विद्यालय-भवन तथा विद्यालय की स्थिति की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
विद्यालय भवन में निम्नलिखित भवन होने आवश्यक हैं-
(1) मुख्य-शाला भवन एवं इसके अन्य विभिन्न विषयों के विभागीय कक्ष,
(2) पुस्तकालय एवं वाचनालय,
(3) छात्रावास एवं प्रयोगशाला,
(4) खेल के मैदान–
- (अ) हॉकी
- (ब) वॉलीबॉल
- (स) फुटबॉल
- (द) क्रिकेट
- (य) बास्केटबॉल
- (र) टेनिस आदि,
(5) शाला, उद्यान-बगीचे, लॉन,
(6) कृषि फॉर्म
(7) शिक्षकों का आवास-
- (अ) प्रधानाध्यापक के लिये
- (ब) शिक्षकों के लिये
- (स) कार्यालय कर्मचारियों के लिये
- (द) सम्यक् कर्मचारियों के लिये
(8) अन्य विधियाँ-
- (अ) रंगशाला
- (ब) तैरने के लिये जलाशय
- (स) प्लान्ट आदि
मुख्य शाला भवन– मुख्य शाला भवन के अन्तर्गत भी अनेक कक्षों की आवश्यकता होती है। आवश्यक कक्ष निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-
- आचार्य कक्ष
- कार्यालय भवन
- आगंतुक अतिथि कक्ष
- अध्यापक कक्ष
- आलेख स्टोर कक्ष
- निर्देशन तथा परामर्श कक्ष
- परीक्षा कक्ष
- विश्राम कक्ष-(अ) लड़कियों के लिये, (ब) लड़कों के लिये
- शौचालय एवं मूत्रालय-(अ) लड़कियों के लिये, (ब) लड़कों के लिये, (स) अध्यापकों के लिये
- खेल कक्ष
- स्काउटिंग, गर्ल गाईड, एन.सी.सी. कंक्ष,
- क्राफ्ट वर्कशाप
- कला भवन
- सभा भवन
- विज्ञान प्रयोगशालाएँ
- संग्रहालय
- विभिन्न विषयों के विशिष्ट कक्ष
- (अ) इतिहास (ब) भूगोल आदि।
विद्यालय भवन निर्माण के समय ध्यान देने योग्य बातें
भवन योजना का प्रारूप- भवन योजना किसी भी प्रकार के भवन के निर्माण के लिये आवश्यक है। वस्तुतः विद्यालय भवन का मास्टर प्लान योग्य अभियन्ता के द्वारा स्वीकृत होना चाहिये। इस योजना में निम्नलिखित तथ्यों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये-
(अ) वर्तमान छात्र संख्या,
(ब) भावी वर्षों के लिये बढ़ती विद्यार्थी जनसंख्या के लिये कक्ष,
(स) शैक्षिक कार्यक्रमों के लिये कक्ष,
(द) शिक्षेतर प्रवृत्तियों के लिये कक्ष,
(य) विशेष कक्ष।
विद्यालय की स्थिति- यों तो विद्यालय की स्थिति भी विद्यालय योजना के अन्तर्गत ही आ जाती है परन्तु इसके महत्त्व को देखते हुये इसे अलग से ही स्पष्ट किया जा रहा है। विद्यालय की स्थिति, नगर में नगरीय सघन आबादी से थोड़ा दूर हो, तो उत्तम रहता है परन्तु प्रायः ऐसा होता नहीं है। उप-नगरीय बस्ती एवं देहात में इस सम्बन्ध में कोई कठिनाई नहीं होती। इससे छात्रों को स्वच्छ वायु, शोरगुल से दूर, खेलकूद के लिये उपयुक्त क्षेत्र आदि मिल सकेगा।
विद्यालय भवन की नींव का धरातल- धरातलीय सतह जहाँ तक हो ऊंची हो तभी ठीक है। वर्षा के दिनों में पानी आसपास नहीं भरना चाहिए, अन्यथा मच्छर पैदा होने का भय बना रहेगा।
भवन की दिशा- विद्यालय भवन बस्ती से दक्षिण पूर्व दिशा में हो, तो उत्तम है। इसका लाभ यह होगा कि जहां शीतकाल में धूप सीधी छात्रों को उपलब्ध होगी, वहां ग्रीष्मकाल में सूर्य प्रकाश सीधा भवन में प्रवेश नहीं करेगा और कक्ष तेज हवाओं की दिशा में नहीं होने चाहिए।
विद्यालय सेवाएँ— यथा संभव विद्यालय भवन का निर्माण ऐसे स्थान पर होना चाहिये जहां आवागमन, बिजजी, पानी आदि की व्यवस्था सुगमता से उपलब्ध हो, अन्यथा छात्रों एवं शिक्षकों को काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
भविष्य के विस्तार की सम्भावनाएं- जहाँ तक हो भवन में विद्यार्थियों की संख्या पर निर्भर करता है तथा छात्र संख्या के अनुसार ही अतिरिक्त क्षेत्र पाठ्येतर प्रवृत्तियों के लिये चाहिए। अमेरिकन नेशनल काउन्सिल ने एक छोटे से विद्यालय भवन के क्षेत्र के बारे में अधोलिखित कहा है कि किसी माध्यमिक विद्यालय भवन के लिये, जिसमें 1000 विद्यार्थी हों, 20 एकड़ भूमि तथा प्रति 50 विद्यार्थियों के लिये एक एकड़ अतिरिक्त भूमि उपलब्ध होनी चाहिये।
विद्यालय भवन की योजनाएं- भारत की आर्थिक सीमाओं में जहाँ शिक्षा पर कुल आय का केवल 4 प्रतिशत व्यय हो, वहाँ विद्यालय भवन निर्माण से पहले अनेक प्रश्न उठते हैं। नयी शिक्षा नीति (1986) के सन्दर्भ में किये गये सर्वेक्षण के अनुसार लगभग आधे से अधिक विद्यालय बिना भवनों के चलते हैं। जहां भवन हैं, वहां प्राथमिक आवश्यकताओं, जैसे-शिक्षक के बैठने की व्यवस्था नहीं है, टाट पट्टियां नहीं हैं, श्यामपट्ट नहीं है और यहां तक छात्रों के लिये पीने के पानी की सुविधा भी नहीं है, तब आलीशान भवन की बात कल्पना मात्र प्रतीत होती है।
खुली हवा में विद्यालय- इस प्रकार के विद्यालयों की कल्पना की पृष्ठभूमि में आर्थिक सीमाओं के साथ-साथ यह विचार करना है कि शिक्षण मात्र भवनों में ही नहीं होता, बाह्य पर्यावरण में यह सहजता से होता है, क्योंकि खुली हवा में इन्द्रियों को अधिक सक्रिय करके उनका ज्ञानार्जन कराया जा सकता है। प्रकृति स्वयं एक शिक्षक है, यदि फिर प्राकृतिक पर्यावरण मिले तो उत्तम है? हमारे प्राचीन गुरुकुलों की शिक्षा वृक्षों के नीचे ही होती थी। रवीन्द्र नाथ टैगोर का शांति निकेतन भी वृक्षों के तले कक्षा-कक्ष वाला विश्वविद्यालय है।
चार शिक्षकों के लिये नाभिकीय विद्यालय भवन
(अ) न्यूक्लियस-स्टोर, कार्य बैच, दरवाज़े के पृष्ठ भाग में प्रदर्शन स्थल।
(ब) कक्षाओं और केन्द्रीय भाग को टिन, खपरैल या टीन से ढका जा सकता है। जो कक्षा-कक्ष के कार्य में लिये जा सकते हैं।
(स) x1, x2, x3 तथा x4 स्थलों में विभिन्न प्रवृत्तियों के लिये साधनों का प्रयोग हो सकता है।
योजना के लाभ
(1) इस योजना के आधार पर निर्मित विद्यालय-भवन बहुत कम लागत पर बनता है। साथ ही अधिकाधिक कार्य-स्थान उपलब्ध हो जाता है।
(2) प्रत्येक संस्था या समुदाय की आर्थिक सीमा में रहकर निर्माण संभव है। भवन- निर्माण में आर्थिक साधनों को ध्यान में रखना चाहिए।
(3) शिक्षा के लिये श्यामपट्ट प्रदर्शन स्थल, उपकरण के लिये स्थान उपलब्ध रहता है। कम से कम स्थान पर अधिकाधिक कक्षाएं तथा प्रवृत्तियों का संचालन संभव है।
प्राथमिक स्तर पर विद्यालयों के लिये यह भवन योजना सर्वथा अनुकूल है और यदि छात्र संख्या बढ़ती है तदनुसार नाभिकीय विद्यालय भवन बनाए जा सकते हैं। स्थानीय सहयोग से यह भवन आसानी से बनाए जा सकते हैं। भवन बनाने से पूर्व भवन के स्थान का चुनावं सावधानी से किया जाना चाहिये। इसमें भविष्य की आवश्यकताओं का भी प्रावधान किया जाना आवश्यक है।
यदि पूर्व में मास्टर प्लान बना लिया जाये तो अच्छा रहता है। भवन आकर्षक बने, इसके लिये उचित निर्माण शैली, निर्माण सामग्री, उपयुक्त रंगों का चुनना आदि पर ध्यान देना भी आवश्यक है।
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