एक अच्छे विद्यालय-भवन की क्या-क्या विशेषताएँ होनी चाहिए? स्पष्ट कीजिए।
विद्यालय एक ऐसा विस्तृत शब्द है जिसका कोई एक अर्थ या परिभाषा देना सम्भव नहीं है, क्योंकि इसमें इतनी वस्तुओं का समावेश होता है कि इसकी प्रकृति और स्थिति का चुनाव सरल ढंग से सम्भव नहीं है आज की शैक्षिक आवश्यकताएँ प्राचीनकाल से बहुत भिन्न हैं। आज हर विषय क्रिया-प्रधान हो गया है। किसी विद्यालय के लिए भवन का होना अत्यन्त आवश्यक है। विद्यालय भवन और उसका वातावरण शैक्षिक पर्यावरण में गति लाता है। विद्यालय में प्रवेश करने वाले व्यक्ति के हृदय में विद्यालय की ध्वनि सुन्दर उभरकर आती है। विद्यालय-भवन के अन्तर्गत विद्यालय की इमारत, खेल का मैदान, पुस्तकालय, फीचर उपकरण आदि सभी शामिल होते हैं. ये सभी वद्यालय संचालन में करते हैं।
भारत में विद्यालय-भवनों की दशा अत्यन्त दयनीय है। देश के अधिकांश विद्यालय मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ हैं। विद्यालय-भवन अत्यन्त जर्जर अवस्था में है। खेल के मैदान नहीं हैं, कक्ष इतने छोटे हैं कि पर्याप्त संख्या में छात्र बैठ भी नहीं सकते हैं, छात्रों के लिए पेयजल आदि की व्यवस्था भी नहीं है। विद्यालय का वातावरण भी शिक्षा योग्य नहीं है, अधिकांश विद्यालय घनी बस्ती के मध्य तैयार किये गये हैं, जिनसे शिक्षा हेतु उचित वातावरण का निर्माण होने में कठिनाई आती है।
विद्यालय-भवन का निर्माण करते समय ध्यान रखी जाने वाली सावधानियाँ
- विद्यालय-भवन ऐसे स्थान पर बनाया जाये, जहाँ आवागमन की पूर्ण सुविधा हो।
- विद्यालय-भवन की स्थापना बस-स्टैण्ड, मण्डी, रेलने स्टेशन, कोई बड़ा कारखाना आदि के निकट नहीं की जानी चाहिए।
- शिक्षाविद् रायबर्न का मत है कि-“विद्यालय का स्थल सड़क के निकट होना चाहिए, किन्तु यथासम्भव सड़क से हटकर भी होना चाहिए।”
- प्रारम्भ से ही विद्यालय-भवन का निर्माण इतनी भूमि पर किया जाना चाहिए कि वहाँ खेल का मैदान अवश्य निकल आये।
- विद्यालय-भवन के निर्माण के समय उसमें भविष्य में किये जाने वाले परिवर्तनों की दृष्टि से भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है, अर्थात् स्थान का सही उपयोग करते हुए भविष्य में होने वाली वृद्धि के लिए कुछ स्थान छोड़ देना चाहिए।
एक अच्छे विद्यालय-भवन की विशेषताएँ
एक अच्छे विद्यालय-भवन में निम्न विशेषताओं का होना आवश्यक है-
(1) स्थान की पर्याप्तता- जब किसी विद्यालय के भवन का निर्माण किया जाये, तो इस तथ्य की ओर ध्यान दिया जाना आवश्यक है कि विद्यालय में किस कक्षा तक अध्ययन कार्य होगा? कक्षाओं के विभागों की संख्या कितनी होगी? छात्र संख्या लगभग कितनी होगी? पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं की व्यवस्था किस प्रकार की होगी? इन्हीं सब तथ्यों के आधार पर ‘स्थान की उपलब्धता का प्रयास करना चाहिए, जिससे पर्याप्त स्थान विद्यालय के पास हो।
(2) भवन परियोजना में नव्यता– विद्यालय-भवन का निर्माण करते समय उसकी परियोजना इस प्रकार की होनी चाहिए, जिससे उसमें यथासम्भव आवश्यकतानुसार फेरबदल किया जा सके। इससे भविष्य की योजनाओं हेतु समुचित स्थान प्राप्त हो सकेगा।
(3) सहयोगी दृष्टिकोण- विद्यालय-भवन में भौतिक सुख-सुविधाओं के साथ-साथ भावात्मक एकता तथा सहयोगी दृष्टिकोण होना भी आवश्यक है।
(4) आकर्षण- विद्यालय-भवन आकर्षक भी होना चाहिए। इसके लिए किसी अच्छे वास्तुकार से विद्यालय-भवन का नक्शा बनाकर उसी आधार पर भवन निर्माण करना चाहिए।
(5) समस्त आवश्यक सुविधाओं को होना– विद्यालय-भवन में समस्त आवश्यक सुविधाएँ, जैसे-खेल का मैदान, प्रकाश की व्यवस्था, बिजली, पानी, प्रसाधन की व्यवस्था, कॉमन रूम की व्यवस्था आदि होनी चाहिए।
(6) आदर्श विद्यालय की अपनी आदर्श आर्थिक नीतियाँ होनी चाहिए।उनमें मितव्ययिता का सिद्धान्त लागू होना चाहिए।
(7) विद्यालय भवन के निर्माण की योजना एक बार में ही तैयारी कर लेनी चाहिए जिससे उपलब्ध आर्थिक साधनों का उपयोग भली-भाँति हो जाये।
विद्यालय-भवन निर्माण की रूपरेखा
विद्यालय-भवन के अन्तर्गत निम्नलिखित भाग सम्मिलित किये जा सकते हैं-
- मुख्य भवन तथा विभिन्न विषयों की कक्षाओं के कक्ष।
- पुस्तकालय एवं वाचनालय।
- छात्रावास।
- खेल का मैदान-हॉकी, टेनिस, क्रिकेट, फुटबॉल, बास्केट बॉल आदि।
- शाला के उद्यान एवं बगीचे।
- कृषि भूमि।
- प्रयोगशालाएँ।
- खुला मैदान।
- स्टाफ क्वाटर्स-प्रधानाध्यापक, शिक्षक, सहायकों, लिपिकों और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों के लिए।
- अन्य नाट्यघर, स्वीमिंग पूल आदि।
विद्यालय-भवन या विद्यालय के मुख्य परिसर में प्राचार्य कक्ष, शिक्षक कक्ष, छात्रों का कॉमन रूम, स्टोर रूम, अतिथि-कक्ष, कार्यालय कक्ष, परीक्षा कक्ष आदि की स्थापना की जानी चाहिए, परन्तु किसी भी विद्यालय का निर्माण करने के पूर्व विद्यालय की स्थिति पर विचार करना भी आवश्यक है। विद्यालय-भवन दक्षिण-पूर्व दिशा में हो, तो आवश्यक रूप से वह लाभदायक होगा।
विद्यालय-भवन के क्षेत्रफल का निर्धारण मुख्यतः छात्रों की संख्या पर आधारित होता है। सामान्य लोगों का विचार है कि किसी भी विद्यालय में यदि छात्रों की संख्या 1,000 है, तो विद्यालय के पास लगभग 20 एकड़ भूमि का होना आवश्यक है।
केन्द्रीय विद्यालय सलाहकार शिक्षा परिषद् ने इस विषय में निम्न मापदण्ड निश्चित किये है-
- 160 की छात्र संख्या पर 2/3 एकड़ भूमि पर विद्यालय भवन तथा 2-3 एकड़ पर खेल का मैदान आदि।
- 320 की छात्र संख्या पर 1 एकड़ पर विद्यालय-भवन तथा 4-5 एकड़ पर खेल का मैदान आदि।
- 480 छात्रों की संख्या एकड़ पर विद्यालय-भवन तथा 6-7 एकड़ पर खेल का मैदान आदि।
Important Links
- विद्यालय संगठन के उद्देश्य एंव इसके सिद्धान्त | Objectives and Principle of School Organization
- विद्यालय प्रबन्ध का कार्य क्षेत्र क्या है?विद्यालय प्रबन्ध की आवश्यकता एवं वर्तमान समस्याएँ
- विद्यालय संगठन का अर्थ, उद्देश्य एंव इसकी आवश्यकता | Meaning, Purpose and Need of School Organization
- विद्यालय प्रबन्धन का अर्थ, परिभाषा एंव इसकी विशेषताएँ | School Management
- विद्यालय प्रबन्ध के उद्देश्य | Objectives of School Management in Hindi
- विद्यालय प्रबन्धन की विधियाँ (आयाम) | Methods of School Management (Dimensions) in Hindi
- सोशल मीडिया का अर्थ एंव इसका प्रभाव | Meaning and effects of Social Media
- समाचार पत्र में शीर्षक संरचना क्या है? What is the Headline Structure in a newspaper
- सम्पादन कला का अर्थ एंव इसके गुण | Meaning and Properties of Editing in Hindi
- अनुवाद का स्वरूप | Format of Translation in Hindi
- टिप्पणी के कितने प्रकार होते हैं ? How many types of comments are there?
- टिप्पणी लेखन/कार्यालयी हिंदी की प्रक्रिया पर प्रकाश डालिए।
- प्रारूपण लिखते समय ध्यान रखने वाले कम से कम छः बिन्दुओं को बताइये।
- आलेखन के प्रमुख अंग | Major Parts of Drafting in Hindi
- पारिवारिक या व्यवहारिक पत्र पर लेख | Articles on family and Practical Letter
- व्यावसायिक पत्र की विशेषताओं का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- व्यावसायिक पत्र के स्वरूप एंव इसके अंग | Forms of Business Letter and its Parts
- व्यावसायिक पत्र की विशेषताएँ | Features of Business Letter in Hindi
- व्यावसायिक पत्र-लेखन क्या हैं? व्यावसायिक पत्र के महत्त्व एवं उद्देश्य
- आधुनिककालीन हिन्दी साहित्य की प्रवृत्तियाँ | हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल का परिचय
- रीतिकाल की समान्य प्रवृत्तियाँ | हिन्दी के रीतिबद्ध कवियों की काव्य प्रवृत्तियाँ
- कृष्ण काव्य धारा की विशेषतायें | कृष्ण काव्य धारा की सामान्य प्रवृत्तियाँ
- सगुण भक्ति काव्य धारा की विशेषताएं | सगुण भक्ति काव्य धारा की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
Disclaimer