दुर्खीम का आत्महत्या का सिद्धांत What is suicide – Émile Durkheim
आत्महत्या एक सामाजिक तथ्य है? विवेचना कीजिए।
दुर्खीम का आत्महत्या का सिद्धांत – दुर्खीम की सामाजिक समस्याओं पर विचार करने की दृष्टि से अन्य विज्ञानों से भिन्न है। समस्या के कारण तक अपने को सीमित रखता है बल्कि वह समाज, समूह, सामूहिकता की परत-दर-परत खोलता है। किसी एक सामान्य कारण पर अपने को केन्द्रित नहीं करता जैसा कि अन्य सामाजिक वैज्ञानिक प्रायः करते हैं। ‘आत्महत्या’ सम्बन्धी उसके विचार उसकी प्रसिद्ध कृति “आत्महत्या’ में है। आत्महत्या जैसी ज्वलन्त समस्या पर उसने समग्र रूप से समाज का अध्ययन किया है। इस समस्या की तह में मूल पोषक तत्व क्या है उन्हें खोजने का यथासम्भव प्रयास किया हैं वह यह मानता है कि आत्महत्या एक सामाजिक घटना है। इसीलिए वह अपने पूर्ववर्ती विद्वानों के आत्महत्या सम्बन्धी विचारों को सीधे नकार देता है जैसे वंशानुक्रमण, जलवायु, मनोवैज्ञानिक कारक, वैयक्तिक कारक आदि। दुर्थीम इनसे सम्बन्धित विचारों और सिद्धान्तों से सहमत नहीं है बल्कि इनका खण्डन-मण्डन करते हैं। वह यह कहता है कि इन कारकों के माध्यम से आत्महत्या जैसी गंभीर समस्या के मूल कारणों का पता नहीं लगाया जा सकता है। आत्महत्या विषय को चुनने के सम्बन्ध में कहता है कि क्योंकि हम प्रतिदिन की महत्वपूर्ण घटनाओं से अधिक परिचित होते रहते हैं उनमें आत्महत्या मुख्य है। दुर्खीम का मत है कि आत्महत्या एक सामाजिक तथ्य है। इसलिए इसके कारणों की खोज सामाजिक संरचना और संगठन में करनी चाहिए।
दुर्खीम आत्महत्या की समसया पर विचार करते समय यह आगाह भी करते हैं क्योंकि इस शब्द का प्रयोग आम ज़िन्दगी में सामान्य है। इसके अर्थ को भी जनता सामान्य रूप में ही लेती है। पर ऐसा है नहीं। वे लोग और छात्र जो आत्महत्या को प्रचलित अर्थ में लेते हैं वे गलतफहमी में रहते हैं। इसलिए “आत्महत्या” का अध्ययन करते समय इसके सामान्य अर्थ का प्रयोग न करें। हमें आत्महत्या का अध्ययन करते समय, सावधानीपूर्वक उन तथ्यों का क्रम और सूची तैयार कर लेनी चाहिए जिनका हमें अध्ययन करना है। उदाहरण के लिए ऐसे विशेष गुण जो दूसरी मृत्युयों में देखने को नहीं मिलते किन्तु यह ऐसे भी गुण हैं जो उन मृत्युयों में देखने को मिलते हैं जिन्हें सामान्यतः व्यक्ति आत्महत्या कहते हैं। यदि इस प्रकार के गुणों की खोज की जा सके तो हम आत्महत्या में अन्तर्निहित उन समस्त गुणों को भी खोज सकते लेंगे जो आत्महत्या की घटना को अन्य प्रकार की मृत्यूयों से पृथक कर देगे। कुछ इस प्रकार की भी मृत्यु होती है जो के. कर्ता के स्वयं के प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष काम से जुड़े नहीं होते हैं। मृत्यु का कारण हमारा बाहरी समाज है न कि हमारे अन्दर, ये तभी प्रभावशाली होते हैं जब हम उनके कार्य में हस्तक्षेप करते हैं। दुखीम आत्महत्या के सिद्धान्त को प्रभावशाली ढंग से अनेक स्थानों पर समझाता है जैसे एक ही तरह की व्यवहार-व्यवस्था के माध्यम से विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों की पूर्ति की जा सकती है। यदि मात्र अपने को मौत के हवाले करने का संकल्प आत्महत्या है तो एक सैनिक अपने रेजीमेट की रक्षा हेतु अपना बलिदान करता है अथवा कोई व्यापारी दिवालियापन से बचने के लिए आत्महत्या करता है तो इसे क्या आत्महत्या कहेंगे। इन उपर्युक्त घटनाओं में व्यक्ति का मात्र लक्ष्य आत्महत्या ही न होकर कुछ और भी है। इस कुछ ओर की खोज होनी चाहिए। इसी के द्वारा आत्महत्या के नवीन सामाजिक तथ्यों की जानकारी हो सकेगी।
इस तरह दुर्खीम कहते हैं कि “वास्तव में आत्महत्या उस अवस्था में निहित होती है जबकि व्यक्ति उस घातक कार्य को करने के समय उसके स्वाभाविक परिणम को निश्चित रूप से जानता है। यह निश्चितता कम अथवा अधिक हो सकती है। कुछ सन्देह को सम्मिलित करें आपको एक नूतन तथ्य की प्राप्ति होगी जो कि आत्महत्या तो नहीं बल्कि आत्महत्या से बहुत कुछ मेल के खाता होगा क्योंकि उन दोनों में मात्र, मात्रा का अन्तर होगा।
आत्महत्या की घटना क्योंकि एक वैयक्तिक क्रिया है जो वैयक्तिक कारकों के कारण है। होती है इसलिए इसकी विवेचना भी व्यक्ति के अपने चरित्र, स्वभाव, आदि के आधार पर की जाती है। यदि विभिन्न प्रकार की आत्महत्याओं को पृथक्-पृथक् घटनाओं के रूप में न मानकर एक समाज में विशेष में और एक समय विशेष में सभी प्रकार की आत्महत्याओं की व्याख्या समग्र रूप में की जाय। तो यह स्पष्ट होगा कि यह समग्रता स्वतन्त्र इकाइयों की एक योग मात्र नहीं है यह एक ऐसा नया तथ्य है जिसकी अपनी कुछ एकता, विशेषता तथा प्रकृति है। यह प्रकृति सही मायने में बुनियादी रूप में | सामाजिक है। दुर्खीम यह भी कहते हैं कि यदि एक लम्बी अवधि में घटित आत्महत्याओं की घटनाओं की विवेचना की जाय तो उसमें अनेक प्रकार के परिवर्तन देखने को मिलते हैं। इसका कारण यह भी है कि इस लम्बी अवधि में समाज के संरचनात्मक ताने-बाने में अनेक प्रकार के परिवर्तन हो जाते हैं। अपने इस तथ्य के पक्ष में प्रमाण देते हुए योरोपियनं समाज की आत्महत्याओं की घटनाओं का विवरण प्रस्तुत करता है। इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि इतिहास के प्रत्येक स्तर पर प्रत्येक समाज में आत्महत्या की निश्चित तरह की समानता होती है।
दुर्खीम के इस निष्कर्ष से यह भी निष्कर्ष निकलता है कि विभिन्न विषयों के विद्वान जो आत्महत्या की घटनाओं के पीछे एक विशेष प्रकार के कारण अथवा मानसिकता को उत्तरदायी मानते हैं वे त्रुटिपूर्ण है क्योंकि समय, काल और सामाजिक परिस्थितियाँ समयानुसार बदल जाती हैं। अस्तु आत्महत्या के पर्यावरण सम्बन्धी कारक भी परिवर्तित होते रहते हैं। इनकी पृष्ठभूमि में आत्महत्या का आधारभूत कारण सामाजिक है फिर भी प्रत्येक समाज की अपनी विशेषताएँ हैं जिनमें आत्महत्या की घटनाओं की प्रवृत्ति और प्रकृति समान न होकर असमान होती है। दुर्खीम का विचार है कि “सामाजिक पर्यावरण की कुछ अवस्थाओं से आत्महत्या का सम्बन्ध उतना ही प्रत्यक्ष और स्थिर है जितना कि प्राणिशास्त्रीय एवं भौतिक लक्षणों वाले तथ्यों से इसका सम्बन्ध अनिश्चित तथा अस्पष्ट देखा गया है।” दुर्खीम आत्महत्या शब्द का प्रयोग उन सभी मृत्युयों के लिए किया जाता है जो कि स्वयं मूत व्यक्ति के किसी सकारात्मक अथवा नकारात्मक ऐसे कार्य के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष परिणाम होते हैं जिनके सम्बन्ध में वह जानता है कि वह कार्य इसी परिणाम को उत्पन्न करेगा।
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