्ति भी व्यक्ति की स्वाभाविक प्रवृत्ति भी व्यक्ति की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है जो कि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है। अतः विद्यालय चिकित्सा सेवा के अन्तर्गत इस शिक्षा को प्रदान करना आज के समय की मुख्य माँग है।

विद्यालयीय चिकित्सा सेवा के कार्य

विद्यालयीय चिकित्सा के मुख्य कार्यों का विवेचन निम्न प्रकार से किया जा सकता है-

(1) छात्रों का स्वास्थ्य परीक्षण – विद्यालय के छात्रों का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण करना विद्यालय चिकित्सा सेवा का मुख्य कार्य है जिसके निम्नलिखित लाभ होते हैं-

  1. नियमित स्वास्थ्य परिक्षण करने से छात्रों के दृष्टिदोष, बहरापन, अशुद्ध आसन, रोग क्षीणता जैसे सामान्य दोषों का निदान एवं उपचार समय से किया जा सकता है।
  2. इसके द्वारा बाधाग्रस्त छात्रों का पता लगाकर उन्हें विशिष्ट विद्यालयों में स्थानान्तरित करने में सुगमता रहती है।
  3. इससे अभिभावकों को शिशु के स्वस्थ जीवन की आवश्यकताओं का सुगमता से ज्ञान कराया जा सकता है।
  4. इसके द्वारा बालकों के व्यक्तिगत दोषों का प्रारम्भिक स्थिति में पता चल जाता है। जिससे उनका निदान एवं उपचार करने में सुविधा रहती है।
  5. बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण करने का एक लाभ यह होता है कि इससे जन स्वास्थ्य विभाग को बड़ी सहायता प्राप्त होती है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि बच्चों का नियमित स्वास्थ्य परीक्षण करने के अनेक लाभ हैं। अतः विद्यालय जीवन में छात्रों का तीन प्रकार की स्थितियों में अवश्य स्वास्थ्य परिक्षण करना चाहिए-

  1. जब छात्र विद्यालय में प्रवेश करे उसी समय तथा विशेष स्थिति में जब कि किसी बालक में किसी रोग के लक्षण दिखाई दें, उस समय उसका परीक्षण अवश्य करना चाहिए।
  2. प्राथमिक पाठशाला में पाँचवीं कक्षा के अन्त में तथा
  3. माध्यमिक स्तर के अन्तिम चरण में।

(2) विद्यालय क्लीनिक तथा बाल निर्देशन क्लीनिक की स्थापना – प्रायः यह देखा जाता है कि ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालय से चिकित्सालय दूर-दूर स्थित होते हैं जिनसे आकस्मिक रूप से रोगग्रस्त हुए बच्चों को तत्काल चिकित्सा उपलब्ध कराना सम्भव नहीं होता। इसके अलावा शहरी क्षेत्रों के चित्सिालयों में भी सामान्य रोगों एवं दोषों पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता, अतः बच्चों के रोगों के प्रारम्भ में ही रोकथाम एवं उपचार के लिए विद्यालय प्रागंण में ही एक क्लीनिक का होना आवश्यक हो जाता है।

इसके अलावा विद्यालय में बालनिर्देशन क्लीनिक भी होना चाहिए जिसके द्वारा छात्रों का परीक्षण करने से प्राप्त परिणामों के आधार पर छात्रों में पाये गये अकारण भय, चिन्ता, क्रूरता, चोरी करना आदि दोषों के सुधार के लिए आवश्यक निर्देश प्रदान किया जा सके। इसमें रोगी छात्रों का उपचार एवं निदान करने के लिए कुशल मनोवैज्ञानिक, मानसिक रोग विशेषज्ञ तथा प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ताओं का प्रबन्ध होना चाहिए।

(3) विद्यालय में स्वास्थ्य अधिकारी एवं परिचारिकाओं की व्यवस्था – विद्यालय में छात्रों के स्वास्थ्य परीक्षण को समुचित ढंग से पूर्ण करने के लिए यह आवश्यक हो जाता है। कि विद्यालय में एक चिकित्सा अधिकारी तथा परिचारिकाओं की यथोचित व्यवस्था होनी चाहिए। ऐसा करने से जहाँ स्वास्थ्य परीक्षण अविलम्ब होगा वहीं छात्रों के अनेक रोगों एवं दोषों का प्रारम्भिक स्थिति में ही उपचार एवं निदान सम्भव हो सकेगा।

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