भारत में विशेष आवश्यकताओं वाले बालकों के लिये विशिष्ट शिक्षा की सेवाएँ पर प्रकाश डालें।
भारत में विशेष आवश्यकताओं वाले बालकों के लिये विशिष्ट शिक्षा की सेवाएँ- विशिष्ट आवश्यकता वाले बालकों के लिये विशिष्ट शिक्षा दी जाती है। ये सेवाएँ निम्न प्रकार से दी जाती है-
विशिष्ट बालकों को शिक्षा सामान्य तौर पर उनकी विशिष्टताओं के अनुसार ही प्रदान कि जाती है जिसके लिए सरकारी एवं गैर-सरकारी संघटनों ने अपने-अपने स्तर पर कार्य किया है। अगर देखा जाये तो नियमित कक्षाएँ, विशेष कक्षाएँ, डे-स्कूल्स, नियमित विद्यालय या नियमित कक्षा दौरा करने वाले शिक्षक के साथ, नियमित विद्यालय में साधन सम्पन्न कक्ष के साथ, आवासीय संस्थान, स्कूल में प्रवेश लेने के पूर्व हस्तक्षेप, पोर्टेज प्रणाली आदि विशिष्ट शिक्षा में अपने ही तरह से कार्य किया है विशिष्ट बालकों को शिक्षा प्रदान करने के लिए।
1. विशेष कक्षाएँ – विशेष कक्षाओं का नियोजन एक विद्यालय के अंदर जिसमें सामान्य बालक भी पढ़ते हैं उसी में किया जाता है। इस विशेष कक्षा में विशिष्टता के अनुसार बालक अपना अध्ययन कार्य करता है। विशेष कक्षाओं में पढ़ने वाले बालक किसी भी तरह की विशिष्टता जैसे कि श्रवण बाधित, दृष्टि बाधित मानसिक मंदता इनमें से किसी से भी प्रभावित हो सकते हैं। कई सारे विद्यालय ऐसे होते हैं जो विशेष कक्षाओं का नियोजन केवल बालक की विशिष्ट आवश्यकता को पूरा करने के लिए करते हैं और बाद में फिर इन विशिष्ट बालकों को सामान्य बालकों के साथ अंतःक्रिया करने के लिए उन्हीं के साथ अन्य पाठ्य सहगामी क्रियाओं में सहभागी बना लेते हैं जिससे कि उनके विशिष्ट शिक्षा उद्देश्य व विशिष्ट बालकों को सामान्य बालकों वाली शिक्षा में स्थान प्रदान करने का लक्ष्य भी पूर्ण हो जाता है।
2. डे स्कूल्स- डे स्कूल्स की अपनी ही व्यवस्था होती है। आमतौर पर यह दिन में विशिष्ट बालकों को शिक्षा प्रदान करने का कार्य करते हैं। डे स्कूल्स पृथकीकरण की प्रक्रिया को बढ़ावा देते हैं जो कि यह विशिष्ट बालकों को अध्ययन हेतु अलग स्थान पदान करते हैं। अलग स्थान देने का अर्थ है कि सामान्य कक्षाओं में न बैठाकर अध्ययन करना। डे स्कूल्स वैसे तो अध्ययन कार्य को ही बढ़ावा देते हैं पर वहीं इनके द्वारा विशिष्ट बालकों के आवास की सुविधाएँ भी प्राप्त की जा सकती हैं। यह स्कूल विशेषतः शिक्षा हेतु वातावरण, आवश्यक संसाधन, शिक्षण विधियाँ, प्रशिक्षण हेतु सुविधाएँ भी मुहैया कराते है।
3. नियमित विद्यालय या नियमित कक्षा स्वचल/दौरा करने वाले शिक्षक की सुविधा के साथ – इस तरह की सुविधाएँ विद्यालयों द्वारा मुहैया कराई जा सकती हैं और खुद भी विद्यालयों के लिए नियमित कक्षा दौरा करने वाले शिक्षक सहयोगी साबित हो सकते हैं इन शिक्षकों का कार्य होता है कि स्वयं विद्यालयों में जाकर शिक्षा प्रदान करें। इनके द्वारा शिक्षा प्रत्येक दिन भी दी जा सकती है या विद्यालय प्रशासन की सहमति से इनके द्वारा विशिष्ट शिक्षा चुनिंदा दिनों के अनुसार भी दी जा सकती है। विद्यालय प्रशासन आवश्यक उपकरणों व तकनीकों के साथ इन शिक्षकों की सेवा का विशिष्ट बालकों की शिक्षा हेतु सही ढंग से प्रयोग कर सकते हैं।
4. नियमित विद्यालय में साधन सम्पन कक्ष – नियमित विद्यालय साधन सम्पन्न कक्ष के साथ भी एक पृथकीकरण के प्रभाव को कम करने वाला तरीका है। साधन सम्पन कक्ष एक ऐसा कक्ष होता है जिसमें विशिष्ट बालकों की शिक्षा हेतु सारी ही सुविधाएँ आसानी से मिल जाती हैं इसमें सभी प्रकार के विशिष्ट शिक्षा उपयोगी यंत्र मौजूद रहते हैं । इस कक्ष की सहायता से विद्यालय प्रशासन शिक्षकों के सहयोग से विशिष्ट बालकों के लिए शिक्षा आसान बना सकते हैं। साधन सम्पन्न कक्ष की व्यवस्था कोई भी विद्यालय करा सकता है। और इतना ही नहीं इस व्यवस्था के साथ यह विद्यालय विशिष्ट शिक्षा प्रदान करने के विषय में प्रवीण शिक्षकों की नियुक्ति भी अपने यहाँ करा सकते हैं। साधन सम्पन्न कक्ष होने का यह लाभ भी होता है कि उसी विद्यालय में कार्यरत सामान्य शिक्षक भी प्रशिक्षण कर सीख सकते हैं।
5. स्कूल में प्रवेश लेने के पूर्व हस्तक्षेप – इस प्रत्यय के अंतर्गत प्रशिक्षित शिक्षकों को विशिष्ट आवश्यकता वाले बच्चों की देख-रेख हेतु व उन्हें समझने के लिए काम पर नियुक्त किया जाता। यह शिक्षक इन बच्चों के माता-पिता व अभिभावकों के साथ मिलकर इनके विकास में योगदान देते हैं। प्रशिक्षित शिक्षक बच्चों की शैक्षिक, खेल-कूद से जुड़ी जरूरतों आदि का ध्यान रखते हैं और आगे चलकर स्कूल वातावरण में समायोजन के लिए भी तैयार करते हैं।
6. पोर्टेज प्रणाली- पोर्टेज प्रणाली उन बालकों के लिए है जो कि अपनी मानसिक मंदता के सन्दर्भ में, विकास के क्रम में पीछे रहने के कारण और अधिगम में समस्या का अनुभव करने के कारण। इस प्रणाली में एक कार्यक्रम की व्यवस्था की जाती है जिसमें घर-परिवार के लोग भी सहयोग देते हैं इसका मुख्य लक्ष्य होता है किसी विशिष्ट आवश्यकता वाले बालक को विकास के क्रम में आगे बढ़ाना। संज्ञान, समाज, भाषा आदि से जुड़ी समस्याओं का निवारण कर यह प्रणाली बालक की कठिनाइयों का निदान करने में सहायक होती है। पोर्टेज प्रणाली की व्यवस्था में समुदाय के स्रोतों का प्रयोग भी किया जाता है। इसमें बालक के घर के बड़े-छोटे सदस्य सभी अपना सहयोग देते हैं।
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