शिक्षा प्रशासन के प्रकार एवं विशेषताएँ
शिक्षा प्रशासन के प्रकार शिक्षा प्रशासन को शिक्षाविद् निम्न प्रकार से विभाजित करते हैं–
1. प्रकृति के आधार पर— (अ) बाह्य (ब) आन्तरिक।
2. सत्ता के आधार पर— (अ) तानाशाही (ब) लोकतन्त्रात्मक।
(1) (अ) बाह्य प्रशासन- शिक्षा के बाह्य प्रशासन से अभिप्राय है-वह प्रशासन जो उच्च स्तर की शक्ति द्वारा दिये जाते हैं। भारतवर्ष में शिक्षा के बाह्य प्रशासन का तात्पर्य है वह नियन्त्रण जो शिक्षा के क्षेत्र में स्थानीय, राजकीय व केन्द्रीय स्तर द्वारा रखा जाता है। इसमें शिक्षा की अवधि, पाठ्य-पुस्तकें तथा अध्यापकों की सेवा-दशाओं को निहित किया जाता है।
(ब) आन्तरिक प्रशासन- आन्तरिक प्रशासन का तात्पर्य उस अवस्था से है जो विद्यालय का प्राचार्य अपने सहकार्मिक सहायता से विद्यालय की प्रतिदिन की गतिविधियों की संचालित करने हेतु स्थापित करता है।
(2) (अ) तानाशाही प्रशासन- तानाशाही प्रशासन में एक व्यक्ति का प्रशासन होता है। तानाशाह का सम्पूर्ण गतिविधियों पर नियन्त्रण रहता है। सभी कर्मिकों को उसके आदेशों का पालन करना पड़ता है भले ही वह आदेश उचित हो या अनुचित।
(ब) लोकतन्त्रात्मक प्रशासन- लोकतन्त्रात्मक प्रशासन में एक ही अधिकारी का प्रशासन नहीं होता वरन् वह सभी के सहयोग से प्रशासन के निर्णयों को लेता है। जिस देश के अन्तर्गत लोकतन्त्रात्मक शासन व्यवस्था हो, वहाँ शिक्षा प्रशासन को भी लोकतन्त्रात्मक होना चाहिए।
शिक्षा प्रशासन की विशेषताएँ
शिक्षा प्रशासन का अपना स्वरूप हो, विषय-वस्तु हो, साहित्य हो, मूल्यों का ढाँचा हो और व्यावसायिक नैतिकता हो। शैक्षिक प्रशासन की आधारभूत विशेषताएँ निम्न हैं-
(1) शैक्षिक प्रशासन लाभ न कमाने वाला प्रतिष्ठान है। यह तो मुख्यतः लोक कल्याण या समाज सेवा के लिए है। कोई भी व्यापारी सदैव ही लाभ-हानि की चिन्ता करता है जबकि शैक्षिक संस्था मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास पर केन्द्रित होती है और इसका मूलभूत उद्देश्य जन-कल्याण होता है।
(2) शैक्षिक प्रशासन का घनिष्ठ रूप से समबन्ध मानव जीवन, समाज परिवर्तन व राष्ट्रीय विकास से होता है और इसी कारण कोठारी शिक्षा आयोग का यह कथन ध्यान देने योग्य है कि- “भारतवर्ष के भाग्य का निर्माण उसकी कक्षाओं में होता है।” आज के वैज्ञानिक व तकनीकी युग में शिक्षा ही लोगों की सुरक्षा, भलाई और खुशहाली को निश्चित करती है। हमारी राष्ट्रीय उन्नति हमारी संस्थाओं से निकलने वाले विशेष योग्य व्यक्तियों की संख्या एवं उनके स्तर पर निर्भर करती है और इस उन्नति का मुख्य लक्ष्य लोगों के जीवन-स्तर को उन्नत करना है। अतः शैक्षिक प्रशासन ऐसा हो जो इस दिशा में अपना योगदान दे सके।
(3) सभी शिक्षाविद् यह मानकर चलते हैं कि शिक्षा वह प्रक्रिया है जो बालक की क्षमताओं का पूर्ण व स्वाभाविक विकास करती है और यह बच्चों के भावी उत्कर्ष की आशा मानव शक्ति को विशेष रूप से प्रेरित करती है। शिक्षा समाज सुधार और उत्कर्ष का प्रमुख साधन है और आज यदि हम इस लक्ष्य को प्राप्त करना चाहते हैं तो हमें शैक्षिक प्रशासन पर विशेष ध्यान देना होगा।
(4) शिक्षा प्रशासन का मुख्य उद्देश्य लोगों की भलाई करना है लेकिन इस दिशा में इसकी सफलता अधिकतर लोगों के सहयोग पर निर्भर करती है। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि विद्यार्थियों उनके माता-पिता तथा अध्यापकों के लिए मेल- जोल के दरवाजे सदा खुले रखे जायें। उन्हें मिलने-जुलने में सुगमता होनी चाहिए क्योंकि शिक्षा जन-कल्याण की संस्था है।
(5) शिक्षा संस्थाओं की उपलब्धि संख्यात्मक न होकर गुणात्मक होती है। अतः इसक मूल्यांकन करना कठिन काम है।
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