वैयक्तिक अध्ययन के क्षेत्र
1. सर्वांगीण सूक्ष्म अध्ययन (Intensive Detailed Study)- ऐसी समस्यायें जिनकी खोज विशिष्ट व्यक्तियों के किसी एक पक्ष से सम्बन्धित न होकर प्रत्येक पक्ष से सम्बन्धित होती है, केवल वैयक्तिक अध्ययन के द्वारा ही समझी जा सकती है। मनुष्य की वैयक्तिक स्थिति किसी एक कारक का फल नहीं होती। जीवन के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन एक प्रणाली के द्वारा सम्भव है। आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक तथा मनोवैज्ञानिक तथ्यों समय में इस के सम्मिलित योग से जो सम्पूर्ण व्यक्तित्व बनता है, पैतृकता तथा पर्यावरण के पारस्परिक अन्तर्खेल के परिणाम से जो विशिष्ट इकाई विकसित होती है, उसका बहुरंगी चित्र प्रस्तुत करने में वैयक्तिक अध्ययन के अतिरिक्त और कोई भी अनुसंधान प्रणाली अधिक उपयुक्त और सक्षम नहीं है।
2. भावात्मक, गुणात्मक एवं अमूर्त क्षेत्र- वैयक्तिक अध्ययन उन सामाजिक तथ्यों का अध्ययन करने के लिये सर्वाधिक उपयुक्त है, जिनकी प्रकृति गुणात्मक अथवा भावात्मक है। सामाजिक परिस्थितियां पहले मनुष्य की भावनाओं, विचारों, विश्वासों तथा दृष्टिकोणों पर चोट करती हैं। ये गुणात्मक तत्व व्यक्ति के व्यवहार को संचालित करते हैं। अतः मानव सम्बन्धों तथा सामाजिक प्रक्रियाओं आदि को समझने के लिये उन्हें उत्तेजित करने वाले भावात्मक तथा गुणात्मक तथ्यों को समझना आवश्यक है। इन भावात्मक पक्षों का अध्ययन ही सामाजिक अनुसंधान का प्रमुख अंग है। वैयक्तिक अध्ययन उन क्षेत्रों के अध्ययन में बहुत उपयोगी हैं, जिनकी संख्यात्मक विवेचना नहीं की जा सकती।
3. सीमित इकाइयाँ- जिन अध्ययनों का क्षेत्र सीमित होता है, अर्थात् जहाँ थोड़ी सी इकाइयों का अध्ययन प्रतिनिधि परिणाम दे सकता है, वहाँ पर वैयक्तिक अध्ययन बहुत ही उपयोगी होता है।
4. प्रक्रिया का अध्ययन- जब अनुसंधान का विषय कोई घटना न होकर प्रक्रिया होती है, तो भी वैयक्तिक अध्ययन प्रणाली बहुत उपयोगी होती है । घटनाओं का अध्ययन करने के लिये दूसरी प्रणालियाँ भी उपयुक्त हैं, किन्तु कोई दीर्घकालीन प्रक्रिया जैसे- मित्रता, पुण्य, आदि भूत तथा वर्तमान दोनों की निरंतरता से सम्बन्धित हैं। इस प्रकार की प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के लिये सम्पूर्ण पृष्ठभूमि का समझना आवश्यक होता है। ऐतिहासिक दृष्टिकोण इस प्रकार के अध्ययन के लिये सबसे अधिक उपयोगी है। अतः प्रक्रियाओं का अध्ययन वैयक्तिक अध्ययन प्रणाली के द्वारा अधिक सुविधापूर्वक किया जा सकता है।
5. परिवर्तन का अध्ययन- यदि किसी समूह या व्यक्ति पर सामाजिक परिवर्तन का प्रभाव समझना हो, तो भी वैयक्तिक अध्ययन सर्वोत्तम पद्धति है, क्योंकि इस प्रणाली के द्वारा इकाई के मौलिक स्वरूप तथा परिवर्तित स्वरूप का भेद स्पष्ट किया जा सकता है। सामाजिक परिवर्तन के कारकों तथा गति का अनुमान लगाना भी इसी पद्धति के द्वारा सम्भव है। परिवर्तन जीवन के अनेकों पक्षों में होता है तथा इस परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारक भी अनेक होते हैं। अतः व्यक्ति, समुदाय अथवा संस्था में भी परिवर्तनशीलता का अध्ययन ऐतिहासिक क्रम के आधार पर ही हो सकता है। वैयक्तिक, अध्ययन पद्धति इस दृष्टि से सर्वोत्तम पद्धति मानी गयी है।
6. संस्कृति तथा व्यक्तित्व- भिन्न-भिन्न संस्कृतियों के पर्यावरण में विकसित व्यक्तित्व भिन्न होते हैं। संस्कृति व्यक्तित्व का सांचा है। किसी व्यक्ति की धारणाओं, मान्यताओं तथा मूल्यों का ज्ञान सम्बन्धित सांस्कृतिक तत्वों के सन्दर्भ में ही प्राप्त किया जा सकता है। ये सांस्कृतिक तत्व गुणात्मक होते हैं, अतः इनका वास्तविक अध्ययन इसी पद्धति के द्वारा सम्भव है। व्यक्तित्व का अध्ययन भी वैयक्तिक अध्ययन पद्धति से सुगमतापूर्वक किया जा सकता है।
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