शिक्षक शिक्षा क्या है? what is teacher education
शिक्षक शिक्षा क्या है? एक शिक्षक की भूमिका व महत्व के बारे में विस्तार पूर्वक समझाइए।
श्री जॉन एडम्स के शब्दों में- “शिक्षक मनुष्य का निर्माता है।”
दूसरे शब्दों में शिक्षक- शिक्षा क्या है इस प्रश्न पर विद्वानों में सब का अलग-अलग मत है। कुछ लोग इसका अर्थ केवल अध्यापक की शारीरिक क्रियाओं से न होकर मानसिक क्रियाओं से लगाते हैं। इसमे शिक्षा के मूल अधिकार जैसे राजनीतिक, मनोवैज्ञानिक, दार्शनिक, समाजशास्त्रीय व वैज्ञानिक समस्याओं के ज्ञान के साथ-साथ राष्ट्रीय शिक्षा के क्रमिक विकास तथा शिक्षा के प्रति अर्न्तदृष्टि का विकास करना है।
संक्षेप में शिक्षक शिक्षा के बारे में इस प्रकार समझाया गया है किसी भी विद्यालय को सुचारु रूप से संचालित करने तथा उसकी उन्नती एवं विकास में प्रधानाध्यापक, शिक्षक, विद्यार्थी तथा अन्य कर्मचारीगण सभी अपनी-अपनी भूमिका रखते हैं। इसके अतिरिक्त विद्यालय को भली प्रकार से चलाने के लिए भौतिक साधन जैसे विद्यालय- भवन, पाठ्यक्रम, पाठ्य पुस्तकें, निर्देशन, पाठ्य सहगामी क्रियाएँ, समय-सारिणी, सभी की भूमिका महत्वपूर्ण होती है परन्तु इस सत्य को भी झुठलाया नहीं जा सकता कि विद्यालय के संचालन में, उसकी गतिविधियों में शिक्षक का स्थान बहुत ही प्रतिष्ठित, गरिमामय तथा महत्वपूर्ण होता है।
विद्यालय की सभी योजनाओं को कार्यान्वित करने में शिक्षकों की बहुत ही अहम् और महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विद्यालय में बालकों अर्थात देश के भावी नागरिकों का निर्माण होता है और ये इस निर्माण के कर्णधार होते हैं। आज शिक्षा का उद्देश्य बालकों का केवल मानसिक या किसी एक पक्ष का विकास करना ही नहीं है बल्कि आज शिक्षा का उद्देश्य है बालकों के सभी पक्षों का विकास करके उनके व्यक्तित्व का सर्वागीण और सामंजस्य पूर्ण विकास करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति पूर्णतया शिक्षकों पर ही निर्भर करती है। शिक्षक ही यह शक्ति है जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बालकों पर अपना प्रभाव डालती है। यदि शिक्षक योग्य, अनुभवी और कर्त्तव्यपरायण हो तो बालक भी अवश्य ही उसी के अनुरूप बनेंगे। बालक के व्यक्तित्व के विकास में शिक्षक का अत्यधिक योगदान होता है। शिक्षक ही वह व्यक्ति है जो बालक के व्यक्तित्व का सर्वाङगीण विकास करें उसके अच्छे मूल्यों और आदर्शों को विकसित करता है जिससे कि वो आगे चलकर देश के उत्तम नागरिक बनें और देश की उन्नति एवं विकास में अपना योगदान दे सकें। शिक्षकों के कन्धों पर बहुत बड़ा उत्तरदायित्व होता है। वास्तव में, वे ही देश के भाग्य-निर्माता होते हैं।
फ्रोबेल ने बगीचे का उदाहरण देकर शिक्षक की भूमिका पर बहुत सुन्दर ढंग से प्रकाश डाला है। उनके अनुसार विद्यालय एक बगीचे के समान होता है, बालक छोटे-छोटे पौधे के समान। वह पौधों की देखभाल बहुत और शिक्षक की भूमिका एक कुशल माली के रूप में होती सावधानी से करता है। उन्हें हरा-भरा रखता है तथा सही दिशा में विकसित होने का अवसर देता है ताकि वह सौंदर्य और पूर्णता प्राप्त कर सके। शिक्षक भी यही कार्य करता है। वह अपने ज्ञान, अनुभव और कौशल द्वारा बालकों के वांछनीय एवं उत्तम विकास में सहायता करता है।
विद्यार्थी जिस ज्ञान एवं सत्यों की प्राप्ति करता है वे विश्वसनीय हैं या नहीं इसकी परीक्षा के लिए भी शिक्षक की आवश्यकता होती है। प्रत्येक विद्यार्थी की बुद्धि इतनी परिपक्व नहीं होती कि वह अपने किए गए कार्यों की जाँच स्वयं भली प्रकार से कर सके। इसके लिए भी शिक्षक का होना आवश्यक है। इस प्रकार बालक के मार्ग-दर्शक के रूप में कार्य करता है।
शिक्षक की भूमिका और उसके महत्व के सम्बन्ध में विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों ने अपने विचार प्रकट किए हैं जिनका उल्लेख नीचे किया जा रहा है-
प्रो. हुमायूँ कबीर- “अच्छे अध्यापकों के बिना सर्वोत्तम शिक्षा-पद्धति का भी असफल होना आवश्यम्भावी है। अच्छे अध्यापकों द्वारा शिक्षा-पद्धति के दोषों को भी दूर किया जा सकता है।
डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार- “अध्यापक का समाज में बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। वह उस धुरी के समान है जो बौद्धिक परम्पराओं तथा तकनीकी क्षमताओं को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तान्तरित करता है और सभ्यता की ज्योति को प्रज्वलित रखता है।
माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार- “शिक्षा के पुनर्निर्माण में सबसे अधिक महत्वपूर्ण तत्व शिक्षक उसे व्यक्तित्क गुण, उसकी शैक्षिक योग्यताएँ, उसका व्यावसायिक प्रशिक्षण तथा उसका स्कूल एवं समुदाय में स्थान, ही है। विद्यालय की प्रतिष्ठा तथा समाज के जीवन पर उसका प्रभाव नि:सन्देह रूप से उन शिक्षकों पर निर्भर है जो कि उस विद्यालय में कार्य कर रहे हैं।”
एच. जी वेल्स के शब्दों में- “इतिहास का वास्तविक निर्माता अध्यापक ही होता है।”
उपरोक्त विवरण से शिक्षा की प्रक्रिया में शिक्षक का महत्व स्पष्ट हो जाता है। विद्यालय का भवन, साज-सज्जा तथा अन्य उपकरण कितने भी अच्छे हों, प्रधानाध्यापक कितना भी दक्ष एवं कुशल प्रशासक हो परन्तु यदि शिक्षक योग्य एवं कुशल नहीं हैं, उनमें अपने कार्य के प्रति सच्ची लगन, ईमानदारी एवं समर्पण के भाव नहीं है तो विद्यालय में शिक्षाप्रद वातावरण का निर्माण नहीं किया जा सकता। विद्यालय की व्यवस्था, उसका संचालन भी ठीक प्रकार से नहीं हो सकता।
विद्यालय की इमारत उसके उपकरण तथा वातावरण चाहे कितने ही अच्छे प्रधानाचार्य और समिति कितनी ही अच्छी क्यों न हो, यदि उस विद्यालय में कुशल शिक्षक नहीं है, उनके अपने कार्य के प्रति विश्वास नहीं है, विद्यालय में वे अपना निकट का सम्बन्ध नहीं मानते तथा व्यवसायिक कुशलता तथा पेशे के प्रति आस्था का अभाव है तो उस विद्यालय में भौतिक सुविधाएँ चाहे जैसी भी हों शिक्षा का वातावरण अनुकूल नहीं बन सकता और उस विद्यालय में निकले हुए छात्र समाज के लिए भार होंगे। इसीलिए कहा जाता है कि शिक्षक का व्यक्तित्व वह धुरी है जिस पर शिक्षा व्यवस्था घूमती हुई नजर आती है।
प्राचीन काल में शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षक को बहुत अधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। उस समय शिक्षक का स्थान प्रमुख था तथा बालक का स्थान गौड़ था परन्तु आज स्थिति बदल गयी है। आज बालक शिक्षा का केन्द्र माना जाता है। आज के शिक्षाशास्त्री बाल केन्द्रित शिक्षा पर बल देते हैं। यद्यपि आज शिक्षा में बालक का स्थान मुख्य है, आज बालक की जन्मजात महत्व को स्वीकार करते हैं। अथवा शक्तियों के विकास के शिक्षा माना जाता है फिर भी शिक्षक का उत्तरदायित्व, उसका महत्व आज भी कम नहीं है। शिक्षक के बिना शिक्षा की प्रक्रिया चल सकती है इस बात की हम कल्पना भी नहीं कर सकते। यदि अध्यापक ही योग्य नहीं होंगे तो शिक्षा की प्रक्रिया भली-भाँति नहीं चल सकेगी। आज शिक्षक के लिए केवल अपने विषय का ज्ञान होना ही पर्याप्त नहीं है वरन् बच्चों को समझने के लिए आज उसे बाल मनोविज्ञान का ज्ञान होना भी परम् आवश्यक है। आज शिक्षक का कार्य केवल अपने व्यक्तित्व के बालकों के आकर्षित करना ही नहीं है वरन् इसके साथ-साथ आज उसका कार्य ऐसे वातावरण का निर्माण करना भी है जिसमे रहकर बालक अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके साथ ही साथ समाज के कल्याण और राष्ट्र की उन्नति एवं विकास में भी अपना योगदान दे सकें। यही कारण है कि आज विश्व के समस्त राष्ट्र शिक्षा की प्रक्रिया में शिक्षक के महत्व को स्वीकार करते हैं।
एक शिक्षक की विशेषताएँ-
एक अच्छे शिक्षक की विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
- विषय पर पूर्ण अधिकार
- जिज्ञासा और अध्ययनशीलता
- शिक्षण कला का ज्ञान
- अभिनव शिक्षण पद्धतियों और प्रयोगों से परिचित
- वाणी से ओज और स्पष्टता
- आकर्षक शारीरिक व्यक्तित्व
- विनोद प्रियता
- अन्य विषयों पर सामान्य ज्ञान
- दृढ़ चरित्र और नैतिकता
- पेशे में दृढ़ निष्ठा और स्वाभिमान
- पाठ्य सहगामी क्रियाओं में विशेष रुचि
- आदर्शवादिता
- निष्पक्षता
- प्रभावोत्पादक भाषण शक्ति
- सत्यप्रेम
- नेतृत्व शक्ति
- छात्रों से पुत्रवत् व्यवहार
- पाठ्य विषयों पर अधिकार
- अनुगामिता
- उच्च कोटि की नैतिकता।
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