साधारण विधेयक एवं धन विधेयक पारित करने में यदि लोकसभा तथा राज्य सभा में मतभेद है तो उसे स्थिति में क्या होगा? उपरोक्त के सम्बन्ध में लोक सभा तथा राज्यसभा का महत्व समझाइये। What will happen when there is difference of opinion between Lok Sabha and Rajya Sabha on passing of ordinary bill and money bill? Discuss the importance of Lok Sabha and Rajya Sabha in this regard.
संसद का सबसे प्रमुख कार्य देश के लिये विधि का निर्माण करना है। विधायी प्रक्रिया सदन में एक विधेयक के रूप में प्रारम्भ की जाती है।
साधारण विधेयक
संविधान के अनुच्छेद 107 में साधारण विधेयक के बारे में प्रावधान है। सैद्धान्तिक दृष्टि से साधारण या अवित्तीय विधेयकों के सम्बन्ध में दोनों सदनों की शक्तियाँ बराबर हैं। साधारण विधेयक दोनों सदनों में से किसी भी सदन में पेश किये जा सकते हैं। यदि दोनों सदनों में किसी विधेयक के बारे में मतभेद उत्पन्न हो जाय तो अनुच्छेद 108 के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलायी जा सकती है। संयुक्त बैठक में बहुमत के आधार पर उस विधेयक के सम्बन्ध में निर्णय लिया जायेगा। लोकसभा की सदस्य संख्या राज्यसभा की दुगुनी से भी अधिक होने के कारण संयुक्त बैठक में लोकसभा की ही इच्छानुसार कार्य होने की सम्भावना अधिक रहती है। इस प्रकार सैद्धान्तिक दृष्टि से राज्यसभा को साधारण विधेयकों के बारे में लोक सभा के बराबर शक्ति प्राप्त होते हुए भी व्यवहार में उसकी स्थिति लोकसभा से बहुत निर्बल होती है।
धन विधेयक
धन विधेयक के पारित करने की विशेष प्रक्रिया का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 109 में किया गया है। धन विधेयक सिर्फ लोक सभा में ही पेश किया जा सकता है, वह राज्य सभा में पेश नहीं किया जा सकता है। कोई धन विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना लोक सभा में प्रस्तावित नहीं किया जा सकता है। वस्तुत: यह मन्त्रिमण्डल की ही सिफारिश होती है किन्तु किसी कर के घटाने या समाप्त करने के लिए उपबन्ध करने वाले किसी संशोधन को प्रस्तावित करने के लिए इस खण्ड के अन्तर्गत राष्ट्रपति की सिफारिश की आवश्यकता नहीं होती है।
धन विधेयक लोक सभा द्वारा पारित किये जाने के पश्चात् राज्य सभा को उसकी सिफारिश के लिए भेजा जाता है। राज्य सभा को अपनी सिफारिश के साथ धन विधेयक को ।। दिनों के भीतर लोक सभा को वापस कर देना चाहिये। लोक सभा राज्य सभा की सिफारिश में से सबको या किसी को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। यदि लोक सभा राज्य सभा की सिफरिशों में से किसी को स्वीकार कर लेती है तो धन विधेयक दोनों सदनों से पारित समझा जाये। यदि लोकसभा राज्य सभा की सिफारिशों में किसी को भी स्वीकार नहीं करती है तो धन । विधेयक उसी रूप में दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जायेगा जिसमें कि वह लोक सभा द्वारा पारित किया गया था। यदि राज्य सभा 14 दिनों के भीतर धन विधेयक को वापस नहीं करती है तो उक्त अवधि की समाप्ति पर वह दोनों सदनों द्वारा उसी रूप में पारित समझा जायेगा जिसमें कि लोक सभा ने उसको पारित किया था। इस प्रकार राज्य सभा धन विधेयक को अधिक से अधिक 14 दिनों तक रोक सकती है (अनु० 109(2))।
धन विधेयक के सम्बन्ध में लोक सभा को अन्तिम शक्ति प्राप्त है। राज्य सभा को किसी धन विधेयक को अस्वीकार करने या संशोधित करने का कोई अधिकार नहीं प्राप्त है। अमेरिका में सीनेट को धन विधेयक में संशोधन करने का अधिकार प्राप्त है।
इस प्रकार दोनों सदनों से पारित होने के पश्चात् धन विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष उसकी अनुमति के लिए पेश किया जाता है। इस सम्बन्ध में सिवाय एक बात के सभी बातें साधारण विधेयक की ही तरह हैं, अर्थात् राष्ट्रपति या तो अपनी अनुमति देता है या रोक लेता है। धन विधेयक को राष्ट्रपति सदनों को पुनर्विचार के लिए नहीं लौटा सकता है। इससे यह स्पष्ट है कि राष्ट्रपति धन विधेयक पर अनुमति देने के लिए बाध्य है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि राज्य सभा को लोक सभा की तुलना में कम शक्तियाँ प्राप्त है और ऐसा होना नितान्त आवश्यक है। संसदीय व्यवस्था में अन्तिम निर्णय की शक्ति लोकप्रिय सदन को ही प्राप्त हो सकती है, न कि परोक्ष रूप से निर्वाचित द्वितीय सदन को। संविधान निर्माताओं के द्वारा राज्यसभा की कल्पना प्रथम सदन के सहायक और सहयोगी सदन के रूप में की गयी थी न कि प्रतिद्वन्दी सदन के रूप में और राज्य सभा के द्वारा सामान्यतया तो इसी रूप में आचरण किया गया है। लोकसभा के महत्व के बारे में डॉ० एम० पी० शर्मा ने कहा है कि “यदि संसद राज्य का सर्वोच्च अंग है तो लोकसभा संसद का सर्वोच्च अंग है। व्यवहारतः लोकसभा ही संसद है।” शर्मा की उपर्युक्त बात सत्य है परन्तु लोक सभा की तुलना में निर्बल होते हुए भी गज्य सभा की स्थिति और शक्तियों का महत्व है। पायली के शब्दों में “राज्यसभा एक निरर्थक, सदन या व्यवस्थापन पर रोक लगाने वाला सदन नहीं है। वास्तव में राज्य सभा शासनतंत्र का आवश्यक अंग है केवल दिखावे मात्र का दूसरा सदन नहीं है।”
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