राष्ट्रपति की शक्तियाँ- भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त राष्ट्रपति की शक्तियों को हम निम्नलिखित भागों में बांट सकता है-
(1) कार्यपालिका शक्ति –
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 53 में राष्ट्रपति की कार्यपालिका शक्तियों का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि, संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है। अनुच्छेद 77 के अनुसार, भारत सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्यवाही राष्ट्रपति अनुसार ही के नाम से की जाती है। राष्ट्रपति देश के समस्त उच्चाधिकारियों की नियुक्ति करता है, जैसे-प्रधानमन्त्री, उच्चतम तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, राज्यपालों, भारत के महान्यायवादी, भारत के नियन्त्रक महालेखा परीक्षक, लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्य इत्यादि। राष्ट्रपति को इन अधिकारों को उनके पद से हटाने का अधिकार भी प्राप्त है, परन्तु ऐसा उसे विहित प्रक्रिया के करना होगा।
(2) विधायिका शक्ति-
राष्ट्रपति संसद की विधायिका का एक आवश्यक अंग है। राष्ट्रपति संसद के सत्र को आहूत करता है और सत्रावसान करता है। राष्ट्रपति लोक सभा को भंग भी कर सकता है, किन्तु अनुच्छेद 85(1) के अनुसार, संसद के एक सत्र की अन्तिम बैठक और आगामी बैठक के लिए नियत तारीख के मध्य 6 माह से अधिक का अन्तर नहीं होना चाहिए। संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हेतु भेजा जाता है। राष्ट्रपति की अनुमति के पश्चात ही वह अधिनियम बनता है। अनुच्छेद 111 के अनुसार, यदि कोई विधेयक धन विधेयक नहीं है तो राष्ट्रपति उसे अपने सुझाव के साथ पुनःविचारार्थ वापस कर सकता है। यदि विधेयक संसद में संशोधन सहित या संशोधन रहित पुनः पारित हो जाता है और राष्ट्रपति की अनुमति के लिए आता है तो उस पर अपनी अनुमति देने के लिए बाध्य है। अनुच्छेद 3 के अनुसार, नये राज्यों के निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों को बदलने के लिए कोई विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना संसद में पेश नहीं किया जा सकता है। राष्ट्रपति संसद के समक्ष बजट प्रस्तुत करता है। राष्ट्रपति की विधायिनी शक्तियों में उसके अध्यादेश जारी करने की शक्ति सबसे महत्त्वपूर्ण शक्ति है। संविधान के अनुच्छेद 123 में यह उपबन्धित है कि जब संसद के दोनों सदन सत्र में न हों और राष्ट्रपति को इस बात का समाधान हो जाये कि इस प्रकार की परिस्थितियाँ विद्यमान हैं जिनमें तुरन्त कार्यवाही अपेक्षित है तो वह ऐसे अध्यादेश जारी कर सकेगा जो उन परिस्थितियों में अपेक्षित प्रतीत हों। राष्ट्रपति किसी भी समय अपने द्वारा जारी किये गये अध्यादेशों को लौटा सकता है। राष्ट्रपति द्वारा जारी किये गये अध्यादेशों को संसद के सदनों के समक्ष रखा जायेगा और संसद के पुनः समावेश होने की तारीख 6 सप्ताह की समाप्ति पर समाप्त हो जायेगी, जब तक कि 6 सप्ताह के पूर्व दोनों सदन उनके अनुमोदन के संकल्प को पारित न कर दें।
(3) सैनिक शक्ति-
राष्ट्रपति देश के सैन्य बलों का प्रधान सेनापति होता है। राष्ट्रपति युद्ध घोषित करने तथा शान्ति करने की शक्ति प्राप्त है, किन्तु इस शक्ति के प्रयोग को संसद विधि द्वारा विनियमित करती है। इस प्रकार राष्ट्रपति की सैनिक शक्ति उसकी कार्यपालिका शक्ति के अधीन है, जिसका प्रयोग वह मन्त्रि-परिषद् की मान्यता से करता है।
(4) न्यायिक शक्ति-
भारतीय संविधान में राष्ट्रपति को न्यायिक शक्तियाँ भी प्रदानकी गई है। संविधान का अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति को किसी अपराध के लिए दोष सिद्ध, किसी व्यक्ति के दण्ड को क्षमा, प्रविलम्बन, विराम या परिहार करने की अथवा दण्डादेश के निलम्बन, परिहार या लघुकरण करने की शक्ति प्रदान करता है। राष्ट्रपति को क्षमादान करने की शक्ति निम्नलिखित मामलों में प्राप्त है-
- यदि दण्ड अथवा दण्डादेश सेना न्यायालय ने दिया हो,
- दण्ड अथवा दण्डादेश ऐसे विषय से सम्बन्धित विधि के विरुद्ध अपराध है जिस विषय पर संघ कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है,
- उन सभी मामलों में जिनमें दण्डादेश मृत्यु का हो। राष्ट्रपति अपनी इस शक्ति का प्रयोग न्यायिक शक्ति के अन्तर्गत करता है। राष्ट्रपति अपनी इस शक्ति का प्रयोग भी मन्त्रिपरिषद् के परामर्श से करता है।
(5) कूटनीतिक शक्ति (Diplomatic Powers) –
चूँकि राष्ट्रपति देश का राष्ट्राध्यक्ष होता है इसलिए वह अन्य देशों के लिए राजदूतों और कूटनीतिक प्रतिनिधियों की नियुक्ति करता है और विदेशी राजदूतों और अन्य प्रतिनिधियों का स्वागत करता है। विदेशों से सन्धियाँ और अन्तर्राष्ट्रीय समझौते आदि राष्ट्रपति के नाम से किये जाते हैं। किन्तु इस प्रकार की सन्धियाँ या समझैते संसद के अनुसमर्थन के पश्चात् ही बन्धनकारी होते हैं।
(6) आपातकालीन शक्तियाँ (Emergency Powers) –
संविधान में राष्ट्रपति को कुछ आपात कालीन शक्तियाँ भी प्रदान की गई हैं। इन शक्तियों का उल्लेख आपात उपबन्ध के अध्याय के अन्तर्गत किया गया है। संविधान में तीन प्रकार की परिस्थितियों में आपात उद्घोषणा का उपबन्ध है-
(क) युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से उत्पन्न आपात, (अनुच्छेद 352)
(ख) राज्यों में संवैधानिक तन्त्र की विफलता से उत्पन्न होने वाला आपात, (अनुच्छेद 356)
(ग) वित्तीय आपात। (अनुच्छेद 360)
(7) अध्यादेश निर्गत करने की शक्ति –
इसी प्रकार राष्ट्रपति को संविधान के अनुच्छेद 123 में अध्यादेश को निर्गत करने की शक्ति प्रदान की गई है। इस शक्ति का उपयोग राष्ट्रपति तभी कर सकता है जब संसद के दोनों सदन सत्र में न हो और राष्ट्रपति को इस बात का समाधान हो जाय कि ऐसी विकट परिस्थिति उत्पन्न हो गई है जिसमें तत्काल कार्यवाही करना आवश्यक हो गया म्पादित करेगा।
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