एकीकृत शिक्षा और समावेशी शिक्षा की अवधारणा
एकीकृत शिक्षा का अर्थ (Meaning of Integrated Education)– एकीकृत का अर्थ होता है पृथक किए हुए लोगों को पुनः मिश्रित करना या जोड़ना। अर्थात् विशेष आवश्यकता वाले छात्रों को सामान्य विद्यालय में शैक्षिक सुविधाएँ एवं शैक्षिक अवसर उपलब्ध कराना ही एकीकृत शिक्षा है। अत: एकीकृत शिक्षा का अर्थ एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था से लगाया जाता है जिसमें विशिष्ट बालकों को सामान्य बालकों के साथ एक शिक्षा दी जाती है। इसमें दिव्यांग बालकों को सामान्य विद्यालय के अन्तर्गत विशेष कक्षा-कक्ष में पढ़ाया जाता है। इसके अन्तर्गत दिव्यांग बालकों को अतिरिक्त सहायता प्रदान कर जैसे- विशेष कक्षाएँ, विशेष शिक्षक आदि की सहायता से सामान्य बालकों के साथ शिक्षित किया जाता है। एकीकृत शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है दिव्यांग बालकों को अलग शिक्षा जो कि विशेष शिक्षा के रूप में होता था, को हटाकर उनको सामान्य विद्यालय में सामान्य बच्चों के साथ शिक्षा देना है। 20वीं शताब्दी के अन्त तक नवीन तकनीकों ने दिव्यांग बालकों की शिक्षा के लिए नवीन रास्ते खोल दिए है। यह व्यवस्था कम खर्चीली है। दिव्यांग बालकों के लिए एकीकृत शिक्षा की धारणा उत्तम है।
एकीकृत शिक्षा की विशेषताएं (Characteristics of Integrated Education)
एकीकृत शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. एकीकृत शिक्षा विशिष्ट शिक्षा का पूरक है क्योंकि एकीकृत शिक्षा संस्था में न्यूनतम में शारीरिक रूप से बाधित बालकों को प्रवेश दिया जाता है।
2. एकीकृत शिक्षा में शारीरिक रूप से बाधित बालक एवं सामान्य बालक एक साथ सामान्य कक्षा में शिक्षा प्राप्त करते हैं।
3. एकीकृत शिक्षा सभी बालकों को समान अवसर प्रदान कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाती है।
4. एकीकृत शिक्षा में सामान्य बालकों की तरह शारीरिक रूप से दिव्यांग बालक भी महत्त्वपूर्ण होते हैं। यह शिक्षा दिव्यांग बालकों को शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं का सामना करने की क्षमता प्रदान करती है।
5. यह शिक्षा सभी बालकों के रहन-सहन के स्तर को ऊंचा उठाती है।
6. यह शिक्षा शिक्षकों, अभिभावकों एवं शिक्षाविदों के सामूहिक प्रयास का परिणाम है।
एकीकृत शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य (Main Objectives of Integrated Education)
एकीकृत शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. विशिष्ट एवं सामान्य बालकों हेतु समान अवसर एवं शैक्षिक सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
2. विशिष्ट बालकों में हीन भावना को समाप्त करना।
3. विशिष्ट एवं सामान्य बालकों को सामाजिक परिवेश में जैसे-परिवार, पास-पड़ोस तथा मित्रों के साथ बात-चीत करने का अवसर प्रदान करना।
4. वयस्क जीवन के अनुभवों के लिए प्राकृतिक आधार प्रदान करना।
5. विशिष्ट बालकों को समाज में एवं प्राकृतिक वातावरण में समायोजित करने में सहायता करना। एकीकृत शिक्षा में समस्त छात्रों को सभी क्षेत्रों में योगदान करने या भाग लेने का अवसर प्रदान करना।
6. एकीकृत शिक्षा में सामान्य दिव्यांग बालकों को शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए अधिगम करने में सहायता प्रदान करना।
एकीकृत शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्त्व (Need and Importance of Integrated Education)
एकीकृत शिक्षा के निम्नलिखित महत्त्व हैं-
1. यह असमर्थी बालकों के मध्य भेद न करके उनके सम्पूर्ण शैक्षिक विकास में सहायता करता है तथा यह छात्रों के मध्य हीन भावना को समाप्त करता है।
2. यह सामान्य-अधिगम छात्रों को समवाय करता है।
3. यह असमर्थी बालकों को सामान्य छात्रों के साथ प्रमोद एवं अध्ययन का अवसर प्रदान करता है।
4. यह सामाजिक एकीकरण को सुनिश्चित करता है।
5. एकीकृत शिक्षा सामान्य बालकों में विशिष्ट बालकों के प्रति प्रेम, आदर एवं स्नेह के विकास के साथ उन्हें समझाने में सहायता करता है।
6. यह अल्पव्ययी है। इसमें विशेष शिक्षक अथवा अध्ययन हेतु विशेष उपकरणों की आवश्यकता नहीं होती है।
7. अक्षम अथवा असमर्थी बालक समवाय बालकों द्वारा प्रोत्साहित किए जाते हैं।
समावेशी शिक्षा (Inclusive Education)
वर्तमान में ऐसी शिक्षा प्रणाली के निर्माण की आवश्यकता है जो कि सभी बालकों को समान महत्त्व देने वाली हो। कक्षा में ऐसे सहायक उपकरणों का प्रयोग किया जाए जिससे दिव्यांगता से ग्रसित बालक व समस्त बालकों को एक ही कक्षा में समन्वित रूप से शिक्षा प्राप्त हो सके।
समावेशी शिक्षा की अवधारणा (Concept of Inclusive Education)
सर्वप्रथम दिव्यांग बालकों को समान बालकों से पृथक करके शिक्षा प्रदान करने का विचार किया गया परन्तु इससे इन बालकों में वंचन एवं हीन भावना ने जन्म ले लिया। तत्पश्चात् इनको एकीकृत रूप में शिक्षित किए जाने पर विचार किया गया परन्तु इससे भी समस्या का समाधान पूर्णतया न हो सका।
अतः विशिष्ट बालकों को साथ-साथ कुछ विशिष्ट सुविधाओं सहित एक ही कक्षा में पढ़ाने तथा समावेशन को बढ़ाने का विचार प्रस्तुत किया गया। समावेशन के पश्चात् अब इनके सशक्तीकरण पर कार्य किया जा रहा है।
जुल्का (Julka, 2001 ) ने समावेशन को चित्रात्मक रूप से इस प्रकार प्रस्तुत किया है-
सशक्तीकरण
(Empowerment)
↑
समावेशन (पड़ोसी विद्यालय)
Inclusion (Neighbourhood School)
↑
एकीकरण (नियमित विद्यालय ) Integration (Regular School)
↑
अलगाव / पृथक्कीकरण (Segregation/Isolation)
समावेशी शिक्षा कक्षा में विविधताओं को स्वीकार करने की एक मनोवृत्ति है जिसके अन्तर्गत विविध क्षमता वाले बालक सामान्य शिक्षा प्रणाली में एक साथ अध्ययन करते हैं। समावेशी शिक्षा दर्शन के अन्तर्गत प्रत्येक बालक अद्वितीय है और उसे अपने सहपाठियों की भाँति विकास करने के लिए कक्षा में विविध प्रकार के शिक्षण की आवश्यकता हो सकती है। बालक के पीछे रह जाने पर उनको दोषी नहीं ठहराया जा सकता है बल्कि उन्हें कक्षा में भली प्रकार समाहित न कर पाने का उत्तरदायी अध्यापक को स्वयं समझना चाहिए। जिस प्रकार हमारा संविधान किसी भी आधार पर किए जाने वाले भेद-भाव का विरोध करता है, ठीक उसी प्रकार समावेशी शिक्षा विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों शारीरिक, बौद्धिक, सामाजिक आदि समस्याओं से ग्रसित किसी बालक को भिन्न देखे जाने के बजाय स्वतंत्र अधिगमकर्ता के रूप में देखती है।
समावेशी शिक्षा में प्रतिभाशाली बालक तथा सामान्य बालक एक साथ कक्षाओं में पूर्ण समय या अर्द्धकालिक समय में शिक्षा ग्रहण करते हैं। इस प्रकार समायोजन, सामाजिक या शैक्षिक अथवा दोनों को सम्मिलित करता है। कुछ शिक्षाविद् ऐसा सोचते हैं कि समावेशी शिक्षा अपंग बालकों हेतु सामान्य स्कूल में स्थापित करनी चाहिए जहाँ उन्हें विशिष्ट शिक्षण में सहायता तथा सुविधाएँ दी जाती हैं। समावेशी शिक्षा का आन्दोलन सभी नागरिकों की समानता के अधिकार को पहचानने और सभी बालकों को विशिष्ट आवश्यकताओं के साथ-साथ शिक्षा के समान अवसर प्रदान करने पर बल देता है। इसके अतिरिक्त यही कहा जाता है कि उन्हें (बाधित बालकों को) कम नियन्त्रित तथा अधिक प्रभावशाली वातावरण में शिक्षा देनी चाहिए कम प्रतिबन्धित वातावरण जो बाधित बालकों को चाहिए केवल सामान्य शिक्षण संस्थाओं में ही दिया जा सकता है। इस प्रकार समावेशी शिक्षा, अपंग बालकों की शिक्षा सामान्य स्कूल तथा सामान्य बालकों के साथ कुछ अधिक सहायता प्रदान करने की ओर इंगित करती है। यह शारीरिक तथा मानसिक रूप से बाधित बालकों को सामान्य बालकों के साथ सामान्य कक्षा में शिक्षा प्राप्त कर एवं विशिष्ट सेवाएँ देकर विशिष्ट आवश्यकताओं को प्राप्त करने के लिए सहायता करती है।
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