विद्यालय व सामुदायिक सम्बन्धों की नूतन स्थिति क्या है? इनके सम्बन्ध को सशक्त बनाने की आवश्यकता क्यों पड़ती है तथा इन्हें किस प्रकार सशक्त बनाया जा सकता है? स्पष्ट कीजिए।
विद्यालय व सामुदायिक सम्बन्धों की नूतन स्थिति क्या है?- भारतवर्ष में यदि आज हम इन दोनों के परस्पर सम्बन्धों की ओर दृष्टि डालें तो इतना कह सकते हैं कि यदि एक पूरब की ओर उन्मुख है तो दूसरा पश्चिम की ओर इन दोनों में परस्पर तालमेल की स्थिति बहुत ही दयनीय है। विद्यालय जो समाज के आदर्शों का प्रसार करने वाली एक महत्त्वपूर्ण संस्था थी, आज वही विद्यालय समाज के आदर्शों के विपरीत कार्य करने की एक महत्त्वपूर्ण संस्था बनते जा रहे हैं और आज सभी शिक्षाविदों के समक्ष एक समस्या उत्पन्न हो रही है कि विद्यालय के परिवेश में बढ़ती हुई अनुशासनहीनताः को कैसे नियन्त्रित किया जाये? विद्यालय को राजनीतिक अखाड़ा बनने से कैसे रोका जाये? जबकि यदि हम वस्तुस्थिति पर नजर डालें तो यह कह सकते हैं कि विद्यालय शिक्षा प्रदान करने का औपचारिक साधन है, तो समाज अनौपचारिक। दोनों का ही बालक के व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है। के.जी. सैयदेन ने ठीक ही कहा है-“भारत में स्कूल पद्धति की वर्तमान कमजोर स्थिति यह है कि लोग समझते नहीं कि स्कूल उन्हीं की एक संस्था है।’ विद्यालय व समाज के सम्बन्धों पर दृष्टि डालने पर निम्न तथ्य उभर कर आते हैं-
(1) शहरों में स्थित सरकारी स्कूलों का समाज से औपचारिक सम्बन्ध होता है।
(2) प्राइवेट स्कूल और समाज में अपेक्षाकृत अधिक सम्बन्ध रहता है।
(3) गाँवों के स्कूल व समाज के साथ बहुत अच्छा सम्बन्ध होता है। चूंकि इनमें भौतिक समीपता अधिक होती है।
वैसे यदि वास्तविक रूप में देखा जाये तो स्कूल की कल्पना बिना समाज के अस्तित्व के नहीं की जा सकती है। चूंकि स्कूल समाज की ही उपज है। समुदाय अपने हितों की पूर्ति हेतु स्कूलों की स्थापना करता है।
स्कूल समाज का लघु रूप है। आप सामुदायिक आवश्यकताओं के अनुरूप विद्यालय में सुधार की आवश्यकता है। इस सम्बन्ध में विभिन्न विचारकों ने जो विचार दिये हैं, वे निम्नलिखित हैं-
विद्यालय व समुदाय के सम्बन्धे को सशक्त क्यों बनाया जाये?
मुदालियर शिक्षा आयोग के अनुसार- “सबसे पहले हमें यह तथ्य जान लेना चाहिए कि स्कूल बड़े समाज के अन्तर्गत एक लघु समुदाय है और हमारे राष्ट्रीय जीवन में प्रचलित दृष्टिकोण, मूल्य-व्यवहार-अच्छे तथा बुरे-हमारे स्कूलों में प्रतिबिम्बित होने चाहिए।’
डॉ. सिद्दालिंगाया के अनुसार- “स्कूल और घर का सम्बन्ध तथा स्कूल और समाज का सम्बन्ध-इन दोनों को ऐसे वृत्त समझना चाहिए जिनका केन्द्र एक ही पहला और छोटा वृत्त घर है और दूसरा और बड़ा वृत्त समुदाय है।”
यदि हम वास्तविकता पर नजर डालें तो यह कह सकते हैं कि स्कूल से सम्बन्धि विभिन्न समस्याओं का सुलझाना तभी सम्भव है जब हम स्कूल व समुदाय में घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करें। स्कूल और जीवन के सम्पर्क से ही शिक्षा सुधार का कार्य प्रारम्भ किया जा सकता है और जब तक दोनों उचित सम्बन्ध स्थापित नहीं होता, तब तक शिक्षा प्रभावहीन और अप्राकृतिक बनी रहेगी और उसे सामाजिक प्रगति के साधन के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है।
इन दोनों के सम्बन्ध को सशक्त कैसे बनाया जाये?
(1) विद्यालय में शिक्षक-अभिभावक संघ स्थापित किये जाने और वर्ष में दो बार अभिभावक दिवस आयोजित किया जाये। इसमें सभी बच्चों के माँ-बाप को बुलाया जाये व उनसे अभिभाषण दिलवायें जायें। अभिभावकों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये जा सकते हैं।
(2) शिक्षा का पूर्णरूपेण विकेन्द्रीकरण किया जाये और इसे समाज के नियन्त्रण में रखा जाये। जहाँ तक सम्भव हो, गाँव में स्थित विद्यालय गाँव पंचायत के अधीन हों व शहर में स्थित विद्यालय नगरपालिकाओं के अधीन हों।
(3) प्रत्येक विद्यालय की एक प्रबन्ध समिति हो, जिसमें समुदाय के कुछ सदस्य रखें जायें।
(4) विद्यालय में एक परामर्श समिति गठित की जाये जिसका कार्य शिक्षा सम्बन्धी समस्याओं को सुलझाना हो।
(5) विद्यालय में जो भी कार्यक्रम आयोजित किये जायें, उसमें समुदाय के प्रतिष्ठित लोगों को आमन्त्रित किया जाये, उन्हें विद्यालय की प्रगति से अवगत कराया जाये और समय-समय पर उनके सुझाव विद्यालय की प्रगति के संदर्भ में आमन्त्रित किये जायें।
(6) स्कूल में समाज के कुछ विशेषज्ञों के भाषण आयोजित किये जाने चाहिए। इनके समक्ष विद्यालय के शिक्षकों का बच्चों को भी अपने विचार अभिव्यक्त करने चाहिए।
(7) स्कूल भवन में सामुदायिक कल्याण के कार्यक्रमों को भी आयोजित किया जाना चाहिए; जैसे—विद्यालय भवन में प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रम आयोजित किये जायें।
(8) विद्यालय पुस्तकालय स्कूल के सभी सदस्यों के लिए खुला रहना चाहिए छात्रों को यह सुविधा होनी चाहिए कि वह पुस्तकों को घर ले जा सकें।
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