जन अधिकार के तहत सूचना के अधिकार कानून का महत्व
जन-अधिकार के तहत सूचना के अधिकार कानून का महत्त्व-सूचना के अधिकार कानून के अनुसार प्रथम अपील अधिकारी एक महत्त्वपूर्ण स्तर है जो नागरिकों को रात प्रदान करेगा। अब तक का अनुभव यह है कि प्रथम अपील अधिकारी के निर्णय सामान्यतः वहीं होते हैं जो लोक सूचना अधिकारी के होते हैं। प्रथम अपील अधिकारी के कर्तव्य, जिम्मेदारी, गलत निर्णय देने पर जुर्माने की कोई व्यवस्था नहीं है। मजबूरन नागरिक द्वितीय अपील में सूचना आयोगों का दरवाजा खटखटाता है, जिससे देश के सूचना आयोगों के पास सूचना के अधिकार में लंबित मामलों की सज्जा बढ़ती जा रही है।
सूचना के अधिकार कानून का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पहलू कानून की धारा 4(1)(क) के तहत 17 श्रेणियों की सूचनाएं बिना नागरिक की मांग के स्वतः आगे बढ़कर प्रकाशित करनी थी। उसे समय-समय पर अद्यतन भी करना था। दुर्भाग्यवश यह अपेक्षा औपचारिक अथवा पवित्र इच्छाएं मात्र रह गई है।
यदि ध्यानपूर्वक विश्लेषण किया जाये तो इन 17 श्रेणियों की सूचनाओं को प्रकाशित कर देने से अथवा रिकॉर्ड मैनेजमेंट की व्यवस्थाओं से सार्वजनिक संस्थाओं का कार्यभार घटता है। सूचना के अधिकार के आवेदनों की संख्या कम होती है तथा पारदर्शी ढांचा कायम होता है।
लेकिन यह कार्य व्यापक रूप में नहीं हो पाया। सार्वजनिक संस्थाओं की इच्छा पर है कि वे चाहे तो धारा 4 के तहत 17 श्रेणियों की सूचनाएं उजागर करे अथवा न करे। दण्ड के अभाव में अथवा ऐसी किसी बाध्यता के अभाव में इन संस्थाओं ने इसे पवित्र इच्छाएं बना लिया है।
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