गुणात्मक एवं मात्रात्मक मापन में अन्तर (Difference between Qualitative and Quantitative Measurement)
गुणात्मक एवं मात्रात्मक मापन (Qualitative and Quantitative Measuremenet)- वर्तमान समय में भौतिक तथा सामाजिक दोनों प्रकार के विज्ञानों की मानव जीवन को आवश्यकता होती है। सामाजिक विज्ञानों में, जिनमें शिक्षा और मोविज्ञान भी सम्मिलित है, मापन भौतिक तथा स्थूल न होकर सूक्ष्म तथा गुणात्मक होते हैं और इनका मापन निश्चित एवं निर्दिष्ट इकाइयों में नहीं हो सकता है। अतः सामाजिक विज्ञानों का मापन गुणात्कम (Qualitative) होता है। इसके विपरीत भौतिक विज्ञानों के तथ्य स्थूल होते हैं, उन्हें भौतिक रूप से मापा जा सकता है। अतः भौतिक विज्ञान के माप परिणात्मक (Quantitative) होते हैं परिमाणात्मक मापन को मात्रात्मक मापन भी कहकर सम्बोधित करते हैं।
1. गुणात्मक मापन (Qualitative Measurement)
किसी वस्तु, प्राणी, घटना अथवा क्रिया की विशेषता को गुणों के रूप में देखने-समझने को गुणात्मक मापन कहते है। शिक्षा और मानोविज्ञान के क्षेत्र में मापन का सम्बन्ध मानसिक मापन से होता है। यह एक जटिल कार्य है क्योंकि इस मापन में व्यवहार का मापन किया जाता है। मानव व्यवहार परिस्थिति एवं उद्दीपक के साथ परिवर्तित होता रहता है। अतः मानसिक मापन का स्वरूप निश्चित नहीं हो सकता है। इसके अन्तर्गत आत्मनिष्ठता का गुण पाया जाता है और साथ-साथ वस्तु और घटना के सम्बन्ध में व्यक्ति की राय भी सम्मिलित होती है। यदि हमें किसी अध्यापक के कार्य की प्रभावशीलता का मापन करना हो या किसी के द्वारा बनायी गयी पेंटिंग के विषय में निर्णय देना हो तो किसी मानक को आधार बनना पड़ता है । उक्त निर्धारित मानक की सत्ता मूल्यांकनकर्त्ता के मन में ही रहती है। मूल्यांकनकर्त्ता द्वारा निर्धारित मानक आवश्यक नहीं है कि वह सर्वमान्य एवं उचित ही हो। उदाहरणार्थ एक छात्र द्वारा विज्ञान विषय के निबन्धात्मक प्रश्न के दिए गये उत्तर का मूल्यांकन उसकी विषय वस्तु, मौलिक चिन्तन, भाषा, व्याकरण या शब्दों की संख्या आदि के आधार पर जा सकता है और उसी के तदनुसार उसे अंक प्रदान किया जा सकता है। विद्यार्थी से प्राप्त उत्तर में किस तरह की विषय वस्तु, मौलिक चिन्तन, भाषा व्याकरण शब्दों की संख्या की आशा की जानी चाहिए इसका कोई निश्चित निर्धारित आदर्श नहीं होता है जिसके फलस्वरूप यह मूल्यांकनकर्ता के मन में स्थित मानक पर निर्भर है। संक्षिप्त रूप में गुणात्मक मापन की निम्न विशेषताएँ हैं—
- गुणात्मक मापन का आधार प्रायः मानदण्ड (Norms) होते हैं। जो सामान्य वितरण में औसत निष्पादन (Average Performance) के आधार पर प्राप्त किए जाते है।
- गुणात्मक मापन के मानदण्ड प्रायः सर्वमान्य नहीं होते हैं यदि एक बालक किसी शिक्षक की नजर में उत्तम बालक का दर्जा प्राप्त करता है तो यह आवश्यक नहीं है। कि अन्य शिक्षकों की नजर में भी इस श्रेणी (उत्तम) को प्राप्त करें। अतः गुणात्मक मापन निश्चित परिमाण की ओर संकेत नहीं करते हैं।
- गुणात्मक मापन में शून्य की स्थिति नहीं होती है जैसे- किसी बच्चे में, शैक्षिक लब्धि का पता लगाना हो या बुद्धिलब्धि का कोई शून्य बिन्दु नहीं होगा । यदि बच्चे की शैक्षिक लब्धि या बद्धि लब्धि शून्य दर्शा दी भी गई हो तो वास्तविकता से परे है।
- गुणात्मक मापन में इकाइयों का सम्बन्ध निरपेक्ष न होकर सापेक्ष होता है यदि एक बालक का गणित में प्राप्तांक 60 तथा दूसरे बालक का 30 है तो इससे यह अर्थ कदापि नहीं निकलता कि पहले बालक में, दूसरे बालक की अपेक्षा गणित में दुगना ज्ञान है।
- गुणात्मक मापन कभी भी शत प्रतिशत नहीं किया जा सकता है। जैसे-किसी बच्चे की नैतिकता का मापन शत प्रतिशत संभव नहीं है।
- गुणात्मक मापन परिवर्तनशील होते हैं क्योंकि यह मानसिक मापन गुणात्मक मापन का रूप होता है।
2. परिमाणात्मक या मात्रात्मक मापन (Quantitative Measurement)
परिमाणात्मक मापन का अर्थ भली-भाँति जानने हेतु ‘परिणाम’ का अर्थ जानना आवश्यक होता है। ‘परिमाण’ का अभिप्राय ऐसी कोई वस्तु जिसकी भौतिक जगत में सत्ता हो, जिसे देखा जा सकें और उसकी उपस्थिति या अनुपस्थिति को अनुभूत किया जा सके। इस प्रकार भौतिक मापन को परिणात्मक मापन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
- परिमाणात्मक मापन का आधार सदैव इकाई अंक होते है। इकाई का अर्थ होता है – शून्य बिन्दु से ऊपर एक निश्चित मूल्य का होना। जैसे 12 फीट का तात्पर्य 0 से ऊपर 12 फीट।
- परिमाणात्मक मापन में प्रयुक्त यंत्र पर समान इकाइयाँ समान परिणाम हो व्यक्त करती है। जैसे मीटर पैमाने पर अंकित से० मी० बराबर दूरी पर होते हैं और एक किलोमीटर के सभी मीटर समान दूरी पर होते है।
- परिमाणात्मकं मापन की विवेचना की कोई विशेष आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि वह स्वयं में अर्थयुक्त होता है।
- परिमाणात्मक मापन में गणितीय सम्बन्ध पाया जाता है क्योंकि वह इकाई पर आधारित होता हैं। परिमाणामात्मक मापन शत् प्रतिशत संभव है। जैसे किसी बालक का भार शत् प्रतिशत इकाई में व्यक्त किया जा सकता है।
- परिमाणात्मक मापन स्थिर एवं निरपेक्ष रहता है। यह आत्मनिष्ठा न होकर वस्तुनिष्ठ होता है मूल्यांकनकर्त्ताओं द्वारा निबन्धात्मक प्रश्न के उत्तर मूल्यांकन में विभिन्न अंक प्रदान किया जाता है। जबकि बोरे में रखी चावल की तौल, चाहे जितने व्यक्ति तौले एक समान ही रहेगी।
- परिमाणात्मक मापन में परिशुद्धता अधिक पाई जाती है जिसके आधार पर भविष्य कथन भी अधिक विश्वास के साथ किया जाता है।
गुणात्मक और परिमाणात्मक मापन में अन्तर (Difference between Qualitative and Quantitative Measurement)
गुणात्मक और परिमाणात्मक मापन में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं-
1. गुणात्मक मापन का शून्य से सम्बन्ध नहीं होता है। यदि इसमें मूल्यांकनकर्ता द्वारा शून्य प्रदान भी कर दिया जाता है तो वह अर्थहीन होता है। किसी बालक की शैक्षिक उपलब्धि के मापने के क्रम में शून्य अंक प्रदान किया जाए तो इसका अर्थ कदापि नहीं है कि उस बालक की शैक्षिक उपलब्धि शून्य है। जबकि परिमाणात्मक मापन का आधार शून्य. (0) होता है; जैसे-यदि किसी बालक का भार 50 किग्रा है तो इसका अर्थ इसका भार शून्य (0) से 50 किग्रा अधिक है।
2. गुणात्मक मापन की इकाइयाँ पूर्ण निर्दिष्ट एवं निश्चित नहीं होती है जबकि परिमाणात्मक मापन की इकाइयाँ पूर्ण निर्दिष्ट एवं निश्चित होती हैं; जैसे-6 मीटर और 7 मीटर में जो अन्तर विद्यमान होता है वह 6 तथा 7 प्राप्तांक में नहीं।
3. गुणात्मक मापन शत् प्रतिशत संभव नहीं है जबकि परिमाणात्मक मापन शत् प्रतिशत संभव होता है; जैसे बालक की रुचि का मापन शत् प्रतिशत संभव नहीं है जबकि बालक का भार शत् प्रतिशत मापा जा सकता है।
4. गुणात्मक मापन में दो विभिन्न मापों की परस्पर तुलना करना कठिन होता है जबकि परिमाणात्मक मापन में यह कार्य आसानी से किया जा सकता है।
5. गुणात्मक मापन के अर्थ स्पष्टीकरण हेतु विवेचना या व्याख्या की आवश्यकता होती. है जबकि परिमाणात्मक मापन अपने आप में पूर्ण होता है। अतः अर्थ स्पष्टीकरण हेतु विवेचना या व्याख्या की आवश्यकता नहीं। यदि किसी कपड़े की माप 5 मीटर है तो यह माप अपने आप में पूर्ण है जबकि यदि किसी बालक की बुद्धिलब्धि 110 है तो अपने आप में पूर्ण नहीं है।
6. गुणात्मक मापन में वस्तुनिष्ठ (Objectivity) नहीं पाई जाती है क्योंकि ये आत्मनिष्ठा (Subjective) होते हैं, जबकि दूसरी और परिमाणात्मक मापन में वस्तुनिष्ठता पाई जाती है क्योंकि ये आत्मनिष्ठा नहीं होते है। यदि किसी बुद्धिलब्धि परीक्षण में किसी छात्र की बुद्धिलब्धि 100 प्राप्त होती है तो यह आवश्यक नहीं है कि दूसरे बुद्धि परीक्षण में भी बुद्धिलब्धि अंक समान प्राप्त हो, जबकि यदि किसी बालक का भार 50 कि० ग्रा० है तो पुनः बार-बार पर समान भार ही प्राप्त होगा।
7. गुणात्मक मापन की अपेक्षा परिमाणात्मक मापन कम परिवर्तनशील होते हैं।
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