मानवीय मूल्यों के विकास में समाज की भूमिका
Role of Society in Development of Human Values
मूल्य शिक्षा वर्तमान समय की प्रमुख आवश्यकता है। इस डूबते हुए समाज को तथा पतन के मार्ग पर चलते हुए विश्व को मूल्य शिक्षा के माध्यम से ही बचाया जा सकता है। मूल्य शिक्षा की प्रमुख चुनौतियों का सामना करने के लिये निम्नलिखित उपाय करने चाहिये, जिससे कि मूल्य शिक्षा के द्वारा आदर्श एवं आध्यात्मिकता से सम्पन्न शान्तियुक्त समाज की स्थापना की जा सके-
(1) समाज को भाषायी आधार पर विखण्डित होने से रोकने के लिये सभी व्यक्तियों को किसी एक भाषा के महत्त्व को समझते हुए उसे स्वीकार करना चाहिये, जिससे कि उसे राष्ट्र भाषा एवं विश्व की भाषा के रूप में स्वीकार किया जा सके।
(2) समाज में सर्वप्रथम मानवता एवं नैतिकता का प्रचार-प्रसार करना चाहिये, जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपने आपको सर्वप्रथम मानव रूप में स्वीकार करे। इसके बाद अपनी कोई अन्य पहचान स्वीकार करे।
(3) विभिन्न प्रकार के दार्शनिक विचारों को स्वीकार करने के स्थान पर आदर्शवादी दर्शन को स्वीकार किया जाय क्योंकि इसके माध्यम से ही वर्तमान समाज में व्याप्त कलह एवं विवाद को समाप्त किया जा सकता है। अनिष्टकारी एवं विलासितापूर्ण विचारों को अस्वीकार करना चाहिये।
(4) समाज में प्रजातान्त्रिक मूल्यों की शिक्षा प्रदान की जाय, जिससे सभी मानव अपने आपको एक समान समझें तथा सभी को अपने विचार अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता प्राप्त। इसके बाद मूल्य शिक्षा को प्रारम्भ किया जाय।
(5) भारतीय संस्कृति का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाय क्योंकि भारतीय संस्कृति में आदर्शवादी, नैतिकतावादी एवं मानवीय मूल्य प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इससे मूल्य शिक्षा के लिये आदर्श एवं सरल मार्ग तैयार हो जायेगा।
(6) समाज में जातिवाद के आधार पर विष घोलने वालों को दण्डित करना चाहिये। जातिवाद के आधार पर प्रदान की जाने वाली सुविधाओं को पूर्ण प्रतिबन्धित कर दिया जाय जिससे समाज में ऊँच-नीच की भावना पैदा नहीं हो।
(7) समाज में व्यापक सोच को विकसित करने वाले कार्यक्रम चलाये जायें। इसमें संचार साधनों की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। संचार साधनों का यह दायित्व है कि वह आदर्शवादिता एवं नैतिक आचरण वाले कार्यक्रमों का निर्माण तथा प्रदर्शन करें।
(8) समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं रूढ़िवादी परम्पराओं को समाप्त किया जाय तथा उच्च आदर्शवादी एवं सामाजिक हित करने वाली परम्पराओं को विकसित किया जाय, जिससे आदर्शवादी समाज का निर्माण हो सके तथा मूल्य शिक्षा के उपयोगी एवं सरल मार्ग तैयार हो सकें।
(9) समाज में दोनों प्रकार की पवित्रता का प्रचार-प्रसार किया जाय, जिससे व्यक्ति बाहरी पवित्रता के रूप में शाकाहारी भोजन एवं स्नान आदि को महत्त्वदे तथा आन्तरिक पवित्रता के लिये आदर्शवादी मूल्य एवं योग, ध्यान आदि को अपना सके।
(10) विभिन्न संस्कृतियों की अच्छी परम्पराओं को एकत्रित करके एक आदर्शवादी एवं सर्वग्राही संस्कृति का निर्माण किया जाय, ,जिसका प्रमुख उद्देश्य मानव का सर्वांगीण विकास हो तथा किसी भी प्रकार की अमानवीय एवं अनैतिक गतिविधियों का उसमें कोई स्थान न हो।
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