विकलांगता से आप क्या समझते हैं? (What do you understand by disability?)
निःशक्त व्यक्तियों के अधिकारों संबंधी घोषणा में निःशक्त व्यक्ति शब्द का अभिप्राय ऐसे व्यक्ति से है जो अपने शारीरिक अथवा मानसिक सामर्थ्य शक्ति में कमी (चाहे वह जन्मजात हो, अथवा नहीं) के फलस्वरूप सामान्य व्यक्ति की सामाजिक जीवन की आवयकताओं को पूर्णतः अथवा अंशतः स्वयं पूरा करने में असमर्थ हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (1976) के मुताबिक विकलांगता व्यक्ति के कार्याकारी प्रदर्शन एवं गतिविधियों के ह्रास का परिणाम है।
वहीं अमेरिकन्स विथ डिसएबिलिटिज एक्ट (1990) में निःशक्त व्यक्तियों को एक व्यक्ति के रूप में वर्गीकृत किया गया है जिनकी शारीरिक तथा मानसिक क्षति जीवन के एक अथवा अधिक प्रमुख क्रियाकलापों को सीमित कर देती है।
राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण संगठन (1991) के अनुसार मानव जाति के लिए समझी जानेवाली रीति से अथवा सीमा के भीतर क्रियाकलाप में बाधा आना अथवा उस कार्य को करने के लिए कार्यकारी क्षमता की कमी होना विकलांगता कहलाता है।
निःशक्त व्यक्ति अधिनियम (1995) की धारा 2 (न) के अनुसार – “नि:शक्त व्यक्ति से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है जो किसी चिकित्सा पदाधिकारी द्वारा प्रमाणित किसी निःशक्तता में कम से कम 40 प्रतिशत ग्रस्त हो।”
वहीं राष्ट्रीय न्यास अधिनियम (1999) की धारा 2 (ञ) के तहत “नि:शक्त व्यक्ति” से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है जो स्वपरायणता, प्रमस्तिष्क घात, मानसिक मंदता या ऐसी अवस्थाओं में से किन्हीं दो या अधिक अवस्थाओं के समुच्चय से संबंधित किसी भी अवस्था से ग्रस्त है और इसके अंतर्गत गुरुत्तर बहुनिःशक्तता से ग्रस्त व्यक्ति भी है।
आग्ल भाषा में विकलांगता के कई समानार्थक शब्द प्रचलन में हैं। ये शब्द हैं: (क) विकलांगता, (ख) अंग-दोष और (ग) निर्योग्यता लेकिन इन तीनों शब्दों के अर्थों में मूलभूत फर्क भी है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तीनों शब्दों को अर्थ को स्पष्ट करने की कोशिश की है । संगठन (1976) के अनुसार ‘अंग-दोष शरीर के ढाँचे और हुलिए की तथा प्रणालियों के कार्यकलाप संबंधी असामान्यताएँ, जो किसी भी कारण से उत्पन्न हो सिद्धांततः अंग-दोष अंगों के स्तर पर व्यवधानों के सूचक होती हैं।”
वहीं विकलांगता, व्यक्ति के कार्यकलाप और गतिविधि की दृष्टि से अंगदोष के परिणाम को करती है। इस तरह विकलांगता व्यक्ति के स्तर पर व्यवधान की सूचक होती है।
निर्योग्यता का संबंध अंगदोषों और निर्योग्यताओं के फलस्वरूप व्यक्ति को आनेवाली परेशानियों से होता है। इस तरह निर्योग्यताएँ व्यक्ति के वातावरण से अंतःक्रिया को प्रतिबिम्बित करती है।
इस तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन के दृष्टिकोण में अंग-दोष अंगों के स्तर की, निर्योग्यताएँ अंग-दोषों के फलस्वरूप व्यक्ति या मनुष्य स्तर की और निर्योग्यताएँ अंगदोषों और निर्योग्यताओं के फलस्वरूप एक व्यक्ति के वातावरण के स्तर की चीजें हैं। ये तीनों शब्द विकलांगता के कार्बनिक मॉडल पर आधारित है।
1. अंध (Blind) – अंधता उस अवस्था को निर्दिष्ट करती है जहाँ कोई व्यक्ति निम्नलिखित अवस्था में से किसी एक से ग्रसित है:
(i) दृष्टि का पूर्ण अभाव; या (ii) सुधारक लेंसों के साथ बेहतर नेत्र में दृष्टि की तीक्ष्णत जो 6/60 या 20/200 (स्नेलन) से अधिक न हो; या (iii) दृष्टिक्षेत्र की सीमा जो 20 डिग्री कोणवाली या उससे बदत्तर है।
2. कम दृष्टि (Low Vision) – कम दृष्टिवाला व्यक्ति से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है जिसकी उपचार या मानक अपवर्तनीय संशोधन के पश्चात् भी दृष्टि क्षमता का ह्रास हो गया है, किन्तु जो समुचित सहायक युक्ति से किसी कार्य की योजना या निष्पादन के लिए दृष्टि का उपयोग करता है या उपयोग करने में संभाव्य रूप से समर्थ है। इस दृष्टि निःशक्तता के अंतर्गत व्यक्ति की केन्द्रीय तीव्रता सही चश्मे की सहायता से 20/70 से अधिक नहीं हो पाती पीड़ित व्यक्ति पढ़ते समय जल्दी-जल्दी, बार-बार पलकें झपकाता है । आँखों की पुतलियों को लगातार अलग-अलग दिशाओं में घुमाता है। पुस्तक को आँख के अधिक निकट लाकर पढ़ता है। कार्निया ओपेसिटी कार्निया दुर्घटना, मानसिक आघात आदि कारणों से ऐसा होता है।
3. कुष्ठ रोग मुक्त (Leprosy- Cured) – ‘कुष्ठ रोग मुक्त व्यक्ति’ से कोई ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है, जो कुष्ठ रोग से मुक्त हो गया है किन्तु –
(i) हाथों या पैरों में संवेदना की कमी और नेत्र और पलक में संवेदना की कमी और आंशिक घात से ग्रस्त हैं किन्तु प्रकट विरूपता से ग्रस्त नहीं है।
(ii) प्रकट विरूपता और आंशिक से ग्रस्त हैं, किन्तु उसके हाथों और पैरों में पर्याप्त गतिशीलता है, जिससे सामान्य आर्थिक क्रियाकलाप कर सकता है।
(iii) अत्यंत शारीरिक विरूपता और अधिक वृद्धावस्था से ग्रस्त है जो कोई भी लाभपूर्ण उपजीविका चलाने से रोकती है।
4. श्रवण अक्षमता (Hearing Impaired) – नि:शक्त व्यक्ति अधिनियम, 1995 के अनुसार – ” श्रवण अक्षमता से तात्पर्य है संवाद संबंधी रेंज की आवृत्ति में बेहतर कर्ण में 60 डेसीबेल या अधिक की हानि। “
आंशिक श्रव्यबाधाग्रस्त निःशक्तता के तहत श्रवण क्षमता आंशिक रूप से प्रभावित होती है। इस प्रकार के बहरेपन से पीड़ित बच्चे / व्यकित लगभग 5 फीट की दूरी पर हो रही बातचीत को सुन पाने में कठिनाई महसूस करते हैं। यदि इस प्रकार का बहरापन अधिक आयु में हो तो भाषा के विकास पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। इसे श्रवण शक्ति मापक यंत्र की सहायता से मापकर वर्गीकृत किया जा सकता है। इसमें ग्रस्त बच्चे / व्यक्ति सामान्य ध्वनियों में अंतर करने की क्षमता में कमजोर होते हैं, कान की बनावट विकृत हो सकती है इत्यादि । यह दो अवस्थाओं में मुख्यत: (i) जन्मजात (ii) गर्भावस्था में कोई कमी हो जाना, नशीली औषधि सेवन, प्राणवायु का अभाव, जन्म के बाद कान में संक्रमण, दुर्घटना, घातक रोग कनफेड़ा, इन्फ्लूएंजा आदि के कारण हो सकता है।
वाक् / भाषा विकार संबंधी निःशक्तता (Special Language disability)- हकलाना, आवाज में गम्भीर, उच्चारण की समस्या आदि जो बच्चों की आंतरिक भावनाओं, शिक्षण अधिगम प्रक्रिया या अन्य बच्चों के साथ निर्वाह करने की प्रक्रिया को लगातार प्रभावित करे, उसे वाक् दोष युक्त निःशक्तता कहा जाता है।
5. चलन निःशक्तता (Locomotor Disabled)- नि:शक्त व्यक्ति अधिनियम, 1995 के मुताबिक- ‘चलन निःशक्तता से हड्डियों जोड़ों, मांसपेशियों की कोई ऐसी निःशक्तता अभिप्रेत है, जिससे अंगों की गति में पर्याप्त निबंधन या किसी प्रकार का प्रमस्तिष्क घात हो ।’ पीड़ित व्यक्ति के शरीर की मांसपेशियों में विकृति आ जाने के कारण अंगों का घूमना कठिन हो जाता है। एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने में दिक्कत होती है। उनकी शारीरिक कार्य क्षमताएँ सीमित हो जाती हैं। सामान्यतः यह विकलांगता हाथ, पैर, कमर आदि में स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है। रीढ़ की हड्डी का टेढ़ापन, अंगों में अवांछित हलचल, अंगों को फैलाने शिकोड़ने, मोड़ने, घुमाने की परेशानी अनुभव होती है। जोड़ों में दर्द की शिकायत, मांस-पेशियों के कार्य में लचीलेपन की जगह सख्त होने के कारण ऐसे बच्चे, शारीरिक रूप से अक्षमता की श्रेणी में आते हैं। पोलियो, लकवा, कुपोषण, मानसिक रोग, शारीरिक दुर्घटना आदि इस निःशक्तता को जन्म देती है।
6. मानसिक मंदता (Mentally Retarded) – नि:शक्तता अधिनियम 1995 के अंतर्गत “मानसिक मंदता से अभिप्रेत है, किसी व्यक्ति के चित्त की अवरुद्ध या अपूर्ण विकास की अवस्था जो विशेष रूप से वृद्धि की अवसामान्यता द्वारा अभिलक्षित होती है । मानसिक मंदता के शिकार व्यक्तियों की बुद्धिलब्धि औसत से सामान्यतया काफी कम होती है।” आंशिक मानसिक मंदता से पीड़ित बच्चों की बुद्धि लब्धि 55-69 तक होती है। ये शिक्षणीय मंदित बालक कहलाते हैं। ऐसे बच्चे स्वतंत्र जीवन निर्वाह कर सकते हैं। इनमें अमूर्त चिंतन करने में कठिनाई अनुभव होती है। दूसरी ओर साधारण सीमित बुद्धि निःशक्तता पीड़ित बच्चों की बुद्धिलब्धि 40-54 तक होती है। इन्हें प्रशिक्षण देने योग्य माना जाता है। इनमें शारीरिक संतुलन की कमी होती है तथा इन्हें लगातार पर्यवेक्षण की आवश्यकता होती है।
7. मानसिक रुग्णता (Mental Illness) – मानसिक रुग्णता से अभिप्रेत है मानसिक मंदता से भिन्न कोई मानसिक विकार। मानसिक रुग्ण व्यक्ति कई तरह की मानसिक बीमारियों से ग्रसित होते हैं। इनकी बुद्धिलब्धि हालाँकि औसत होती है लेकिन कई कारणों से उनकी मनोदशा असामान्य हो जाती है।
हालाँकि विकलांगता अधिनियम, 1995 में अधिगम अक्षमता को विकलांगता की किसी श्रेणी में नहीं रखा गया है लेकिन हमारे समाज में ऐसे बच्चों की कमी नहीं है जिनके सीखने की प्रक्रिया काफी धीमी होती है। ऐसे बच्चे ‘स्लो लर्नर’ कहलाते हैं । इसलिए यहाँ अधिगम अक्षमता ग्रस्त बच्चों की चर्चा करना लाजिमी है।
8. अधिगम अक्षमता (Learning Disability) – अधिगम अक्षमता से अभिप्रेत सीखने की अक्षमता से है। इस समस्या से ग्रस्त बच्चों की सीखने की गति धीमी होती है। बच्चे किसी चीज को सही ढंग से न तो पढ़ सकता है और न ही लिख सकता है। इसलिए उन्हें स्लो लर्नर, वर्ड ब्लाइंड या डिस्लेक्सिक भी कहा जाता है। डिस्लेक्सिया से पीड़ित बच्चे पढ़ने की कठिनाई अनुभव करते हैं। इस दोष को शब्द अंधता भी कहा जाता है। इस प्रकार के बच्चे ‘नाम’ को ‘मान’, ‘राम’ को ‘आम’, आदि पढ़ते हैं जबकि डिस्ग्राफिया से पीड़ित बच्चों को लिखने में कठिनाई होती है। ऐसे बच्चे ‘ध’ को ‘घ’ और ‘D’ को ‘C’ आदि लिखते हैं। वहीं से पीड़ित बच्चे को गणितीय संगणना में कठिनाई होती है।
9. स्वपरायणता (Autism) – कौशल विकास की वह अवस्था जो मुख्य रूप से किसी व्यक्ति के संप्रेषण और सामाजिक योग्यताओं को प्रभावित करती है जो आवृत्तिमूलक और सांस्कृतिक व्यवहार से परिलक्षित होती है। इस विकृति से पीड़ित बच्चों को शारीरिक एवं मानसिक विकास के साथ-साथ उनका सामाजिक और भाषाई कौशल भी नहीं विकसित हो पाता है। ऐसे बच्चों को अपने माता-पिता भी प्यारे नहीं लगते हैं। वह हमेशा अपने आप में ही लीन रहने लगता है। इसलिए इस विकृति को ‘स्वलीनता’ भी कहा जाता है। लड़कियों की तुलना में लड़कों में यह विकृति अधिक पायी जाती है।
10. प्रमस्तिष्क घात (Cerebral Palsy) – किसी व्यक्ति के अविकासशील अवस्थाओं का वह समूह जो विकास की प्रसवपूर्व प्रसवकालीन या बाल अवधि में होने वाले दिमागी आघात या क्षति के परिणामस्वरूप अप्रसामान्य प्रेरक नियंत्रण स्थिति द्वारा अभिलक्षित होता है। यह कोई रोग नहीं बल्कि विकास के दौरान केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र में आने वाली विकृति के चलते शारीरिक गति और हाव-भाव में होने वाला असामान्य परिवर्तन एवं विकृति है । यह शैशवावस्था से प्रारंभ होकर आजीवन चलती रहती है।
11. बहुनि:शक्तता (Multiple Disabled) – एक साथ दो या दो से अधिक प्रकार की अक्षमताओं से ग्रस्त होना भी बहुनिःशक्तता कहलाती है। जैसे-शारीरिक अक्षमता के साथ-साथ श्रवण अक्षमता अथवा अंध अक्षमता के साथ-साथ श्रवण अक्षमता (बधिरांधता) अथवा मानसिक अक्षमता के साथ-साथ शारीरिक अक्षमता ग्रस्त होना।
बधिरांधता एक ऐसी स्थिति है जिसमें श्रवण एवं दृष्टि अक्षमताओं के मेल के फलस्वरूप संप्रेषण, बोधात्मक तथा अन्य विकासात्मक आवश्यकताओं के गंभीर हो जाने के कारण बंधिरांध बच्चा अन्य बच्चों के लिए निर्धारित शिक्षण कार्यक्रमों में तब तक सम्मिलित नहीं हो पाता है जब तक कि उसकी शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पूरक उपाय नहीं किए जाएँ।
गर्भावस्था के दौरान माँ को रूबेला, एड्स, हरपिस या सिफलिस का संक्रमण के कारण बधिरांधता होने की संभावना रहती है। जन्म के तुरंत बाद बच्चे द्वारा सांस नहीं लेना, सिर में चोट लगना, मिर्गी आना, एन्सीफलाइटिस और मेनिन्जाइटिस के संक्रमण से भी बधिरांधता होता है।
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