समय-सारणी का क्या अर्थ है? इसकी आवश्यकता एवं महत्व का विवेचन कीजिए।
समय-सारणी का अर्थ – विद्यालय में अनेक क्रियाएँ होती हैं जिनमें शिक्षण कार्य पाठ्य सहगामी क्रियाओं की व्यवस्था जैसें खेलकूद, व्यायाम एवं अनेक सांस्कृतिक क्रियाएँ हैं। इन कार्यक्रमों का समुचित संचालन कर विद्यालय अपना कर्त्तव्य पूरा करता है। अतः विद्यालय द्वारा अपने दैनिक कार्यों को योजनाबद्ध रूप से संचालित करने के लिए जो व्यवस्था करता है वह समय-सारणी कहलाती है। इस व्यवस्था में समय का सदुपयोग एवं श्रम का सदुपयोग होता है तथा विद्यालय में अनेक कार्य (शैक्षणिक कार्य) अबाध रूप से चलते हैं। समय-सारणी के द्वारा हम यह जान लेते हैं कि विद्यालय में किस दिन किस समय किस कक्षा में तथा किसके नेतृत्व में कौन-सी क्रियाएँ संचालित होनी हैं। विद्यालय में कितने घण्टे कार्य होना है किस विषय तथा क्रिया को कितना समय देना है यह सब समय-सारणी बतलाती है। विद्यालय की कक्षा-कक्ष गतिविधियों तथा सहगामी प्रवृत्तियों के संचालन के लिए जो योजना बनाई जाती है वही योजना समय-सारणी कहलाती है यह दैनिक कार्यकलापों की वह रूपरेखा है जिसक आधार पर विद्यालय का काम संचालित होता है। समय-सारिणी विद्यालय के दैनिक कार्यों की वह योजना है जिसके अनुसार शैक्षिक तथा सह-शैक्षिक कार्य संचालित होते हैं। इस कार्य-योजना में विद्यालय प्रारम्भ होने का समय, आधी छुट्टी, पूरी छुट्टी, विद्यालय समय का उपयुक्त कालांशों में विभाजन, प्रत्येक कालांश में होने वाली शिक्षण-गतिविधियाँ, खेल-कूद तथा अन्य क्रियाकलापों की व्यवस्था आदि के सम्बन्ध में उल्लेख रहता है। इन्हीं के अनुसार विभिन्न कालांशों में शिक्षण-कार्य संचालित होता है।
परिभाषाएँ
1. एच.जी.स्टेड के अनुसार, “विद्यालय की जिस तालिका या चार्ट या योजना के अनुसार प्रतिदिन के निर्धारित समय को विभिन्न विषयों क्रियाओं एवं कक्षाओं के मध्य प्रदर्शित किया जाता है समय-सारणी कहलाती है।”
2. टण्डन एवं त्रिपाठी के अनुसार, “वह योजना अथवा तालिका जिसमें विद्यालय की दैनिक क्रियाओं, कक्षाओं एवं समय का विभाजन दर्शाया जाता है, उसे समय-विभाग चक्र कहते
3. प्रो.बी.सी. राय ने समय-विभाग चक्र को “विद्युत का ‘स्पार्क प्लक’ कहा है जो विद्यालय की विविध क्रियाओं एवं कार्यक्रमों को गति प्रदान करता है।”
4. पिटमैन के शब्दों में, “सुव्यवस्थित समय-विभाग चक्र सुव्यवस्थित मस्तिष्क की उपज
5. डॉ. जीवन नायकम् के अनुसार “समय-विभाग चक्र विद्यालय का दूसरा घंटा है जिसके मुख पर अवकाश अंकित है।’
समय-सारिणी चक्र की आवश्यकता एवं महत्व
विद्यालय को सुव्यवस्थित एवं अनुशासित ढंग से चलाने के लिए समय-विभाग चक्र की नितान्त आवश्यकता है इससे शाला में व्यवस्था बनी रहती है, शिक्षक एवं छात्रों में नियमितता का विकास होता है। विद्यालय का समस्त कार्य योजनाबद्ध चलता रहता है तथा विद्यालय समय का अधिकतम सदुपयोग किया जा सकता है।
1. नियोजित शिक्षण सम्भव- -समय-सारणी से शिक्षक तथा छात्र यह जान लेते हैं कि प्रत्येक विषय के अध्ययन-अध्यापन के लिए कितना समय दिया गया है। वे इसी हिसाब से शिक्षण को नियोजित करते हैं जिससे सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पूरा किया जा सके।
2. कार्य-वितरण में समानता– समय-सारणी से समस्त अध्यापकों के कार्य-भार में समानता लाई जा सकती है। समान कार्य-वितरण सम्भव होता हैं इससे उनमें मानसिक असंतोष नहीं हो पाता है। समय-सारणी के द्वारा शिक्षकों को और भी अनेक लाभ हैं।
3. थकान एवं शिथिलता में कमी- समय-सारणी किसी भी एक क्रिया को लम्बे समय तक नहीं होने देती, इससे एक ही कार्य को लम्बे समय तक करते रहने से ऊब तथा थकान से छुटकारा मिलता है। थोड़े समय पर क्रियाओं के बदल जाने से नीरसता समाप्त होती है।
4. समय एवं श्रम का दुपयोग– समय-सारणी के द्वारा विद्यालय के समस्त मानवीय एवं भौतिक साधनों का सुन्दर समन्वय किया जाता है। इस समन्वय से समस्त साधनों का अधिकतम उपयोग कम-से-कम व्यय पर सम्भव होता है, इससे समय तथा श्रम दोनों की बचत होती है।
5. विद्यालय कार्यक्रमों का ज्ञान– समय-सारणी से विद्यालय के अनेक कार्यक्रमों का ज्ञान होता है इससे पता चलता है कि विद्यालय में कौन-कौन से पाठ्यक्रम हैं, कौन-कौन सी सहगामी तथा शारीरिक क्रियाएँ चलती हैं, खेलकूद की क्या व्यवस्था है तथा प्रत्येक क्रिया को कितना समय दिया जाता है।
6. कार्य-कुशलता में वृद्धि– समय-सारणी के द्वारा सभी कार्य नियमित समय पर कराये जाते हैं। प्रधानाध्यापक, अध्यापक तथा छात्र-सभी जानते हैं कि उन्हें कब क्या कार्य करना है, इससे कार्य में नियमितता आती है तथा सभी कार्यों को उचित महत्त्व प्रदान हो जाता है।
7. कार्यों में नियमितता– समय-सारणी के द्वारा विद्यालय के समस्त कार्यों में नियमितता आती है, अस्त-व्यस्तता समाप्त होती है एवं अनुशासनहीनता खत्म होती है समय- सारणी के द्वारा विभिन्न कार्यों में सामंजस्य स्थापित होता है।
8. निरीक्षण की सुविधा- समय-सारणी के द्वारा अधिकारी जान लेते हैं कि किस समय कौन-सा कार्य चल रहा है। इससे विभिन्न क्रियाओं का निरीक्षण करना सुविधाजनक रहता है।
9. नैतिक गुणों का विकास- समय-सारणी बालकों में अनेक नैतिक गुणों का विकास करती है। समय-सारणी से बालक व्यवस्थित कार्य करना सीखता है, वे समय के महत्त्व को जानने लगते हैं, उनमें नियमितता आती है, अनेक कार्यों की सुनियोजित व्यवस्था करना सीखते हैं तथा वे विभिन्न साधनों एवं समय के बीच समन्वय स्थापित करना जानते हैं।
10. अनुशासन स्थापना सम्भव– समय-सारणी द्वारा बालकों तथा शिक्षकों दोनों में ही अनुशासन स्थापित करने में सहायता मिलती है। समय-सारणी द्वारा बालकों तथा शिक्षकों को विभिन्न क्रियाओं में हर समय व्यस्त रखा जा सकता है।
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