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मार्गदर्शन एवं निर्देशन से आप क्या समझते हैं? मार्गदर्शन तथा निर्देशन का महत्व

मार्गदर्शन एवं निर्देशन
मार्गदर्शन एवं निर्देशन

मार्गदर्शन एवं निर्देशन से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by guidance and direction?)

मार्गदर्शन एवं निर्देशन- बालक स्वयं सब कुछ नहीं सीखता। उसे सफल व्यक्ति बनाने के लिए उसका मार्गदर्शन तथा निर्देशन आवश्यक है। दूसरों के साथ रहने के लिए उसे कई अच्छे गुण अपनाने होते हैं।, जैसे-सहयोग, नम्रता, आदर आदि । बालक इन गुणों के साथ जन्म नहीं ता वरन् ये बाद में सीखता है। अच्छे माता-पिता ही बालक को कुशल मार्गदर्शन दे सकते हैं। मार्गदर्शन की सहायता से बालक का तो विकास होता ही है, साथ ही वह समाज के कल्याण व प्रगति में भी योगदान दे पाता है । आधुनिक सामाजिक मूल्यों (Social Values) में तेजी से परिवर्तन आता जा रहा है । आज की परिस्थिति में पुराने मूल्यों में आस्था कम होती जा रही है और दूसरी ओर नवीन मूल्य (New Values) निर्धारित नहीं हो पा रहे हैं। अतः ऐसी परिस्थिति में निर्देशन आवश्यक है।

किशलोम के अनुसार, ” मार्गदर्शन प्रत्येक व्यक्ति की स्वयं के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने में मदद करता है।”

मार्गदर्शन तथा निर्देशन का महत्व (Importance of Guidance and Direction) 

मार्गदर्शन एक क्रिया है, जो बालक को स्वयं आगे बढ़ने तथा अपनी योग्यताओं के आधार पर कुछ प्राप्त करने में मदद करती है। मार्ग दर्शन का उद्देश्य है- व्यक्ति का विकास, स्वयं को समझना तथा सामाजिक समायोजन । मार्गदर्शन से निम्नलिखित लाभ हैं-

(1) नवीन वातावरण के साथ समायोजन में सहायक (Helps the Individual for Adjustment in New Environment)- माता-पिता से नवीन वातावरण के बारे में ज्ञान प्राप्त करने पर बालक अपने वातावरण के साथ उचित समायोजन कर सकता. है तथा उसका व्यक्तित्व भी अच्छा बनता है। यह सब कुशल निर्देशन तथा मार्गदर्शन पर निर्भर करता है।

(2) मान्य व्यवहार को समझने में सहायक (Helps to Learn Acceptable Behaviour)- बालक जन्म के बाद ही मान्य व्यवहार के सम्बन्ध में सीखता है। उसे तब तक मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है, जब तक कि वह स्वअनुशासन (Self Discipline) नहीं सीख लेता है। आज के चिन्तन में अनुशासन से तात्पर्य है निर्देशन। अनुशासन द्वारा बालक को पता चलता है कि उसका आचरण किस प्रकार का होना चाहिए। समाजीकरण की प्रक्रिया में बालक को सामाजिक मूल्यों के अनुसार आचरण करने के लिए प्रेरित किया जाता है, जैसे- मिलजुल कर रहना। इस प्रकार उचित निर्देशन द्वारा ही वह मान्य व्यवहारों को सीख पाता है।

(3) बालक के व्यक्तित्व विकास में सहायक (Helps in Development of Child’s Personality) – मार्गदर्शन करते समय बालक के व्यवहार के बारे में यह भी पता चलता है कि कौन से बालक तीव्र बुद्धि वाले तथा कौन-से बालक मन्द बुद्धि वाले हैं। दोनों प्रकार के बालकों का अलग ढंग से निर्देशन करने पर उनके व्यक्तित्व का उचित विकास किया जा सकता है।

(4) बालकों को स्वस्थ विचारों वाला तथा समाज का अच्छा सदस्य बनाने में मदद (To Help Children to Obtain Healthy Outlook and to Become a good Member of Society)- बालक को सामाजिक मूल्यों के बारे में बताना चाहिए कि कौन-सी बातें समाज में सही मानी जाती हैं और कौन-सी गलत । जिस प्रकार से बालक को बताया जा सकता है कि यद्यपि क्रोध, ईर्ष्या स्वाभाविक है, परन्तु इन पर नियन्त्रण (Control) रखना आवश्यक है। इस प्रकार उचित मार्गदर्शन पाने पर बालक दूसरों को कष्ट नहीं पहुँचाएगा तथा समाज का अच्छा सदस्य बनेगा।

(5) बालकों में कई मूल्यों का निर्माण (To Develop Certain Values in Children) – दूसरों के साथ रहने के लिए बालकों में कई मूल्य जैसे- दया, सहनशीलता, सहयोग आदि उत्पन्न होने आवश्यक हैं। माता-पिता के कुशल निर्देशन, स्नेह तथा विश्वास द्वारा ये बालकों में उत्पन्न किए जा सकते हैं। इन मूल्यों द्वारा बालक में सुरक्षा तथा आत्म-निर्भरता उत्पन्न होती है।

(6) बालक की स्वयं की योग्यताओं तथा रुचियों को समझने तथा विकसित करने में सहायक (To Help Children to Evaluate and Develop their Interests and Abilities) – निर्देशन प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं की योग्यताओं, रुचियों को समझने तथा उनका सम्भावित विकास करने में सहायता प्रदान करता है। निर्देशन द्वारा बालकों को उनकी रुचि के अनुसार कार्य की ओर प्रेरित किया जा सकता है तथा उन्हें स्वयं की रुचियों तथा योग्यताओं का ज्ञान, अच्छी प्रकार करवाया जा सकता है।

(7) व्यावसायिक दृष्टि से सहायक (Helpful in Vocation Selection)- व्यावसायिक दृष्टि से भी निर्देशन व मार्गदर्शन की अत्यधिक आवश्यकता है। बालक को उचित व्यवसाय के चयन में मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है। तभी वह आगे भली प्रकार उन्नति कर सकता है।

घर पर बालक की विभिन्न गतिविधियों का निर्देशन तथा मार्गदर्शन (Guiding And Directing Child’s Activities At Home) 

बालक जब जन्म लेता है तो उसे यह ज्ञान नहीं होता कि उसे कैसे रहना है ? उसे ज्ञान प्राप्त करने के लिए उचित निर्देशन की आवश्यकता होती है। माता-पिता का यह कर्त्तव्य है कि वे बालकों का उचित निर्देशन करें । बालकों के उचित निर्देशन के लिए निम्नलिखित बातें आवश्यक हैं- (i) साधारण तरीके से बालक को समझाया जाए। (ii) कोई कार्य सीखने या करने के पश्चात् उसकी प्रशंसा की जाए। इस प्रकार बालक जल्दी सीखता है। (iii) दण्ड का उपयोग कभी-कभी करें। (iv) वातावरण को खुशनुमा बनाएँ। (v) नियमितता से उचित मार्गदर्शन किया जा सकता है। (vi) बालकों में अनुशासन आवश्यक है। (vii) प्रत्येक बालक पर ध्यान देना चाहिए।

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