एक उत्तम विद्यालय के भवन के प्रमुख कक्षों का वर्णन कीजिए।
विद्यालय-भवन के प्रमुख भाग निम्नलिखित हैं-
1. मुख्याध्यापक का कक्ष- विद्यालय-भवन का कोई भी प्रारूप चयनित किया जाये, उसके बाद आवश्यकता इस बात की है कि हम यह तय करें कि प्राचार्य का कक्ष कहाँ पर होगा? हमें सदैव ही इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि प्रधानाचार्य का कक्ष ऐसे स्थान पर हो जहाँ से उसकी उपस्थिति का आभास हो, साथ ही जहाँ से वह विद्यालय की सभी गतिविधियों पर नियन्त्रण रख सके। वैसे जहाँ तक सम्भव हो सके, प्रधानाचार्य का कक्ष विद्यालय प्रवेश द्वार के समीप ही होना चाहिए। मुख्याध्यापक कक्ष में विश्राम, गृह, शौचालय, स्नानकक्ष होना चाहिए और इसका आकार इतना बड़ा अवश्य होना चाहिए कि छोटी-छोटी अध्यापक सभाएँ आवश्यकता पड़ने पर इसमें बुलायी जा सकें।
2. स्कूल कार्यालय- स्कूल कार्यालय भी विद्यालय का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। इनसे मुख्याध्यापक को सदैव ही काम रहता है। अतः यह मुख्याध्यापक के कक्ष के बहुत समीप होना चाहिए। हमें यह सदैव ही ध्यान में रखनी होगी कि किसी भी विद्यालय का कुशल संचालन मुख्याध्यापक व विद्यालय कर्मिकों के मधुर सम्बन्धों पर काफी सीमा तक निर्भर करता है। कार्यालय में कार्य करने वाले कर्मचारियों का कमरा बड़ा होना चाहिए जिससे वह सुगमता के साथ कार्य कर सकें। बैठने हेतु उचित मेज-कुर्सी हों। वहीं पर शौचालय पीने के पानी के व्यवस्था हो।
3. आगन्तुकों के लिए कमरा– कभी किसी अध्यापक, कर्मचारी वर्ग या छात्रों से मिलने विद्यालय में कोई भी आ सकता है। मिलने का स्थान निश्चित हो, इसके लिए विद्यालय में एक कमरा आगुन्तकों के लिए बनाया जाना चाहिए। यह कमरा सुसज्जित हो जिसमें सोफा, पलंग, मेज आदि पड़ा हो, साथ ही इसके अन्दर भी शौचालय की व्यवस्था हो, कमरे में पीने का पानी हो और मेज पर कुछ अखबार या पत्रिकाएँ पड़ी होनी चाहिए।
4. कक्षाएँ- जिस दृष्टि से किसी भी विद्यालय की स्थापना की जाती है, वह है ज्ञान को प्रदान करना। विद्यालय में यह ज्ञानवर्द्धन कक्षाओं में किया जाता है। इस कारण कक्षाओं का उचित होना बहुत ही आवश्यक है। जहाँ तक सम्भव हो, विद्यालय की कक्षाएँ आयताकार होनी चाहिए और कक्षा में छात्रों की संख्या कमरे के आकार के अनुकूल होनी चाहिए चूँकि यदि छोटे कमरे में अधिक छात्र बैठा दिये जायेंगे तो छात्रों को परेशानी होगी और जल्दी थक जायेंगे जिससे उनका पढ़ने पर ध्यान केन्द्रित नहीं हो पायेगा। कक्षा में अध्यापक के बैठने हेतु मेज, कुर्सी हो व पढ़ाने हेतु लैक्चर स्टैण्ड हो व अच्छा श्यामपट्ट हो।
5. भूगोल-कक्ष- किसी भी विद्यालय में भूगोल के एक पृथक् कक्ष की आवश्यकता को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। भूगोल कक्ष में निम्न सामग्री होनी चाहिए-
(i) विभिन्न देशों की सीमा को प्रदर्शित करने वाले बड़े मानचित्र।
(ii) विभिन्न देशों की जलवायु, वर्षा, वनस्पति को प्रदर्शित करने वाले मानचित्र।
(iii) भूमि मार्ग, वायु मार्ग, जल मार्ग को प्रदर्शित करने वाला मानचित्र।
(iv) खनिज सम्पदा व औद्योगिक प्रगति के प्रदर्शित करता हुआ मानचित्र।
(v) वायु भार मापने वाला यंत्र, वर्षा यंत्र, तापमान यंत्र, वायुदिशा यंत्र तथा कुतुबनुमा।
(vi) विभिन्न मॉडल; जैसे—इग्लू, सूर्य परिक्रमा, ऋतु परिवर्तन।
(vii) ग्लोब व एटलस।
6. विज्ञान कक्ष- विज्ञान-कक्ष के लिए आवश्यकता इस बात की है कि जिन विषयों को पढ़ाने की सुविधा विद्यालय में है, उनकी पृथक् प्रयोगशाला हो। विज्ञान-कक्ष में एक प्रयोगशाला हो, एक व्याख्यान कक्ष, एक अध्यापक-कक्ष व एक सामान-घर। विज्ञान-कक्ष में अलमारियाँ होनी चाहिए जिससे प्रायोगिक सामग्री को सुरक्षित रखा जा सके। वहाँ हवा, पानी, प्रकाश की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए। इस कमरे में की कुछ मेजें अवश्य होनी चाहिए और साथ ही पर्याप्त मात्रा में स्टूल भी होने चाहिए।
7. गृह-विज्ञान कक्ष- गृह-विज्ञान कक्ष इस प्रकार का होना चाहिए जहाँ सारी सुविधाएँ उपलब्ध हों। गृह-विज्ञान के अन्तर्गत पाकशास्त्र, कपड़ों की सिलाई, कढ़ाई, धुलाई, गृहपरिचर्या व प्राथमिक चिकित्सा सम्मिलित होती है और इन सभी की समुचित व्यवस्था यहाँ की जानी चाहिए। गृह-विज्ञान विभाग के अन्तर्गत दो-तीन कक्ष हों। पाकशास्त्र वाले कक्ष में गैस, खाना बनाने की सामग्री (बर्तन, मसाले) व एप्रिन आदि होने चाहिए। कपड़ों की सिलाई वाले कक्ष में मशीन, मेज-कुर्सी व सिलाई हेतु काम आने वाले उपकरण होने चाहिए।
8. स्टॉफ रूम- स्टॉफ रूम की भी उचित व्यवस्था विद्यालय के अन्तर्गत की जानी चाहिए। स्टॉफ कक्ष में सभी अध्यापकों के लिए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि वे अपने व्यक्तिगत सामान को ताले में रख सकें। अध्यापकों के बैठने हेतु पर्याप्त मात्रा में कुर्सी होनी चाहिए। वहाँ विश्राम करने हेतु एक पलंग भी डाल देना चाहिए। कमरे में शौचालय व स्नानगृह की भी व्यवस्था करनी चाहिए। मेज पर अखबार व पत्रिकाएं भी होनी चाहिए।
9. ड्राइंग कक्ष- बालकों को ड्राइंग व कला का ज्ञान कराने हेतु विद्यालय में अलग कक्ष होना चाहिए जहाँ की दीवारों को विभिन्न प्रकार की कलाओं से सुसज्जित किया जाना चाहिए जिससे छात्रों के मन में इसके प्रति रुचि उत्पन्न की जा सके। ड्राइंग बनाने हेतु जिन सामग्रियों की आवश्यकता होती है वह वहाँ उपलब्ध होनी चाहिए। यहाँ कार्य करने हेतु विशिष्ट प्रकार की मेजें व कुर्सी होनी चाहिए।
10. स्कूल कैण्टीन– विद्यालय प्रांगण में स्कूल कैण्टीन का होना आवश्यक है। प्रायः विद्यालय इस ओर ध्यान नहीं देते व बच्चे सड़क पर खड़े होने वाले ठेलों का सामान लेते हैं। स्कूल प्रांगण में जब कैण्टीन की स्थापना की जाये तो इस बात में सामान बनाने का अलग कक्ष हो तथा सामान रखने का अलग और छात्रों के बैठने व अध्यापकों के बैठने का भी अलग- अलग कक्ष हो। वहाँ उचित मेज-कुर्सी व अच्छे बर्तन हों। इससे एक सिंक अवश्य होने चाहिए और इसका संचालन अध्यापक व छात्रों के निरीक्षण में होना चाहिए।
11. सभागार– प्रत्येक विद्यालय के पास एक इतना बड़ा हॉल अवश्य ही होना चाहिए जिसमें विद्यालय में अध्ययनरत सभी छात्रों को बैठाया जा सके, साथ ही विद्यालय में आयोजित विभिन्न उत्सव वहाँ कराया जा सके। हॉल में एक मंच का होना आवश्यक है और जहाँ तक सम्भव हो, हॉल का आकार आयताकार होना चाहिए। यदि विद्यालय के पास जमीन की कमी है तो हॉल को ऊपरी मंजिल पर भी बनाया जा सकता है।
12. साइकिल स्टैण्ड- स्कूल में पढ़ने वाले छात्रों के वाहनों को रखने की दृष्टि से, साथ ही उनकी सुरक्षा की दृष्टि से विद्यालय में साइकिल स्टैण्ड का बनाया जाना आवश्यक है। साइकिल स्टैण्ड कहाँ बनाया जाये, यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। विद्यालय प्रांगण के अन्दर साइकिल स्टैण्ड नहीं बनाना चाहिए चूँकि इससे विद्यालय के शैक्षिक वातावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसे विद्यालय के प्रवेश द्वारा पर ही स्थापित किया जाना चाहिए।
13. स्कूल कर्मचारियों के लिए आवास– जहाँ तक सम्भव हो, विद्यालय के द्वारा अपने अध्यापकों व कर्मचारियों के निवास की व्यवस्था की जानी चाहिए। इस सम्बन्ध में माध्यमिक शिक्षा आयोग ने सुझाव दिया है कि, “इस कार्य के लिए सरकार को सहकारी हाउसिंग सोसाइटी बनाकर आसान शर्तों पर स्कूल प्रबन्धकों को कर्जा देकर सहायता करनी चाहिए।”
14. विद्यालय पुस्तकालय- पुस्तकालय व वाचनालय विद्यालय में शैक्षिक वातावरण को बनाये रखने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। अतः विद्यालय में पुस्तकालय का होना जरूरी है। पुस्तकालय में अच्छे स्तर की पुस्तकें होनी चाहिए और जहाँ तक सम्भव हो, पुस्तकालय की खुली व्यवस्था होनी चाहिए।
15. विद्यालय छात्रावास– विद्यालय छात्रावास बच्चों का दूसरा घर होता है। यह वह स्थान है जहाँ दूर स्थानों से आने वाले छात्र निवास करते हैं। प्रारम्भ में कुछ आवासीय विद्यालय स्थापित किये गये थे जहाँ छात्रों का रहना अनिवार्य था परन्तु अब विद्यार्थियों का होस्टल में रहना अनिवार्य नहीं। हाँ, कुछ विद्यालय ऐसे अवश्य हैं जो छात्रों में रहने की अनिवार्यता को मानते हैं।
16. शौचालय- विद्यालय प्रांगण में छात्रों के लिए शौचालय की सुविधा अनिवार्य सुविधा के रूप में समझी जानी चाहिए। शौचालय में पानी की सुविधा हो और साथ ही उसकी हर समय सफाई करने हेतु कर्मचारी नियुक्त किये जायें।
17. पीने के पानी की व्यवस्था- स्कूल में कोई स्थान अवश्य नियत किया जाना चाहिए जहाँ पीने का पानी हर समय उपलब्ध हो। पानी हेतु विद्यालय में टंकी की व्यवस्था की जा सकती है परन्तु टंकी की नियमित रूप से सफाई होनी चाहिए व आवश्यकतानुसार उसमें कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग किया जाना चाहिए परन्तु सबसे अच्छा यह है कि विद्यालय के अन्दर वाटर-कूलर हो जिससे छात्रों को ग्रीष्म ऋतु में ठण्डा पानी उपलब्ध हो सके।
18. बिजली की व्यवस्था– प्रत्येक विद्यालय के पास बिजली की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। प्रत्येक कक्षा में बल्ब, रॉड व पंखे लगे हों और यदि बिजली चली जाय तो विद्यालय का अपना जनरेटर सैट भी होना चाहिए।
19. उद्यान- विद्यालय प्रांगण सुन्दर प्रतीत हो, इसके लिए आवश्यक है कि जहाँ कहीं भी विद्यालय में खाली जगह पड़ी हो, वहाँ घास लगा दी जाय और उसे काँटेदार तारों से घेर दिया जाये जिससे विद्यार्थियों के प्रवेश से वह खराब न हो।
Important Links
- विद्यालय संगठन के उद्देश्य एंव इसके सिद्धान्त | Objectives and Principle of School Organization
- विद्यालय प्रबन्ध का कार्य क्षेत्र क्या है?विद्यालय प्रबन्ध की आवश्यकता एवं वर्तमान समस्याएँ
- विद्यालय संगठन का अर्थ, उद्देश्य एंव इसकी आवश्यकता | Meaning, Purpose and Need of School Organization
- विद्यालय प्रबन्धन का अर्थ, परिभाषा एंव इसकी विशेषताएँ | School Management
- विद्यालय प्रबन्ध के उद्देश्य | Objectives of School Management in Hindi
- विद्यालय प्रबन्धन की विधियाँ (आयाम) | Methods of School Management (Dimensions) in Hindi
- सोशल मीडिया का अर्थ एंव इसका प्रभाव | Meaning and effects of Social Media
- समाचार पत्र में शीर्षक संरचना क्या है? What is the Headline Structure in a newspaper
- सम्पादन कला का अर्थ एंव इसके गुण | Meaning and Properties of Editing in Hindi
- अनुवाद का स्वरूप | Format of Translation in Hindi
- टिप्पणी के कितने प्रकार होते हैं ? How many types of comments are there?
- टिप्पणी लेखन/कार्यालयी हिंदी की प्रक्रिया पर प्रकाश डालिए।
- प्रारूपण लिखते समय ध्यान रखने वाले कम से कम छः बिन्दुओं को बताइये।
- आलेखन के प्रमुख अंग | Major Parts of Drafting in Hindi
- पारिवारिक या व्यवहारिक पत्र पर लेख | Articles on family and Practical Letter
- व्यावसायिक पत्र की विशेषताओं का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- व्यावसायिक पत्र के स्वरूप एंव इसके अंग | Forms of Business Letter and its Parts
- व्यावसायिक पत्र की विशेषताएँ | Features of Business Letter in Hindi
- व्यावसायिक पत्र-लेखन क्या हैं? व्यावसायिक पत्र के महत्त्व एवं उद्देश्य
- आधुनिककालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ | हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल का परिचय
- रीतिकाल की समान्य प्रवृत्तियाँ | हिन्दी के रीतिबद्ध कवियों की काव्य प्रवृत्तियाँ
- कृष्ण काव्य धारा की विशेषतायें | कृष्ण काव्य धारा की सामान्य प्रवृत्तियाँ
- सगुण भक्ति काव्य धारा की विशेषताएं | सगुण भक्ति काव्य धारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
Disclaimer