संवैधानिक विधि/constitutional law

साधारण विधेयक की प्रक्रिया | procedure of ordinary bill

साधारण विधेयक की प्रक्रिया

साधारण विधेयक की प्रक्रिया

साधारण विधेयक के प्रस्तुतीकरण और पारित किये जाने की प्रक्रिया की विवेचना कीजिए। Discuss the procedure for introduction and passing of ordinary bills.

साधारण विधेयक- साधारण विधेयक किसी भी सदन, लोकसभा अथवा राज्यसभा में प्रस्तुत किये जा सकते हैं। साधारण विधेयकों को पारित होने के लिए निम्नलिखित स्तरों से गुजरना

1. प्रथम वाचन या प्रस्तुतीकण-

किसी विधेयक को प्रस्तुत करने के लिए सदन की अनुमति लेनी पड़ती है। इसके लिए विधेयक प्रस्तुत करने वाल को एक लिखित सूचना सात दिन पहले देनी पड़ती है। नियत तिथि को अध्यक्ष की अनुमति से वह सदस्य विधेयक को प्रस्तुत पड़ता है- करने की अनुमति का प्रस्ताव सदन में रखता है। सदन की अनुमति मिलने के बाद विधेयक सदन प्रस्तुत किया जाता है। विधेयक को अध्यक्ष इसके पश्चात् सरकारी गजट में प्रकाशित करवाता है। अध्यक्ष सदस्य के अनुरोध पर विधेयक को अनुमति प्रस्ताव पारित होने से पूर्व भी गजट में प्रकाशित करवा सकता है। विधेयक का प्रथम बार अनुमति के पश्चात् पुनःस्थापन ही विधेयक का प्रथम वाचन कहलाता है।

2. द्वितीय वाचन-

विधेयक सदन में पुनर्स्थापित करने के पश्चात् सदन में सदस्यों को विधेयक की प्रतियां वितरित कर जाती हैं तथा सामान्यत: दो दिन पश्चात् द्वितीय वाचन प्रारंभ होता है। यदि विधेयक अधिक महत्त्वपूर्ण है तो विधेयक का प्रस्तावक निम्नलिखित प्रस्ताव में से कोई एक प्रस्ताव सदन के सामने रखता है-

प्रथम चरण-

  1. विधेयक का शीघ्र ही वाचन किया जाना चाहिए।
  2. विधेयक को प्रवर समिति को सौंप देना चाहिए।
  3. विधेयक पर जनता की राय लेनी चाहिए।
  4. विधेयक को संयुक्त प्रवर संसदीय समिति को सौंप देना चाहिए।

इस आशय के किसी भी प्रस्ताव की स्वीकृति के पश्चात् अध्यक्ष उपयुक्त कार्यवाही करता है।

3. तृतीय वाचन-

जब विधेयक के सभी खंडों पर और अनुसूचियों पर यदि कोई हों, सदन विचार कर लेता है और उन्हें स्वीकृत कर लेता है तो मंत्री यह प्रस्ताव कर सकता है कि विधेयक को पास किया जाये। इस अवस्था में विधेयक के सम में या उसे अस्वीकृत किये जाने के लिए तर्क दिये जाने तक ही चर्चा सीमित रहती है और उससे आगे केवल उतने विस्तार में जाने की अनुमति होती है जितना कि पूर्णतया आवश्यक हो। उस अवस्था में केवल शाब्दिक, औपचारिक और आनुषंगिक संशोधन ही पेश किये जा सकते हैं। चूंकि विधेयक के सामान्य सिद्धांतों पर सहमति हो चुकी होती है और उसकी विस्तारपूर्वक जांच भी हो चुकी होती है, अतः तृतीय वाचन के दौरान लंबा विवाद शायद ही कभी होता है।

कोई साधारण विधेयक पास करने के लिए उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का साधारण बहुमत अपेक्षित होता है। इसलिए संसदीय शासन प्रणाली में, जहाँ बहुमत के समर्थन ही सरकार बनती है, कोई भी सरकारी विधेयक आमतौर से आसानी से पास हो जाता है। किंतु यह संभव है कि सरकार को लोकसभा में तो बहुमत प्राप्त हो, लेकिन राज्य सभा में न हो। ऐसी स्थिति में किसी विवादास्पद विधेयक को पास कराने के लिए सरकार को विपक्ष में कतिपय सदस्यों का समर्थन प्राप्त करना अनिवार्य हो सकता है।

जिस सदन में विधेयक पेश किया गया हो उसमें पास किये जाने के पश्चात् उसकी सहमति के लिए उस आशय के संदेश के साथ दूसरे सदन में भेजा जाता है। वहां विधेयक फिर इन तीनों अवस्थाओं से गुजरता है। दूसरा सदन इस प्रकार की कोई कार्यवाही कर सकता है-

  1. वह सदन उस विधेयक को पूर्णतया अस्वीकार कर सकता है जिससे दोनों सदनों के बीच गतिरोध उत्पन्न हो सकता है।
  2. वह विधेयक को उसी रूप में या संशोधनों के साथ पास कर सकता है। यदि वह पहले सदन द्वारा भेजे गये रूप में उसे पास कर देता है लिए उसके पास भेजा जाता है और यदि विधेयक संशोधनों के साथ पास किया जाता है तो विधेयक वह विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के पहले सदन के पास वापस भेज दिया जाता है। ऐसी स्थिति में यदि पहला सदन दूसरे सदन द्वारा प्रस्तावित संशोधनों से सहमत हो जाता है तो वह विधेयक, संशोधित रूप में, दोनों सदनों द्वारा पास किया माना जाता है। परन्तु यदि पहला सदन दूसरे सदन के प्रस्तावित संशोधन से सहमत नहीं होता, तो वह विधेयक एक बार फिर दूसरे सदन की सहमति के लिए उसके पास भेजा जाता है। यदि दूसरा सदन अपने संशोधनों पर फिर भी जोर देता है, तो एक गतिरोध उत्पन्न हो जाता है।
  3. यह भी हो सकता है कि वह सदन विधेयक पर कोई कार्यवाही न करे, अर्थात् उसे सभा पटल पर रहने दे। इस स्थिति में यदि विधेयक प्राप्त होने की तिथि से छह मास बीत जाते हैं तो यह मान लिया जाता है कि गतिरोध उत्पन्न हो गया है।

किसी विधेयक पर दोनों सदनों के बीच असहमति के कारण गतिरोध के मामले में एक असाधारण स्थिति उत्पन्न हो जाती है जिसका समाधान दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में होता है। संविधान के अधीन राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर ऐसी स्थिति में संयुक्त बैठक आमंत्रित करता है। ऐसी संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभाअध्यक्ष करता है। लोकसभाअध्यक्ष की अनुपस्थिति में इस बैठक की अध्यक्षता लोकसभा का उपाध्यक्ष करता है और अगर ये दोनों उपस्थित न हों तो राज्यसभा का उपसभापति अध्यक्षता करेगा। संयुक्त बैठक पर लोकसभा के प्रक्रिया नियम लागू होते हैं। संयुक्त बैठक में केवल ऐसे संशोधनों का प्रस्ताव किया जा सकता है जो विधेयक पास करने में विलंब के कारण आवश्यक हो गये हों। ऐसी बैठकों में फैसले दोनों सदनों के उपस्थित और मतदान करने वाले कुल सदस्यों के बहुमत द्वारा किये जाते हैं। इस प्रकार, लोकसभा की सदस्य संख्या अधिक होने के कारण उसका निश्चित ही प्रभुत्व रहता है।

जब दोनों सदनों द्वारा कोई विधेयक अलग-अलग या संयुक्त बैठक में पास कर दिया जाता है तो उसे राष्ट्रपति की अनुमति के लिए उसके समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। यदि राष्ट्रपति अनुमति रोक लेता है तो विधेयक का अंत हो जाता है। किंतु, चूंकि राष्ट्रपति एक संवैधानिक प्रधान होता है, जिसे मंत्रिपरिषद के परामर्श पर ही कार्य करना होता है, इसलिए सामान्यतया वह अपने मंत्रियों के परामर्श के विरुद्ध जाकर अनुमति को नहीं रोकेगा, किंतु वह सूचना, स्पष्टीकरण या परामर्श पर पुनः विचार करने की मांग कर सकता है और इस प्रयोजन के लिए विधेयक को सरकार के पास भेज सकता है (अनुच्छेद 72 (2) तथा 78 (ख)। राष्ट्रपति जैल सिंह ने डाक विधेयक के मामले में और राष्ट्रपति वेंकटरामन ने केवल एक वर्ष की सेवा के बाद संसद सदस्यों को पेंशन देने वाले विधेयक के मामले में संभवतया ऐसा ही किया था।

यदि राष्ट्रपति अनुमति प्रदान कर देता है तो अनुमति की तिथि से विधेयक अधिनियम बन जाता है। अपनी अनुमति देने से इंकार करने या अनुमति प्रदान कर देने के बजाय राष्ट्रपति विधेयक को इस संदेश के साथ वापस कर सकता है कि दोनों सदन उस पर पुनः विचार करें। परन्तु यदि सदन विधेयक में संशोधन करके या बिना संशोधन किये दूसरी बार उसे पास कर देते हैं और विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के लिए फिर उसके समक्ष प्रस्तुत किया जाता है तो उसे विधेयक पर अपनी अनुमति रोक लेने की शक्ति नहीं होगी।

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