सामाजिक मानवशास्त्र की अध्ययन वस्तु एवं विषय क्षेत्र
सामाजिक मानवशास्त्र की उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर इस विषय के अध्ययन क्षेत्र के विषय में विद्वानों में काफी मतभेद है। वस्तुतः सामाजिक मानव शास्त्र सामाजिक परिस्थितियों में मानव-व्यवहार का अध्ययन करता है, जैसे की बील्स एवं हाइजर ने लिखा है-
“वह स्वयं संस्कृति से ही सम्बन्धित है, चाहे वह प्रस्तर युग के आदिम मानव से सम्बन्धित हो अथवा आजकल के यूरोपीय नगरों के रहने वालों से सम्बन्धित हो।”
अतः सामाजिक मानव शास्त्र की विषय सामग्री आदिम समुदायों में व्यक्तियों के व्यवहार से सम्बन्धित है। परन्तु इसकी विषय वस्तु का विश्लेषण विद्वानों में किसी ने सूक्ष्म रूप में व किसी ने विशाल रूप से किया है। वास्तव में सामाजिक मानव शास्त्र की विषय-वस्तु अत्यन्त विस्तृत है।
प्रो. रैडक्लिफ ब्राउन, नैडल और पिंडिगटन आदि विद्वान सामाजिक मानव शास्त्र के क्षेत्र को निश्चित रूप से आदिकालीन समाज तथा मनुष्यों तक ही सीमित कर देते हैं जबकि इवान्स-प्रिटचार्ड के शब्दों में सामाजिक मानव शास्त्र मुख्यतः अपने को आदिम समाजों के अध्ययन में लगती है। प्रो. इवान्स इस बात से सहमत नहीं हैं। यही मत प्रो. ब्राउन भी प्रस्तुत करते हैं। परन्तु इस मत के साथ ही आदिम सामाजिक व्यवस्थाओं को और सम्मिलित कर लेते हैं, जिससे तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकें। प्रो. नैडल सामाजिक व्यवस्था को सामाजिक मानव शास्त्र का न्याय संगत अध्ययन विषय मानते हुए भी दोनों विद्वानों के अर्थ से समहत नहीं है आप संस्कृति को सामाजिक मानव शास्त्र का उचित प्रसंग स्वीकृत करते हैं। प्रो. दिडिगटन के अनुसार “सामाजिक मानव शास्त्री समकालीन आदिम समुदायों की संस्कृतियों का अध्ययन करते हैं।”
उपरोक्त सभी विद्वानों के विभिन्न मतों को देखते हुए सर्वप्रथम इस विचार पर अधिक ध्यान देना है कि सामाजिक मानव शास्त्री किसका अध्ययन करता है। सामाजिक मानव शास्त्री ने देश व काल की सीमाओं में अपने को न बाँधते हुए सामाजिक जीवन के विविध पक्षों तथा प्रत्येक युग में देश व काल के समाजों का वर्णन तथा विश्लेषण किया है और करते हैं। किन्तु वे अधिकतर आदिम समाजों के अध्ययन में अधिक प्रयत्नशील होते हैं, क्योंकि आदिम समाज छोटे, सरल और विभिन्नता रहित होते हैं, इनका अध्ययन भी सुविधापूर्वक, सुनिश्चित तथा सुसंगठित रूप में किया जा सकता है। इस अध्ययन से प्राप्त अनुभवों को आधुनिक जटिल समाजों के अध्ययन में अधिक सहायक माना गया है।
दूसरे यह सामाजिक मानव शास्त्र सम्पूर्ण संस्कृति का अध्ययन है। यह कार्य सांस्कृतिक मानव शास्त्र का है। इस तरह सांस्कृतिक मानव शास्त्र का क्षेत्र अधिक विस्तृत है। सामाजिक मानव शास्त्र उस विस्तृत विज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण शाखा है तथा इस रूप में केवल संस्थागत सामाजिक, व्यवहार, सामाजिक संगठन तथा व्यवसायों का अध्ययन करते हैं। तीसरे, सामाजिक मानव शास्त्र क्योंकि सम्पूर्ण संस्कृति का अध्ययन नहीं हैं इसी कारण समस्त समाज का अध्ययन या तुलना भी सम्भव नहीं है। इस सन्दर्भ में प्रो के.आर. पोपर (K.R.) Popper) ने उचित ही लिखा है कि यदि हमें किसी चीज का अध्ययन करना है तो हमें उसके कुछ पहलुओं को चुनना ही होगा। हमारे लिये यह सम्भव नहीं है कि हम संसार के समग्र भाग का या प्रकृति के समग्र भाग का अवलोकन करें या उसका वर्णन करें, क्योंकि समस्त वर्णन ही आवश्यक रूप में निर्वाचनात्मक होता है।”
सामाजिक मानव शास्त्र उन सामाजिक संस्थागत सम्बन्धों, व्यवहारों और व्यवस्थाओं का अध्ययन करता है जो मानव को एक प्रकार का व्यवहार करने और सोचने को प्रेरित करते हैं। सामाजिक-मानव शास्त्री अवलोकन पर अधिक बल देते हैं। ये विद्वान निष्कासन पर गहन अध्ययन पर भी अधिक बल देते हैं। इनका कार्य वस्तुओं की अथवा घटनाओं की खोज करना है।
प्रो. इवान्स प्रिटचार्ड सामाजिक मानव शास्त्र के अध्ययन क्षेत्र की निम्न विशेषतायें बताते हैं-
(1) मानव शास्त्र सभी प्रकार के मानव समाजों का अध्ययन करता है। उसमें भी अधिकतर आदिम समाजों के अध्ययन में ही अधिक ध्यान केन्द्रित करता है। आदिम समाजों का अध्ययन
करते समय सामाजिक मानव शास्त्री उन समाजों के मनुष्यों की भाषा, कानून, धर्म, राजनैतिक और सामाजिक संस्थाओं, आर्थिक संगठन आदि का अध्ययन करता है।
(2) यह शास्त्र किसी न किसी सामाजिक संस्था, व्याख्या और सम्बन्ध के विषय में भी अध्ययन करता है जो वास्तविक तथ्यों पर आधारित होते हैं। अतः इस विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र का भौगोलिक विस्तार समस्त पृथ्वी पर होता है चाहे वह समाज किसी भी राष्ट्र का क्यों न हों। इसके अध्ययन विषयों के अन्दर राजनैतिक संस्थाओं, धार्मिक संस्थाओं, रंग, लिंग व स्थिति पर आधारित वर्ग-विभेद, आर्थिक संस्थाओं, वैधानिक या अर्द्धवैधानिक संस्थाओं, विवादों और साथ ही साथ सामाजिक अनुकूलन और सम्पूर्ण सामाजिक संगठन या संरचना का अध्ययन करता है। इसके अतिरिक्त दूसरे विशेष विषयों जैसे जादू, लोक कथा, आचार, कला, विज्ञान आदि का अध्ययन भी करता है।
(3) सामाजिक मानव शास्त्र सामाजिक संस्थागत व्यवहारों, सम्बन्धों तथा संस्थाओं का शास्त्र है। यह समाजों की जनसंख्या, उनकी आर्थिक, व्यवस्था, राजनैतिक और वैधानिक संस्थाओं, उनके परिवार, नातेदारी व्यवस्था, धर्म का अंशों के रूप में अध्ययन करता है।
(4) यह शास्त्र संस्कृतियों का नहीं वरन् समाजों का अध्ययन करता है। सामाजिक मानव शास्त्र में सामाजिक सम्बन्धों तथा सामाजिक संरचना के अध्ययन की प्रमुखता होती है। प्रत्येक सामाजिक जीवन में अनेक एकरूपताएँ तथा नियमावस्थाएँ होती हैं। उसी के आधार पर सामाजिक व्यवस्था सम्भव होती है और समाज के विभिन्न अंगों में एक श्रृंखला बन जाती है। यही सामाजिक संरचना होती है।
सामाजिक मानव शास्त्र का कार्य केवल समाज की विभिन्न सामाजिक व्यवस्थाओं के अन्तर्गत जो सामाजिक क्रियायें होती है उनका अध्ययन करना एवं उन्हें समझना है।
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