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परामर्श की परिभाषा | परामर्श प्रक्रिया की आवश्यकता

परामर्श की परिभाषा
परामर्श की परिभाषा

परामर्श की परिभाषा 

प्राचीन काल से ही परामर्श मानव समाज में किसी-न-किसी रूप में विद्यमान रहा है। समय-समय पर अनेक विद्वानों ने इसकी परिभाषा करने का यत्न किया है। वेबस्टर के अपने शब्द-कोश में परामर्श का अर्थ ‘पूछताछ, पारस्परिक तर्क-विर्तक या विचारों का पारस्परिक आदान-प्रदान बताया है। वेबस्टर द्वारा दिये गये उपर्युक्त अर्थ से परामर्श का स्वरूप स्पष्ट नहीं हो पाता।

रॉबिन्सन ने परामर्श के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए परामर्श की व्याख्या इस प्रकार की है- ” परामर्श शब्द दो व्यक्तियों के सम्पर्क की उन सभी स्थितियों का समावेश करता है जिनमें एक व्यक्ति को उसके स्वयं के एवं पर्यावरण के बीच अपेक्षाकृत प्रभावी समायोजन प्राप्त करने में सहायता की जाती है। “

हम्फ्री तथा ट्रेक्सलर ने परामर्श की परिभाषा का आशय कर्मचारियों के द्वारा उपबोध्य व्यक्तियों से सम्पर्क स्थापित करने और उनकी समस्याओं के समाधान में सहायता किये जाने से है।

बरनार्ड तथा फुलमर ने परामर्श के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए लिखा है- “परामर्श को उस अन्तर- वैयक्तिक सम्बन्ध के रूप में देखा जा सकता है जिसमें वैयक्तिक तथा सामूहिक परामर्श के साथ-साथ वह कार्य भी सम्मिलित है जो अध्यापकों एवं अभिभावकों से सम्बन्धित है और जो विशेष रूप से मानव सम्बन्धों के भावात्मक पक्षों को स्पष्ट करता है।”

इस प्रकार बरनार्ड तथा फुलमर्श की व्याख्या मनाव सम्बन्धों के सन्दर्भ में करते हैं। इनके अनुसार – “बुनियादी तौर पर परामर्श के अन्तर्गत व्यक्ति को समझना और उसके साथ कार्य करना होता है जिससे कि उसकी अनन्य आवश्यकताओं अभिप्रेरणाओं और क्षमताओं की जानकारी हो और फिर उसे इनके महत्त्व को जानने में सहायता दी जाय।”

परामर्श प्रक्रिया की आवश्यकता (Need of Counselling Process)

परामर्श में मूल आवश्यकता आमने-सामने बैठकर समस्याओं को समझने और हल करने की है। इसमें परामर्श प्राप्त करने वाला तथा परामर्श देनेवाला दोनों सम्मिलित होते हैं। परामर्श की परिभाषा और अधिक अर्थपूर्ण बनाने के लिए उसे तीन स्तरों में व्यक्त कर सकते हैं-

(1) अनौपचारिक परामर्श ( Informal Counselling) – इसमें किसी प्रकार के प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन यदि परामर्शदाता को प्रशिक्षण दिया जाये तो इस प्रकार के परामर्श को अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है।

(2) सामान्य परामर्श (Non-Specialist Counselling)- व्यावसायिक व्यक्तियों, जैसे- डॉक्टरों, अध्यापकों और वकीलों के काम का भाग बनाकर प्राप्त किया जा सकता है।

(3) व्यावसायिक परामर्श (Professional Counselling) – यह परामर्श पूर्ण रूप से प्रशिक्षित व्यावसायिक व्यक्ति से ही प्राप्त किया जा सकता है। प्रशिक्षित व्यावसायिक परामर्शदाता पूर्ण रूप से व्यावसायिक, नीतिशास्त्र को मानने वाला हो तथा उसमें क्षमता हो कि वह दूसरे व्यक्तियों के लिए महत्त्वपूर्ण निर्णय ले सके।

तात्पर्य यह है कि परामर्शदाता तब तक उपयुक्त परामर्श नहीं दे सकता जब तक कि वह काउंसिली को अच्छी तरह नहीं जानता।

अतः स्पष्ट है- परामर्श की मूल तत्व दो व्यक्तियों के बीच ऐसा सम्पर्क है जिसमें एक व्यक्ति दूसरे को स्वयं को समझने में सहायता देता है। परामर्श के दर्शन को समझने से पूर्व हमें दो बातों को ध्यान में रखना चाहिए – मानवीय सम्बन्ध एवं सहायता।

(i) परामर्श में परामर्शदाता (Counseller) एवं (ii) उपबोध्य (Counsellee) आमने-सामने होते हैं तथा परामर्शदाता उपबोध्य को उसकी समस्याओं का समाधान खोजने में सहायता देता है। परामर्श एक ऐसी सेवा है जिसका उद्देश्य भिन्न-भिन्न आयु के लोगों की समस्याओं के समाधान में सहायता देना है। इस प्रकार एक समस्याग्रस्त व्यक्ति परामर्शदाता के सामने बैठकर अपनी समस्याओं को उसकी सहायता से स्वयं सुलझाने का प्रयास करता है।

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