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उत्पादक और उपभोक्ता किसे कहते हैं? उपभोक्ताओं के अधिकारों का वर्णन कीजिए।

उत्पादक और उपभोक्ता किसे कहते हैं?
उत्पादक और उपभोक्ता किसे कहते हैं?

उत्पादक और उपभोक्ता किसे कहते हैं? 

उत्पादक और उपभोक्ता का अर्थ -कारखानों, फैक्ट्रियों आदि में जो कुछ सामान बनता है या बनाया जाता है, उसे उत्पाद कहा जाता है। उत्पाद करने की यह प्रक्रिया उत्पादन कहलाती है। कारखानों में उत्पाद करने वाले समूह को उत्पादक कहते हैं। जबकि कारखानों तथा उद्योगों में होने वाले उत्पाद को जो व्यक्ति प्रयोग करते हैं उन्हें उपभोक्ता कहा जाता है। अर्थात् उपभोक्ता वे व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह होते हैं जो उत्पादों के मुख्य प्रयोगकर्ता होते हैं।

उपभोक्ताओं के अधिकार-

उपभोक्ताओं के प्रमुख अधिकार निम्नलिखित हैं-

(1) शोषण के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार-अनुचित तथा प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार, स्वतंत्र प्रतियोगिता को समाप्त करके समाज के हितों की उपेक्षा करते हैं और उपभोक्ताओं को उनके अधिकारों से वंचित रखते हैं। अनुचित व्यापार व्यवहार है-भ्रामक विज्ञापन, नकली या मिलावटी वस्तुओं का विक्रय, नाप-तौल में कमी, अनुचित आश्वासन, मुनाफाखोरी, जमाखोरी व कालाबाजारी आदि। इन व्यवहारों के माध्यम से व्यवसायी व्यापक रूप से उपभोक्ताओं का शोषण करते हैं। अतः उपभोक्ताओं को इन शोषणों के विरुद्ध संरक्षण का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986′ इसी दिशा में एक कदम है।

(2) सुनवाई किये जाने का अधिकार-उपभोक्ताओं को यह अधिकार है कि उत्पादक एवं वितरक उनकी शिकायतों को सुनें। वह एक महत्वपूर्ण अधिकार है क्योंकि इसके अभाव में अन्य अधिकार निरर्थक हैं। यह अधिकार उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा हेतु आवश्यक है।

(3) चुनाव करने का अधिकार-उपभोक्ता को विभिन्न प्रकार की वस्तुओं में से सर्वोत्तम वस्तु के चुनाव करने का अधिकार प्राप्त होता है। चुनाव करने का अधिकार इस बात का संकेतक है कि उपभोक्ता स्वेच्छापूर्वक किसी वस्तु को क्रय करना चाहते हों। प्रतियोगिता और उपभोक्ता कानून उपभोक्ताओं को समुचित संरक्षण प्रदान करते हैं तथा वस्तुओं और सेवाओं के व्यापक चयन का अवसर प्रदान करते हैं।

(4) सूचित किये जाने का अधिकार-उपभोक्ताओं को वस्तुओं या सेवाओं के गुण, कार्य निष्पादन के स्तर, उत्पाद के उपादानों, वस्तुओं की शुद्धता एवं ताजगीपन, वस्तु के सम्भावित पार्श्व प्रभाव तथा अन्य सम्बन्धित तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है। वस्तु के सम्बन्ध में पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के पश्चात् उपभोक्ता क्रय सम्बन्धी उचित निर्णय ले सकता है।

(5) प्रतिकार किए जाने का अधिकार-उपभोक्ताओं को अन्याय, हानि, अत्याचार आदि का प्रतिकार करने करने का अधिकार है। इस अधिकार के अन्तर्गत उपभोक्ताओं को यह आशा रहती है कि यदि दिए हुए निर्देशों के अनुसार वस्तु का प्रयोग किया जाए तो प्रत्येक वस्तु किए गए विज्ञापन के अनुरूप ही कार्य करेगी।

(6) स्वास्थ्य तथा सुरक्षा के संरक्षण का अधिकार-अनेक वस्तुएँ असुरक्षित होती हैं तथा उनके प्रयोग में अवर्णित जोखिम निहित होते हैं। उपभोक्ताओं को ऐसी वस्तुओं के विक्रय के विरुद्ध संरक्षण प्रदान किया जाना चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि उपभोक्ताओं को वस्तुओं के गुण, विश्वसनीयता तथा कार्य निष्पादन सम्बन्धी आश्वासन दिया जाना चाहिए तथा असुरक्षित वस्तुओं के विरुद्ध उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए पारित अधिनियमों का कठोरता से क्रियान्वयन किया जाना चाहिए।

(7) ऐसे भौतिक वातावरण का अधिकार जो जीवन के गुणों की रक्षा तथा उनमें वृद्धि कर सके- वातावरण सम्बन्धी समस्या निश्चित रूप से उपभोक्ताओं को प्रभावित करती है। वायु, जल, शरीर तथा खाद्य प्रदूषण वर्तमान सामाजिक लाभों को नष्ट करते हैं। अतः इन प्रदूषणों को न्यूनतम करके समुदाय के जीवन के गुण को सुरक्षित बनाए रखने और उसमें वृद्धि करने को सुनिश्चित कर लेना चाहिए।

उपभोक्ताओं के उपर्युक्त अधिकारों के संरक्षण हेतु निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय हैं-

(1) क्रेता और विक्रेताओं के मध्य उचित सन्तुलन बनाए रखा जाए।

(2) उपभोक्ताओं के हितों के संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु सभी उपाय किए जाएँ।

(3) उपभोक्ताओं के उपर्युक्त सभी अधिकारों को सुरक्षित रखा जाए।

(4) उपभोक्ताओं को अविवेकपूर्ण व्यापारियों के शोषण से बचाया जाए।

(5) समय-समय पर सरकार के समक्ष उपभोक्ताओं के हितों को प्रस्तुत करना तथा उन्हें प्रभावकारी संरक्षण दिलाने के उपाय किए जाएँ।

(6) अनुचित व्यापार व्यवहारों के विरुद्ध उपभोक्ता प्रतिरोध को संगठित किया जाए।

(7) उपभोक्ता संरक्षण हेतु सरकार तथा व्यावसायिक उपक्रमों के बीच उचित तालमेल रखा जाए।

(8) उपभोक्ता प्रशिक्षण, उपभोक्ता सूचना तथा तुलनात्मक परीक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाएँ।

(9) व्यावसायियों द्वारा उपभोक्ता अभिमुखी विपणन कार्यक्रम के व्यवहार को सुनिश्चित किया जाए।

यदि उपभोक्ता अपने अधिकारों एवं शक्तियों के प्रति जागरूक हो जाते हैं तो उत्पादक एवं विक्रेता अनुचित व्यापार व्यवहार को नहीं अपना सकते। उपभोक्ताओं में जागरूकता बढ़ती जा रही है व अब समय आ गया है कि कोई भी उपभोक्ताओं को प्रभावहीन व निष्क्रिय न माने।

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