गुरु तेग बहादुर का जीवन परिचय (Guru Tegh Bahadur Biography In Hindi)- ये सिखों के महान नौवें गुरु थे। इनका जन्म 1 अप्रैल, 1621 में हुआ। जन्मकालिक नाम त्यागमल दिया गया था। इन्हें गुरु हर किशन के महाप्रयाण के बाद नवां गुरु का पद प्रदान किया गया था। गुरु के रूप में ये 1665 से 1675 तक सक्रिय रहे। इनके पिता का नाम गुरु हरगोविंद था और माता का नाम नानकी। इनके पुत्र का नाम गोविंद था, जो आगे चलकर सिख संप्रदाय के 10वें गुरु भी बने थे। इन्हें सच्चा पातशाह का खिताब प्राप्त हुआ था। इन्हें गुरुपद 20 मार्च, 1665 को प्राप्त हुआ था। गुरु तेग बहादुर वीर और दिलेर सैनिक की आत्मा रखते थे। इन्होंने सिख कौम को गौरव प्रदान किया।
Biography of Guru Tegh Bahadur in Hindi
टॉपिक | गुरु तेग बहादुर का जीवन परिचय |
लेख प्रकार | जीवनी |
साल | 2023 |
जन्म | 1 अप्रैल 1621 |
जन्म स्थान | अमृतसर, पंजाब, मुगल साम्राज्य |
मूस नाम | त्याग मल |
मृत्यु | 24 नवंबर 1675 |
मृत्यु स्थान | दिल्ली, मुगल साम्राज्य |
पिता का नाम | गुरु हर गोबिंद |
माता का नाम | माता नानकी |
विवाह | 1633 |
पत्नी का नाम | माता गुजरी |
पूर्ववर्ती | गुरु हर कृष्ण |
पुत्र का नाम | गुरु गोबिंद सिंह |
धर्माध औरंगजेब उस समय संपूर्ण हिंदुस्तान को मुसलमान देश बनाने के लिए सभी धर्म के लोगों पर नाना प्रकार के अत्याचार करके इन्हें धर्म परिवर्तन करने पर विवश कर रहा था।
इफ्तिखार खान उस समय मुगल सल्तनत का शासक बनकर कश्मीर में हिंदुओं को मुसलमान बना रहा था। इसके लिए वह लालच और ताकत दोनों ही उपयोग कर रहा था। तब कश्मीर के हिंदू मदद प्राप्त करने के लिए गुरु तेगबहादुर के पास आए। वे सभी कश्मीरी पंडित थे और अपने धर्म की आन रखना चाहते थे।
इन्होंने कश्मीरी पंडितों के नुमाइंदों से कहा कि वे दिल्ली जाकर औरंगजेब से कहें कि हमारे नेता गुरु तेग बहादुर हैं। यदि वे इस्लाम धर्म अंगीकार कर लें तो हम भी मुसलमान बन जाएंगे। यह सुनते ही औरंगजेब ने गुरु की गिरफ्तारी का हुक्म सुना दिया।
जबकि दूसरी तरफ गुरु अपने पांच शिष्यों भाई मतिदास, भाई दयाला, भाई जेता, भाई उदा और भाई गुरुदित्ता के साथ दिल्ली की तरफ रवाना हो गए। इन्हें गिरफ्तार करके मुसलमान बनने के लिए लालच दिए गए, भयभीत किया गया। भाई मतिदास को आरे से चिराया गया, भाई दयाला को देग में उबाला गया, किंतु गुरु जी सहित कोई भी इस्लाम अंगीकार करने के लिए तैयार नहीं हुआ। इस पर 1675 में चांदनी चौक, दिल्ली में गुरु तेग बहादुर का शीश काट दिया गया। जिस स्थान पर धर्मरक्षा के लिए गुरु ने अपना बलिदान दिया, वह स्थान अब ‘शीशगंज’ गुरुद्वारा के नाम से विख्यात है। जहां पर इनका अंतिम संस्कार हुआ, वह गुरुद्वारा ‘रकाबगंज’ के नाम से जाना जाता है। इनके बलिदान ने सिखों को मुगलों के अत्याचारों का प्रतिकार करने को प्रोत्साहित किया। इनकी वाणी, जो ब्रज भाषा में है, गुरु ग्रंथ साहब में संगृहित है और उसमें भक्ति तथा वैराग्य के भाव रचे बसे हैं।
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