विद्यालय को एक सामुदायिक केन्द्र के रूप में स्थापित करने के उपाय का वर्णन कीजिए।
वस्तुतः यदि हम विद्यालय एवं समुदाय के घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित करना चाहते हैं, तो हमें विद्यालय को एक सामुदायिक केन्द्र के रूप में परिणित करना होगा। विद्यालय को एक सामुदायिक केन्द्र बनाने की आवश्यकता तथा इसके लिए किये जाने वाले उपाय इस प्रकार
(अ) विद्यालय को सामुदायिक केन्द्र बनाने की आवश्यकता-
वस्तुतः शिक्षा एक सामाजक प्रक्रिया है और समाज विद्यालयों को यह दायित्व सौंपता है कि वे युवकों का ‘प्रशिक्षण’ (Training) एवं उनका ‘पालन-पोषण’ (Rearing) इस प्रकार करें कि जिस समाज से ये सम्बन्ध रखते हैं उसके जीवन में प्रभावी ढंग से भाग ले सकें। यहाँ पर प्रश्न उठता है कि विद्यालय को ही यह दायित्व क्यों सौंपा जाता है। इस प्रश्न के उत्तर में निम्नलिखित दो महत्त्वपूर्ण तथ्य व कारण प्रस्तुत किये जा सकते हैं-
- बालकों को सामाजिक परम्पराएँ, प्रथाएँ आदि उसी प्रकार उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं होती हैं जैसे उन्हें अपने माता-पिता की सम्पत्ति एवं जन्मजात क्षमताएँ प्राप्त हो जाती हैं।
- बालकों को अपने समाज की ‘सांस्कृतिक विरासत’ जन्म के साथ नहीं मिलती है बल्कि उसे सीखना पड़ता है।
उपर्युक्त कारणों से उन्हें पुस्तकों, कार्यों तथा सामाजिक सम्पर्कों से इस सामाजिक विरासत को सीखना पड़ता है। यदि बालकों को सामाजिक विरासत एवं सांस्कृतिक निधि से पृथक् रखा जाये तो उनके सभी प्रयास व्यर्थ हो जायेंगे। साथ ही वे अँधेरे में ही भटकते रहेंगे। अतः मानव के संचित अनुभवों का ज्ञान प्रदान करने का दायित्व. विद्यालय को ही सौंपा जाता है। विद्यालय अपने उक्त दायित्व का निर्वाह तभी कर सकता है जबकि उसका वाह्य समाज के जीवन की घनिष्ठ एवं सजीव सम्बन्ध हो। साथ ही वह वर्तमान वास्तविकताओं की बालकों को शिक्षा प्रदान करे। दुर्भाग्यवश आज हमारे देश के विद्यालय ‘सामुदायिक जीवन’ से पृथक् होकर ही बालकों को शिक्षा प्रदान कर रहे हैं। आज हमारे विद्यालयों का जीवन की वास्तविकताओं से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। ऐसी स्थिति में हमारे विद्यालय सामुदायिक जीवन की प्रगति एवं सुधार में कोई योगदान नहीं दे पा रहे हैं।
(ख) विद्यालय को सामुदायिक केन्द्र बनाने के लिए उपाय-
विद्यालय को सामुदाय केन्द्र बनाने के लिए निम्नलिखित दो प्रकार के उपायों को काम में लाया जा सकता है-
(I) समुदाय को विद्यालय के निकट लाना,
(II) विद्यालय को समुदाय के निकट लाना।
(I) समुदाय को विद्यालय के निकट लाने के उपाय-
विद्यालय को सामुदायिक केन्द्र बनाने की दृष्टि से समुदाय को विद्यालय के निकट लाने के लिए निम्नलिखित उपाय किर जा सकते हैं-
(1) समुदाय के सदस्यों को आमंत्रण- विद्यालय को चाहिए कि वह समय-समय पर सामुदायिक जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोगों जैसे-डाक्टर, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता, धार्मिक नेता, सौदागर, व्यापारी, पत्रकार, किसान आदि को आमंत्रित करें। ये लोग सामाजिक जीवन से सम्बन्धित विभिन्न तथ्यों पर प्रकाश डालकर छात्रों की सामुदायिक जीवन की ‘वास्तविक परिस्थितियों के सम्बन्ध में ज्ञान प्रदान कर सकते हैं।
(2) अभिभावक-शिक्षक संघ– समुदाय को विद्यालय के निकट लाने के लिए अभिभावक-शिक्षक संघ की स्थापना एक महत्त्वपूर्ण उपाय सिद्ध हो सकता है। छात्रों के माता- पिता को शिक्षण कार्य में निम्नलिखित प्रकार से सम्बद्ध किया जा सकता है-
- जो इकाई व प्रकरण स्थानीय समुदाय से सम्बन्धित हो उनके प्रतिपादन के समय अभिभावकों को विद्यालय में बुलाया जाये। अभिभावक छात्रों के सामने इकाई या प्रकरण से सम्बन्धित स्थानीय तत्त्वों को प्रस्तुत करें।
- किसी इकाई व प्रकरण के सम्बन्ध में अभिभावकों से ‘प्रश्नावली’ के माध्यम से सूचनाएँ प्राप्त कर सकता है।
(3) प्रौढ़ शिक्षा का केन्द्र- जिस समुदाय में कोई विद्यालय स्थित होता है, उसके अशिक्षित प्रौढ़ों को साक्षर बनाने के लिए विद्यालय को प्रौढ़ शिक्षा का केन्द्र बनाया जाये। यह केन्द्र विद्यालय समय के उपरान्त प्रौढ़ों को शिक्षित करने की व्यवस्था करें इस व्यवस्था से एक तो वे साक्षर हो जायेंगे, दूसरे वे अपने अनुभवों से छात्रों को अवगत कराने में समर्थ होंगे। इस प्रकार विद्यालय और समुदाय एक-दूसरे के निकट आ सकेंगे।
(4) सामुदायिक जीवन की विभिन्न क्रियाओं का संगठन- समुदाय को विद्यालय के निकट लाने के लिए विद्यालय में सामुदायिक जीवन की विभिन्न क्रियाओं को आयोजित किया जाय। इस आयोजन से छात्र सामुदायिक जीवन के विभिन्न पक्षों के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे और इस प्रकार समुदाय एवं विद्यालय में निकट सम्पर्क हो सकेगा।
(5) सामाजिक विषयों का अध्ययन- समुदाय के विद्यालय के निकट लाने के लिए सामाजिक विषयों यथा–नागरिकशास्त्र, इतिहास, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र इत्यादि के अध्यापन पर बल देना चाहिए। इसके अध्यापन से विद्यार्थियों को समाज की आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक कार्यों का ज्ञान बढ़ेगा।
(6) उपयुक्त शिक्षण विधियों का प्रयोग- विद्यालय में इस प्रकार की शिक्षण- विधियो का प्रयोग किया जाये जिनके द्वारा छात्रों एवं शिक्षकों को अपने समुदाय के सम्पर्क आने का अवसर प्राप्त हो। उदाहरण के लिए, निरीक्षण-विधि, योजन-विधि, समाजीकृत अभिव्यक्ति आदि।
(7) मेलों, उत्सवों आदि का मनाना- समुदाय को विद्यालय के निकट लाने के लिए विद्यालय में विभिन्न प्रकार के मेलों, उत्सवों व त्योहारों को मनाया जा सता है। इनमें भाग लेने के लिए, देखने के लिए स्थानीय समुदाय के लोगों को आमंत्रित किया जाये। इससे स्वतः विद्यालय एवं समुदाय एक दूसरे के निकट सम्पर्क में आ सकेंगे।
(8) फिल्म शो व प्रदर्शनियाँ- फिल्म शो व प्रदर्शनियों के माध्यम से भी समुदाय को विद्यालय के निकट लाया जा सकता है। विभिन्न कार्यों में संलग्न व्यक्तियों को फिल्मों के माध्यम से समुदाय के बारे में उपयोगी ज्ञान प्रदान किया जा सकता है।
(9) समाज की सांस्कृतिक परम्पराओं का व्यावहारिक ज्ञान- समुदाय को विद्यालय के निकट लाने हेतु छात्रों को समाज की सांस्कृतिक परम्पराओं का व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया जाये। इसके लिए उन्हें समाज में होने वाले पर्व, त्यौहारों, महोत्सवों, तीर्थों एवं मेलों का प्रत्यक्ष ज्ञान कराना चाहिए। इस प्रकार के अवसरों पर छात्रों का सक्रिय सहयोग उनके ज्ञान को परिपक्व एवं व्यावहारिक बनाता है और साथ ही साथ समाज की सांस्कृतिक विरासत व सम्पत्ति को भावी पीढ़ियों के लिए सुरक्षित करने में सहायता देता है।
(10) समाज की सामाजिक समस्याओं के समाधान में योगदान- समुदाय को विद्यालय के निकट लाने के लिए विद्यालय को समुदाय की सामयिक समस्याओं के समाधान में योगदान देना चाहिए। उदाहरण के लिए- खाद्यान्न समस्या के निवारण के विषय में महत्त्वपूर्ण सुझाव देना स्वास्थ्य एवं आचार विज्ञानों की नवीनतम खोजों से प्राप्त ज्ञान की ओर समाज का ध्यान केन्द्रित कर समाज को स्वास्थ्य एवं सामान्य जीवनयापन को उन्नत बनाना, बेकारी एवं निर्धनता की समस्या का निवारण करने के लिए शिक्षा को उपयोगी बनाना आदि।
(II) विद्यालय को समुदाय के निकट लाने के उपाय–
विद्यालय को समुदाय निकट लाने हेतु निम्न उपाय किये जा सकते हैं।
(1) समुदाय के सदस्यों को सूचनाएँ प्रदान करना– विद्यालय को समुदाय के निकट लाने के लिए समुदाय के सदस्यों को महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्रदान करना एक कारगर उपाय सिद्ध हो सकता है। छात्र समुदाय के सदस्यों से साक्षात्कार’ करके उन्हें विभिन्न प्रकार की सूचनाएँ प्रदान कर सकते हैं। साथ ही समुदाय के बहुत से लोग उन्हें प्रकाशित साहित्य तथा श्रव्य-दृश्य सामग्री प्रदान करके महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्रदान कर सकते हैं।
(2) समाज सेवा संघों का निर्माण- सैयदेन ने विद्यालय में समाज-सेवा संघों की स्थापना पर बल दिया है। ये संघ बाढ़ आने, संक्रामक रोगों के फैलने तथा उत्सवों और जुलूसों में लोगों की सहायता करेंगे। यदि संघ के इन कार्यों को स्काउटिंग कार्यों से सम्बन्धित कर दिया जाये तो जनता का बहुत हित हो सकेगा।
(3) समाज-सेवा सप्ताहों का आयोजन- विद्यालय को समुदाय के निकट लाने के स्वच्छता सप्ताह, लिए समाज-सेवा सप्ताहों का भी आयोजन किया जा सकता है। जैसे- श्रमदान सप्ताह, साक्षरता, ग्रामाद्धार, सप्ताह, वृक्षारोपण सप्ताह आदि। इन साप्ताहिक अवसरों पर शिक्षकों एवं छात्रों को नगरों एवं ग्रामो में पहुँच कर सफाई, श्रमदान, निरक्षरों को अक्षर ग्रामीणों की उन्नति में हाथ बटाना, वृक्ष लगाना आदि कार्यक्रम सम्पन्न करने पड़ते हैं।
(4) सामाजिक शिक्षा की व्यवस्था- विद्यालय को समुदाय के निकट लाने के लिए छात्रों को चाहिए कि वे नगरों में जाकर शिक्षाप्रद सांस्कृतिक कार्यक्रमों, नाटक, भजन कीर्तन आदि की व्यवस्था करें। के बनाना,
(5) सामाजिक सर्वेक्षण क्लाबों का संगठन- सैयदेन का यह भी विचार है कि विद्यालय का सामाजिक सर्वेक्षण करने के लिए क्लाबों को संगठित करना चाहिए। इन क्लबों के सदस्य छोटी टोलियाँ बनाकर पास के स्थानों की समस्याओं और आवश्यकताओं का अध्ययन करें जैसे- सड़कों और पार्कों की दशा सुधारना, पीने के पानी के लिए सार्वजनिक नलों और कुओं की व्यवस्था करना। अध्ययन करने के उपरान्त विद्यार्थी सुझाव सहित रिपोर्ट तैयार करें।
(6) क्षेत्र-पर्यटन- विद्यालय व छात्रों को क्षेत्र-पर्यटन के माध्यम से समुदाय के निकट लाया जा सकता है। क्षेत्र पर्यटन कर उद्देश्य मन-बहलाव के लिए विद्यालय के बाहर जाना नहीं होता बल्कि विषय के स्पष्टीकरण या समस्या का समाधान खोजना होता है। पर्यटनों के माध्यम से ही छात्र स्थानीय स्थितियों का प्रत्यक्ष रूप से निरीक्षण करने में समर्थ हो सकते हैं। छात्रों को आस-पास के वातावरण की वास्तविक परिस्थितियों से अवगत कराने के लिए विद्यालय अधोलिखित प्रकार के क्षेत्र-पर्यटनों का आयोजन कर सकते हैं-
(i) लघु पर्यटन- लघु पर्यटन बहुत अल्प समय के लिए होते हैं। प्रायः वे एक-दो घण्टे में पूरे हो जाते हैं। इस अवधि में छात्र कक्षा से बाहर रहकर अपने निकटस्थ वातावरण का अध्ययन कर सकते हैं।
(ii) सामान्य क्षेत्र पर्यटन- इस प्रकार के पर्यटन का क्षेत्र एवं अवधि लघु पर्यटन से अधिक होता है।
(iii) वृहत् पर्यटन– इस प्रकार के पर्यटन का क्षेत्र एवं अवधि दोनों ही अधिक होते हैं। इसमे छात्रों को पूरी तैयारी के साथ बाहर रहना पड़ता है।
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