परिमाणात्मक एवं गुणात्मक मापन पर प्रकाश डालें। (Throw light on the quantitative and qualitative measurement)
मनोविज्ञान एवं शिक्षा में भी मापन का अत्यन्त महत्त्व है। इनका सम्बन्ध भौतिक मापन से न होकर मानसिक मापन से है। यह एक अत्यन्त कठिन तथा जटिल कार्य है, क्योंकि मनोवैज्ञानिक मापन में ‘व्यवहार का मापन’ सन्निहित है। व्यवहार परिस्थिति एवं उद्दीपक के साथ बदलता रहता है, प्रायः उन्हीं परिस्थितियों और उद्दीपकों के होते हुए भी कालान्तर के कारण व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। अतः, मानसिक मापन कभी निश्चित नहीं हो सकता ज्ञानोपार्जन, बुद्धि, व्यक्तित्व — ये सभी तथ्य जिनका मनोविज्ञान में मापन होता है, जटिल हैं। यही कारण है कि इस शताब्दी के प्रारम्भ तक इन क्षेत्रों में मापन-विज्ञान अधिक विकसित न था। भौतिक एवं मनोवैज्ञानिक मापन के मुख्य अन्तर यह है कि भौतिक मापन मुख्यतः ‘परिमाणात्मक’ होता है, जबकि मनोवैज्ञानिक मापन मुख्यतः ‘गुणात्मक’। ‘परिमाणात्मक’ से अर्थ है- “ऐसी कोई वस्तु जिसकी भौति जगत् में सत्ता हो, जिसमें आकार, विषय-वस्तु, परिमाण आदि गुण हों, जिसे देखा जा सके और जिसकी उपस्थिति या अनुपस्थिति को अनुभव किया जा सके।” इन अर्थों में भौतिक मापन परिमाणात्मक हुआ; जैसे—दूरी, लम्बाई, क्षेत्रफल, भार, आयतन आदि का मापन इन मापनों के लिए कुछ इकाइयों की आवश्यकता पड़ती है; जैसे 12 इंच = 1 फुट या 3 फुट = गज। परिमाणात्मक मापन में निम्न गुण हैं-
(1) इन सभी इकाइयों का सम्बन्ध एक शून्य बिन्दु से होता है। इकाई का अर्थ होता है, शून्य बिन्दु से ऊपर एक निश्चित मूल्य। छ: फीट का अर्थ है ‘0’ से ऊपर छ: फीट।
(2) परिमाणात्मक मापन में किसी यन्त्र पर समान इकाइयाँ समान परिणाम की होती हैं; जैसे—एक फुट के सभी इंच बराबर दूरी के होते हैं, एक मील में सभी गज समान दूरी के आदि।
(3) परिमाणात्मक मापन अपने आप में सम्पूर्ण होता है। हम चाहें तो किसी कपड़े के टुकड़े की सारी लम्बाई का मापन कर सकते हैं। इसी प्रकार हम किसी कमरे में सम्पूर्ण आयतन या किसी दुकान में बोरियों में भरी सम्पूर्ण चीनी की मात्रा का मापन कर सकते हैं।
(4) किसी वस्तु का मापन स्थिर या निरपेक्ष रहता है, जैसे माँसपेशियों के सिकुड़ने की गति इन सभी विशेषताओं से ज्ञात होता है कि परिमाणात्मक भौतिक मापन वस्तुनिष्ठ होता है। यह आत्मनिष्ठ मूल्यांकन से प्रभावित नहीं होता।
परिमाणात्मक मापन के विपरीत, मनोवैज्ञानिक गुणात्मक मापन, आत्मनिष्ठ एवं अनिश्चित होता है; जैसे- किसी अध्यापक के कार्य का निर्णय। किसी खिलौने के गुण के सम्बन्ध में निर्णय करते समय हमें किसी प्रतिमान’ को आधार बनाना पड़ता है और उस प्रतिमान की तुलना में खिलौने को निर्णीत करना पड़ता। इस प्रकार के प्रतिमान की सत्ता मूल्यांकन करने वाले के मन में ही रहती है। आवश्यक नहीं है कि यह प्रतिमान उचित ही हो। इसी प्रकार अध्यापक की विशेषता का मापन या निर्णय करते समय प्रधानाध्यापक या पर्यवेक्षक उसका सारा कार्य नहीं देखता, पर केवल उसका एक ‘न्यादर्श’ ले लेता है। वह उसके बारे में इस प्रकार से निर्णय ले सकता है— श्रेष्ठ, मध्यम या निम्न किन्तु, इन प्रतीकों का कोई निश्चित मूल्य नहीं होता। कितना श्रेष्ठ, मध्यम या निम्न यह कैसे जाना जा सकता है ? इसी प्रकार एक अध्यापक किसी छात्र द्वारा लिखे ‘अंग्रेजी कम्पोजीशन’ का मूल्यांकन उसकी भाषा, व्याकरण, विषय-वस्तु के आधार पर कर सकता है और तद्नुसार उसे अंक दे सकता है। पर विद्यार्थी से किस प्रकार की भाषा, विषय-वस्तु आदि की आशा रखनी चाहिए, इसका कोई निश्चित आदर्श नहीं है। यह तो केवल अध्यापक के मन में स्थिति प्रतिमान पर निर्भर है इस प्रकार के गुणात्मक मापन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(1) इसमें कोई शून्य बिन्दु नहीं होता। यदि किसी बुद्धि-परीक्षण में किसी बालक की बुद्धि-लब्धि ‘शून्य’ आ भी जाए तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि उस बालक में बुद्धि शून्य है। इसी प्रकार इकाइयों का सम्बन्ध निरपेक्ष न होकर सापेक्ष है। यदि एक बालक की बुद्धि-लब्धि 120 है और दूसरे की 60, तो इसका यह अर्थ नहीं कि पहले में दूसरे से दुगुनी बुद्धि है।
(2) मानसिक या गुणात्मक मापन की इकाइयाँ आपस में समान नहीं हैं। 13 और 13½ मानसिक आयु वाले बालकों की मानसिक आयु का अन्तर उतना ही नहीं है, जितना 6 और 645 वर्ष की मानसिक आयु वाले बालकों का। यद्यपि निरपेक्ष अन्तर ½ वर्ष है, पर वास्तव में 6 तथा 6½ में 13 तथा 13½ की अपेक्षा अधिक अन्तर है।
(3) भौतिक मापन जैसे 80 पौण्ड या 15 इंच निश्चित परिमाण की ओर संकेत करते हैं। पर मनोवैज्ञानिक मापन में ऐसा नहीं है। यदि एक परीक्षार्थी गणित के प्रश्नों में 10 में ‘से 8 ठीक करे तथा लेखन में 200 शब्दों में 50 भूलें करे तो हम यह नहीं कह सकते कि वह गणित में होशियार है और लेखन में कमजोर। हमें यह देखना पड़ेगा कि गणित के प्रश्न कठिन थे या सरल या इसी प्रकार लेखन में बोले गए शब्द कैसे थे। इसके अतिरिक्त अन्य विद्यार्थियों ने कितने प्रश्न हल किए और कितनी भूलें कीं। अतः, गुणात्मक मापन का तुलनात्मक महत्त्व है।
(4) गुणात्मक मापन में तुलना का आधार प्रायः ‘मानक’ होते हैं जो सामान्य वितरण में औसत ‘निष्पादन’ के आधार पर बनाए जाते हैं।
परिमाणात्मक तथा गुणात्मक मापन में अन्तर
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर परिमाणात्मक तथा गुणात्मक मापन में निम्न अन्तर हैं-
परिमाणात्मक मापन | गुणात्मक मापन |
1. शून्य बिन्दु। | 1. कोई भी शून्य बिन्दु नहीं, वरन् एक प्रतिमान या मानक। |
2. निश्चित तथा निरपेक्ष मूल्य की इकाइयाँ। | 2. अनिश्चित तथा केवल सापेक्ष मूल्य की इकाइयाँ। |
3. वस्तु की सम्पूर्ण मात्रा या परिमाण का माप सम्भव। | 3. वस्तु के किसी आंशिक गुण का ही मापन सम्भव। |
4. वस्तुनिष्ठ। | 4. प्रायः आत्मनिष्ठ, यद्यपि वस्तुनिष्ठ बनाने की ओर वैज्ञानिकों के प्रयास। |
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