संवैधानिक विधि/constitutional law

उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक स्थिति | constitutional position of Supreme Court

उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक स्थिति

उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक स्थिति

उच्चतम न्यायालय की संवैधानिक स्थिति का विवेचन करते हुए उसके गठन का उल्लेख कीजिए। Examine the constitutional position of Supreme Court and describe its constitution.

उच्चतम न्यायलय की संवैधानिक स्थिति

संघात्मक संविधान का आधारभूत लक्षण संघ एवं राज्यों के मध्य शक्तियों का विभाजन है। शक्तियों का विभाजन एक लिखित संविधान के रूप में होता है। संविधान में लिखित शक्तियों का संघ एवं राज्यों द्वारा इमानदारी से पालन किया जाय और एक दूसरे के क्षेत्र में अतिक्रमण न किया जाय इस हेतु एक सर्वोच्च न्यायालय की भी व्यवस्था होती है। सर्वोच्च न्यायालय इस शक्ति विभाजन की रक्षा करता है और संघीय या राज्य सरकारों को अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर कोई कार्य करने से रोक सकता है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा संविधान की रक्षा तथा उसके अधिकारिक व्याख्याता के रूप में कार्य किया जाता है। यह संसद द्वारा निर्मित ऐसी प्रत्येक विधि को अवैध घोषित कर सकता है, जो संविधान के विरुद्ध हो। अपनी इस शक्ति के द्वारा वह संविधान की प्रभुता एवं सर्वोच्चता की रक्षा करता है। जब कभी संविधान के किसी अनुच्छेद के सम्बन्ध में कोई प्रश्न उठ खड़ा होता है तो उसका निर्णय अन्तिम एवं सर्वमान्य होता है।

सर्वोच्च न्यायायल संविधान को संरक्षण देने के साथ-साथ नागरिकों के अधिकारों तथा स्वतन्त्रता की रक्षा करता है। यदि भारत संघ की व्यवस्थापिका, कार्यकारिणी या अन्य कोई सत्ता नागरिकों के अधिकारों और स्वतन्त्रता में किसी प्रकार का हस्तक्षेप करती है तो सर्वोच्च न्यायालय बन्दी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा या उत्प्रेक्षण द्वारा, जब जैसी आवश्यकता हो वैसा आदेश जारी कर नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है। इस सम्बन्ध में श्री0एम0सी0 शीतलवाड ने अपने विचारों की अभिव्यक्ति निम्न प्रकार से की है-

संविधान के अन्तिम न्यायालय के रूप में चाहे वह मूल अधिकारों का क्षेत्र हो अथवा संघ और राज्यों के बीच उठने वाले प्रश्न अथवा देश की सदस्यता, कानूनों और प्रथाओं पर आधारित नियमों का क्षेत्र, राष्ट्र को आर्थिक और सामाजिक उन्नति के यन्त्र स्वरूप सर्वोच्च न्यायालय के प्रभाव पर बल देना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

संगठन- अनुच्छेद 124 उच्चतम न्यायालय की स्थापना का उपबन्ध करता है। अनुच्छेद 124 यह उपबन्ध करता है कि उच्चतम न्यायालय में एक मुख्य न्यायमूर्ति होगा और जब तक संसद विधि द्वारा अधिक संख्या विहित नहीं करती तब तक सात से अधिक अन्य न्यायाधीश होंगे संसद द्वारा 1956, 1960, 1977, 1986 और 2008 में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि की गयी। दिसम्बर 2008 में संसद द्वारा पारित विधेयक के पश्चात् वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायमूर्ति के अतिरिक्त 30 अन्य न्यायाधीश हैं।

अनुच्छेद 124(3) के अनुसार उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है परन्तु इस मामले में राष्ट्रपति को कोई वैवेकिक शक्ति नहीं प्राप्त है। अनुच्छेद 124(3) यह कहता है कि राष्ट्रपति न्यायाधीशों की नियुक्ति उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करने के पश्चात् जिसे वह इस प्रयोजन के लिए आवश्यक समझे, ही करेगा।

न्यायाधीशों की योग्यताएँ-

अनुच्छेद 124 के अनुसार, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश पद पर नियुक्ति के लिए किसी व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताएँ होनी आवश्यक हैं-

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. वह किसी उच्च न्यायालय अथवा दो या दो से अधिक न्यायालयों में लगातार कम से कम 5 वर्ष तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो।
  3. वह किसी उच्च न्यायालय में लगातार 10 वर्ष तक अधिवक्ता रह चुका हो।
  4. राष्ट्रपति की राय में वह पारंगत विधिवेत्ता हो।

न्यायाधीशों की पदावधि एवं महाभियोग-

उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश 65 वर्ष की आयु तक अपने पद पर बना रह सकता है। वह स्वयं भी त्याग-पत्र दे सकता है तथा राष्ट्रपति के आदेश द्वारा भी अपने पद से हटाया जा सकता है। राष्ट्रपति उसे सिद्ध दुराचार या असमर्थता के आधार पर हटा सकता है। राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए संसद में प्रस्ताव रखता है। ऐसा प्रस्ताव प्रत्येक सदन की सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा समर्थित होना चाहिए। ऐसा प्रस्ताव संसद के एक ही सा में प्रस्तावित और स्वीकृत होना चाहिए। ऐसी किसी प्रस्ताव के संसद में रख जाने तथा न्यायाधीश की असमर्थता की जांच तथा उसे प्रमाणित करने की प्रक्रिया संसद विधि द्वारा निर्धारित करेगी। इस प्रकार न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया बड़ी दुरूह है। संविधान इस प्रतिबन्ध द्वारा न्यायाधीशों को संरक्षण प्रदान करता है।

न्यायाधीशों के वेतन तथा विशेषाधिकार-

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को से वेतन दिये जायेंगे जो संविधान की द्वितीय अनुसूची में उल्लिखित हैं। वे ऐसे भत्तों और विशेषाधिकारों के अधिकारी होंगे जिन्हें संसद विधि द्वारा समय-समय पर निर्धारित करे। न्यायाधीशों के विशेषाधिकारों और भत्तों में उनकी नियुक्ति के पश्चात् कोई ऐसा परिवर्तन नहीं किया जायेगा जो उनके लिए अलाभकारी हो। वर्तमान में उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश को 1,00,000 रुपया तथा अन्य न्यायाधीशों को 90,000 रुपया प्रतिमाह वेतन मिलता है।

विशेषाधिकार-

न्यायाधीश को अपने सभी कार्यों पर निर्णयों के लिए आलोचना से मुक्ति प्रदान की गयी है, किन्तु न्यायालय के किसी निर्णय या किसी न्यायाधीश की किसी सम्पत्ति की शैक्षणिक दृष्टि से आलोचनात्मक विवेचना की जा सकती है। न्यायाधीशों पर यह आरोप नहीं लगाया जा सकता कि उन्होंने किसी प्रेरणा या हितवश एक विशेष प्रकार का निर्णय दिया। संसद के द्वारा भी महाभियोग के प्रस्ताव पर विचार करने के अतिरिक्त अन्य किसी समय पर न्यायाधीशों के आचरण पर विचार नहीं किया जा सकता।

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