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पुस्तकालय का महत्त्व | Importance of Library in Hindi

पुस्तकालय का महत्त्व | Importance of Library in Hindi
पुस्तकालय का महत्त्व | Importance of Library in Hindi

पुस्तकालय की प्रमुख आवश्यकताओं का वर्णन कीजिए।

पुस्तकालय वह स्रोत है जहाँ से निःस्तृत होकर ज्ञान रूपी जल सांस्कृतिक क्षेत्र का अभिसिंचन करता है। यह वह केन्द्र है, जहाँ प्राचीन और नवीन संस्कृतियों का मिलान होता है। पुस्तकालय ही विद्यालय और समाज का बौद्धिक केन्द्र है। यहीं पर जीवन और कार्य का तथा समाज और विद्यालय का सम्बन्ध जुड़ता है।

पुस्तकालय का महत्त्व

पुस्तकालय में छात्रों को अध्ययन की प्रेरणा मिलती है। छात्र स्वतन्त्र रूप से अधिक-से-अधिक ज्ञानार्जन करने की क्षमता का विकास करते हैं। पुस्तकालय वह क्षेत्र है जहाँ आत्मानुशासन और उत्तरदायित्व के भावों का अंकुरण होता है। वर्तमान परिस्थितियों और समस्याओं का वास्तविक ज्ञान होता है। विश्व में होने वाले परिवर्तनों में अपने विचारों द्वारा सहगामी बनने तथा बनाने हेतु पुस्तकालय कर्मशाला की भूमिका भी निभाता है। पुस्तकालय द्वारा छात्रों और अध्यापकों को अध्ययन की प्रेरणा मिलती है, उनके ज्ञान का विस्तार होता है, उनके आदर्शों का निर्माण होता है। आत्म-शिक्षा के लिए सच्चा स्थान पुस्तकालय ही है।

विद्यालय में पुस्तकालय की स्थापना और उसके कार्य

विद्यालय में पुस्तकालय की स्थापना के अग्रलिखित आवश्यकतायें हैं-

(1) पाठ्यक्रम और छात्रों की आवश्यकता के अनुसार पुस्तकों तथा-पत्र-पत्रिकाओं का संकलन और उनका उपयोगी ढंग से व्यवस्थापन।
(2) छात्रों को उनकी आवश्यकता और रुचि के अनुसार पुस्तकों के चयन में सहायता करना।
(3) छात्रों में व्यक्तिगत शोध की आदत डालना तथा उनमें पुस्तकों के उचित रूप में उपयोग करने के कौशल का विकास करना।
(4) छात्रों में बहुमुखी अध्ययन की रुचियों का विकास करना।
(5) छात्रों के कलात्मक अनुभूति तथा रसानुभूति की क्षमता का विकास करना।

श्री एल.एफ. फार्गों ने पुस्तकालय के निम्नलिखित कार्यों की चर्चा की है-

(1) सामग्री का संकलन एवं संचय-पुस्तकालय के अन्तर्गत आधुनिक शैक्षिक सामग्री का संकलन होता है।

(2) पाठ्य सामग्री प्रदान करना-पुस्तकालय का कार्य संग्रह नहीं है बल्कि प्रत्येक छात्र को वह सामग्री प्राप्त भी होनी चाहिए। व्यवस्थित रूप से स्वतन्त्रतापूर्वक अध्ययन-योग्य सामग्री की प्राप्ति शिक्षक के समान ही प्रभावकारी है।

(3) पढ़ने की आदत डालना–पुस्तकालय में नियमित रूप से बैठने और पुस्तकों के पलटते रहने से धीरे-धीरे अध्ययन की आदत पड़ जाती है।

(4) अध्ययनोपयोगी वातावरण का निर्माण–पुस्तकालय में प्रकाश, वायु, सज्जा आदि की उपयुक्त व्यवस्था रहती है तथा अध्ययन के लिए अनुकूल शान्त वातावरण का निर्माण किया जाता है।

(5) प्रयोगशाला की अवस्था प्रदान करना-पुस्तकालय ऐसा साधन है जहाँ अध्ययन और प्रयोग के लिए सारी सामग्री उपलब्ध होती है। यहाँ पर प्रत्येक पढ़ने वाले को स्वाध्याय और शान्त चिन्तन द्वारा अपने ज्ञान के प्रयोग को पूरा अवसर प्रदान किया जाता है।

(6) प्रसार कार्य-अनेक संस्थाएँ विद्यालय के पुस्तकालय से सम्बद्ध होकर उन पुस्तकों के परिवर्तन द्वारा लाभन्वित होती हैं।

(7) निर्धन छात्रों को सहायता-जो छात्र पुस्तकें खरीदने में असमर्थ रहते हैं, उन्हें अध्ययन के लिए पूरी सामग्री मिलती है।

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